युग चाहे जो भी हो, कवि अमन का उपासक होता है। किन्तु अमन अथवा शांति की आकांक्षा रखने का अर्थ वह नपुंसक हो गया है और अन्याय को शब्द रूपी खंजर से छिन्न-भिन्न नहीं करना चाहता। उसके शब्दों की उड़ान में एक मधुर लय होती है और उसकी खामोशी भी बहुत कुछ बयाँ करती है। वह आशिकी का समंदर भी है और शम्मे-उल्फत को जलाकार बिखरे हुए पन्नों को पढ़ना भी जानता है। उसके चोटिल हृदय से भावनाओं का भयंकर युद्ध होता है और फिर भी कुछ पैदा होता है तो वह होता है गौतम बुद्ध। कुछ इसी तरह की छटाएँ बिखरीं हाल ही सम्पन्न एक विशेष कवि-गोष्ठी में ।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् तथा स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में, राजेन्द्र नगर टर्मिनल (पटना) स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय के कक्ष में "ग़ज़ल-ए-प्रभात" काव्य गोष्ठी का आयोजन, अलीगढ़ से पधारे मशहूर शायर "अशोक अंजुम" तथा चेन्नई से पधारे वरिष्ठ कवि ईश्वर करुण के सम्मान में किया गया।
गोष्ठी की अध्यक्षता घनश्याम ने की. पूर्व मध्य रेल के राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने मुख्य अतिथि तथा इलाहाबाद की रेल राजभाषा अधिकारी सुनीला यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित थीं।
आयोजन का संयोजन, संचालन और अतिथियों का स्वागत किया भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के अध्यक्ष, कवि, कथाकार और चित्रकार सिद्धेश्वर ने. उन्होने बिना हाथों के बिना खंजर के होने की बात की-
हाथ ही नहीं / तो खंजर किस काम का
संज्ञा हो नपुंसक / तो क्या हो सर्वनाम का
ऊंघने लगे शब्द / भाषण के मौसम में।
सम्राट समीर ने संगीत का अद्भुत रूप दिखाया-
एक परिंदा जो अपनी पांखों से
संगीत लिखता है।
मधुरेश शरण ने अपनी खामोशी का राज खोला -
तूने जो ढाये हैं सितम, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ
दुनिया के देख रंग-ढंग, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ।
लता प्रासर ने प्रेम के लिए दुनिया में आग लग जाने को सही ठहराया-
लोग कहते हैं तुझको / आशिकी का समंदर
जरा इन अश्कों की गिनती / बताकर तो देखो
आग लगती है दुनिया में / तो लग जाने दे
तुम खुदा से रूह मिला कर तो देखो।
मो. नसीम अख्तर ने विभाजनकारी बातों पर दुःख जताया-
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी दिल को
जो दीवार घर में उठाई गई है।
विजय गुंजन अपने बिखरे जीवन को यूँ संभालते हुए दिखे -
बिखरे पन्नों को जमा फिर से कर रहा हूँ
रंग उनमें सुनहले फिर से भर रहा हूँ।
सभा की अध्यक्षता कर रहे घनश्याम ने अमन के जिस्म के क्रुद्ध होने की स्थिति को जोरदार तरीके से बयाँ किया-
अमन का जिस्म जब जब चोट खाकर क्रुद्ध होता है
तो जीवन-मौत का जमकर भयंकर युद्ध होता है
धरा के शुभ्र आँचल पर लगे जब खून के धब्बे
तो उसकी कोख से उत्पन्न गौतम बुद्ध होता है।
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