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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Saturday, 27 May 2017

'प्लेटफॉर्म की एक रात'- हृषीकेश पाठक के कहानी-संग्रह पर चर्चा 23.5.2017 को पटना में संपन्न


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 त्रासदी के उत्सव का पर्दाफाश करती कहानियाँ 
(Read this article in English at  http://biharidhamaka.blogspot.in/2017/05/revealing-stories-of-celebration-of.html
   दिनांक 23.5.2017 को अवर अभियन्ता भवन, अदालतगंज,पटना में हृषीकेश पाठक रचित कहानी-संग्रह 'प्लेटफॉर्म की एक रात' की कहानियों के शिल्प और कथ्य पर अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने विचार प्रकट किये. कार्यक्रम के आरम्भ में पुस्तक के लेखक ने एक कहानी का अपने प्रभावकारी स्वर में पाठ किया. उनके भावपूर्ण कथा-वाचन को सभी श्रोतागण पूरी तरह से भाव-विभोर होकर सुनते रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की और संचालन किया प्रसिद्ध साहित्यकार रामदास आर्य उर्फ घमंडी राम ने. 

     राकेश प्रियदर्शी  ने अपने विचार दो खेप में प्रकट किये. दूसरी बार में उन्होंने कहा कि पुस्तक में उन्हें कला की कुछ कमी लगती है. दरअसल लेखक बिलकुल छद्म-रहित हैं इसलिए पूरी तरह से सपाट तरीके से बिना कारीगरी दिखाए कहानी कहते जा रहे हैं. वरिष्ठ कथाकार रवि घोष ने कहा कि लेखक की कहानियों में समाज पर तीखा व्यंग्य है. उन्होंने कहा कि बिहार के सभी कथाकारों को प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ अवश्य पसंद आएंगी. भागवत शरण झा 'अनिमेष' ने पुस्तक के बारे में कहा कि न तो लेखक में और न ही उसकी रचना में कहीं भी कोई बनावटीपन दिखता है. जैसे सरल स्वाभाव के लेखक हैं वैसी ही उनकी रचना लेकिन सन्देश बहुत स्पष्ट है.  राजकुमार प्रेमी ने कहा कि उन्होंने पुस्तक पढ़ी है और उन्हें उसका स्तर बहुत अच्छा लगा. वरिष्ठ गीतकार विजय गुंजन ने कहा कि हृषीकेश पाठक घनीभूत भावों के धनी हैं. उनका कथ्य और बयान करने का अंदाज औरों से बिल्कुल अलग है. उनकी कहानियाँ बहुत ही तन्मयता से लिखी गई है. 

        बाँके बिहारी ने  कहा कहानीकार ने लेखक की तरह नहीं बल्कि पाठक की तरह कहानियों को लिखा है. लगता है सारी घटनाएँ लेखक के आस-पास की हैं और वे उसको अनुभव कर रहे हैं. हेमन्त दास 'हिम' ने कहा कि कहानियों में ऐसी सजीवता है कि यह कहा जा सकता है कि या तो ये लेखक के निजी अनुभव हैं अथवा उनके किसी बहुत ही करीबी व्यक्ति के अनुभव हैं. बिल्कुल आम जन की बातें और उनकी समस्याओं को दिखाया गया है. खुर्शीद आलम ने एक कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि ये पंक्तियाँ कितनी गहरी सच्चाई को बयाँ कर जाती है- "जिसे  आपने  कुर्बानियाँ  देकर वहां  पहुंचाया  वह  वहाँ  जाकर  स्वयं  नेता  बन  जाता है. यह  एक  त्रासदी है. यह  विडंबना  अपने  आप  में  इतनी बड़ी  त्रासदी है कि  इतनी  बड़ी  त्रासदी  कोई घटना नहीं  हो  सकती.  इसके  उपरान्त प्रसिद्द  कथाकार और 'जनता दरबार'  के लेखक  शंभू पी. सिंह ने कहा कि 'प्लेटफोर्म की एक  रात'  कहानी कोई कहानी मात्र नहीं बल्कि कहानियों^का कोलाज है. उन्होंने कथा-शिल्प पर कहते हुए कहा कि इस कहानी में संवाद नहीं के बराबर हैं. मानो राजा राधिका रमण प्रसाद के  बाद कुछ वैसा ही प्रयोग हुआ है.  

     'नई धारा' के सम्पादक प्रो. शिव नारायण ने कहा 'गोधरा से आगे' कहानी त्रासदी का  उत्सव है. संग्रह की समस्त कहानियाँ आज के साहित्य के स्वभाव यानी स्वभाव, करुणा, न्याय और प्रतिरोध के तर्ज पर हैं. उन्होंने अपने लम्बे किन्तु अत्यन्त ज्ञानप्रद भाषण में अनेक  अर्वाचीन मुद्दे उठाये, उन्होंने बताया कि कथाशिप का कौशल समाज के दुःख-दर्द का हिस्सा बना कर जीने से आtता है.  प्रसिद्ध गीतकार विजय गुंजन के कहा कि संवेदना के स्तर पर कहानी बहुत अच्छी है और गद्य बहुत ही सहज है. दलित विमर्श और स्त्री विमार्श इस संग्रह के मुख्य विन्दु हैं. राजकिशोर शर्मा ने प्रस्तुत पुस्तक के सम्बन्ध में कुछ शेर पढ़े-
अजब सा मंजर हो गया हूँ  / किसी कंगाल का घर हो गया हूँ
फिर रहा दर-बदर मैं / दर्द का समंदर हो गया हूँ"

      कार्यक्रम के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पुस्तक की एक-एक कहानी पर अपने विचारों को बड़े ही क्रमबद्ध ढंग से ब्यक्त किये. जिसकी छायाप्रति इस लेख के साथ प्रस्तुत है. उन्होंने एक कहानी का विशेष रूप से जिक्र किया जो समीर और रुकसाना नामक जोड़े के विचित्र सम्बन्ध  पर आधारित हैं. जब समीर एक नेता के प्रलोभन में आकर सौ मुस्लिमों की ह्त्या करने का निश्चय कर लेता है और  निन्नान्वे की  ह्त्या करने के बाद सौवें के रूप में रुकसाना को पाता है तो अपने वहशीपन में उसे भी मारने की कोशिश करता है लेकिन इसी बीच समीर की  माँ\बीच में आकर उसे बचा लेती है और खुद मर जाती है. एक मुस्लिम की खातिर एक हिन्दू का अपनी जान दे देने की यह मिसाल पाठकों को अन्दर से झकझोड़ जाती है.

     अंत में अवर अभियन्ता संघ के चन्द्र देव सिंह ने.भाग लेने वाले सभी साहित्यकारों और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया. 
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