इस वतन ने खो दिया जांबाज फिर बेटे कई
देश पर जब संकट आता है तो सारे देशवासी एक होकर उसका मुकाबला करते हैं. पुलवामा पर हमले में हमारे देश ने जब अनेक वीर जवानों को खोया तो देश के हरेक बच्चे, युवा, बूढ़े व सभी नर-नारियों, सबों को काफी धक्का लगा पर अगले ही पल सब ने अपनी हिम्मत जुटाई और फिर से कमर कस ली हर हाल में अब किसी भी आक्रमण या आतंकवादी कार्रवाई का सफलतापूर्वक मुकाबला करते हुए आक्रमणकारियों को धूल चटाने की. देश के स्वाभिमान को शिखर पर कायम रखना एक बड़ी प्राथमिकता है.
इसी सिलसिले में एक नए मासिक अखबार "आज उठी है आवाज़" की ओर से आयोजित कार्यक्रम, 'आओ कुछ अल्फाज़ कहें' पुलवामा शहीदों को समर्पित किया गया। बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन, पटना में दिनांक 17 फरवरी 2019 को आयोजित कार्यक्रम के संयोजक थे अश्विनी कुमार कविराज और संचालन किया अभिलाषा सिंह ने।
सर्वप्रथम राष्ट्रगान गा कर शहीदों के लिए मौन रखा गया। इस अवसर पर अखबार के जहानाबाद संस्करण एवं पटना संस्करण के फरवरी माह के अंक का लोकार्पण किया गया। जहानाबाद संस्करण के सम्पादक अमृतेश कुमार मिश्र इस अवसर पर मौज़ूद थे । विशिष्ठ अतिथियों में तारीफ़ नियाजी रामपुरी, विभा रानी श्रीवास्तव, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, नरेंद्र देव और सुनील कुमार मौज़ूद थे।
फिर चला कविता पाठ का सत्र जिसमें पहले सुपर-30 फिल्म के चाइल्ड आर्टिस्ट घनश्याम, सूरज, नवीन, सन्नी, कृष्ण, रौशन आदि बच्चों ने अपनी कवितायेँ सुनईं. फिर जब सलमान द्वारा देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया गया, लोगों ने खूब सराहा।
कवि सुनील कुमार द्वारा प्रस्तुत ग़ज़ल का अंश कुछ यूं था -
इस वतन ने खो दिया जाँबाज़ फिर बेटे कई
आँसुओं की धार बनकर बह गए सपने कई
कोख उजड़ी फिर कहीं सिंदूर माथे का धुला
फिर तिरंगे में लिपटकर आ गए रिश्ते कई
खून खौला फिर वतन का देख खूनी मंज़रें
पूछता है शासकों से प्रश्न फिर तीखे कई
उसकी कथनी और करनी में कहाँ कुछ मेल है
दोस्तानी राह में हम खा चुके धोखे कई
कवि अनमोल सावर्ण ने एकता का संदेश देते हुए सुनाया कि
मंदिर मस्जिद से बेदाग दामन चाहिए,
अब मुल्क को पैग़ाम-ए-अमन चाहिए।
कवि शैलेश कुमार वर्मा ने एक लंबी कविता सुनाई और अमर शहीदों के लिए जन्नत की कामना करते हुए उनकी शहादत को नमन किया।
शहीदों तुम से यह वतन है
एक बार नहीं सौ बार नमन है
कर पूरी हर मन्नत देना
भगवन इनको जन्नत देना।
दिल्ली से आये अतिथि शायर तारीफ़ नियाजी ने मंच से ऐसा समा बाँधा कि समस्त सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया। उन्होंने अपनी ग़ज़लों के अलावे एक गीत "बचा लो अपना हिंदुस्तान" की शानदार प्रस्तुति दी। अमित कश्यप ने रंग दे बसंती चोला गाकर तालियाँ बटोरी। औरंगाबाद के कवि कुश सिंह आज़ाद 'भारत' ने वीर रस की एक कविता सुनाई ।अमृतेश मिश्र द्वारा, 'बुरी नज़रें भी मेरा खाक कुछ बिगाड़ेंगी, "माँ के हाथ से टीका लगा निकलते है" सुनाया।
परवेज़, नैतिक, साइस्ता अंजुम, शिवांगी सौम्या, मीरा श्रीवास्तव, अंकित मौर्य, रजनीश कुमार गौरव, शिवम झा, शिवम कुमार, शुभम सहाय, गोपाल जी गुप्ता, अभिषेक आज़ाद, शैलेश वर्मा, सुशांत सिंह, शाहिद रज़ा, हिमांशु गौरव, अनमोल सावर्ण, विकास कुमार सिंह, स्तुति झा, निधि कुमारी, सुबोध कुमार सिन्हा, इरशाद फतेह, सलमान आदि ने भी इस अवसर पर काव्यपाठ किया। युवाओं की भागीदारी काबिले-तारीफ़ कही जा सकती है.
अंत में धन्यवाद ज्ञापन अश्विनी कुमार कविराज ने किया और कार्यक्रम के समाप्ति की घोषणा की गई.
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आलेख : अश्वनी कुमार ‘कविराज’/ सुनील कुमार
छायाचित्र सौजन्य - सुनील कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
सुंदर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया।
DeleteSbka shukriyaa
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छा!
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