अचम्भा है बला की वो कि जिसका नाम है बीबी
सताते रहती शौहर को ग़ज़ब कोहराम है बीबी
बनीं अहल-ए-हुकूमत हैं अदब किस तौर आएंगे
कि हो चैन-ओ-सुकूँ हासिल कठिन संग्राम है बीबी
मुक़द्दर कर के अपनी सी हम अपनी कर गुजरते हैं
लगाती वो रहें बंदिश …. हम अपनी राह चलते हैं
मगर पूछो नहीं हम से मेरा क्या हाल .. फिर होता
कभी जल में ही रह कर जो “मगर” से बैर करते हैं
इस पर श्रोताओं का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।
2. एक प्रतिगीत में उन्होंने पत्नी के दोनों रुखों को रखा -
खुशी चैन से सब रहें, सबसे सुंदर बात।।
शुद्ध हवा नित चाहिए, वही बचाये प्राण।
वायु प्रदूषित है जहर, ले सकती है जान।।
लता विटप हमसे कहें, कंद मूल फल फूल।
हम जीवन आधार हैं, इसे न जाना भूल।।
फूलों से ही रंग है, फूल प्रेम के चिन्ह।
प्यार सभी को बाँटते, करें विभेद न भिन्न।
जंगल काटे जा रहे, वृक्षों पर है घात।
दंश प्रदूषण दे रहा, चिंता की ये बात।।
जंगल की रक्षा करें, मन ही मन यह ठान।
हरी भरी पृथ्वी बने, खुशियों का उद्यान।।
रोज नदी में फेंक कर, पूजा का सामान।
अक्सर हम हैं बाँटते, पर्यावरणी ज्ञान।।
4. वो शायर क्या जिसमें रूमानी अदा न हो तो लीजिए वो भी देखिये -
उड़ाये होश पलभर में मेरे जैसे हजारों का
तेरा उन्वान खुशबू दे सरापा भी ग़ज़ल जैसा
अजंता की है तू मूरत निजामत है फरिश्तों का
क़यामत हर अदा तलवार सी तीरों सी खंज़र सी
निशाना चूकने से तो रहा कातिल निगाहों का
शरारत दिल में उठती है कि लूँ आग़ोश में तुमको
मग़र ये डर भी लगता है शज़र तुम हो गुलाबों का
अगरचे खार जो चुभ जाय कोई ज़ख्म ये दे दे
बड़ा गहरा सा रिश्ता है सनम फूलों से काँटों का
मुहब्बत का सफ़र इतना कहाँ आसान होता है
फ़कत अहसास मीठा है गुज़रते चंद लम्हों का
जिंदगी के हादसों में ख़ुद को पलने दो
रोज़ की इस कशमकश से तंग मत आना
वलवले दिल में उठें उनको उबलने दो
जिंदगी की खुशनवीसी है मुहब्बत में
इश्क़ के जज़्बे ज़रा दिल में मचलने दो
हर जवां दिल की जरूरत में मुहब्बत है
इश्क़िया आतिश कभी दिल में भी पलने दो
इश्क़ तो पुर-सोज यारा खेल है दिल का
इश्क़ के रिश्ते यहाँ बनने सँवरने दो
बोलता है हो मुखर बेफिक्री का आलम
मुस्कुराता हूँ गमों में मुस्कुराने दो
लाख ये बदलेगी दुनिया रुख न बदलेगा
इस हक़ीक़ी रीत को स्वीकार करने दो
पत्थरों को पूजते हम हो गए पत्थर
पत्थरों से नेह की जलधार बहने दो
लीडरों का यह पतन भी देखिए
लुट रहा चैन-ओ-अमन इस दौर का
मुल्क का बीमार मन भी देखिए
आस्तीन में पल रहा कुछ कुछ तो है
फन उठाये, विष-वमन भी देखिए
भीड़ बनकर नफ़रतें घूमें नगर
बाँटती फिरती कफ़न भी देखिए
सहमा सहमा सा बशर तन्हा हुआ
खौफ़ में पलती घुटन भी देखिए
जागी आँखों की जलन को भूलकर
टूटे ख़्वाबों की चुभन भी देखिएल
7. उन्हें भी गर्व है अपने सूबे पर भले और कोई जो कुछ भी कहे वो कहते हैं बिहार की अस्मिता पर बिहारी छंद में एक कविता
फ़ितरत है जुझारू यही पहचान बिहारी
सदियों से रहे बाँट हरिक ज्ञान जहाँ को
हम वीर कुँवर सिंह के हैं संतान बिहारी
हम सीधे सादे लोग हैं मक्कारी नहीं है
कुछ जाल फरेबों की भी बीमारी नहीं है
मस्ती में रहें डूबे मगन अपनी लगन में
हम काम भी आते हैं जो लाचारी नहीं है
मिहनत ही धरम है मेरा ईमान है मिहनत
हम जाएँ जहाँ काम करें बनता है जन्नत
अब देख तरक़्क़ी मेरी हैरान जहाँ है
लिक्खे हैं कीर्तिमान कई हमने जी अगिनत
नालंदा सहरसा कभी कटिहार से आये
दो रोटी कमाने चले घर बार से आये
मनवाया हरिक क्षेत्र में मेरिट का है लोहा
मेहनत के बदौलत सुनो अधिकार से आये
नदियाँ बहे सुधा की धारा, करतीं हमें निहाल।।
इसके तन पर सूरज चमके, धरती क्षमतावान।
हरा भरा इसका हर कोना, हरियाली तिरपाल।।
अलग अलग है अपनी भाषा, अपने धर्म अनेक।
भिन्न भले हों संग रहें सब, सबके सब खुशहाल।।
ऋषि-मुनियों की पावन धरती, वीरों का यह देश।
चाँदी जैसी शुभ्र अहिंसा, भारत का अहवाल।।
लोकतंत्र संकल्प सिद्ध हो, रहे सुरक्षित देश।
बने समुन्नत सजा सँवारा, हो उन्नत इक़बाल।।
सीमा पर जब आये विपत्ति, सैनिक रहें सचेत।
दुश्मन की हर कुटिल चाल का, उत्तर दें तत्काल।।
आँच न इसको आने देंगे, रखते मन में ठान।
अपनी जाँ न्यौछावर कर दें, मातृभूमि के लाल।।
मन मोहिनी प्रकृति जिसकी, श्री वैभव श्रृंगार।
कोटि कोटि मुख वंदन करते, भारत देश विशाल।।
मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे लघुकथा के पितामह कहे जाने वाले विश्वख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ सतीश राज पुष्करणा जबकि मंच संचालन का जिम्मा स्वयं लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने संभाल रखा था जो साहित्य की अन्यान्य विधाओं के अलावा लघुकथा और हाइकू के क्षेत्र में एक अज़ीम शख़्सियत हैं। ज्ञातव्य है कि कवि शायर सुनील कुमार लेख्य-मंजूषा संस्था के सदस्य भी हैं और संप्रति पटना उच्च न्यायालय में सहायक निबंधक के पद पर कार्यरत हैं। मंच पर विराजमान ख़ुसूसी शख्सियतों में प्रमुख थे - डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डा. पल्लवी विश्वास, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) पटना के कार्यकारिणी सदस्य ई भूपेंद्र नाथ सिंह व कवि शायर घनश्याम इत्यादि।
लेख्य-मंजूषा ने पुस्तक मेलों में कुल तीन दिन तीन कार्यक्रम किये। एकलपाठ उनमें से एक था।
डॉ. प्रो. अनिता राकेश ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसा देखा जाता है कि पठन पाठन अध्यापन से जुड़े व्यक्ति ही अक्सर कवि साहित्यकार होते हैं किंतु एक न्यायालय कर्मी का काव्य-कर्म से जुड़ाव और ऐसी प्रस्तुति प्रशंसनीय है।
ई. भूपेंद्र नाथ सिंह ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि कवि सुनील कुमार ने अपने एकलपाठ से दौरान पूर्णकाल श्रोताओं को अपनी विभिन्न कविताओं से हमें बाँधे रखा और हम तमाम श्रोताओं के साथ मुग्ध सुनते रहे।
कवि शाइर घनश्याम ने काव्यपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि "आज के एकलपाठ में विभिन्न काव्य विधाओं से श्री सुनील कुमार ने अपनी रचनात्मक काव्य योग्यता का परिचय दिया है और पूरे समय तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध रखा है।"
मेले में आये दर्शक श्रोता तथा लेख्य-मंजूषा के उपस्थित सभी सदस्य अपनी भरपूर तालियों से श्री सुनील कुमार का उत्साहवर्धन करते रहे। कार्यक्रम के अंतिम भाग में जब पत्नी को विषय का केंद्र बिंदु मानकर पढ़ी गए मुक्तक, प्रतिगीत और कविता ने तो जैसे तालियों की बरसात कर दी।
एकल पाठ के साथ सदस्यों का पूरा सहयोग और सहभागिता भी थी। श्री कुमार के एकल पाठ के मध्यांतर में लेख्य मंजूषा के अनेक सदस्यों ने भी काव्य पाठ किया जिनके नाम हैं - वीणा श्री हेम्ब्रम, ज्योति स्पर्श, अमृता सिन्हा, रवि श्रीवास्तव, अभिलाषा सिंह, रंजना सिंह, राजकांता राज, शाइस्ता अंजुम, प्रियंका श्रीवास्तव शुभर्, पूनम कतरियार, नूतन सिन्हा, मीरा प्रकाश। डॉ सतीश राज पुष्करणा ने भी एक कविता पढ़ी।
साथ ही अतिथियों ने भी काव्य पाठ किया था। अतिथियों में कवि घनश्याम, उनका पुत्र चैतन्य उषाकिरण चंदन, डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डॉ पल्लवी विश्वास। हरेक सदस्य व अतिथि ने अपनी एक रचना का पाठ किया था।
"हम वो हिना बने रचे हथेली से ज्यादा रचने वाले की पोर-पोर रंगी होती है
दूसरों को खुशियाँ देने से स्वयं की आत्मा जुड़ा जाती है"
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
कवि का ईमेल - sunil21011964@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
हार्दिक आभार आपका लेख्य-मंजूषा की खबर को अपने ब्लॉग स्थान देने के लिए...
ReplyDelete–सामूहिक की दो तस्वीर लेख्य-मंजूषा के कार्यक्रम की नहीं है...
–सामूहिक तस्वीर लेख्य-मंजूषा की ही लगाया जाए
बहुत धन्यवाद। पीछे लेख्य मंजूषा का बैनर लगा होने से भ्रम हुआ। कृपया सही तस्वीर उपलब्ध करवाई जाए।
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