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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday, 17 June 2019

पितृ दिवस के उपलक्ष्य में लेख्य मंजूषा के द्वारा काव्योत्सव 16.6.2019 को पटना मे सम्पन्न

पिता का अप्रदर्शित-अनंत प्यार है मौन



16 जून 2019 दिन रविवार को फादर्स डे यानी पितृ दिवस के उपलक्ष्य में लेख्य मंजूषा पटना के द्वारा काव्योत्सव मनाया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव ने किया तथा मंच संचालन दिल्ली से आई पम्मी सिंह ने किया। इस अवसर पर विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि बच्चों को संस्कार अगर मां देती है तो पिता सहने और जुझने की शक्ति। उपाध्यक्ष संजय संज ने कहा कि मां पर तो अनगिनत रचनाएं लिखी जाती हैं परंतु पिता का अप्रदर्शित प्यार को कविताओं के माध्यम से कहने की आवश्यकता है ताकि अगली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में और ज्यादा मदद मिले।

कार्यक्रम की शुरूआत मीरा प्रकाश की प्रस्तुति से हुई।

संजय कुमार 'संज'ने पिता की वेदना को दर्शाती एक बेहतरीन कविता पढ़ी -
पितृ बलिदान और सहनशीलता का प्रश्न है गौण
क्योंकि पिता का अप्रदर्शित-अनंत प्यार है मौन
पिता एक नाम है जीवन, शक्ति और अनुशासन का
बच्चों की सफलता प्रतीक है उसके अच्छे प्रशासन का।

इस अवसर पर हजारीबाग से शिरकत कर रहीं कवियत्री अनिता मिश्रा सिद्धी ने रचना सुनाई -
चुप रह पिता हर व्यथा को सहते
बच्चों की खातिर सबकुछ सहते।

दिल्ली से आईं पम्मी सिंह ने पिता पर केंद्रित रचना सुनाई कि
माह आस पास था यहीं जमीं पर मेरे
पिता का जब-जब हाथ थी सर पर मेरे
यूँ तो फरिस्तों की फेहरिश्त है बड़ी लंबी
इस जमीं के तुम नायाब आसमां  हो मेरे।

पूनम देवा ने भी‌ एक कविता सुनाई -
पिता के नाम से हीं है
हमसब की पहचान।

प्रेमलता सिंह ने भी पिता पर एक कविता सुनाया।

राजकांता राज ने प्रस्तुति दी कि
जब से मैं छोड़ तुझे आईं हूं पापा
नहीं भूलती आपका प्यार मेरे पापा।

अप्रवासी सदस्यों ‌‌‌‌की रचनाओं को यहां उपस्थित सदस्यों ने सुनाया जिनमें से प्रमुख नीचे प्रस्तुत हैं।

जोधपुर से पुरोहित की रचना रही -
गोद में मुझको खिलाया था मेरे पापा ने
घर की रानी बनाया था मेरे पापा ने।

वहीं भोपाल से कल्पना भट्ट की रचना रही -
पिता पुत्री का प्यार न जानी
बिछड़े पिता आंखों से बरसा पानी।

तो गाजियाबाद से कमला अग्रवाल की रचना रही -
वक्त गुजरता रहा मैं चुपचाप देखती रही
बाबूजी का परेशान चेहरा
रिश्ते सिमट गये कागज पर।

इस तरह पिता को याद करते हुए आज का कार्यक्रम कुछ बेहतरीन यादगार पलों के साथ सम्पन्न हुआ।इस अवसर पर संस्था के उपाध्यक्ष और कवि संजय कुमार'संज' का जन्मोत्सव भी केक काट कर मनाया गया।
.....

आलेख - संजय कुमार 'संज'
छायाचित्र - लेख्य मंजूषा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com












6 comments:

  1. बहुत उम्दा रिपोर्ट। अनेकशः धन्यवाद ☺️🙏

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 19 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
    इस जमीं के नायाब आसमां आप हो मेरे..(सुधार के साथ🙏)

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  4. बधाई! और भविष्य की शुभकामना!

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  5. बधाई। एक परिपूर्ण प्रयास।

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