कवयित्री अपने भाई के साथ |
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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]
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Wednesday, 30 October 2019
भाईदूज पर दो कविताएँ / कवयित्री - अलका पाण्डेय
हम कौन? / कवि - मनीश वर्मा
नाटक "काली सलवार" के एक दृश्य में रास राज और अन्य कलाकार |
Tuesday, 22 October 2019
"लघुकथा कलश" के रचना प्रकिया विशेषांक का लोकार्पण-सह-विचार गोष्ठी पटना में 20.10.2019 को सम्पन्न
"यहां हर चीज बड़ी होती है। चाहे वह महारैली हो,या महाविशेषांक। लघुकथा हो या कहानी, रचना प्रक्रिया एक रचनात्मक अनुभूति है, जो आनंद के साथ- साथ पीड़ादायक भी है। और कमोवेश प्रत्येक रचनाकार इससे होकर गुजरता है। "
"छोटी बातें लिखना बहुत बड़ी बात है। चाहे वह छोटी कविता हो, कहानी हो या लघुकथा। लालटेन की छोटे दायरे की रौशनी के सहारे हमें लम्बा रास्ता तय करना होता है। एक लघुकथा किन प्रक्रियाओं से गुजरते हुए, अपना आकार ग्रहण करता है, "लघुकथा कलश" के इस लोकार्पित रचना प्रक्रिया विशेषांक की यही विशेषता है।"
"रचना जब भी मैं लिखता हूं, मेरे पास कोई अनुभव नहीं होता है। मैं अपनी कथा प्रक्रिया की ही चर्चा कर सकूंगा। कविता न कलम से लिखी जाती है न अनुभव से, कविता हाथ से लिखी जाती है। ज्ञान अनुभव की कोई जरूरत नहीं। किसी के कहे- सुने पर विचार मत करो । अपने अनुभव से लिखो। लघुकथा का कोई शास्त्रिय या सैद्धांतिक ज्ञान की जरूरत नहीं होती । आप रसोई में भी जो मौलिक लिखती हैं, तो वह भी साहित्य है। विधाओं का कोई शास्त्र नहीं होता, ऐसा मेरा मानना है। " ( संतोष दीक्षित जी, फिर हम कुछ भी लिखकर कविता को कहानी, कहानी को लघुकथा या लघुकथा को कहानी क्यों नहीं कहते हैं ?")
Sunday, 20 October 2019
डा. सुधा सिन्हा के प्रथम कविता संग्रह "गगरिया छलकत जाय " का लोकार्पण 18.10.2019 को पटना में सम्पन्न
Thursday, 17 October 2019
इस दिवाली / कवि - दिलीप कुमार के परिचय के साथ
(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Today Bejod India)
Sunday, 13 October 2019
नवगीतिका लोक रसधार द्वारा छठ पर्व के गीतों पर नीतू कुमारी नवगीत का गायन 13.10.2019 को पटना में सम्पन्न
युवा कवि दिलीप कुमार का एकल काव्य पाठ 12.10.2019 को पटना में सम्पन्न
समय से रेस लगाते देखा
गाते और गुनगुनाते देखा
अपनी मंजिल की खैर नहीं
सबको मंजिल पर पहुंच आते देखा।
रेल पटरियों की देखरेख करने वाले ट्रैकमैन के जीवन से जुड़ी कविता को श्रोताओं ने खूब पसंद किया -दहकता हुआ सूरज /स मा गया है रेल की पटरियों में
पैरों में पड़ गए हैं छाले / चौंधिया गई हैं आंखें
फिर भी पटरियों की देखरेख का क्रम जारी है
उसका समर्पण सूरज की तपिश पर भारी है।
दिलीप कुमार ने बिहार के लोक जीवन और त्योहारों से जुड़ी कई कविताओं का पाठ कर श्रोताओं के दिल में जगह बनाई । सरल शब्द विन्यास के बावजूद दीप का सवाल कविता श्रोताओं को खूब पसंद आई -
दीपावली के दिन अपने घर आंगन में दीप जलाया/-
धरती से आसमान तक अंधेरे को मार भगाया/-
फिर अपने मन में एक दीप क्यों नहीं जलाते/-
मन के अंधेरे को दूर क्यों नहीं भगाते ?
इसी तर्ज पर उन्होंने रावण दहन से जुड़ी कविता औपचारिकता सुनाई:
धू-धू कर जल गया रावण का पुतला
शहर के बीच मैदान में
लोगों ने देखा तमाशा / बजाई तालियां
और लौट गए/ अपने-अपने घर को
मन की बुराई, मन में ही समेटे ।
महिला श्रोताओं को जलती तो बाती है कविता को पसंद आई -
दीया को जीवन मैंने दिया
जली रात भर, जग को रौशन किया
मैं औरत हूं
मुझे औरत ही बनाती है
वही औरत जो दिन भर खाना पकाती है
और रात में सबसे अंत में खाती है
वही औरत जो अधूरेपन में जीती है
लेकिन पूर्णता में देती है
किसी उपलब्धि का कभी श्रेय नहीं लेती है
सभी औरतों की एक जैसी थाती है
नाम दीए का होता है
पर जलती तो बाती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता स्टेशन निदेशक डॉ निलेश कुमार ने की। आयोजन के दौरान वरिष्ठ कवयित्री भावना शेखर ने कहा कि दिलीप कुमार की कविताओं में सादगी और सच्चाई है। मुकेश प्रत्यूष ने कहा कि इस्पाती चौखट में रहने के बावजूद उनकी कविताओं में मानवीय संवेदना है। मौके पर ध्रुव कुमार कुमार रजत, प्रणय प्रियंवद, शायर कासिम खुर्शीद, समीर परिमल, हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र यादव आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन कवि राजकिशोर राजन और धन्यवाद ज्ञापन सिद्धेश्वर ने किया।
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आलेख - नीतू कुमार नवगीत द्वारा भेजी गई सामग्री के आधार पर
छायाचित्र सौजन्य - डॉ. नीतू कुमारी नवगीत
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा डॉ. कुमार विमल जयंती -सह- कवि गोष्ठी 11.10.2019 को पटना में सम्पन्न
डॉ. कुमार विमल सौंदर्य शास्त्र के प्रथम विशेषज्ञ माने जाते हैं। ललित ढंग से सौंदर्य की शब्दाकृति होती है कविता। एक साथ कई पुस्तकें पढ़ा करते थे वे। समालोचना में, नलिन विलोचन शर्मा के बाद यदि किसी को स्मरण कर सकता हूं, तो वो कुमार विमल हैं।
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
पचीसी (मिथिला का पारम्परिक खेल) / कंचन कंठ
सारी कौड़ियां पट्ट तो 'चौबीस' आना होता था। इनमें गोटियां नहीं 'पबहारि' यानी 'निकलना' नहीं होती थीं। एक कौड़ी चित्त और बाकी पट्ट तो 'पचीस' आता था,जिसमें चारों गोटियां 'पबहारि' होती थीं, एकसाथ। इसका उल्टा होने पर "दस"आता था और एक गोटी 'पबहारि' होती थीं। हरेक खिलाड़ी को चार मौके मिलतेे थे खेलने के, दस या पचीस आनेे पर एक मौका और मिलता था। गोटियां निकलती नहीं 'पबहारि' होती थीं और लाल होने से पहले नंबर पर अटकने पर गोटियों को 'पबन्नी' लगती थीं तो दूसरे पक्ष वाले उसकी चाल के समय "नरकी पबन्नी" चिढ़ाते थे जो "दस या पचीस" आने से छुटती थीं।
पर, अब तो "नहि ओ नगरी, नहि ओ ठाम"।
कंचन कंठ |