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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday 12 March 2019

जनवादी लेखक संघ भोजपुर द्वारा 10.3.2019 को आरा में आयोजित कवि गोष्ठी संपन्न

अभी कुछ लम्हा फुरसत है तो दर्दों गम बयां कर ले


जनवादी लेखक संघ के तत्वावधान में रचना गोष्ठी का आयोजन दिनांक10 मार्च 2019 को आरा के 'द स्टडी सेंटर भवन' में किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र कुमार और प्रतिष्ठित शायर कुर्बान आतिश ने संयुक्त रूप से की। गोष्ठी की शुरुआत रवि शंकर सिंह की कविताओं से हुई। 

कवि-चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर ने व्यवस्था की साजिशों को पर्दाफाश करती आम आदमी के प्रतिरोध की कविताएं सुनाई। शायर इम्तियाज़ अहमद ने 'अभी कुछ लम्हा फुरसत है तो दर्दों गम बयां कर ले और क्यों नहीं फिरसे वो माहौल बनाया जाए' जैसी गजलें सुनाई। ओम प्रकाश मिश्र ने 'दर्ज करो' कविता का पाठ किया। 

स्वतंत्र पत्रकार आशुतोष कुमार पाण्डेय ने समकालीन कविताओं कि दशा और समय की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। सुनील चौधरी ने 'प्रेम और नफरत' शीर्षक कविता के माध्यम से धर्म समाज और राजनीति की विडंबनाओं पर प्रकाश डाला। 'सुनो सोना' और 'कुकनूस' नामक कविता संग्रह के रचयिता सिद्धार्थ वल्लभ ने 'आदि मंत्र' और 'प्रतिबिंब' शीर्षक की कविताएं सुनाई।

कवि अरुण शीतांश ने 'थोड़ा पानी' नामक कविता का पाठ किया। 
थोड़ा पानी
नहीं जानता थार 
सहारा
सोन
के कण - कण को
रंग को जानता हूँ
जो मेरे कुरते से मिलता- जुलता है

कोई सूरज या चाँद को
 उगने से नहीं रोक सकता यहाँ

थोड़ा पानी भी है 
दो प्राणी के लिए 
छककर पी लेंगे

थोड़़ा और रंग हो
सवर्ण- मृग सा
मेरी प्रेमिका से मिलता- जुलता

टूटी हुई
बिखरी हुई शाखाओं पर
सोने दें एक रात जी भर ..

कोई सुबह - सुबह डायरी, पेन दे यहाँ
जहाँ बहा दूँ स्याही का रंग 
सोखता है यहाँ

कमी है तो क्या है
माड़ पी रह जायेंगे कई दिन
ज्यादा जीना कोई शुभ नहीं 

कविता ही शुद्ध है
और ये बालू के कण 

जिनमें शीशा कम है ...

सुमन कुमार सिंह ने अपने हिंदी और भोजपुरी गीतों से गोष्ठी में जान डाल दी। संस्कृतिकर्मी अंजनी शर्मा ने वर्तमान समय में सच कहने के संकट पर प्रकाश डाला। 

सुनील श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं के माध्यम से समय की विडंबनाओं को प्रतिबिंबित किया। कुर्बान आतिश की गजल 'मेरे अश्कों को आंखों से छलक जाना नहीं आता' श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। 

जितेन्द्र कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि यहां के कवि शायर राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने स्वामी सानंद पर कविता पढ़ी। संचालन रवि शंकर सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन बाल रूप शर्मा ने।
.....
आलेख - सुनील श्रीवास्तव 
छायाचित्र - जलेस 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahooo.com
नोट- भाग लेनेवाले कविगण कृपया पढ़ी गई कविता की पंक्तियाँ ऊपर दिए गए ईमेल आईडी पर भेजें. धन्यवाद.













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