प्रवासी भारतीयों, पर्यावरण, कला, संस्कृति और शहरों की कहानियों एवं गांधी, जयप्रकाश नारायण, इतिहास और साहित्य एवं लघु फिल्म पर भी चर्चा
ज्ञान भवन पटना, 3 फ़रवरी 2019
पटना के लेखक अरुण सिंहकी किताब
“पटना एक खोया हुआ शहर”और गगन गिल की कविता संग्रह “थपकथपकत दिल” और “मैं जब तक आई
बाहर” का किया गया विमोचन
पटना लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन आज की शुरुआत "हर शहर कुछ कहता है" सत्र से हुआ। सत्र में पटना कलम पर लिखने वाले पत्रकार अरुण सिंह, पत्रकार विकास झा
और हिमाचल के साहित्यकारप्रत्यूष गुलेरीऔर पत्रकार चिंकी सिंहा ने
किया।विकास झा ने केदारनाथ अग्रवाल
की किताब धरतीपुत्र के बारे में बताते हुए कहा कि जिस शहर में रहते है सिर्फ वही
हमारी जिम्मेदारी नही है। बल्कि पूरी वसुंधरा हमारी है। मेरा जन्म दरभंगा में हुआ
मैं सीतामढ़ी का हुआ अब किस शहर को मैं अपना कहूँ। डोमनिक लोपियर ने कोलकाता पर सिटी
ऑफ जॉय लिखा। अब सोचिये इतनी दूर से कोई आकर कोलकाता पर लिखता है जो उस शहर का पर्याय
हो जाता है।पटना फल्गु नदी की तरह है जहाँ ऊपर केवल रेत ही रेत है और नीचेपानी ही
पानी।पत्रकार और साहित्यकारअवधेश प्रीत ने अशोक राजपथ के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा
कि मैं अपने घर से जहाँ भी जाता हूँ अशोक राजपथ मेरे साथ जाता है। पटना एक वाहिद
शहर और अशोक राजपथ एक वाहिद शहर है। इसपर एकओर तो तमाम कॉलेज है वही दूसरी ओर उनसे
जुड़ी हुई बाजार है। मैं ढूंढता रहा कि क्या ऐसा कोई शहर जहा एक तरफ तमाम कॉलेज है
और दूसरी ओर आबादी। बिहार में जितने आंदोलन हुए उसका गवाह रहा है।
पटना एक खोया हुआ शहर”के बारे में बताते हुए अरुण सिंह ने कहा कि 1541 में जब शेरशाह ने अपना
फोर्ट बनवाया उस समय के बाद पटना का पुनरुत्थान हुआ । इस किताब में 1541 से लेकर अब तक पटना के
बदलने की कहानी है। 1641 के बाद यह शहर तेजी से
बदलने लगा। पहले इसका नाम पट्टन था। पटना नाम शेरशाह का दिया हुआ है। मुगल काल मे
पटना व्यापर का केंद्र बना। पटना की शोहरत
बढ़ गयी थी ईरान इराक से भी यात्री पटना आने लगे थे। यह से सिल्क पर्शिया जाता था ।
पटना का2500सालों का इतिहास रहा है।यहां जो ट्रेवलर आये अलग अलग देशों के मिर्ज़ा मोहम्मद बहबहानी थॉमस सादिक,
अल त्रिवनिंग, मनूची, एम्मा रोबर्टा थॉमस जैसे यात्रियों ने जो लिखा उनसे तात्कालिक पटना का पता
चलता है। यह किताब उन्हीं संस्मरणों को आधार बना का लिखी गई है।
त्रिपुरारी शरण ने कहा की आज प्रकृति को बचाना बहुत जरुरी हैं क्लामेट चेंज के परिवर्तन को
रोकने के लिए सभी को प्रयास करना चाहिए. रत्नेश्वर सिंह ने कहा की प्रकृति में बदलाव स्वत :होता हैं . सुभाष शर्मा ने कहा की जलवायु दीर्घकाल देखा जा
सकता हैं लेकिन मौसम को कुछ दिनों तक ही ! उन्होंने कहा की विश्व में 42 लाख लोग सालाना प्रदूषण
से मरते हैं और भारत में 20 लाख लोग. निर्देश निधि ने कहा की नदी की अपनी संस्कृति होती हैं . अपना जीवन होता हैं .उन्होंने ये भी कहा
नदियों को साफ करने का जिम्मा सिर्फ सरकारों का ही नहीं बल्कि देश के हरेक नागरिकों
का भी होता हैं।
कानून ,समाज और स्वतंत्रता के सत्र के दौरान छतीसगढ़ से आई रवीना बरिहा ने कहा कि मानव का
प्राकृतिक व्यवहार होता है कि सभी चीजों को धारणाओं में ही देखता है! ज्ञान के
दायरे के विकास नहीं होने के कारण हमारे किन्नर समाज को नजरंदाज किया जाता है!
स्वतंत्रता की नीव पर ही कोई स्वच्छ समाज का निर्माण हो सकता है! भारत में जब जब
बौद्धिक विकास हुआ है किंनरो को स्थान मिला है. रवीना ने किन्नरों के हालात पर एक
कविता सुनाई "छोटा सा एक बच्चा जनमा आचल की छांव में" . पटनाकी ट्रांसजेंडर
एक्टिविस्ट रेशमा प्रसाद ने कहा कि
वे आठ सालो से साहित्य, आर्थिक, कला में अपने समुदाय को
अधिकार दिलाने के लिए लर रही हूं ! साहित्य में किन्नर विमर्श को अधिक से अधिक
शामिल किया जाया जानी चाहिए! अभी भी हमारी सामाजिक आजादी पथ पर ही है! हक की लड़ाई
का कोई अंत नहीं होता है
कविताएं कुछ कहती है नामक सत्र में मगही कवि उमाशंकर, बज्जिका कवि पराशर और अंगिका से आरोही ने
अपनी बात रखी। इस सत्र का संचालन आराधना प्रधान ने किया। उमाशंकर ने अपना परिचय
देते हुवे कहा कि 'धरती के की हाल बतइयो,पूछ ल जाके सविता से हमरा से हमार हाल न पूछही,पूछ ल जाके कविता से'. उन्होंने अपनी अंतिम बात
रखते हुए मथुरा प्रसाद और रामनरेश वर्मा की कविता को पढ़ते हुए अपनी
बात खत्म की. पराशर जी ने कहा कि भक्तिकाल किसी भी भाषा के लिए स्वर्णिम काल है. उन्होंने कहा कि बज्जिका
भाषा के लिए 20वीं शताब्दी ही उसकी आधुनिक काल है.
रहमत उल्ला पहला महाकाव्य
हैं बज्जिका के लिए जिनका पहला महाकाव्य जमुनामा जो 1950 में आई. उन्होंने बताया कि बज्जिका में दो रामायण लिखी
गईं हैं एक डॉ०अवधेश और दूसरा डॉ० नवल किशोर श्रीवास्तव के द्वारा. उन्होंने कहा कि बाजारवाद
के दौर के पिछड़ा हुआ है. 'तेजाब शाम के बर्साइह हमरा गाँव मे'
कविता को पढ़ते हुए अपनी
बात को खत्म किये. आरोही जी ने अंगिका के बारे में बताते हुए कहा कि अंगिका के
पुनर्जन्म हो रहा है लेकिन मीडिया उसे आगे नही बढ़ने दे रही है. अपनी
"पोती" शीर्षक नामक कविता को पढ़ते हुए आरोही जी अपनी बातों को खत्म किया.
"कोई बतलाये कि हम बतलाये क्या"- ग़ालिब सत्र में शीन काफ निज़ाम ने कहा कि ग़ालिब को उनके शायरी
से ज्यादा उनके खतों से जाना जा सकता है . उनकी शायरी तो उनके खतों से निकली है . जगजीत सिंह ग़ालिब की ग़ज़लों को गाना चाहते थे लेकिन गाने से ही पहले उनकी मृत्यु को गयी। उन्होंने हँसते
हुए कहा कि ग़ालिब की शायरी को पढ़ते वक्त लगता है की वो टेलीविज़न देख-देख के लिखे
हैं। कासिम खुर्शीद ने कहा कि ग़ालिब साहब कहते थे कि ये जो मेरे कलम की खडखडाहट है
वो खडखडाहट नही कोई फ़रिश्ता है जो मेरे कलम को आगे बढ़ा रहा है. उन्होंने कहा कि अच्छा
शायर वो है "जो सवाल पूछता है, सवाल खत्म नही होते और जवाब खत्म हो जाते
हैं"और ग़ालिब साहब सवाल पूछते थे इसीलिए वो मुझे पसंद हैंउन्होंने कहा कि
ग़ालिब साहब को मोमिन की एक शायरी बहुत पसंद थी "तुम मिरे पास होते हो गोया,जब कोई दूसरा नही
होता"और इसीलिए ग़ालिब को मोमिन पसंद थे, ग़ालिब ये भी कहते थे कि ये जो मोमिन ने लिखा है
वो मुझे लिखना था।
मीडिया में उभरती प्रवासी की छवि मारिसश से आए रामदेव धुरंधर ने कहा
भारत की मीडिया और हमारे देश मीडिया में काफी अंतर हैं ! भारत की मीडिया काफी हद तक
स्वतंत्र होकर काम करती हैं लेकिन हमारे देश में मीडिया हमेशा फ़्रांसिसी के हाथों
में रहा हैं . उन्होंने ये भी कहा हमारे
यहाँ प्रधानमंत्री भी भारतीय मूल के ही हैं . पुष्पेंद्र ने मीडिया में प्रवासी की
छवि पर बोलते कहा की हमारी मीडिया प्रवासीयों कोई लेकर चर्चा ही नहीं करता हैं. हमारी मीडिया प्रवासीयों, रिलीफ कैंपो के मुद्दों पर
फर्क ही नहीं समझता हैं . अनंत विजय ने कहा कि प्रवासियों को लेकर मीडिया क्यों नहीं
बात करता हैं !इसका समाधान क्या हैं? और इसको बहस का मुद्दा बनाना चाहिए !
साहित्य और कला का संरक्षण और नैतिकक मूल्यों पर उसका
प्रभाव सत्र में इम्तियाज अहमद ने कहा कला
और साहित्य हमारे नैतिक मूल्यों से जुड़े हुए हैं हिंदुस्तान की परम्परा समावेशी रही
हैं .उनको संरक्षण की जरुरत हैं .शक्ति सिंह ने कहा भारत में दर्शन में कई रूप हैं
.भारत में इतिहास और साहित्य हमेशा साथ साथ चलता हैं .साहित्य अपने शब्दो से
विचारों को व्यक्त करता हैं .साहित्यकार और इतिहासकार तथ्य के आगे नहीं जाते हैं. व्यास
जी ने कलाओ, साहित्य का संरक्षण पर जोड़ दिया. उन्होंने यूरोप के रेनेशां (पुनर्जागरण) पर चर्चा की व्यास
जी ने यह भी कहा अगर मनुष्यता को बचाना हैं तो सभ्यता और साहित्य का संरक्षण बहुत जरूरी हैं . विनोद ने कहा
हमारे देश में सांस्कृतिक भूख ज्यादा ही हैं और हिंदुस्तान का लेखक हमेशा गरीब ही
रहा हैं !रंगकर्मी अनीश अंकुर ने कहा की बहुत जरूरी हैं कला और साहित्य का
संरक्षण करके आने वाली पीढ़ी को उनसे अवगत कराना. कैलाश झा ने मधुबनी पेंटिंग, पंजी आदि पर चर्चा की
मैथिली एक संस्कृति सत्र में तारानंद वियोगी- ने कहा कि विद्या और व्यक्तित्व ही मिथिला
की पहचान है। मैथिली समुदाय अतीत का मारा हुआ समाज है। 1910 में अंग्रेज सरकार मैथिली को राष्ट्रीय अधिकार
दे रही थी लेकिन यादव महासभा के विरोध पर बिल पास न हो सका। रविन्द्र नाथ टैगोर ने
मैथिली को अपनी मौसी भाषा कहा था। वर्तमान का मैथिली पुरस्कार वितरण बेहद चिंताजनक रहा है। मिथिला पेंटिंग में युवाओं के प्रवेश से यह कला अब विश्वप्रसिद्ध हो चुका है, मैथिली की बुलंद आवाज
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल तक पहुंचा जिसमें मैथिली के लिए सत्र रखा गया था . डॉ
उषा किरण खानने कहा कि मैथिली संस्कृति समावेशी नहीँ है इसलिए मैथिली संस्कृति
का विस्तार नही हुआ। कालजयी रचना को भाषा कभी नहीं भूलती है, जो धरती पर है वही तो
संस्कृति है। भाषा अस्मिता अपने आप मे इतनी बड़ी बात है कि बांग्लादेश राष्ट्र का
निर्माण हो गया था। मैथिली पुस्तकों का अनुवाद होना चाहिए और अनुवाद विभाग का गठन
करके अपने बेहतरीन पुस्तकें विश्व साहित्य में जाय।कार्यक्रम
में गगन गिल के पुस्तक का लोकार्पण उषा किरण खान आलोक धन्वा, राम बचन राय शीन काफ
निज़ाम के द्वरा किया गयालेखकों ने गगन गिल और उनके लेखन शैली पे प्रकाश डाला। गगन
गिल ने अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ किया
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ज्ञान भवन पटना, 2 फ़रवरी 2019
*दुनिया को बचाने के लिए गाँधी के विचार जरुरी, गाँधी विकल्प नहीं मजबूरी है – हरिवंश, उप सभापति, राज्यसभा*
पटना लिटरेचर फेस्टिवल 2019 के दूसरे दिन 2 कहानी, कविताओं, फिल्मों, गीतों पर चर्चा से गुलज़ार रहा ज्ञान भवन
ज्ञान भवन, पटना 2 फरवरी, पटना लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन आज "महात्मा की महिमा" नामक सत्र के दौरान बात करते हुए राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि आज गाँधी के रास्ते पर चले बिना कोई विकल्प नहीं है. गाँधी अकेले आदमी हुए जिन्होंने साधन और साध्य के बीच पवित्र रिश्तों पर बल दिया. मुझे लगता है कि गाँधी आज की जरुरत है. उनके जरिये दुनिया को बचाया जा सकता है. गाँधी प्रकृति और इंसान के बीच रिश्तों की बात करते हैं. उन्होंने कहा कि चरित्र का बड़ा गहरा असर होता है. वैचारिक क्रांति नेतृत्व देता है. वैचारिक आन्दोलन नेतृत्वा पैदा करता है. आज दुनिया को विचार नहीं तकनीक बदल रही है यह चीज़ों को नियंत्रित कर रही है. गाँधी को पढने से दुनिया को बचाने का नजरिया मिल सकता है. केवल गाँधी के मॉडल के जरिये ही सभी के जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. बिहार से गाँधी का गहरा रिश्ता रहा है. गाँधी 3 बार बिहार आये. हरिवंश ने कहा कि पूंजीवाद या समाजवाद पर बहस नहीं, देश कैसे विकास करें इस पर बहस हो. आज चीन को भी गाँधी के विचार और आदर्शो की जरुरत है. आज चीन के हर विश्वविद्यालय में गाँधी को पढने की एक ललक है. गाँधी के हिन्द स्वराज पुस्तक पर बात करने हुए उन्होंने कहा कि गाँधी ने 1909 में अफ्रीका लौटते वक्त इस पुस्तक को लिखा था जो उनके जिन्दगी के समझने की एक चाभी है.
बेगम अख्तर - सदियों से सदियों तक सत्र में यतीन्द्र मिश्र ने बेगम अख्तर पर जो किताब लिखी हैं अख्तरी उस पर चर्चा करते हुए कहा की बेगम अख्तर यानी गजल की गायिका. बेगम का व्यक्तितित्व उनके जीवन से काफी बड़ी रही 60 साल की उम्र में अहमदाबाद में उनकी मौत हार्ट अटैक से परफॉरमेंस के दौरान ही हो गयी थी। बहुत कमाल की बात है कि उन्होंने शुरुआती दौर में कई फिल्में भी की थी और उनकी निभाई भूमिका आज भी बेमिसाल है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि दिल्ली के कनॉट पैलेस में बेगम साहिबा की आवाज़ सुनने के लिए उस वक्त लोग 7 दिन पहले से लाइन लगाए रहते थे। बेगम अख्तर की आवाज़ में तो जादू था ही पर उनके चुने हुए लिरिक्स भी कमाल के हुआ करते थे। यतीन्द्र मिश्रा ने कहा कि बेगम अख्तर की ज़िंदगी को दो भाग में बांट कर देखना चाहिए, पहली उनकी शादी से पहले और दूसरी शादी के बाद, उन्होंने बताया कि शादी के पहले बेगम अख्तर का नाम अख्तरी बाई फैजाबादी था। शादी के बाद ही उनका नाम बेगम अख्तर पड़ा लेकिन शादी के बाद उनके पति उनको बंदिशें गाने से रोकने लगे क्योंकि वो समझते थे कि ये तवायफों की करने वाली चीज हैं उनके गानों में वो दर्द वो तकलीफ वो तड़प कहीं न कहीं उन दबावों की वजह से थीं ।इतने दबाव के बावजूद वो अपनी शिष्याओं को संगीत सिखाती रही अपने पति से छुपा कर, यहाँ तक उन्होंने एक पहरेदार भी लगाया था अपने पति के लिए कि कहीं वो संगीत सिखाने के दरमियान आ न जाएं। वाणी त्रिपाठी जी ने बताया कि जब उनको बंदिशें गाने से पूरी तरह रोक दिया गया और दो सालों तक उनको घर मे रख गया जिनकी वजह से उनकी तबीयत खराब हो गयी थी तब डॉ० ने कहा था कि इनकी बीमारी को ठीक करने का एक ही इलाज है कि इनके सामने साज को रख दिया जाए और इन्हें गाने की अनुमति दे दी जाए। वो आजादी से पहले की गायिका हैं और आजादी के बाद उन्होंने फैज जैसों के नज्म को गाया वाणी त्रिपाठी ने कहा कि बेगम अख्तर को उनकी संगीत के लिए मल्लिका ए तरन्नुम से नवाजा गया हैं. वो प्रेम में जीने वाली गजल गायिका थी . त्रिपुरारी शरण ने कहा कि बेगम अख्तर का गजलों में लिरिक्स का चुनाव बेजोड़ था . उनकी बंदीशे काफी खूबसूरत होती थी. त्रिपुरारी ने उनके फिल्मो में जो भूमिका अदा की उनपर चर्चा करते हुए बताया कि जवानी का नशा, नवदम्यंति, एक दिन की बादशाहत में उन्होंने भूमिकाएं भी अदा की थी. विश्व साहित्य और हिंदी सत्र में वरिष्ठ पत्रकार और आलोचक अनंत विजय के प्रश्न हिंदी का विश्व साहित्य में क्या जगह है प्रश्न का जवाब देते हुए लेखक नरेन्द्र कोहली ने कहा कि हमलोग यहाँ भाषा की बात नहीं कर रहे है यहाँ साहित्य की बात हो रही है. आजतक हमारे देश में बहुत सी पार्टियों की सरकारें आई है पर किसी ने भी हम्मरे साहित्य को जो बहुत समृद्ध है उसके वैश्विकरण पर ध्यान नहीं दिया है. हमारा साहित्य वर्ल्ड स्टेज पर नहीं पहुँच पा रहा है. इसका प्रमुख कारण अनुवाद की समस्या है. सुरेश ऋतुपर्ण के कहा कि वैश्विकरण के बाद हिंदी का बाजार बढ़ रहा है.
सुजाता प्रसाद की आगामी बायोग्राफी जो जयप्रकाश नारायण की है के बारे में अश्विनी कुमार के साथ बातचीत के दौरान सुजाता जी ने बताया यह बताया की कैसे जयप्रकाश पर उन्होंने लिखने का मन बनाया उन्होंने कहा की मेरे पिता इतिहासकार होने के साथ साथ जयप्रकाश जी के काफी करीबी थे. वे जयप्रकाश के द्वारा जो सम्पूर्ण क्रांति का उद्घोष किया गया उसमें भी शामिल थे. जयप्रकाश के निजी जिंदगी पर इस बायोग्राफी में जो सुजाता ने लिखा हैं उसपर भी खुलकर बातें की ! जयप्रकाश के जरिए उन्होंने देश में पहले आपातकाल पर भी चर्चा की. उन्होंने ये बताया की इस बायोग्राफी में ये बताया गया हैं की पटना कॉलेज के छात्र रहते हुए उन्होंने किस तरह क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व किया. उन्होंने यह बताया की इस बायोग्राफी में यह बताया गया हैं की कितने दिनों तक वे आंदोलन के कारण जेल में रहें, किन परिस्थितियों में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की.
"इतिहास के दस्तावेजो से साहित्य के पन्नो तक" सत्र में अब्दुस समद ने मंच पर सम्बोधन करते हुए कहा कि मैं फिक्शन का आदमी हूँ न कि इतिहास का. उन्होंने कहा की फिक्शन जिन्दा इतिहास होता हैं ! इतिहासकार वही लिखता हैं जो देखता और सुनता हैं उसकी अपनी निगाह होती हैं. इतिहास और साहित्य का कभी छुटकारा ही नहीं हो सकता हैं !अब्दुस समद ने भारत पाकिस्तान के विभाजन पर "दो गज जमीन "लिखा हैं! जिसके लिए उन्हें अवार्ड भी मिला हैं ! उन्होंने ये भी कहा की फिक्सन दिलचस्पी पैदा करती हैं. रक्षंदा जलील ने कहा कि अगर आपको तथ्य आधारित ज्ञान चाहिए तो इतिहास को पढ़ना ही होगा ! उन्होंने ये भी कहा की शायर, फिक्शन लेखक अलग अलग तरीके से इतिहास लिखते हैं !रक्षागंदा ने यह भी बताया की उनकी एक किताब आ रही हैं जो जालियावाला बाग़ पर लिखी गई हैं ! अंत में नीलम शरण गौर ने लिखी हुई इतिहास और छुटी हुई इतिहास पर चर्चा की ! उन्होंने यह कहा कि इतिहास के तथ्य को जरूर पढ़ना चाहिए . अंत में सुमेधा ओझा ने कार्यक्रम की समाप्ति करते हुए कहा कि सभी इतिहास फिक्शन ही होता हैं !
"कटिहार से केनेडी" में अदिति माहेश्वरी से संजय कुमार से बातचीत की. कटिहार में रहते हुवे हम दुनिया को उस तरह नही जान पा रहे थे जैसी दुनिया है हमे तो अपनी गाँव की तरह पतले रास्ते,धूल भरा हुवा दुनिया नजर आता था और ये सिर्फ एक कटिहार की कहानी नही है ये कहानी उस हर पिछड़े क्षेत्र की है, उन्होंने दिल्ली में रहने के बारे बताते हुवे कहा कि दिल्ली में ही चुनौतियों से लड़ने सीखा और मेरे मन का विकास दिल्ली में ही हुआ. उन्होंने बताया कि जब वो हार्वर्ड्स में पढ़ रहे थे तो उनके कक्षा में 220 विद्यार्थी जो 90 देशों के थे.
"गागर में सागर सत्र" में पंकज दुबे ने चौथे सत्र को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लघु फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने का कारण उनका कंटेंट और इंफोर्मेटिव मैसेज हैं. वाणी त्रिपाठी जी ने बात को आगे बढ़ते हुए कहा कि लघु फिल्में किसी की मोहताज नही है वो स्वतंत्र हैं और इसका सबसे बड़ा पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जिसमे हम स्वतंत्र है, किसी भी प्रकार का कोई दबाव नही है न ही सेंसर का कोई दबाव है और लघु फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने का सबसे बड़ा कारण टेक्नोलॉजी है जिसकी वजह से फिल्में हम अपनी स्मार्टफोन में यूट्यूब पर ही देख ले रहे है। इसका साफ मतलब ये है कि अब हम जब जो चाहें देख सकते है। विनोद अनुपम ने कहा की टेक्नोलॉजी ही है जिसने फिल्मी व्याकरण को बदला है जिसकी वजह से लघु फिल्मों का दायरा बड़ा हो गया है और लघु फिल्में ज्यादा बन रही है ,जो लोग ज्यादा बजट लगने की वजह फिल्में नही बना पा रहे थे वो भी अब लघु फिल्में बना रहे हैं, बहुत अच्छी-अच्छी लघु फिल्में जो स्मार्ट फ़ोन से ही बनी है बिना कोई लाइट के और वो चली भी हैं क्योंकि उनके विषय बहुत अच्छे हैं। अविनाश दास ने कहा कि कभी कभी कंटेंट के हिसाब से ही फिल्मों को लघु फ़िल्म बनाया जाता है. फिल्मों को वेब मीडिया या वेब मीडिया को फिल्मों से कोई खतरा है? इस प्रश्न के उत्तर में अविनाश दास ने बड़ी बेबाकी से कहा कि इससे किसी तरह का कोई डर वाली बात नही है ये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है कि वो कुछ भी देखे और ये दोनों फिल्मों और वेब मीडिया पर बराबर लागू होता है। कार्यक्रम के अंत में लखनऊ के हिमांशु बाजपेयी ने ब शायर मजाज़ लखनवी पर एक दास्तान पेश की।
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आलेख- सत्यम
छायाचित्र सौजन्य - सत्यम
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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3.2.2019 के चित्र (नीचे)-
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