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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday 20 November 2019

लेख्य मंजूषा द्वारा सुनील कुमार का एकल काव्य पाठ पटना में 16.11.2019 को संपन्न

जिंदगी के हादसों में ख़ुद को पलने दो

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दुनिया को क़ानून की जरूरत होती है ताकि वो ठीक ढंग से काम कर सके लेकिन कोई है जो बिना क़ानून के ही ठीक ढंग से काम करता है। कानून के पहरे में वह ठीक ढंग से काम करना बंद कर देता है। वह है दिल। जब दिल हर तरह से आज़ाद होता है तभी 'शेर' निकलते हैं अश'आर बनते हैं

उच्च न्यायालय के अधिकारी की कठिनाई तो आप समझ सकते हैं जो घर में पानी भी मांगता है तो कानूनी अंदाज में. उसे न तो वकीलों का कोई खौफ है, न हाकिमों का लेकिन हाँ,  कोई है जिसको वह कुछ नहीं कह पाता सिवाय भींगी बिल्ली बनकर उसकी शान में कसीदे पढने के। अब आप इतने भी नादाँ नहीं हैं की आपको कहना पड़े कि कौन हैं वो शा'इर और किसके पास वो भींगी बिल्ली बन जाते हैं

एकल पाठ की शुरुआत करते हुए कवि-शा'इर सुनील कुमार ने कहा कि यूँ तो छोटी उम्र से ही लेखन में उनकी अभिरुचि थी परंतु विगत लगभग दस वर्षों से फेसबुक आ जाने के बाद से अपने फेसबुक कालारेख (टाइम लाइन) से निरंतर काव्य-लेखन करते आये हैं और अपने फेसबुक टैग लाइन "फिर इश्क़ बेहिसाब लिखना चाहता हूँ" के अनुरूप मुहब्बतों के शायर और श्रृंगार के कवि के रूप में पहचान बनाई। बीते दो साल से पटना के काव्य-मंचों पर भी वे सक्रिय हैं।

पटना में समय इंडिया के राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मुख्य मंच से लेख्य-मंजूषा संस्था के बैनर तले जाने माने कवि, शायर सुनील कुमार का एकलपाठ हुआ। उन्होंने करीब बीस रचनाएँ सुनाई और श्रोतागण  मंत्रमुग्ध होकर घंटों बंधे रहे उनके काव्य की डोर से।

श्री कुमार ने मुक्तक, दोहे, विभिन्न छंदों, कविताओं, ग़ज़लों, गीत और प्रतिगीत सुनाये जिनकी एक झलक नीचे प्रस्तुत है। रचनाओं के बाद उनके पाठ पर पूरी सरगर्मी से चर्चा हुई और आप नीचे उसका भी आनंद ले सकते हैं।

1.  पत्नी से वैसे तो हर आदमी का ख़ास रिश्ता होता है लेकिन वो अगर शाइर हो तो और भी गज़ब! तो आगाज़ करते हैं शा'इर सुनील कुमार के अदाज़े-बयां के प्रदर्शन का -
अचम्भा है बला की वो कि जिसका नाम है बीबी
सताते रहती शौहर को ग़ज़ब कोहराम है बीबी
बनीं अहल-ए-हुकूमत हैं अदब किस तौर आएंगे
कि हो चैन-ओ-सुकूँ हासिल कठिन संग्राम है बीबी

मुक़द्दर कर के अपनी सी हम अपनी कर गुजरते हैं
लगाती वो रहें बंदिश …. हम अपनी राह चलते हैं
मगर पूछो नहीं हम से मेरा क्या हाल .. फिर होता
कभी जल में ही रह कर जो “मगर” से बैर करते हैं
इस पर श्रोताओं का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।

2.  एक प्रतिगीत में उन्होंने पत्नी के दोनों रुखों को रखा -

मुझ पर चाहे वो शासन हो
उसकी मर्जी अनुशासन हो
मोबाइल देखे हाथों में
इसी बात को लेकर टेंशन हो
फिर शुरू हुई तकरार
अरे रे बाबा ना बाबा
उसे कौन करेगा प्यार
अरे रे बाबा ना बाबा
मिले पत्नी से फ़टकार
अरे रे बाबा ना बाबा
भला कौन करेगा प्यार
अरे रे बाबा ना बाबा
('घरवाली' कविता का अंतिम अंश)
जीवन को जो अर्थ दे

वो सार, औ थोड़ा सा प्यार चाहिए
कोई दूसरा नहीं संसार चाहिए
हमको  तो घरवाली का प्यार चाहिए
बस घरवाली का ही प्यार चाहिए।

3.  प्रकृति चिंतन के…कुछ दोहे भी उन्होंने रखे जो पर्यावरण और धरती के प्रति उनकी सजगता का प्रमाण है - मानव अस्तित्व के लिए आज सबसे अहम् मुद्दा जिसे छोड़ हम आपस में और पडोसी से लड़ने में लगे रहते हैं। जब मानव जाति बचेगी ही नहीं तो हम लड़ेंगे किससे? इसलिए वो कहते हैं -  
पर्यावरण बचाइये, यही सुखद सौगात।
खुशी चैन से सब रहें, सबसे सुंदर बात।।
शुद्ध हवा नित चाहिए, वही बचाये प्राण।
वायु प्रदूषित है जहर, ले सकती है जान।।
लता विटप हमसे कहें, कंद मूल फल फूल।
हम जीवन आधार हैं, इसे न जाना भूल।।
फूलों से ही रंग है, फूल प्रेम के चिन्ह।
प्यार सभी को बाँटते, करें विभेद न भिन्न।
जंगल काटे जा रहे, वृक्षों पर है घात।
दंश प्रदूषण दे रहा, चिंता की ये बात।।
जंगल की रक्षा करें, मन ही मन यह ठान।
हरी भरी पृथ्वी बने, खुशियों का उद्यान।।
रोज नदी में फेंक कर,  पूजा का सामान।
अक्सर हम हैं बाँटते,  पर्यावरणी ज्ञान।।

4. वो शायर क्या जिसमें रूमानी अदा न हो तो लीजिए वो भी देखिये -

नशीली हर नज़र तेरी पता दिलकश नज़ारों का
उड़ाये होश पलभर में मेरे जैसे हजारों का
तेरा उन्वान खुशबू दे सरापा भी ग़ज़ल जैसा
अजंता की है तू मूरत निजामत है फरिश्तों का
क़यामत हर अदा तलवार सी तीरों सी खंज़र सी
निशाना चूकने से तो रहा कातिल निगाहों का
शरारत दिल में उठती है कि लूँ आग़ोश में तुमको
मग़र ये डर भी लगता है शज़र तुम हो गुलाबों का
अगरचे खार जो चुभ जाय कोई ज़ख्म ये दे दे
बड़ा गहरा सा रिश्ता है सनम फूलों से काँटों का
मुहब्बत का सफ़र इतना कहाँ आसान होता है
फ़कत अहसास मीठा है गुज़रते चंद लम्हों का

  5  थोड़ा और लुत्फ़ लिया लोगों ने उनकी मुहब्बत भरी दिलकश शाइरी का -

गीठोकरें खाते हुए गिरने सँभलने दो
जिंदगी के हादसों में ख़ुद को पलने दो
रोज़ की इस कशमकश से तंग मत आना
वलवले दिल में उठें उनको उबलने दो
जिंदगी की खुशनवीसी है मुहब्बत में
इश्क़ के जज़्बे ज़रा दिल में मचलने दो
हर जवां दिल की जरूरत में मुहब्बत है
इश्क़िया आतिश कभी दिल में भी पलने दो
इश्क़ तो पुर-सोज यारा खेल है दिल का
इश्क़ के रिश्ते यहाँ बनने सँवरने दो
बोलता है हो मुखर बेफिक्री का आलम
मुस्कुराता हूँ गमों में मुस्कुराने दो
लाख ये बदलेगी दुनिया रुख न बदलेगा
इस हक़ीक़ी रीत को स्वीकार करने दो
पत्थरों को पूजते हम हो गए पत्थर
पत्थरों से नेह की जलधार बहने दो

6.  आज के माहौल से पूरी तरह वाकिफ इंसान भी होता है शा'इर और सियासत के झंडे तले फ़ैल रहे अलगाववाद की तस्वीर भी वो प्रभावकारी तरीके से खींचते दिखे अपनी ग़ज़ल में -

ग़ज़बद-जुबानी बद-चलन भी देखिए
लीडरों का यह पतन भी देखिए
लुट रहा चैन-ओ-अमन इस दौर का
मुल्क का बीमार मन भी देखिए
आस्तीन में पल रहा कुछ कुछ तो है
फन उठाये, विष-वमन भी देखिए
भीड़ बनकर नफ़रतें घूमें नगर
बाँटती फिरती कफ़न भी देखिए
सहमा सहमा सा बशर तन्हा हुआ
खौफ़ में पलती घुटन भी देखिए
जागी आँखों की जलन को भूलकर
टूटे ख़्वाबों की चुभन भी देखिए

7. उन्हें भी गर्व है अपने सूबे पर भले और कोई जो कुछ भी कहे वो कहते हैं बिहार की अस्मिता पर बिहारी छंद में एक कविता

मेरा गुरुर शान है अभिमान बिहारी
फ़ितरत है जुझारू यही पहचान बिहारी
सदियों से रहे बाँट हरिक ज्ञान जहाँ को
हम वीर कुँवर सिंह के हैं संतान बिहारी
हम सीधे सादे लोग हैं मक्कारी नहीं है
कुछ जाल फरेबों की भी बीमारी नहीं है
मस्ती में रहें डूबे मगन अपनी लगन में
हम काम भी आते हैं जो लाचारी नहीं है
मिहनत ही धरम है मेरा ईमान है मिहनत
हम जाएँ जहाँ काम करें बनता है जन्नत
अब देख तरक़्क़ी मेरी हैरान जहाँ है
लिक्खे हैं कीर्तिमान कई हमने जी अगिनत
नालंदा सहरसा कभी कटिहार से आये
दो रोटी कमाने चले घर बार से आये
मनवाया हरिक क्षेत्र में मेरिट का है लोहा
मेहनत के बदौलत सुनो अधिकार से आये

 8.  फिर उन्होंने 'सरसी छंद' में एक गीतिका पेश की जिसका ...उन्वान है…. "अनुपम है यह देश हमारा”

अनुपम है यह देश हमारा, हिमगिरि इसके भाल।
नदियाँ बहे सुधा की धारा, करतीं हमें निहाल।।
इसके तन पर सूरज चमके, धरती क्षमतावान।
हरा भरा इसका हर कोना, हरियाली तिरपाल।।
अलग अलग है अपनी भाषा, अपने धर्म अनेक।
भिन्न भले हों संग रहें सब, सबके सब खुशहाल।।
ऋषि-मुनियों की पावन धरती, वीरों का यह देश।
चाँदी जैसी शुभ्र अहिंसा, भारत का अहवाल।।
लोकतंत्र संकल्प सिद्ध हो, रहे सुरक्षित देश।
बने समुन्नत सजा सँवारा, हो उन्नत इक़बाल।।
सीमा पर जब आये विपत्ति, सैनिक रहें सचेत।
दुश्मन की हर कुटिल चाल का, उत्तर दें तत्काल।।
आँच न इसको आने देंगे, रखते मन में ठान।
अपनी जाँ न्यौछावर कर दें, मातृभूमि के लाल।।
मन मोहिनी प्रकृति जिसकी, श्री वैभव श्रृंगार।
कोटि कोटि मुख वंदन करते, भारत देश विशाल।।

करीब बीस  रचनाएँ पढ़ी गईं। कुछ तहत में कुछ तरन्नुम में। सामईन वाह-वाह करते नहीं थके इसके पीछे कारण यह है कि वे भले ही बहुत भारी लफ्जों में बहुत जटिल बातें नहीं कहें लेकिन जो भी कहते हैं दिल से कहते हैं, उस दिल से जिसका मालिक सचमुच में एक नेकदिल इंसान है 


मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे लघुकथा के पितामह कहे जाने वाले विश्वख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ सतीश राज पुष्करणा जबकि मंच संचालन का जिम्मा स्वयं लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने संभाल रखा था जो साहित्य की अन्यान्य विधाओं के अलावा लघुकथा और हाइकू के क्षेत्र में एक अज़ीम शख़्सियत हैं। ज्ञातव्य है कि कवि शायर सुनील कुमार लेख्य-मंजूषा संस्था के सदस्य भी हैं और संप्रति पटना उच्च न्यायालय में सहायक निबंधक के पद पर कार्यरत हैं। मंच पर विराजमान ख़ुसूसी शख्सियतों में प्रमुख थे - डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डा. पल्लवी विश्वास, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) पटना के कार्यकारिणी सदस्य ई भूपेंद्र नाथ सिंह व कवि शायर घनश्याम इत्यादि।

डॉ सतीश राज पुष्करणा जो लेख्य-मंजूषा के संरक्षक भी हैं ने कवि सुनील कुमार के एकलपाठ पर संतोष और हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि "यह खुशी की बात है कि लेख्य-मंजूषा के सदस्य नित प्रगति पथ पर अग्रसर है और आज श्री सुनील कुमार ने एकलपाठ में जो प्रस्तुति दी है वह निश्चय ही सराहनीय है।"

लेख्य-मंजूषा ने पुस्तक मेलों में कुल तीन दिन तीन कार्यक्रम किये। एकलपाठ उनमें से एक था।

डॉ. प्रो. अनिता राकेश ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसा देखा जाता है कि पठन पाठन अध्यापन से जुड़े व्यक्ति ही अक्सर कवि साहित्यकार होते हैं किंतु एक न्यायालय कर्मी का काव्य-कर्म से जुड़ाव और ऐसी प्रस्तुति प्रशंसनीय है।

ई. भूपेंद्र नाथ सिंह ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि कवि सुनील कुमार ने अपने एकलपाठ से दौरान पूर्णकाल श्रोताओं को अपनी विभिन्न कविताओं से हमें बाँधे रखा और हम तमाम श्रोताओं के साथ मुग्ध सुनते रहे।

कवि शाइर घनश्याम ने काव्यपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि "आज के एकलपाठ में विभिन्न काव्य विधाओं से श्री सुनील कुमार ने अपनी रचनात्मक काव्य योग्यता का परिचय दिया है और पूरे समय तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध रखा है।"

मेले में आये दर्शक श्रोता तथा लेख्य-मंजूषा के उपस्थित सभी सदस्य अपनी भरपूर तालियों से श्री सुनील कुमार  का उत्साहवर्धन करते रहे। कार्यक्रम के अंतिम भाग में जब पत्नी को विषय का केंद्र बिंदु मानकर पढ़ी गए मुक्तक, प्रतिगीत और कविता ने तो जैसे तालियों की बरसात कर दी।

एकल पाठ के साथ सदस्यों का पूरा सहयोग और सहभागिता भी थी। श्री कुमार के एकल पाठ के मध्यांतर में लेख्य मंजूषा के अनेक सदस्यों ने भी काव्य पाठ किया जिनके नाम हैं - वीणा श्री हेम्ब्रम, ज्योति स्पर्श, अमृता सिन्हा, रवि श्रीवास्तव, अभिलाषा सिंह, रंजना सिंह, राजकांता राज, शाइस्ता अंजुम, प्रियंका श्रीवास्तव शुभर्, पूनम कतरियार, नूतन सिन्हा, मीरा प्रकाश। डॉ सतीश राज पुष्करणा ने भी एक कविता पढ़ी।

साथ ही अतिथियों ने भी काव्य पाठ किया था। अतिथियों में कवि घनश्याम, उनका पुत्र चैतन्य उषाकिरण चंदन, डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डॉ पल्लवी विश्वास। हरेक सदस्य व अतिथि ने अपनी एक रचना का पाठ किया था।

"हम वो हिना बने रचे हथेली से ज्यादा रचने वाले की पोर-पोर रंगी होती है
दूसरों को खुशियाँ देने से स्वयं  की आत्मा जुड़ा जाती है"

एक सरल ह्रदय किन्तु सजग और क्षमतावान कवि को केन्द्रित करके आयोजित किया गया यह कार्यक्रम सभी सदस्यों और अतिथियों के लिए यादगार साबित हुआ।

.........


प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
कवि का ईमेल - sunil21011964@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com 








2 comments:

  1. हार्दिक आभार आपका लेख्य-मंजूषा की खबर को अपने ब्लॉग स्थान देने के लिए...

    –सामूहिक की दो तस्वीर लेख्य-मंजूषा के कार्यक्रम की नहीं है...

    –सामूहिक तस्वीर लेख्य-मंजूषा की ही लगाया जाए

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  2. बहुत धन्यवाद। पीछे लेख्य मंजूषा का बैनर लगा होने से भ्रम हुआ। कृपया सही तस्वीर उपलब्ध करवाई जाए।

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