बिहारी धमाका / بہاری دھماکا - A blog in English, हिन्दी, اردو, मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका and बज्जिका. / Contact us at editorbejodindia@gmail.com (IT'S LINKS CAN NOT BE SHARED ON FACEBOOK but CAN BE SHARED IN WHATSAPP, TWITTER etc.) (For full view, open the blog in web/desktop version by clicking on the option given at the bottom.)
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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]
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Sunday, 30 June 2019
साथ रहने की वो गुदगुदी छोड़कर / कवि नरेश जनप्रिय को एसके प्रोग्रामर की काव्यांजलि
Wednesday, 26 June 2019
जौनापुर (समस्तीपुर) में बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् द्वारा 24.6.2019 को हिन्दी, बज्जिका और अंगिका काव्यरस बरसा
मुख्य अतिथि हिन्दी व अंगिका के ऊर्जावान युवा साहित्यकार सह कविताकोश के उपनिदेशक राहुल शिवाय उपस्थित थे जबकि विशिष्ठ अतिथि के रूप में ख्यात युवा समालोचक व साहित्यकार अश्विनी आलोक उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। संचालन का दायित्व हिन्दी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर मृदुल ने ले रखा था। मुख्य अतिथि राहुल शिवाय को अंगवस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया।
Tuesday, 25 June 2019
कटिहार में अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच द्वारा 23.6.2019 को अंगिका महोत्सव मनाया गया
Saturday, 22 June 2019
संगीत शिक्षायतन द्वारा विश्व योग दिवस तथा विश्व संगीत दिवस समारोह पर 21.6.2019 को आयोजित कार्यक्रम सम्पन्न
पटना के संगीत शिक्षायतन में विश्व योग दिवस तथा विश्व संगीत दिवस समारोह को बड़े हर्षोल्लास से शिक्षायतन मानया गया। जिसमे संस्था के संगीत विभाग के कलाकार गायन प्रस्तुत कर प्रांगण में पारंपरिक माहौल बनाया।
बच्चों में प्रारम्भ से ही योग और संगीत की शिक्षा देने का यह प्रयास प्रसंसनीय कहा जा सकता है।
सूचना स्रोत- मधुप चंद्र शर्मा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
Tuesday, 18 June 2019
रंगम द्वारा "काली सलवार" नाटक 15.6.2019 को पटना में प्रस्तुत
पटना के कालिदास रंगालय में 15 जून, रविवार की शाम नाट्य संस्था"रंगम"के नाम रही। जिसने सआदत हसन मंटो लिखित कहानी "काली सलवार" की बेहतरीन प्रस्तुति द्वारा उपस्थित दर्शकों को अंत तक बाँधे रखा।
कहानी की नायिका सुल्ताना (ओशिन प्रिया) एक वेश्या है। अम्बाला में उसके बहुत ग्राहक थे तीन से चार घंटो में ही 8 से 10 रुपये कमा लेती थी । खूब काम था और ज़िंदगी अच्छी चल रही थी । लेकिन जब वह अपने साथी खुदाबख्श (कृष्णा किंचित) जो एक पेशे से फोटोग्राफर है उसकी बातो में आकर अम्बाला से दिल्ली आ जाती इस आस में कि पैसे खूब कमायेंगे वहाँ उसकी दोस्ती मुख्तार (विभा कपूर) से होती है जो एक पुरानी वेश्या है और उसके पडोस में ही रह्ती है जिसके साथ सुख-दुख कि बाते करती है ।
कई महीने गुज़र जाते हैं सुल्ताना और खुदाबख्श का दिल्ली में धंधा नही चल पाता और दिन पर दिन हालत बहुत दयनीय हो जाती है और सारे सोने-चांदी के ज़ेवर भी सब के सब बिक जाते है । मोहर्रम सर पर है वह बेचैन है कि उसके पास काली सलवार नहीं । वह अपने साथी खुदाबख्श को काली सलवार लाने को कहती है लेकिन खुदाबख्श अपनी किस्मत का ताला खुलवाने की खातिर एक फकीर के चक्कर में लगा है एक ऐसा फकीर जिसका "किस्मत का ताला" जंग लगे ताले की तरह बंद है खुदाबख्श काली सलवार नही प्रबंध कर पाता।
इसी बीच उसकी मुलाकात एक व्यक्ति (शंकर) से होती है जो एक जिगोलो है जिससे सुल्ताना की नज़दीकिया बढती है और उससे काली सलवार का जिक्र छेड़ती है । वह काली सलवार देने का वादा करता है मगर बदले में उसके बूंदे मांग लेता है । शंकर, मुख्तार की काली सलवार ले आता है और उसे तोहफे के रूप में सुल्ताना से लिये बूंदे दे देता है ।
मुहर्रम का दिन सुल्ताना काली कमीज और दुपट्टा जो उसने रंगवाए थे एंव काली सलवार के साथ पहनकर वह खुश ही हो रही होती है कि तभी मुख्तार आती है दोनो एक दुसरे को गौर से देखती है मुख्तार को लगता है उसकी सलवार है मुख्तार पुछ्ती है - सुलताना ये कमीज़ और दुपट्टा तो रंगाया हुआ मालूम पडता है लेकिन ये सलवार?
सुल्ताना कहती है – है न अच्छी आज ही दर्जी दे गया है, फिर सुल्ताना को लगता है कि उसके बुंदे मुख्तार पहनी है पूछ्ती है - मुख्तार ये बुंदे कहा से लायी?
मुख्तार कहती है ये बुंदे आज ही मंगवाई है दोनो हैरानी और खामोशी के बीच स्तब्ध ।
कहानी ‘काली सलवार’ की सुलताना, वेश्याओं की तमाम हसरतों को हमारे सामने रखती है जिससे यह साबित होता है कि उसका अस्तित्व सिर्फ लोगों की जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने वाली एक भोग वस्तु की तरह ही नहीं है बल्कि उसके भी अरमान एक आम औरत की तरह होते हैं ।
सामग्री सौजन्य - संतोष कुमार
एक शाम हफीज़ बनारसी के नाम - 16.6.2019 को पटना में मुशायरा सम्पन्न
Monday, 17 June 2019
लोक मंच की प्रस्तुति *नाट्य शिक्षक की बहाली* 16.6.2019 को पटना में प्रस्तुत
पितृ दिवस के उपलक्ष्य में लेख्य मंजूषा के द्वारा काव्योत्सव 16.6.2019 को पटना मे सम्पन्न
Tuesday, 11 June 2019
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् तथा स्टे.रा.भा.का.स., राजेंद्रनगर द्वारा पटना में "ग़ज़ल-ए-प्रभात" का आयोजन 11.6.2019 को सम्पन्न
युग चाहे जो भी हो, कवि अमन का उपासक होता है। किन्तु अमन अथवा शांति की आकांक्षा रखने का अर्थ वह नपुंसक हो गया है और अन्याय को शब्द रूपी खंजर से छिन्न-भिन्न नहीं करना चाहता। उसके शब्दों की उड़ान में एक मधुर लय होती है और उसकी खामोशी भी बहुत कुछ बयाँ करती है। वह आशिकी का समंदर भी है और शम्मे-उल्फत को जलाकार बिखरे हुए पन्नों को पढ़ना भी जानता है। उसके चोटिल हृदय से भावनाओं का भयंकर युद्ध होता है और फिर भी कुछ पैदा होता है तो वह होता है गौतम बुद्ध। कुछ इसी तरह की छटाएँ बिखरीं हाल ही सम्पन्न एक विशेष कवि-गोष्ठी में ।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् तथा स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में, राजेन्द्र नगर टर्मिनल (पटना) स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय के कक्ष में "ग़ज़ल-ए-प्रभात" काव्य गोष्ठी का आयोजन, अलीगढ़ से पधारे मशहूर शायर "अशोक अंजुम" तथा चेन्नई से पधारे वरिष्ठ कवि ईश्वर करुण के सम्मान में किया गया।
गोष्ठी की अध्यक्षता घनश्याम ने की. पूर्व मध्य रेल के राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने मुख्य अतिथि तथा इलाहाबाद की रेल राजभाषा अधिकारी सुनीला यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित थीं।
आयोजन का संयोजन, संचालन और अतिथियों का स्वागत किया भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के अध्यक्ष, कवि, कथाकार और चित्रकार सिद्धेश्वर ने. उन्होने बिना हाथों के बिना खंजर के होने की बात की-
हाथ ही नहीं / तो खंजर किस काम का
संज्ञा हो नपुंसक / तो क्या हो सर्वनाम का
ऊंघने लगे शब्द / भाषण के मौसम में।
सम्राट समीर ने संगीत का अद्भुत रूप दिखाया-
एक परिंदा जो अपनी पांखों से
संगीत लिखता है।
मधुरेश शरण ने अपनी खामोशी का राज खोला -
तूने जो ढाये हैं सितम, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ
दुनिया के देख रंग-ढंग, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ।
लता प्रासर ने प्रेम के लिए दुनिया में आग लग जाने को सही ठहराया-
लोग कहते हैं तुझको / आशिकी का समंदर
जरा इन अश्कों की गिनती / बताकर तो देखो
आग लगती है दुनिया में / तो लग जाने दे
तुम खुदा से रूह मिला कर तो देखो।
मो. नसीम अख्तर ने विभाजनकारी बातों पर दुःख जताया-
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी दिल को
जो दीवार घर में उठाई गई है।
विजय गुंजन अपने बिखरे जीवन को यूँ संभालते हुए दिखे -
बिखरे पन्नों को जमा फिर से कर रहा हूँ
रंग उनमें सुनहले फिर से भर रहा हूँ।
सभा की अध्यक्षता कर रहे घनश्याम ने अमन के जिस्म के क्रुद्ध होने की स्थिति को जोरदार तरीके से बयाँ किया-
अमन का जिस्म जब जब चोट खाकर क्रुद्ध होता है
तो जीवन-मौत का जमकर भयंकर युद्ध होता है
धरा के शुभ्र आँचल पर लगे जब खून के धब्बे
तो उसकी कोख से उत्पन्न गौतम बुद्ध होता है।
Tuesday, 4 June 2019
भोजपुरी त्रैमासिकी 'सँझवत ' के प्रवेशांक (अप्रैल-जून, 2019) का लोकार्पण पटना में 28.5.2019 को सम्पन्न
भोजपुरी और हिंदी साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने 'सँझवत' के आकर्षक आवरण पृष्ठ की जमकर प्रशंसा करते हुए उसमें प्रकाशित सामग्री की स्तरीयता और उपादेयता पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्री द्विवेदी ने भरपूर खुशी और विश्वास के साथ कहा कि डॉ. विमल के संपादन में यह पत्रिका निस्संदेह भोजपुरी भाषा के मानकत्व तथा साहित्य को एक विशिष्ट ऊँचाई प्रदान करेगी।
उन्होंने कहा कि विभिन्न गद्य विधाओं के लिए विषय देकर और काव्य के क्षेत्र में विशिष्ट छंदों में लेखन कराकर नई पीढ़ी की ऊर्जा को भोजपुरी लेखन के लिए प्रेरित किया जा सकता है। संपादक नए लेखकों को यह भरोसा दिला पाएँ कि उनकी रचनाओं को संशोधित कर बेहतर रूप दिया जा सकता है तो वे युवा रचनाकारों की एक अच्छी टीम तैयार कर सकते हैं।
पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल ने 'सँझवत' में प्रकाशित सामग्री का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह प्रवेशांक वास्तव में पत्रिका का अनंतिम रूप नहीं है, वरन् मूल्यवान सुझावों के आलोक में अगले कुछ अंकों के बाद ही इसके रूप की सुनिश्चितता स्पष्ट हो पाएगी।
उन्होंने विश्वास दिलाया कि वे नई पीढ़ी के रचनाकारों की टीम तैयार करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए जितना भी संभव हो पाएगा, प्रयत्न करते रहेंगे। वे जहाँ 'सँझवत' को मुख्य रूप से शोध और समीक्षा की पत्रिका के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, वहीं साहित्य की हर विधा में लेखन हेतु उसे एक मानक और प्रेरक मंच भी बनाना चाहते हैं।