The moon is the same
Whom we can gaze from here also
Through our bare eyes
No no
Through the eyeglasses
Or through the lenses by people having dysopia
Though essentially with no exception
Taking out the goggles
Nowadays encircled by the Hitlerian queries
The topic has turned political disproportionately large
Is some sort of physical deficiency
Feebleness, sickness
Whereas a fight
Is creating a handicap of sorts of a new kind
At several places
Amidst many many corpses
But the moon is the same
Whom I use to gaze at
From the gazebo of my paternal home
After losing the battle
Coming back to homeland
The moon is the same
Sparkling from the secure gazebo
That made me run hither and thither
In that alien city
Merely for a secure gazebo..
कविता-2
स्याही, काजल, लिखाई
क्यों होता है औरत के
लिखने में
स्याही के साथ साथ
इतना ढ़ेर सारा काजल
क्यों होती है उसके घर
के बर्तनों की आवाज़
इस प्रश्न से पहले
कि क्या बजाती है वह
कोई साज़
क्यों होती है उसके
प्यार कर लेने की हिमाकत
जबकि प्यार बरसों से
अधिकार रहा है
पुरुषों का
और गाय की तरह
खूँटे से बांधी जाती
रही है औरत
और मशहूर हैं किस्से
उनके खूँटे तोड़कर
भागने के
धराने, दफनाए भी जाने के
फिर भी चलती है
औरत की लिखाई
सारे क्रिया कर्मों के
बाद
फिर भी क्यों होता है
उसके लिखने में
काल कोठारिओं का
अँधेरा
और रौशनी केवल चूल्हे
के पास की
खुशबू भी केवल चूल्हे
के पास की
सारे अद्भुत आयातित
नाम
केवल मसालों के
धूप केवल आँगन की
संगीत अन्न के फटके, चुने जाने का
क्यों होती है
इन सब कामों की
लम्बी फेहरिस्त
औरत की लिखाई में
चूड़ियों के उतार दिए
जाने के बाद भी
आवाज़ उसकी
जो पता नहीं क्यों
बनते बनते रह जाती है
झंकार
लेकर भाषा से सारे
अलंकार
रंग भी खूब ढ़ेर सारे
नई दुल्हन के सजे हुए
अरमानों से
जो फीके पड़ते गए साल
दर
उसके अपने
या कुछ उसने ही फीका
पड़ने दिया
लगातार खुशियों की
परीक्षा की कसौटी पर
और वो करते रहे
प्रबुद्ध बातें
लोगों की आत्माओं की
मिट्टी की
जिससे पनपना था बहुत
कुछ को
ईमान के भी पेड़ को
लेकिन सबकुछ तब्दील
होता गया
पैसे कमाने की होड़ में
सारी शक्ति का, गुणवत्ता का
पैमाना बना पैसा
फिर भी औरत लिखती रही
और उसकी लेखनी में
दहकर आता रहा
ढ़ेर सारा
काजल...........
...
मूल हिंदी कविताएँ (Original Hindi poem) - पंखुरी सिन्हा (Pankhuri Sinha)
कवयित्री का यूट्यूब चैनल (Youtube channel of the poet) -
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अंग्रेजी अनुवाद (Translated into English by) - हेमन्त दास 'हिम' (Hemant Das 'Him')
कवयित्री-परिचय: पंखुरी सिन्हा एक चर्चित कवयित्री हैं जिन्हें राजस्थान पत्रिका, 2017 सम्मान, शैलेश मटियानी चित्रा कुमार पुरस्कार,2007-08, गिरिजा कुमार माथुर पुरस्कार समेत अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित किया जा चुका है.. इनकी कविताओं में प्रवासी भारतीयों की पीड़ा और नारी स्वर काफी सशक्त रूप से बाहर आता है. साथ ही यह राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय गतिविधियों पर भी अपनी दृष्टि रखती हैं जो कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त होता रहता है. इन्होने अपने जीवन के 13 वर्ष अमेरिका में गुजारे हैं और जीवन के अनेक नारीगत कटु अनुभवों का सामना किया है जो कविताओं में गाहे-बगाहे बिना किसी लाग-लपेट के निरावरण प्रदर्शित होता है. इनका पैत्रिक घर मुजफ्फरपुर में है और वर्तमान में ये दिल्ली में रह रहीं हैं.
Introduction of the poet: Pankhari Sinha is a famous poet who has been honored with many awards including Rajasthan Patrika award, 2017, Shailesh Matiani Chitra Kumar Award, 2007-08, Girija Kumar Mathur Award. In her poems, the pain of Indian expatriates and woman's voice come out quite emphatically. At the same time, she keeps her eyes on national and international activities which is often reflected in her poems. She has spent 13 years of her life in the United States and has faced many of the bitter experiences of life, which is expressed in her poems without any veil. Her paternal home is in Muzaffarpur (Bihar) and she lives in Delhi at present.
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