मुख्य अतिथि के रूप में लब्ध प्रतिष्ठ कवि मदन कश्यप आमंत्रित थे साथ ही प्रलेस पटना जिला इकाई की अध्यक्षा रानी श्रीवास्तव, अब्दुल बिस्मिल्लाह, कृष्ण कुमार, सत्येंद्र कुमार अनिल पतंग , रंजीत वर्मा ,पूनम सिंह, रमेश ऋतिम्भर, अरविंद श्रीवास्तव, एन के मधु , प्रभात सिंह , शिवदयाल और देवरिया (उoप्रo) से आये युवा कवि वेद प्रकाश तिवारी आदि कवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।
राज किशोर राजन ने दिवंगत कवियित्री रश्मि रेखा की लिखित पुस्तक की पंक्तियों को दुहराया और साहित्य में उनकी सशक्त भूमिका पर प्रकाश डाला। फिर उन्होंने अपनी कविता 'विलाप' के द्वारा कर्महीन विधवा विलाप की तर्ज पर शोर मचानेवालों पर कड़ा प्रहार किया -
अब तुम कहोगे मर रही हैं नदियां
विलुप्त हो रहे तालाब,कुएं,वन,पशु–पक्षी
कट रहे जंगल और संताप से भरे
खड़े हैं पहाड़।
*शाम को शहर के न्यू मार्केट में उमड़ी
यह ठसा–ठस भीड़
लोगों की नहीं ,धन पशुओं की हैऔर यह समाज
पाउडर ,क्रीम लगाया
बजबजाता हुआ सूअर का खोभाड़ है।
*अब तुम कहोगे, देखो न!
शहर के इने–गिने, नामी–गिरामी बुद्धिजीवी
अलग–अलग विषयों पर छांट रहे व्याख्यान
उनमें एक से बढ़ कर एक मोटे ताज़े सत्ता के जोंक
अपनी सुविधा के लिहाज़ से
चुन लिए हैं पक्ष –प्रतिपक्ष
वो भी सिर्फ दिन भर के लिए
रात को आ जाते अपने –अपने बिल में।
*अब तुम कहोगे कितना निर्लज्ज और क्रूर समय है
कि स्टेशन के पीछे रहनेवाली
चार–पांच वेश्याएं
एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने पर भी
इन दिनों खौफ से बहनापा निभाते
रहने लगीं हैं साथ–साथ।
*अब तुम कहोगे,मुक्त व्यापार के साथ
इस देश में सब कुछ होता जा रहा मुक्त
वहीं विचारों पर क्यों पसरती जा रही घास–पात
एक अघोषित समझदारी विकसित हो गई है
हम बोलते रहेंगे, लिखते रहेंगे, परिवर्तन के पक्ष में
पर खूंटा हमारा जस का तस रहेगा।
*ऐसे ही तुम कहोगे और भी बहुत कुछ
और फिर कहोगे
हम लोग कर है सकते हैं।
*पहली बार नदियों के सूखने
बजबजाते सूअर के खोभाड़
और उन वेश्याओं के नकली बहनापे से
बुरा लग रहा तुम्हारा विलाप।
कवि अनिल पतंग ने "दांत के डॉक्टर" शीर्षक कविता के द्वारा अराजकता पर व्यंग प्रस्तुत किया।
कवियित्री रानी श्रीवास्तव ने नारी की प्रासंगिकता पर लिखी अपनी रचना 'श्रद्धांजलि' के माध्यम से दिवंगत कवयित्री रश्मि रेखा के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की -
घर की चीजों को खोजते-खोजते
ढूँढने लगती हूँ / कभी तुम्हें भी
तुम जो गम हो गए हो
अनंत की खामोशियों में
कवि कृष्ण कुमार, सत्येंद्र कुमार ने जल और पर्यावरण से जुड़ी कविताएँ प्रस्तुत की।
कवि वेद प्रकाश तिवारी ने "सत्ता" शीर्षक कविता में बालात्कार जैसे कृत्य होने वाली सियासत पर चोट किया। वे कहते हैं --
आदर्श, मर्यादा, कानून और परिधि के बीचो
कुछ दरिंदों का शिकार हो जाती हैं बालायें
जब समाज माँगता है न्याय
तो कुछ विचारधाराएँ
हो जाती हैं मौन।
अंत में वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने भारत माता की जय शीर्षक कविता सुनाकर भारत की गरीब बेटियों के दर्द को जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश की ।
अपने अध्यक्षीय भाषण में आलोक धन्वा ने कविता के मानक और निष्पक्षता पर प्रकाश डाला तथा एक कविता के माध्यम से सबको जागरूक करने का प्रयास किया।
कार्यक्रम का संचालन राजकिशोर राजन ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में दिवंगत लेखिका रश्मि रेखा और महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को श्रद्धाञ्जली दी गई । उसके बाद रचनाकारों ने अपनी- अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की । कवि गोष्ठी में खास बात यह रही कि सभी कवियों ने सामाजिक समस्याओं पर केंद्रित कविताओं का वाचन किया ।
नोट- इस कार्यक्रम में शामिल कविगण कृपया अपनी पंक्तियाँ दें।
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