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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 2 February 2017

' Bhookh' palyed at Patna on 26.01.2017 ('भूख' का पटना में मंचन)

https://www.facebook.com/dastaktheatrecompany/photos/a.564540263752486.1073741829.559429667596879/574558226084023/?type=3&theater
(गूगल के द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद नीचे प्रस्तुत है)

THREE LONELY SISTERS - Watched a play recently at Kalidas Rangalay, Patna presented by DASTAK- the theatre company. 'Bhookh' was a stunning performance I have ever seen on the stage. The story of three lonely sisters is a testimony of the extreme insensitiveness of each strata of the society. This insensitivity is often camouflaged with a pseudo-show of discharge of due human responsibility incumbent on a civilised community. The storyline hinges upon the bizarre life of three lonely young sisters self-incarcerated in their own residential flat. What actually happened which led to the death of one of the sisters by hunger and kept the two others on the verge of the same fate? The parents have died twelve years ago. The parents were ordinarily fighting though loving couple. After their death the two elder sisters joined private jobs whereas the youngest one studied at college. After some time the elder sisters were thrown out of their jobs because of predictable unseemly reasons. Having no source of income, all the three began to stay at home. They asked for financial help to everyone. Nobody co-operated. Ultimately they found that they have only two options- either to offer their youthful bodies for prostitution business or to let their bodies die for want of food. The self-esteemed sisters opted for the second.
तीन अकेली बहनें - कालिदास रंंगालयय पटना में एक नाटक 'दस्तक' संस्था द्वारा प्रस्तुत देखा।  'भूख' एक आश्चर्यजनक प्रदर्शन रहा उनमें से जो मैंने अबतक देखे हैं। तीन अकेली बहनों की कहानी समाज के प्रत्येक तबके के चरम असंवेदनशीलता का एक प्रमाण है। यह  असंवेदनशीलता अक्सर एक सभ्य समुदाय पर मानवीय जिम्मेदारी के निर्वहन के एक छद्म प्रदर्शन के साथ छिप जाता है। कहानी तीन अकेली जवान बहनों की विचित्र जीवन पर टिकी है जिन्होंने खुद को अपने आवासीय फ्लैट में कैद कर रखा है । क्या हुुुआ जो वास्तव में भूख से बहनों में से एक की मौत हो गई और उस के कगार पर दो अन्य लोगों को रखा हुआ? माता पिता के बारह साल पहले मौत हो चुकी है। माता-पिता आमतौर पर आपस में  लड़नेवाले हालांकि  अपने बच्चों से

प्यार करनेवाले जोड़े लड़ रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद दो बड़ी बहनों प्राइवेट नौकरियों में शामिल हो गए सबसे कम उम्र के एक कॉलेज में अध्ययन किया, जबकि कुछ समय के बाद बड़ी बहनों को जैसा कि आम
तौर पर होता है,  अनुचित कारणों की अपनी नौकरी से बाहर कर दिया गया। आय का इन तीनों का कोई स्रोत नहीं होने से घर पर रहने के लिए शुरू किया। वे हर किसी के लिए वित्तीय मदद के लिए कहा। कोई भी सहयोग किया। अंत में उन्होंने पाया  कि उनके पास केवल दो विकल्प हैं -या तो वेश्यावृत्ति व्यवसाय के लिए अपने युवा शरीर की पेश करे या अपने शरीर को भोजन के अभाव में मर जाने दे। आत्म सम्मानित बहनों ने दूसरे को चुना।

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