बचपन में ढाका की पढाई के बाद कोलकाता आये फिर 1950 में पटना के नयाटोला में रहे तथा आगे की पढाई पी एन एंग्लो स्कूल में हुई l यदुनाथ बनर्जी के सहयोग से इनके पिताजी ने पटना आर्ट कॉलेज में कमर्शियल आर्ट में इनका नामांकन करवा दिया l पास करने के बाद राधामोहन प्रसाद और उपेंद्र महारथी ने इनकी प्रतिभा को देखते हुए इन्हें कालेज में नियति करवाईl स्कालरशिप मिलने पर कई बार ये विदेश भी गए दुनियाभर की कला से परिचित होने का मौका मिला l
ये अपने समकालीन अशोक तिवारी ,अनिल सिन्हा तथा प्रमोद जी जैसे कलाकारों एवं रेनू जी ,बेनीपुरी जी एवं सतीश आनद जैसे संस्कृतिकर्मियों के साथ पटना की सक्रिय कला गतिविधियों से जुड़े रहेl चर्चित छापाकलाकार श्याम शर्मा जी के साथ 'ट्रैंगल' नामक ग्रूप की स्थापना की तथा इस ग्रुप के माध्यम से देश में कई जगह बिहार के कलाकारों की प्रदर्शनी भी आयोजित हुईl
अनिल बिहारी, मिलन दास और श्याम शर्मा जी के साथ प्रभाव संस्था की स्थापना की और कई समूह चित्र प्रदर्शनियां की l उसी दौरान बिहार ललित कला अकादमी और शिल्प कला परिषद् की भी स्थापना हुई l उस दौर के कलाकारों का मानना है दिल्ली का दरवाजा शिल्प कला परिषद् की वजह से ही खुला l जब स्वामीनाथन त्रिनाले के डाइरेक्टर बने तो उनका ध्यान इन्होने बिहार की कला और कलाकारों की और आकृष्ट किया l दिल्ली ललित कला अकादमी की दीर्घा में भी इनके ही प्रयास से बिहार के कलाकारों की पहली समूह प्रदर्शनी आयोजित हुई l
दो साल पहले मैं कोलकाता में उनके घर गया था वे आज भी बिहार की कला और कलाकारों के लिए चिंतित रहते हैं l बंगाल में रहनेवाले कलाकारों से ज्यादा उनकी खोज खबर बिहार के ही कलाकार लेते रहते हैं l यही वजह है कि आज भी किसी कार्यशाला में अगर उनका बिहार आना होता है तो बिहार की कला गतिविधियों के सहायतार्थ अपने पैसे भी वे देने से नहीं चूकते l
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आलेख - रवीन्द्र दास
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