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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday 14 March 2019

बीरेश्वर भटाचार्य - बिहार की समकालीन चित्रकला के जनक

 आतंकवाद, अहिंसा, राजनैतिक व्यंग और प्रेम की अभिव्यक्ति 


एक दौर था जब देश में सिर्फ शांतिनिकेतन ,जे जे, बड़ोदा, दिल्ली और मद्रास के कलाकारों की ही चर्चा होती थी। आज स्थिति बदली है अब कला जगत में किसी न किसी रूप में बिहार के कलाकारों की चर्चा हो ही जाती है जिसका श्रेय बीरेश्वर दा को दिया जाना चाहिए। देश विदेश में क्या हो रहा है इसकी जानकारी अपने शिष्यों तक पहुँचाने की बात हो राज्य अकादमी की कोई आल इंडिया प्रदर्शनी, बिनाले, नेशनल या गढ़ी स्कालरशिप हो इसके अलावा ललित कला अकादमी के सदस्य के रूप में बिहार के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता l इनके द्वारा अनुमोदित गढ़ी स्कालरशिप लेनेवाले सभी कलाकार आज सक्रिय हैं l 

बीरेश्वर भटाचार्य पटना आर्ट कॉलेज के छात्र भी रहे हैं और बाद में कला गुरु भी l आज भारतीय समकालीन कला के चर्चित कलाकारों में से कुछ तो उनके प्रिय शिष्य रह चुके हैं l 26 जुलाई 1935 कमलापुर ढाका बांग्ला देश में जन्मे बीरेश्वर भटाचार्य को ललित कला अकादमी की और से राष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चूका है इंश्योरेंस कंपनी में कार्यरत कुलेश्वर भटाचार्य के पुत्र बीरेश्वर दा को आज बिहार के सभी कलाकार अपना अभिभावक समझते हैं l 

बचपन में ढाका की पढाई के बाद कोलकाता आये फिर 1950 में पटना के नयाटोला में रहे तथा आगे की पढाई पी एन एंग्लो स्कूल में हुई l यदुनाथ बनर्जी के सहयोग से इनके पिताजी ने पटना आर्ट कॉलेज में कमर्शियल आर्ट में इनका नामांकन करवा दिया l पास करने के बाद राधामोहन प्रसाद और उपेंद्र महारथी ने इनकी प्रतिभा को देखते हुए इन्हें कालेज में नियति करवाईl स्कालरशिप मिलने पर कई बार ये विदेश भी गए दुनियाभर की कला से परिचित होने का मौका मिला l 

ये अपने समकालीन अशोक तिवारी ,अनिल सिन्हा तथा प्रमोद जी जैसे कलाकारों एवं रेनू जी ,बेनीपुरी जी एवं सतीश आनद जैसे संस्कृतिकर्मियों के साथ पटना की सक्रिय कला गतिविधियों से जुड़े रहेl चर्चित छापाकलाकार श्याम शर्मा जी के साथ 'ट्रैंगल' नामक ग्रूप की स्थापना की तथा इस ग्रुप के माध्यम से देश में कई जगह बिहार के कलाकारों की प्रदर्शनी भी आयोजित हुई

अनिल बिहारी, मिलन दास और श्याम शर्मा जी के साथ प्रभाव संस्था की स्थापना की और कई समूह चित्र प्रदर्शनियां की l उसी दौरान बिहार ललित कला अकादमी और शिल्प कला परिषद् की भी स्थापना हुई l  उस दौर के कलाकारों का मानना है दिल्ली का दरवाजा शिल्प कला परिषद् की वजह से ही खुला l जब स्वामीनाथन त्रिनाले के डाइरेक्टर बने तो उनका ध्यान इन्होने बिहार की कला और कलाकारों की और आकृष्ट किया l दिल्ली ललित कला अकादमी की दीर्घा में भी इनके ही प्रयास से बिहार के कलाकारों की पहली समूह प्रदर्शनी आयोजित हुई l 

बचपन में ही दंगा को करीब से देखनेवाले बीरेश्वर दा की पेंटिंग भी आतंकवाद, अहिंसा, राजनैतिक व्यंग और प्रेम से भरी होती है l मेरे विचार से आधुनिक कलाकारों में से अगर कोई नाम पद्मश्री के लिए सबसे पहले भेजने लायक है वो है हमारे बीरेश्वर दा l हालाँकि दुःख की बात है बिहार के आधुनिक कलाकारों में से पद्मश्री सम्मान के लिए आज तक किसी नाम पर सहमति नहीं बन पायी और आज तक किसी को ये सम्मान मिला भी नहीं l 

दो साल पहले मैं कोलकाता में उनके घर गया था वे आज भी बिहार की कला और कलाकारों के लिए चिंतित रहते हैं l बंगाल में रहनेवाले कलाकारों से ज्यादा उनकी खोज खबर बिहार के ही कलाकार लेते रहते हैं l यही वजह है कि आज भी किसी कार्यशाला में अगर उनका बिहार आना होता है तो बिहार की कला गतिविधियों के सहायतार्थ अपने पैसे भी वे देने से नहीं चूकते l
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आलेख - रवीन्द्र दास 
छायाचित्र सौजन्य - रवीन्द्र दास 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com


  


  



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