जीत अपनी न हुई हार जमाने की हुई
ज़िंदगी में कुछ हकीकत होती है कुछ फंतासी भी. कठिन से कठिन दौर में भी आदमी इश्क करना नहीं छोड़ता. रेतिस्तान की चिलचिलाती धूप में भी हम बादलों के गीत गाकर खुद को ज़िंदा रखते हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम हकीकत से भाग रहे होते हैं. दर-असल ऐसा करके हम अपनी ताकत जुटा रहे होते हैं ताकि जीवन-संघर्ष का पुरजोर तरीके से सामना किया जा सके.
मशहूर शायर और फिल्मी गीतकार इब्राहीम अश्क के पटना आगमन पर उनके साथ एक काव्य गोष्ठी का आयोजन टैगोर एडुकोन, बोरिंग रोड, पटना में किया गया. कई शायर- शायरा और कवियों ने अपने अंदाज में बज्म को पुरनूर बनाया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभात सरसिज ने की और कुशल संचालन संजय कुमार कुन्दन ने किया.
डॉ.शमा नास्सीन नेे किसी के हँसीं वादों से पूरी तरह बर्बाद होने की बात कही-
मुतमइन घर में न कोई महफूज है न बाहर में कोई
ऐसे बिगड़े हुए हालात से डर लगता है
मुझको बर्बाद किया तेरे हँसीं वादों ने
तिरी वादों की तिलिस्मात से डर लगता है
लेकिन वहीं मोईन गिरिडीहवी किसी की अंगराइयों से बिखरी चाँदनी में डूबे नजर आए-
वो जो अंगराइयाँ ले छतों पर
फिर अमावस में चाँदनी होगी
हर तरफ नूर का बसेरा है
दिल की शमाँ कहीं जली होगी
विभूति कुमार ने खुद को जख्मों का डेरा बता डाला-
अगर जख्मों पे लिखना हो मिलें मुझसे ही
जी फूलों का करे उनका शहर देखिए
मुहब्बत क्या है गर है आपको जानना
कभी मीरा के प्याले का जहर देखिए
नीलांशु रंजन ने ऊर्दू को गालों पर तिल वाली महबूबा जैसी खूबसूरत बताया-
कभी मेरी ख़ुशियों में वो शामिल थी / उर्दू ज़ुबाँ की तरह
जिसमें नज़ाकत है, नफ़ासत है / और है बेइंतिहा कशिश
जिसका हर लफ्ज़ / उस महबूबा की तरह है
जिसके रुख़सार पे बैठा तिल / खींचता है निगाहों को कहीं दूर से ही
ओसामा खान खुद में खुद को तलाशते दिखाई दिए-
भीड़ तो हूँ
पर भीड़ से अलग भी हूँ
कुछ के लिए खास हूँ
खुद में खुद की तलाश हूँ
अविनाश अम्न ने अपनी निगाहें एक सुंदरी पर टिकाते हुए कहा-
निगाहें तो मेरी तुम्हीं पर रहेंगी
तुम्हीं अपना चेहरा नजर से हँटा लो
ये माना कि राहों में दुश्वारियाँ हैं
अगर आ न पाओ मुझे ही बुला लो
समीर परिमल ने मूसूम चीखों पर बनी इमारत की पोल खोल दी-
उसी कातिल का सीने में तेरे खंजर रहा होगा
जो छुपकर बहुत अहसास के अंदर रहा होगा
तेरी बुनियाद में शामिल कई मासूम चीखें हैं
इमारत बन रही होगी गो क्य मंजर रहा होगा
डॉ रामनाथ शोधार्थी जब से ईमान बेचकर आए तब से उन्हें अपने ज़िंदा होने का अहसास नहीं रहा है-
पत्थर कि देवता हूँ मुझे कुछ पता नहीं
तू ही बता कि क्या हूँ मुझे कुछ पता नहीं
लौटा हूँ जब से अपना मैं ईमान बेचकर
ज़िंदा हूँ या मरा हूँ मुझे कुछ पता नहीं
संजय कुमार कुन्दन को लोगों ने दिल से ग़ज़ल लिखने के कारण ऐसा-वैसा करार कर दिया-
वो तो एक बड़ा शायर है बहर में ग़ज़लें करता है
हम दिल से लिखनेवाले हैं सो हम ऐसे वैसे हैं
जितना धोखा सबको दिया है उतना तो ख़ुद भी खाया
वो तो अपना माल नहीं है सबको जिसे दिखाते हैं
शहंशाह आलम बिल्लियों से डरनेवालों के झुंड में एक अकेले शख्स हैं जिन्हें शेर भी नहीं डरा पाता-
मैंने अकसर लोगों को / बिल्लियों से डरते देखा है
...अभी बिलकुल अभी / बाघ गुज़र गया मेरे सामने से
और मैं नहीं डरा
हेमन्त दास 'हिम' इस उथल-पुथल के दौर में पत्तों और फूलों में छुपने में अपनी भलाई समझ रहे हैं-
पत्ते पत्ते फूल व खुशबू
प्यारा प्यारा हर लम्हा
नदी के बहते पानी पर
'हिम' ने लिख डाला किस्सा
अता आब्दी फिर से इस बज़्म को पटरी पर लाते हुए बेकार की जंग के हासिल को रखा-
यूँ ही गुजरा है तेरा दौर मसीहाई का
मुझको जुर्रत न कभी जख्म दिखाने की हुई
जंग ही ऐसा था कि कुछ जंग का हासिल यूँ था
जीत अपनी न हुई हार जमाने की हुई
प्रभात सरसिज अन्याय और विद्रूपताओं से लड़नेवाले अपेन बाघ को चिडियाघर भेजनेवालों से बचाकर रखा-
ध्यान रखना होगा कि / कोई जाली आलोचक
कोई मायावी कवि / कोई गिरगिट रंगकर्मी
इंद्रजाल करनेवाला कोई कलाकार
हमारे इस बाघ को / चिड़ियाखाना न ले जाए
इस अवसर पर अमरनाथ झा एवं जानेमाने लेखक शौकत हयात भी मौजूद थे. अंत में टैगोर एडुकोन के अमित कुमार ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापण करते हुए कहा कि साहित्य को पढ़ने पर कोई अपने करियर में सफल हो या नहीं यह नहीं कहा जा सकता लेकिन वह एक अच्छा इंसान बनेगा यह शर्तिया तय है. अंत में अध्यक्ष की अनुमति से सभा विसर्जित की गई. यह कवि-गोष्ठी छोटी ही सही नहीं लेकिन यादगार रही.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / डॉ. रामनाथ शोधार्थी
छायाचित्र- विभूति कुमार
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