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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday, 4 September 2018

साहित्य परिक्रमा की कवि-गोष्ठी 2.9.2018 को पटना में सम्पन्न

तुम तो बस जमूरे थे / डमरू हमारा था, रस्सी भी हमारी थी




श्रीकृष्ण एक ऐसी सत्ता का नाम है जिसमें पुरुषत्व भी है और देवत्व भी. वह एक ऐसा निकाय है जो प्रेम का उद्गम-स्रोत भी है और जिसे सांसारिक प्रपंचों का भी पूरा ज्ञान है. जन्माष्टमी के दिन आयोजित साहित्य परिक्रमा की कवि-गोष्ठी की छटा भी कुछ इसी तरह की थी. एक कृष्ण यहाँ भी लीला  कर रहा था- कभी मुरली बजाता हुआ और कभी दाँव-पेंच के साथ समस्याओं से दो-दो हाथ करता हुआ. गोष्ठी मधुरेश नारायण के आवास पर, रामगोबिन्द पथ, कंकड़बाग, पटना में 2.9.2018 को आयोजित हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की संचालन  मो. नसीम अख्तर ने किया. इसमें अनेक वरिष्ठ और युवा कवि-कवयित्रियों ने अपनी भागीदारी की.

मधुरेश नारायण ने दौपदी की उपमा देकर आज की नारी की स्थिति का बखान किया-
द्रौपदी बनी आज की नारी खड़े सभी चीर हरण को
धन-लोलुपता के आगे कोई बढ़ता नहीं सीता वरण को 
आज बचा लो लज्जा इनकी ओ राधे के श्याम

सिद्धेश्वर नारी की दौपदी की सी हालत देखकर आगबबूला थे-
एक लिबास क्या उतरा 
औरत के जिस्म से
धर्म, कानून, समाज 
सबके सब नंगे हो गए

प्रभात कुमार धवन एक बार राह भटक कर गाँव चले गए तो यह  निष्कर्ष निकाल लाये-
हरियाली ही धन था वहाँ का
इसलिए स्वस्थ थे वहाँ के लोग

एम. के. मधु ने धूर्त नेताओं और भोली जनता के बीच के रिश्ते को यूँ बताया-
तुम तो बस जमूरे थे
कदम तुम्हारे थे, ताल तुम्हारे थे
डमरू हमारा था, रस्सी भी हमारी थी

शशिकान्त श्रीवास्तव यह देखकर दंग रह गए कि मोबाइल और इंटरनेट में वंचित वर्ग भी कुछ यूँ मगन हैं कि-
रोटी के लिए न कोई हो-हल्ला न कोई विरोध प्रदर्शन 
मानों हम सब हों संतुष्ट मिल रहा हो पेट भर भोजन

गहवर गोवर्धन को बहारों की बजाय अब दिखते हैं बस पत्थर ही पत्थर.
जिनमें खुशरंग बहारों की छटा देखी है
पत्थरों की उन्हीं आँखों में फ़िज़ाँ देखी है

रविचन्द्र पासवाँ किन्हीं उत्तुंग लहरों से काफी परेशान थे-
लहरों के लिए वो महज खेल था
याँ मिटता रहा वजूद किनारों का

सीताराम कलाकार ने नारी भ्रूण हत्या का मुदा सशक्त रूप से उठाया.
हमरा के आपन कोख में निर्ममता से वध कराके
हमार शादी के परेशानी से तू सीधे निकल गइलू

सतीश प्रसाद सिन्हा ने अपने मीत को नेह की रिमझिम को बरसने कहा-
सावन सावन मन हो जाए
रिमझिम नेह झरे
मीत तुम ऐसे गीत लिखो

हेमन्त दास 'हिम' को किसी के आने पर धूप में शीतल पवन बहने जैसा अनुभव हुआ.
तुम आये तो ऐसा लगा / धूप में शीतल पवन बहा
पत्ते पत्ते फूल व खुशबू / प्यारा प्यारा हर लम्हा

उषा नरूला हँसी ने हंसी का उपहार दिया लेकिन सिर्फ अपने पर.
अपने पर हँसो तो उपहार है
दूसरों पर हँसो तो प्रहार है

मो. नसीम अख्तर ने जमाने को रौशनी देने के लिए क्या किया देखिए-
मैं चला अपना घर जलाने को
रौशनी चाहिए जमाने को.

लता प्रासर ने अपने प्रिय की ध्वनि को कृष्ण की बाँसुरी करार दिया-
लफ्ज मेरे सरताज की कानों में पड़ी है जब से
बाँसुरी की धुन सी मानो बज पड़ी है तब से

घनश्याम को भी चारों ओर महाभारत सा दृष्य दिख रहा था-
अमन का जिस्म जब जब चोट खाकर क्रुद्ध होता है
तो जीवन मौत का जमकर भयंकर युद्ध होता है.

अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भगवती प्रसाद द्विवेदी ने उनके पूर्व पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी टिप्पणी की और कहा कि इस गोष्ठी में कवियों की तीन पीढ़ियों को एक साथ देख पाना सुखद है. फिर उन्होंने 
 कार्यालय के चतुर्थवर्गीय कर्मचारी संजैया का आँखो देखा हाल सा बताया-
हाट बाजार मैम का साहबजादे का घोड़ा
फिक से हिन-हिन करता रहता
खा-खाकर कोड़ा. 

तत्पश्चात हरेंद्र सिन्हा ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रियों का धन्यवाद ज्ञापण किया और अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की. कार्यक्रम के सफल आयोजन में आशा शरण की विशिष्ट भूमिका रही.

इसी सभा में राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच का गठन भी किया गया जिसके अध्यक्ष मधुरेश नारायण बनाये गए. इसके संरक्षक मंडल में भगवती प्रसाद द्विवेदी, सतीश प्रसाद सिन्हा, डॉ.मेहता नागेन्द्र, सीताराम कलाकार और डॉ. अविनाश कु. श्रीवास्तव रहेंगे. 
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रिपोर्ट- हेमन्त दास 'हिम' / सिद्धेश्वर
छायाचित्र- लता प्रासर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- eiditorbiharidhamaka@yahoo.com



  






















































 


 



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