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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 28 November 2019

मोतीहारी में चंपारण नाट्य एवं लघु फिल्मोत्सव 25 से 27 नवम्बर,2019 तक चला

 'दान', 'अपेक्षा' सहित कई फिल्में पुरस्कृत / प्रख्यात लेखक ध्रुव गुप्त लिखित नाटक 'आरम्भ' से उत्सव शुरु

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फ़िल्म 'अपेक्षा' के लिए पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई ,बेस्ट फ़िल्म, बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट सिनेमाटोग्राफी पुरस्कार के लिए इस फ़िल्म के निर्देशक मनीश कुमार प्रेम. एवं फ़िल्म के अभिनेता: विक्रांत चौहान बहुत बहुत बधाई.

बुल्ला टॉकीज बैनर तले बनी फिल्म दान  . जिसके निर्देशक और अभिनेता राजू उपाध्याय हैं। इस फ़िल्म को  चंपारण फिल्म फेस्टिवल, चंपारण में बेस्ट स्टोरी और बेस्ट एक्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया।  

रोशनाई, फिल्मोनिया एंटरटेनमेंट एवं मीडिया प्रा लि के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय लघु फिल्मोत्सव में कई फ़िल्म दिखाये गए। यह फिल्मोत्सव मोतिहारी के नगर भवन में आयोजित किया गया था

इस महोत्सव में बिहार और देश के कई प्रख्यात फिल्मकार, लेखक एवम प्रोफेसर शामिल हुए। फ़िल्म प्रदर्शन में दान फ़िल्म को एक सामाजिक सरोकार के रूप में सराहा गया, इस फ़िल्म के मुख्य किरदार  निभाने वाले राजू उपाध्याय की अभिनय को बहुत सराहा गया।

यह फिल्म मुख्य रूप से बिहार के सिवान जिला के महेंद्र नाथ धाम मंदिर एवं उसके आस-पास के गांव में शूटिंग की गई थी इस फिल्म में सिवान ब्लड डोनर क्लब का योगदान भी अति महत्वपूर्ण रहा।   इस बदलते दौर में इस तरह का विषय का चुनाव और इस पर काम करना वो भी बिहार में  फ़िल्म बनाना काफी मुश्किल है, देश के प्रख्यात फिल्ममेकर श्री कमलेश के मिश्रा ने कहा कि यह फ़िल्म बदलते समय और सामाजिक परिस्थितियों में फ़िल्म के माध्यम से संदेश देना काफ़ी कठिन है, परन्तु दान फ़िल्म बहुत ही सहज रूप से संदेश दे जाती है। फ़िल्म का एक संवाद है ख़ून दान माहा दान है। इस फ़िल्म में सभी कलाकारों का अभिनय  बहुत सराहनीय है।

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26 November at 11:28 · (श्री ध्रुव गुप्त के पटल से साभार)
कल शाम चंपारण नाट्य एवं लघु फिल्म उत्सव में दर्शकों से खचाखच भरे मोतिहारी नगर भवन में मेरी कहानी पर आधारित नाटक 'आरंभ' का मंचन मेरे लिए एक सुखद अनुभव था। नाटक की दर्शक दीर्घा में हिन्दी फिल्म और टेलीविजन के प्रख्यात अभिनेता श्री अखिलेन्द्र मिश्रा और फिल्म निर्देशक श्री कमलेश मिश्र भी शामिल थे जिनकी आतंक के मानवीय पक्ष पर अगले महीने आने वाली फ़िल्म 'आजमगढ़' की बेसब्री से प्रतीक्षा है।
बहुत शुक्रिया, अक्षरा आर्ट्स, नाटक के निर्देशक अजित कुमार और कार्यक्रम के संयोजक गुलरेज़ शहज़ाद !
.......

प्रस्तुति - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
समाचार और छायाचित्र  - सुभाष कुमार,  विक्रांत चौहान
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

\Our Shortfilm "Apeksha" Grabbed Best Film, Best Director, Best Cinematographer & Best Editor awards in Champaran Film Festival!🏆Big big congratulations to the director of this film Manish Kumar Pran. (Vikrant Chauhan)




फिल्म 'दान' के प्रमुख स्तम्भ


 

Tuesday, 26 November 2019

मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में / कवयित्री - लता प्रासर

प्रेम -कविता 
कवयित्री का परिचय नीचे प्रस्तुत है 
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मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी
अपनी मोहब्बत पर भरोसा है मुझे
तुझसे भी यही उम्मीद रखती हूं
पैगाम हवाएं लेकर गईं हैं अभी-अभी
उम्मीद है तुम तक पहुंचाईं होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी

आसमां के सितारे मेरे ख्वाब बुनते हैं
हौसलों की उड़ान भर लूं जरा
बस चुप न रहना, कुछ कह देना
सितारों ने अपनी चमक तुम्हें दिखलाई होंगी
हां मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी

नाज़ुक बहुत है मोहब्बत की डालियां
हवा के आने से हिचकोले खातीं हैं
विश्वास के दरख़्त पर झूले डालकर
नर्म पत्तियां थपकाकर तुम्हें सुलाई होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी

गीत समंदर-सा मचलता है मेरे अंदर
तेरे एहसास से कभी बहकता है कभी सिमटता है
कुछ स्वर छूकर तुम्हें भी लहराईं होंगी
मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी

अश्क से शब्द और शब्द से अश्क बनते बिगड़ते रहते हैं
इश्क क्या है कोई तो बता दे मुझे
मेरी याद में तुम्हारी भी आंख छलछलाई होंगी
हां मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी

आंखें खुली हैं तो क्या तेरे बिन अंधेरा ही लगता है
दर्पण सा मुखड़ा तेरा सामने हो तो खुद को देखूं
तरानों में, इबादत में, खुशबू में, पहलू में
इन एहसासों ने मेरी तस्वीर तुम्हें भी दिखाई होंगी
तड़प यूं ही जिंदा रहे वक्त ने यही सिखलाई होंगी
हां, मैं जब-जब मुस्कुराई तुम्हारी याद में
तुम्हें हिचकियां जरूर आई होंगी!
.....
कवयित्री - लता प्रासर
पता - पटना बिहार
कवयित्री का ईमेल - kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
कवयित्री का परिचय - कवयित्री पेशे से शिक्षिका हैं और पटना में स्वतंत्र विचारोंवाली अत्यंत सक्रिय कवयित्री हैं. इनका एक काव्य संग्रह "कैसा ये वनवास" प्रकाशित हो चुका है. बिहार के वर्तमान साहित्यकारों की कृतियों पर ये अपना वक्तव्य अपने वीडियो चैनल के माध्यम से देती हैं जो काफी चर्चित हो चुका है.ये बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की एक प्रमुख स्तम्भ हैं और इस ब्लॉग की सम्पादक मंडली में शुरुआती वर्षों से ही शामिल हैं.

Monday, 25 November 2019

'आगमन' ने अपनी कवि गोष्ठी में शुरू की 'ग़ज़ल की कार्यशाला', पटना में 24.11.2019 को

ख़ूबसूरत तमाम तस्वीरें, दिल की गहराइयों में गुम कर दी

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एक तो साहित्य की सबसे कठिन विधा है काव्य और उसमें भी ग़ज़ल को आप अहले दर्जे का मान सकते हैं। इसका शिल्प बहुत कड़ाई के साथ स्थापित दायरों का पालन करता है वह भी इतनी महीनी के साथ कि सबकुछ मात्रा की गणना निर्धारित सांचे में ही करना है। आप बस 38-  39 में से कोई एक सांचा चुन सकते हैं फिर कोई कमी-वेशी बिल्कुल मान्य नहीं है। बला तो यह है कि इन सारे मापदंडों पर खड़े उतरने के बावजूद भी कथ्य संबंधी कमियों से आपकी ग़ज़ल को खारिज किया जा सकता है। कुल मिलाकर यूँ समझिये कि अगर खुदा ने आपको ये नेमत नहीं बख्शी है तो आप कभी शायर नहीं बन सकते। लेकिन इस भाग्यवादी सोच को नकारने को सामने आये हैं कुछ मंझे हुए ग़ज़ल प्रशिक्षक जो युवा ग़ज़लकारों के लिए देवदूत से कम नहीं समझे जाने चाहिए।

दिनांक 24 नवंबर 2019 को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'आगमन' की पटना शाखा द्वारा स्थानीय वीर कुंवर सिंह पार्क, पटना में मासिक गोष्ठी सह ग़ज़ल की कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुनील कुमार ने की। प्रथम सत्र में लोकप्रिय एवं वरिष्ठ शायर समीर परिमल द्वारा ग़ज़ल की कार्यशाला आरंभ की गई जिसमें उन्होंने ग़ज़ल की बारीकियों, काफ़िया, रदीफ़, बहर, मतला, मक़्ता आदि को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि दो मिसरों में नज़ाक़त के साथ इशारों में पूरी बात कहना आसान नहीं। उन्होंने मशविरा दिया कि ग़ज़ल सीखने के लिए बड़े शायरों को पढ़ना ज़रूरी है। 'आगमन' की सचिव वीणाश्री हेम्ब्रम ने बताया कि ग़ज़ल की कार्यशाला को नियमित रूप से चलाया जाएगा और व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर ऑनलाइन फिलबदीह एवं तरही मुशायरे का आयोजन किया जाएगा।

दूसरे सत्र में काव्य-पाठ हुआ जिसमें डॉ. सुधा सिन्हा, नेहा नूपुर, वीणाश्री हेम्ब्रम, श्वेता प्रियदर्शिनी, डॉ. मीना परिहार, पूनम सिन्हा 'श्रेयसी', सुनील कुमार एवं समीर परिमल आदि ने अपनी रचनाओं से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

वीणाश्री हेम्ब्रम ने दिल की गहराई में कुछ जगने की बात की- 
कुछ इश्क सा जगने लगा गहरे कहीं अंदर
कि सोचा जब भी तुम्हें ख्वाब पलने लगे

पूनम सिन्हा 'श्रेयसी' सब कुछ खामोशी से करती हैं -
श्रृंगार हुआ चुपके चुपके
 इज़हार हुआ चुपके चुपके

सुनील कुमार ने अपना पल्ला झाड़नेवालों को डुबो डाला -
प्राकृतिक प्रकोप नहीं है
ना कोई ये अद्भुत घटना
अपनी ही नाली में डूबा
देखो देखो देखो पटना।

सुधा सिन्हा को कोई बुला रहा है अपने ही अंदाज से -
हवा तुमको छू के आने लगी है
मुझको वहीं पे बुलाने लगी है

एक शायर जब टैक्स महकमे का अफसर हो जाता है तो क्या होता है सुनिये आपबीती मशहूर शायर समीर परिमल से -
ख़ूबसूरत तमाम तस्वीरें
दिल की गहराइयों में गुम कर दी
एक शायर ने ज़िन्दगी अपनी
टैक्स की फ़ाइलों में गुम कर दी

नेहा नुपुर ने सामाजिक हालात पर कह डाली समय की सबसे बड़ी बात और शायरना नज़ाकत के साथ - 
घाव की सूखी पपड़ियाँ कुरेद तब दर्द बहा सकते थे
अब खून में फैल गया जहर, जख़्म में जरा मवाद नहीं था।

इस प्रकार यह ग़ज़ल कार्यशाला और कवि गोष्ठी के दोहरे स्वरूप को पूर्ण करते हुए यह गोष्ठी सम्पन्न हुई।
.....

प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र सौजन्य - समीर परिमल और वीणाश्री हेम्ब्रम
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com










Saturday, 23 November 2019

"हिंदी गौरव" द्वारा युवा कवि सम्मेलन का आयोजन 20.11.2019 को पटना में संपन्न

"रोगी तो इश्क के हम दोनों थे / बस हमारी दवाएं अलग अलग थी"

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युवावर्ग अपने-आप में एक तूफ़ान होता है। ऊर्जा से परिपूर्ण युवावर्ग को एक दिशा की जरूरत होती है वरना वह स्वयं अपनी दिशा के चयन में गलती कर सकता है। काव्यकर्म एक ऐसी दिशा है जो उसे रचनात्मकता की और उन्मुख रखता है।

दिल्ली से चलकर आए हुए अनेक जाने-माने कवियों ने अपनी चुनिन्दा  रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया तो वही बिहार के उभरते हुए युवा कलमकारों ने अपनी नई-नई श्रृंगार और ओज की रचनाओं से सभी श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित किया।

युवा कवि अनुराग कश्यप ठाकुर (सीतामढ़ी) के सफल आयोजन  जिन्होंने अपनी कविता 'रावण ' - 
"दशहरा के "मेला में अब झूठा रावण जलता है
झूठी कौशल्या के भीतर राम भी झूठा पलता है"
से सबका मन मोहा

बिहार के युवा कवि मनीष तिवारी (रोहतास)
 "पग पायल छनकाती छन -छन गोरी सपनों में आती है"
श्री तिवारी के शानदार संचालन में संपन्न इस कवि सम्मेलन के मुख्य आकर्षण रहे देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए कवि गण।

इस अवसर पर दिल्ली से आए हुए देशभक्ति गीतों के गीतकार जय सिंह आर्य जिन्होंने अपनी भावनात्मक कविताओं से सबका मन मोहा तथा हमें गांव की याद दिला दी

हापुड़ से पधारे डॉ. आलोक बेजान ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से मां की महिमा का गुणगान किया तो राजकुमार सिसोदिया (हापुर ,उत्तर प्रदेश) ने मंच से ही सीधे-सीधे पडोसी देश को चुनौती दे डाली

महफिल की जान रहे डाॅ. सतीश वर्धन (दिल्ली) जिन्होंने अपनी श्रृंगार की कविता
"खाक हो कर भी तुमको कहूंगा नहीं बेवफा बेवफा बेवफा बेवफा" 
से खूब तालियां बटोरी

सुनील कुमार (पटना) जहां में जहां एक तरफ बिहार की स्थिति तथा पटना में आए हुए बाढ़ के ऊपर कटाक्ष किया वही  दूसरी तरफ पत्नी के ऊपर कविता से मन को गुदगुदाया' उनकी पंक्तियां 
"फिर शुरू हुई तकरार
 अरे रे बाबा ना बाबा  उसे कौन करेगा प्यार"
को दिल्ली के कवियों ने खूब सराहा तथा यह पंक्तियां अपने साथ ले गए।

कुंदन आनंद (पटना) ने अपनी चिर परिचित अंदाज में श्रृंगारी की रचनाएं भी पढ़ी तथा पानी के महत्व को समझाया जिसमें उनके श्रृंगार रस की रचना का अंश था-
"उठो प्रिय नैनो को खोलो कितना सुंदर भोर हुआ।"

अभिलाषा मिश्रा (शिवहर), राहुल कांत पांडे (नालंदा) ने श्रृंगार रस की रचनाएँ पढ़ी. 

मुकेश ओझा (बक्सर) ने अपनी भोजपुरी कविता -
"सुहागन के जैसे श्रृंगार बाट चूड़ी 
वैसे ही हिंदी के श्रृंगार भोजपुरी"
 के साथ पूरे भोजपुरी तड़का से कवि सम्मेलन को एक ऊंचाई तक पहुंचाया

 केशव कौशिक (पटना) 
"क्लेशित-व्यथित जब-जब कवि हृदय हुआ
काग़ज़  से  पोंछ लिए  आसूँ उसने"

अश्विनी सरकार (पटना) ने पढ़ा -
"मुझे ना समझा, मेरा प्यार क्या समझ पाओगे तुम
कहती थी मर जाऊँगी बिछड़ के... 
तो बताओ अब क्या मर जाओगे तुम..!"

सिमरन राज (पटना) -
"रोगी तो इश्क के हम दोनों थे 
बस हमारी दवाएं अलग अलग थी"

कुमारी स्मृति (पटना) ने अपनी शानदार काव्य प्रस्तुति दी। कविगण श्रोताओं के बीच घंटों जमे रहे और इस भव्य आयोजन को गगनचुम्बी ऊंचाई तक ले गए।  

यह आयोजन "हिंदी गौरव" और ठाकुर्स इंग्लिश क्लासेज के संयुक्त तत्वावधान में उसके मुसल्लापुर हाट (पटना) स्थित प्रांगण में  में स्वाध्याय क्लासेज के संचालक अनुराग कश्यप ठाकुर (गणित) के अथक प्रयास से संपन्न हुआ इस कार्यक्रम में एक से बढ़कर एक कविताओं की प्रस्तुति की गई। आगत कवियों को वशिष्ठ नारायण सिंह" की स्मृति में अनुँराग कश्यप ठाकुर द्वारा स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
.......
प्रस्तुति - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो 
मूल आलेख - सुनील कुमार  (मानद सम्पादक)
छायाचित्र सौन्जय - सुनील कुमार 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com


 

Wednesday, 20 November 2019

लेख्य मंजूषा द्वारा सुनील कुमार का एकल काव्य पाठ पटना में 16.11.2019 को संपन्न

जिंदगी के हादसों में ख़ुद को पलने दो

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दुनिया को क़ानून की जरूरत होती है ताकि वो ठीक ढंग से काम कर सके लेकिन कोई है जो बिना क़ानून के ही ठीक ढंग से काम करता है। कानून के पहरे में वह ठीक ढंग से काम करना बंद कर देता है। वह है दिल। जब दिल हर तरह से आज़ाद होता है तभी 'शेर' निकलते हैं अश'आर बनते हैं

उच्च न्यायालय के अधिकारी की कठिनाई तो आप समझ सकते हैं जो घर में पानी भी मांगता है तो कानूनी अंदाज में. उसे न तो वकीलों का कोई खौफ है, न हाकिमों का लेकिन हाँ,  कोई है जिसको वह कुछ नहीं कह पाता सिवाय भींगी बिल्ली बनकर उसकी शान में कसीदे पढने के। अब आप इतने भी नादाँ नहीं हैं की आपको कहना पड़े कि कौन हैं वो शा'इर और किसके पास वो भींगी बिल्ली बन जाते हैं

एकल पाठ की शुरुआत करते हुए कवि-शा'इर सुनील कुमार ने कहा कि यूँ तो छोटी उम्र से ही लेखन में उनकी अभिरुचि थी परंतु विगत लगभग दस वर्षों से फेसबुक आ जाने के बाद से अपने फेसबुक कालारेख (टाइम लाइन) से निरंतर काव्य-लेखन करते आये हैं और अपने फेसबुक टैग लाइन "फिर इश्क़ बेहिसाब लिखना चाहता हूँ" के अनुरूप मुहब्बतों के शायर और श्रृंगार के कवि के रूप में पहचान बनाई। बीते दो साल से पटना के काव्य-मंचों पर भी वे सक्रिय हैं।

पटना में समय इंडिया के राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मुख्य मंच से लेख्य-मंजूषा संस्था के बैनर तले जाने माने कवि, शायर सुनील कुमार का एकलपाठ हुआ। उन्होंने करीब बीस रचनाएँ सुनाई और श्रोतागण  मंत्रमुग्ध होकर घंटों बंधे रहे उनके काव्य की डोर से।

श्री कुमार ने मुक्तक, दोहे, विभिन्न छंदों, कविताओं, ग़ज़लों, गीत और प्रतिगीत सुनाये जिनकी एक झलक नीचे प्रस्तुत है। रचनाओं के बाद उनके पाठ पर पूरी सरगर्मी से चर्चा हुई और आप नीचे उसका भी आनंद ले सकते हैं।

1.  पत्नी से वैसे तो हर आदमी का ख़ास रिश्ता होता है लेकिन वो अगर शाइर हो तो और भी गज़ब! तो आगाज़ करते हैं शा'इर सुनील कुमार के अदाज़े-बयां के प्रदर्शन का -
अचम्भा है बला की वो कि जिसका नाम है बीबी
सताते रहती शौहर को ग़ज़ब कोहराम है बीबी
बनीं अहल-ए-हुकूमत हैं अदब किस तौर आएंगे
कि हो चैन-ओ-सुकूँ हासिल कठिन संग्राम है बीबी

मुक़द्दर कर के अपनी सी हम अपनी कर गुजरते हैं
लगाती वो रहें बंदिश …. हम अपनी राह चलते हैं
मगर पूछो नहीं हम से मेरा क्या हाल .. फिर होता
कभी जल में ही रह कर जो “मगर” से बैर करते हैं
इस पर श्रोताओं का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।

2.  एक प्रतिगीत में उन्होंने पत्नी के दोनों रुखों को रखा -

मुझ पर चाहे वो शासन हो
उसकी मर्जी अनुशासन हो
मोबाइल देखे हाथों में
इसी बात को लेकर टेंशन हो
फिर शुरू हुई तकरार
अरे रे बाबा ना बाबा
उसे कौन करेगा प्यार
अरे रे बाबा ना बाबा
मिले पत्नी से फ़टकार
अरे रे बाबा ना बाबा
भला कौन करेगा प्यार
अरे रे बाबा ना बाबा
('घरवाली' कविता का अंतिम अंश)
जीवन को जो अर्थ दे

वो सार, औ थोड़ा सा प्यार चाहिए
कोई दूसरा नहीं संसार चाहिए
हमको  तो घरवाली का प्यार चाहिए
बस घरवाली का ही प्यार चाहिए।

3.  प्रकृति चिंतन के…कुछ दोहे भी उन्होंने रखे जो पर्यावरण और धरती के प्रति उनकी सजगता का प्रमाण है - मानव अस्तित्व के लिए आज सबसे अहम् मुद्दा जिसे छोड़ हम आपस में और पडोसी से लड़ने में लगे रहते हैं। जब मानव जाति बचेगी ही नहीं तो हम लड़ेंगे किससे? इसलिए वो कहते हैं -  
पर्यावरण बचाइये, यही सुखद सौगात।
खुशी चैन से सब रहें, सबसे सुंदर बात।।
शुद्ध हवा नित चाहिए, वही बचाये प्राण।
वायु प्रदूषित है जहर, ले सकती है जान।।
लता विटप हमसे कहें, कंद मूल फल फूल।
हम जीवन आधार हैं, इसे न जाना भूल।।
फूलों से ही रंग है, फूल प्रेम के चिन्ह।
प्यार सभी को बाँटते, करें विभेद न भिन्न।
जंगल काटे जा रहे, वृक्षों पर है घात।
दंश प्रदूषण दे रहा, चिंता की ये बात।।
जंगल की रक्षा करें, मन ही मन यह ठान।
हरी भरी पृथ्वी बने, खुशियों का उद्यान।।
रोज नदी में फेंक कर,  पूजा का सामान।
अक्सर हम हैं बाँटते,  पर्यावरणी ज्ञान।।

4. वो शायर क्या जिसमें रूमानी अदा न हो तो लीजिए वो भी देखिये -

नशीली हर नज़र तेरी पता दिलकश नज़ारों का
उड़ाये होश पलभर में मेरे जैसे हजारों का
तेरा उन्वान खुशबू दे सरापा भी ग़ज़ल जैसा
अजंता की है तू मूरत निजामत है फरिश्तों का
क़यामत हर अदा तलवार सी तीरों सी खंज़र सी
निशाना चूकने से तो रहा कातिल निगाहों का
शरारत दिल में उठती है कि लूँ आग़ोश में तुमको
मग़र ये डर भी लगता है शज़र तुम हो गुलाबों का
अगरचे खार जो चुभ जाय कोई ज़ख्म ये दे दे
बड़ा गहरा सा रिश्ता है सनम फूलों से काँटों का
मुहब्बत का सफ़र इतना कहाँ आसान होता है
फ़कत अहसास मीठा है गुज़रते चंद लम्हों का

  5  थोड़ा और लुत्फ़ लिया लोगों ने उनकी मुहब्बत भरी दिलकश शाइरी का -

गीठोकरें खाते हुए गिरने सँभलने दो
जिंदगी के हादसों में ख़ुद को पलने दो
रोज़ की इस कशमकश से तंग मत आना
वलवले दिल में उठें उनको उबलने दो
जिंदगी की खुशनवीसी है मुहब्बत में
इश्क़ के जज़्बे ज़रा दिल में मचलने दो
हर जवां दिल की जरूरत में मुहब्बत है
इश्क़िया आतिश कभी दिल में भी पलने दो
इश्क़ तो पुर-सोज यारा खेल है दिल का
इश्क़ के रिश्ते यहाँ बनने सँवरने दो
बोलता है हो मुखर बेफिक्री का आलम
मुस्कुराता हूँ गमों में मुस्कुराने दो
लाख ये बदलेगी दुनिया रुख न बदलेगा
इस हक़ीक़ी रीत को स्वीकार करने दो
पत्थरों को पूजते हम हो गए पत्थर
पत्थरों से नेह की जलधार बहने दो

6.  आज के माहौल से पूरी तरह वाकिफ इंसान भी होता है शा'इर और सियासत के झंडे तले फ़ैल रहे अलगाववाद की तस्वीर भी वो प्रभावकारी तरीके से खींचते दिखे अपनी ग़ज़ल में -

ग़ज़बद-जुबानी बद-चलन भी देखिए
लीडरों का यह पतन भी देखिए
लुट रहा चैन-ओ-अमन इस दौर का
मुल्क का बीमार मन भी देखिए
आस्तीन में पल रहा कुछ कुछ तो है
फन उठाये, विष-वमन भी देखिए
भीड़ बनकर नफ़रतें घूमें नगर
बाँटती फिरती कफ़न भी देखिए
सहमा सहमा सा बशर तन्हा हुआ
खौफ़ में पलती घुटन भी देखिए
जागी आँखों की जलन को भूलकर
टूटे ख़्वाबों की चुभन भी देखिए

7. उन्हें भी गर्व है अपने सूबे पर भले और कोई जो कुछ भी कहे वो कहते हैं बिहार की अस्मिता पर बिहारी छंद में एक कविता

मेरा गुरुर शान है अभिमान बिहारी
फ़ितरत है जुझारू यही पहचान बिहारी
सदियों से रहे बाँट हरिक ज्ञान जहाँ को
हम वीर कुँवर सिंह के हैं संतान बिहारी
हम सीधे सादे लोग हैं मक्कारी नहीं है
कुछ जाल फरेबों की भी बीमारी नहीं है
मस्ती में रहें डूबे मगन अपनी लगन में
हम काम भी आते हैं जो लाचारी नहीं है
मिहनत ही धरम है मेरा ईमान है मिहनत
हम जाएँ जहाँ काम करें बनता है जन्नत
अब देख तरक़्क़ी मेरी हैरान जहाँ है
लिक्खे हैं कीर्तिमान कई हमने जी अगिनत
नालंदा सहरसा कभी कटिहार से आये
दो रोटी कमाने चले घर बार से आये
मनवाया हरिक क्षेत्र में मेरिट का है लोहा
मेहनत के बदौलत सुनो अधिकार से आये

 8.  फिर उन्होंने 'सरसी छंद' में एक गीतिका पेश की जिसका ...उन्वान है…. "अनुपम है यह देश हमारा”

अनुपम है यह देश हमारा, हिमगिरि इसके भाल।
नदियाँ बहे सुधा की धारा, करतीं हमें निहाल।।
इसके तन पर सूरज चमके, धरती क्षमतावान।
हरा भरा इसका हर कोना, हरियाली तिरपाल।।
अलग अलग है अपनी भाषा, अपने धर्म अनेक।
भिन्न भले हों संग रहें सब, सबके सब खुशहाल।।
ऋषि-मुनियों की पावन धरती, वीरों का यह देश।
चाँदी जैसी शुभ्र अहिंसा, भारत का अहवाल।।
लोकतंत्र संकल्प सिद्ध हो, रहे सुरक्षित देश।
बने समुन्नत सजा सँवारा, हो उन्नत इक़बाल।।
सीमा पर जब आये विपत्ति, सैनिक रहें सचेत।
दुश्मन की हर कुटिल चाल का, उत्तर दें तत्काल।।
आँच न इसको आने देंगे, रखते मन में ठान।
अपनी जाँ न्यौछावर कर दें, मातृभूमि के लाल।।
मन मोहिनी प्रकृति जिसकी, श्री वैभव श्रृंगार।
कोटि कोटि मुख वंदन करते, भारत देश विशाल।।

करीब बीस  रचनाएँ पढ़ी गईं। कुछ तहत में कुछ तरन्नुम में। सामईन वाह-वाह करते नहीं थके इसके पीछे कारण यह है कि वे भले ही बहुत भारी लफ्जों में बहुत जटिल बातें नहीं कहें लेकिन जो भी कहते हैं दिल से कहते हैं, उस दिल से जिसका मालिक सचमुच में एक नेकदिल इंसान है 


मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे लघुकथा के पितामह कहे जाने वाले विश्वख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ सतीश राज पुष्करणा जबकि मंच संचालन का जिम्मा स्वयं लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने संभाल रखा था जो साहित्य की अन्यान्य विधाओं के अलावा लघुकथा और हाइकू के क्षेत्र में एक अज़ीम शख़्सियत हैं। ज्ञातव्य है कि कवि शायर सुनील कुमार लेख्य-मंजूषा संस्था के सदस्य भी हैं और संप्रति पटना उच्च न्यायालय में सहायक निबंधक के पद पर कार्यरत हैं। मंच पर विराजमान ख़ुसूसी शख्सियतों में प्रमुख थे - डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डा. पल्लवी विश्वास, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) पटना के कार्यकारिणी सदस्य ई भूपेंद्र नाथ सिंह व कवि शायर घनश्याम इत्यादि।

डॉ सतीश राज पुष्करणा जो लेख्य-मंजूषा के संरक्षक भी हैं ने कवि सुनील कुमार के एकलपाठ पर संतोष और हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि "यह खुशी की बात है कि लेख्य-मंजूषा के सदस्य नित प्रगति पथ पर अग्रसर है और आज श्री सुनील कुमार ने एकलपाठ में जो प्रस्तुति दी है वह निश्चय ही सराहनीय है।"

लेख्य-मंजूषा ने पुस्तक मेलों में कुल तीन दिन तीन कार्यक्रम किये। एकलपाठ उनमें से एक था।

डॉ. प्रो. अनिता राकेश ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसा देखा जाता है कि पठन पाठन अध्यापन से जुड़े व्यक्ति ही अक्सर कवि साहित्यकार होते हैं किंतु एक न्यायालय कर्मी का काव्य-कर्म से जुड़ाव और ऐसी प्रस्तुति प्रशंसनीय है।

ई. भूपेंद्र नाथ सिंह ने एकलपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि कवि सुनील कुमार ने अपने एकलपाठ से दौरान पूर्णकाल श्रोताओं को अपनी विभिन्न कविताओं से हमें बाँधे रखा और हम तमाम श्रोताओं के साथ मुग्ध सुनते रहे।

कवि शाइर घनश्याम ने काव्यपाठ की प्रशंसा करते हुए कहा कि "आज के एकलपाठ में विभिन्न काव्य विधाओं से श्री सुनील कुमार ने अपनी रचनात्मक काव्य योग्यता का परिचय दिया है और पूरे समय तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध रखा है।"

मेले में आये दर्शक श्रोता तथा लेख्य-मंजूषा के उपस्थित सभी सदस्य अपनी भरपूर तालियों से श्री सुनील कुमार  का उत्साहवर्धन करते रहे। कार्यक्रम के अंतिम भाग में जब पत्नी को विषय का केंद्र बिंदु मानकर पढ़ी गए मुक्तक, प्रतिगीत और कविता ने तो जैसे तालियों की बरसात कर दी।

एकल पाठ के साथ सदस्यों का पूरा सहयोग और सहभागिता भी थी। श्री कुमार के एकल पाठ के मध्यांतर में लेख्य मंजूषा के अनेक सदस्यों ने भी काव्य पाठ किया जिनके नाम हैं - वीणा श्री हेम्ब्रम, ज्योति स्पर्श, अमृता सिन्हा, रवि श्रीवास्तव, अभिलाषा सिंह, रंजना सिंह, राजकांता राज, शाइस्ता अंजुम, प्रियंका श्रीवास्तव शुभर्, पूनम कतरियार, नूतन सिन्हा, मीरा प्रकाश। डॉ सतीश राज पुष्करणा ने भी एक कविता पढ़ी।

साथ ही अतिथियों ने भी काव्य पाठ किया था। अतिथियों में कवि घनश्याम, उनका पुत्र चैतन्य उषाकिरण चंदन, डॉ. प्रो. अनिता राकेश, डॉ पल्लवी विश्वास। हरेक सदस्य व अतिथि ने अपनी एक रचना का पाठ किया था।

"हम वो हिना बने रचे हथेली से ज्यादा रचने वाले की पोर-पोर रंगी होती है
दूसरों को खुशियाँ देने से स्वयं  की आत्मा जुड़ा जाती है"

एक सरल ह्रदय किन्तु सजग और क्षमतावान कवि को केन्द्रित करके आयोजित किया गया यह कार्यक्रम सभी सदस्यों और अतिथियों के लिए यादगार साबित हुआ।

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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
कवि का ईमेल - sunil21011964@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com 








एक गोष्ठी की अन्दुरूनी रपट / सच्ची हास्य-कथा और मुशायरे का लुत्फ़ - दि. 16.11.2019 को पटना में

"अपनी तहज़ीब बचाने के लिए /  आंख का पानी बचाए रखिये"

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सी आर डी के पटना पुस्तक मेला के आम सभागार में, "बज़्मे-हफी़ज बनारसी" (पटना) के तत्वावधान में, आयोजित मुशायरा के मुख्य अतिथि जनाब इम्तियाज अहमद करीमी ने कहा कि - हिंदी हो या उर्दू, दोनों भाषाओं की रचनाएं एक बराबर है। दोनों में एक अभिव्यक्ति है। मोबाइल युग में साहित्य के प्रति यह लगाव  हमें सुकून देती है। मेले में लोग सुनने के लिए बेताब हैं, भीड़ है, जो इस बात का सबूत है कि कविता - गजल जिंदा है और  साहित्य के प्रति अभी भी लोगो का लगाव है। संस्था के अध्यक्ष रमेश कंवल भी मंच पर मौजूद थे।
          
 जबकि हकीकत में, देखने को यह मिला कि, मंच पर एक ऐसे बुजुर्ग कवि (नाम जानबूझकर नहीं दे रहा हूं, वर्ना वे न जाने क्या कर बैठे कुर्सी को हथियाए बैठे थे। वे एक घंटे तक विषयांतर बोलते हुए, कवि गोष्ठी को तमाशा बनाने पर तुले हुए थे। बहुत खींचा- तानी के बाद उन्हें मंच से उतारा गया। अब आप खुद सोचिये कि साहित्यिक मंच पर  ऐसा तमाशा देखकर, मेला के आम दर्शकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

दूसरी तरफ विशिष्ट अतिथि  शंकर प्रसाद ने कहा कि - "साहित्यकारों में आत्ममुग्धता की स्थिति नहीं आनी चाहिए। न ही अपने को महान साहित्यकार समझना चाहिए। जो मेरे सामने  खुद को महान और विशिष्ट होना  बघारता है, उसे मैं अपनी जूती के बराबर भी नहीं समझता।"

दूसरी तरफ उन्होंने खुद अपनी पीठ थपथपाते हुए, लगभग आधे घंटे तक अपनी प्रशंसा आप करते हुए जरा भी थकान महसूस नहीं की। वे इसी बात को दोहराते रहें कि किस प्रकार उन्होंने नए कवियों को आकाश तक पहुंचाया। अब एक पुस्तक के लोकार्पण पर, लोकार्पित पुस्तक की चर्चा कम और अपनी चर्चा अधिक हो, तो इसे आप क्या कहेंगे? आज साहित्य का महौल इस तरह ही बिगड़ता जा रहा है।

ऐसे बिगड़े हुए महौल के कारण ही,कवि गोष्ठी सह मुशायरा शाम छः के बजाए सात बजे आरंभ हुआ और मेला के समापन का समय था आठ बजे। कवियों की स्थिति यह थी कि मेले में कविता सुनाने के आकर्षण में मुजफ्फरपुर, हाजीपुर जैसे दूर दराज के नए और पुराने कवियों शायरों की ऐसी भीड़ लग गई कि श्रोताओं के लिए रखी गई कुर्सियों पर कवि ही कवि नजर आ रहे थे। सुनील कुमार जैसे चर्चित शायर को भी कुर्सियों के भर जाने के कारण खड़ा ही  पाया।

मेला देखने आए हुए दस- बीस श्रोतागण जरुर नजर आए, लेकिन, आधे घंटे (कवयित्रियों की गजल सुनने के पश्चात) चलते भी नजर आएं। बच गए, पचास से अधिक कवि-शायर, जिनके भीतर यह बेचैनी थी कि उनकी बारी कब आएगी, मंच पर खड़े होकर कविता या गजल पेश करने की? या आठ बजते- बजते मेला के साथ साथ, कवि गोष्ठी सह मुशायरा में अचानक ब्रेक लग जाने के कारण, इतनी दूर से मेले में आना बर्बाद तो  न हो जाएगा?

बेचारा संयोजक या संचालक क्या करें ? किसे नहीं बुलाकर दुश्मनी मोल ले। सो उन्होंने खुला मंच बना दिया। लेकिन, वे इतने भी बेवकूफ़ नहीं ठहरे जनाब। जिन्हें मंच पर जगह देनी थी, उन्हें लिस्ट में सबसे ऊपर नाम रख दिया गया। अब गुटबाजी कहां नहीं चलती है भाई?इन मंचों पर संचालक महोदय , देवता अथवा खुदा की भूमिका में होते  हैं। न जाने वे कब किस पर मेहरबान हो जाएं? जो चालाक कवि होते हैं, वे संचालक को अपने वश में रखते हैं।

साठ साल का बुढ्ढा हो गया मैं, लेकिन एक यही तरकीब नहीं सीख सका मैं। इसलिए मैं निश्चिंत था कि मेरी बारी तो निश्चित नहीं आएगी। हलाकि इस  समारोह की यह खासियत तो अवश्य मानी जानी चाहिए कि नए तो नए, एक से बढ़कर एक पुराने कवि -शायर भी पूरी उम्मीद लगाए बैठे थे कि उन्हें अवश्य मौका मिलेगा। मेरी नजर दूर- दूर तक जिन्हें पहचान रही थी उनमें संजय कुंदन, समीर परिमल, प्रेम किरण, आराधना प्रसाद, शमां कौसर,  वीणाश्री हेम्ब्रम, घनश्याम, आर पी घायल,  जनाब औरंगाबादी,  नसीम अख्तर, पूनम श्रेयसी आदि कई लोग थे। झूठ क्यों बोलूं भाई? आमंत्रित कवियों की उस भीड़ में एक मैं भी था।

मेरे विचार से, आयोजक या संयोजक को चाहिए कि पहले कवियों से रचनाएं आमंत्रित कर, श्रेष्ठता के आधार पर उतने ही कवियों को आमंत्रित करें, जितने को सम्मान पूर्वक मंच दे सकते हों। लेकिन पहले किसे मंच पर बुलाए किसे अंत में?

यदि कवियों को वर्णात्मक अक्षर के नाम पर वरीयता दी जाए तो विवाद से बचा जा सकता है। या फिर कवियों के नामों की पर्ची एक बाक्स में डालकर, लाॅटरी की तरह कवियों को आमंत्रित किया जाए। सारा विवाद ही खत्म। लेकिन, फिर गुटबाजों का क्या होगा?

खैर, कुछ उपस्थिति कवियों का विचार जानना चाहा तो एक ने कहा - " सभी कवि मंच पर घुसने की घुसपैठ कर रहे हैं। क्योंकि सभी को दो घंटे में समेट पाना संभव है भी नहीं।"

नजामत की जनाब शकील सहसरामी ने। गजल को गजल की तरह कहने वाली आराधना प्रसाद के प्रार्थना  गीत" वीणा वादनी वर दे "और अरुण कुमार आर्या की गजल से मुशायरा का आरंभ हुआ।

आराधना प्रसाद ने शेर सुनाया कि
" रौशनी ऐसी हुई की तम गया" तथा " 
"हम खाक छानते रहे, वो मिल न सका। "

नसर आलम नसर ने अपने नए अंदाज में कहा- 
"चला गया है बहुत दूर प्यार का मौसम
कैसे खिलेगा कोई गुल तुम्हारे आंगन में 
खिंजा में ढूंढते हो बहार का मौसम।" 

कवि घनश्याम की जबरदस्त अदायगी रही -
"जुल्म अब तो सहा नहीं जाता /बोलिए इंकलाब कब होगा?"
और 
"तेरी आंखों की नादानी न होती, मुझे इतनी परेशानी न होती।
 तुम्हारे हौंसले ठंडे न होते मुझे फिर आग सुलगानी न होती.।"

मुजफ्फरपुर से पधारी कवयित्री आरती कुमारी की गजल ने वाह-वाह कहने को मजबूर कर दिया -
 "होंठों पे मेरे आपकी आई कोई गजल / शर्मा रही हूं तो लीजिए ई कोई गजल!?
"दर्द सीने में दबाए रखिये /  फूल चेहरे पे खिलाए रखिये। 
अपनी तहज़ीब बचाने के लिए /  आंख का पानी बचाए रखिये। "

अर्चना त्रिपाठी की कविता थी-
"अवाम को मयस्सर नहीं दो वक्त की रोटी 
/फस्ल लहलहाई दुश्मनी की हिंदुस्तान में।

जबकि शंकर शंकर प्रसाद  ने पूरी रवानगी में पेश किया - 
"शुक्रिया तेरा कि तेरे आने से रौनक तो बढी 
वर्ना ये बज्म की रात अधूरी रहती।"

चर्चित शायर सुनील कुमार ने कहा -
"नज़र का इंतिखाब तुम / हसीन लाजवाब तुम ।"

कवयित्री पूनम सिंहा श्रेयसी की अदायगी भी खूब रही-
"अंहकार जब होम हुआ /  पत्थर - पत्थर मोम हुआ।
  बाहर-भीतर जब सम हो / सत्य समर्पित होता है
  शून्य के ज्ञान सिन्धु में /  पूर्ण अवस्थित होता है
 सागर के उस पार पहुँच / तृप्त अब रोम- रोम हुआ।"

  कवि पंकज कुमार की कविता भी खूब रही-
"मैं तो निर्जीव हूँ /  मुझे तुम जबरन हांकते हो!"

कुमारी स्मृति ने एक नज्म पढ़ी -
 "पत्थर हैं, खाये यहाँ।"

युवा शायर चैतन्य चंदन की रचना भी खूब पसंद की गई-
"सुर्ख़ आँखों में फ़साना दर्द का!/ज़िंदगी है इक तराना दर्द का
हमने जाना लुट के तेरे इश्क़ में / है मुहब्बत इक ठिकाना दर्द का।"

कि इंसानियत की सदी भेज दे / ये लफ़्ज़ों का सागर मचलने लगा,
कि "कुमकुम' को बहती नदी भेज दे।"

युवा शायर समीर परिमल ने पटना में आई बाढ़ विभीषिका पर एक जीवंत गजल प्रस्तुत किया -
" जो न करना था कर गया पानी / देखो हद से गुज़र गया पानी
जब जगह मिल सकी न आँखों में / हर गली घर में भर गया पानी!!"

इसके अतिरिक्त भी कुमार रजत, चंदन त्रिवेदी, सुधीर कुमार,  उत्कर्ष,  कुंदन आनंद,  वीणाश्री हेम्ब्रम सहित कुछ कवियों की शानदार प्रस्तुति रही और कई कवियों को निराश लौटना भी पड़ा। नसीब भी कोई चीज होती है जनाब!

रपट के लेखक - सिद्धेश्वर 
लेखक का ईमेल - 
र्पतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
















Tuesday, 19 November 2019

लेख्य मंजूषा द्वारा लघुकथा एवं काव्यपाठ का आयोजन 17.11.2019 को पटना पुस्तक मेला में संपन्न

 उनको तो बिरयानी मिलती / मुफ़लिस तेरा मुक़द्दर पानी 
लघुकथा पाठ में बच्चे भी शामिल 

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अभिव्यक्ति का कोमलतम माध्यम काव्य है तो सबसे तीक्ष्ण माध्यम है लघुकथा । कविता हवा में लहराते हुए आती है और पाठकों को हौले से अपने आगोश में ले लेती है वहीँ लघुकथा सीधा हमला करती है और कोई मुरव्वत नहीं करती।

17 नवम्बर 2019 पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के राष्ट्रीय पुस्तक मेला में लेख्य मंजूषा द्वारा लघुकथा एवं काव्यपाठ का सुंदर आयोजन किया गया जिसने मंच पर उपस्थित अतिथियों श्रोताओं, साहित्यकारों तथा पुस्तक प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के अध्यक्ष डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने किया ।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ अनीता राकेश के साथ डॉ. विरेंद्र भारद्वाज की उपस्थिति में लेख्य मंजूषा के सदस्यों के अलावा किलकारी के बच्चों ने भी अपनी लघुकथा का पाठ कर आने वाले समय में हिंदी साहित्य तथा लघुकथा के सुंदर भविष्य का प्रदर्शन किया ।

इसमें रवि श्रीवास्तव,  संजय कुमार 'संज',  सुबोध कुमार सिन्हा, मो. नसीम अख्तर, अमृता सिन्हा, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह, पूनम कतरियार , मीनाक्षी सिंह, डॉ. प्रो. सुधा सिन्हा, सीमा रानी, प्रियंका श्रीवास्तव, राजकांता राज तथा रीता सिंह ने अलग-अलग विषयों पर पाठ किया।

लघुकथा पाठ के पश्चात काव्यपाठ में जिन्होंने अपनी रचना सुनाई उनमें प्रमुख रहे कवि संजय कुमार संज, गज़लकार सुनील कुमार, मो. नसीम अख्तर तथा सुबोध कुमार सिन्हा ।

सिद्धेश्वर प्रसाद की लघुकथा का शीर्षक था - "एक बेटे की कीमत".

श्रीमती कतरियार की लघुकथा का शीर्षक था - "अमर शहीद".

संजय कुमार ने पिछली बरसात में अप्रत्याशित मूसलाधार बारिश से मची तबाही का मंज़र रखा -
शहर बना समंदर पानी
कैसा था वो मंज़र पानी
उनको तो बिरयानी मिलती
मुफ़लिस तेरा मुक़द्दर पानी
उनकी हीं आंखों से उतरा
बेशर्मी बेगैरत पानी
पीने को नहीं मिलता पानी
सड़कों पे भर-भरकर पानी
प्रकृति से ही छेड़छाड़ का
है परिणाम भयंकर पानी

इस अवसर पर लघुकथा संग्रह "मुट्ठी में आकाश सृष्टि में प्रकाश" का लोकार्पण भी किया गया जिसका संपादन विभा रानी श्रीवास्तव ने किया है। लघुकथा का पाठ करनेवाले सभी साहित्यकारों को डॉ. सतीशराज पुष्करणा द्वारा "लघुकथा का सौन्दर्य" उपहार स्वरूप दिया गया.

इस अवसर पर डॉ. आलोक चोपड़ा, डॉ सविता सिंह नेपाली, कवि सिद्धेश्वर, कुमार गौरव , मृणाल आशुतोष, वीणाश्री  हेंब्रम के साथ अनेक श्रोता गण मौजूद रहे तथा कार्यक्रम का आनंद लिया।

मंच का संचालन अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव तथा धन्यवाद ज्ञापन रवि श्रीवास्तव ने किया।
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प्रस्तुति - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
मूल आलेख - संजय कुमार 'संज' / रवि श्रीवास्तव
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com