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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday, 21 August 2019

"ग्रेजुएट बाबू" - बिहार के कलाकारों द्वारा बेरोजगारी पर निर्मित फिल्म जुलाई 2020 में रिलीज होगी

भारतीय बेरोजगारी की एक मुख्य समस्या को दर्शाएगी फ़िल्म "ग्रेजुएट बाबू"

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देश मे युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर बहुत बड़ी समस्या होती जा रही है और यह समस्या देश के विभिन्न प्रांतों में है। विपक्ष सत्ताधारी पार्टी पर और सत्ताधारी पार्टी विपक्ष पर आरोप प्रति-आरोप लगा रहें हैं । समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । लेकिन सिर्फ़ राजनीतिक पार्टियों या सत्ताधरियो से ही इस समस्या का समाधान संभव नहीं है । ज़रूरी है इस समस्या से देश के युवा भी अवगत हो और इसका निराकरण करें। इसी क्रम में हिंदी फ़ीचर फ़िल्म "ग्रेजुएट बाबू" देश में बेरोजगारी की एक मुख्य समस्या को दर्शाएगी।  

मैथिवुड हंगामा प्रोडक्शन के अंतर्गत बन रही फ़िल्म "ग्रेजुएट बाबू" का मुख्य किरदार बिहार से जुड़ा है । क्योंकि बिहार से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा  नौकरी की तलाश में महानगरों की ओर जाते हैं। कुछ युवाओं को सही नौकरियां मिल पाती है, अधिकतर युवा इधर-उधर भटक जाते हैं और जिसका फायदा महानगरों में फ़्रॉड जॉब कंस्लटेंसी चलाने वाले उठाते हैं।  

फिल्म "ग्रेजुएट बाबू" की पृष्ठभूमि गांव और शहर दोनों को जोड़ती है, इसमें पलायन को लेकर के काफी कुछ बताया गया है। फ़िल्म यह भी बताती है कि आपके शहर में अगर लोग शिक्षित हैं तो उनके लिए रोजगार की संभावनाएं भी होनी चाहिए। इसके कारण ही आज युवा शहर में पलायन करते हैं। शिक्षा अर्जित करते हैं फिर भी नौकरी बहुत मुश्किल से मिलती है। इन्हीं विडंबनाओं को इस फिल्म में बेहतरीन ढंग से दिखाया जाएगा। 

फ़िल्म में लेखन और निर्देशन नवीन भारद्वाज का है।  नवीन भारद्वाज बहुत सारे क्षेत्रीय फिल्मों में सह निर्देशन का काम कर चुके हैं। फिल्म के साथ-साथ उन्होंने क्षेत्रीय टीवी सीरियल में भी सह निर्देशन का काम किता है, कई सारी शॉर्ट फिल्मों का भी  निर्देशन उन्होंने किया है। इस फ़िल्म में संगीत दे रहें हैं सुधीर-मिलिंद। फिल्म "ग्रेजुएट बाबू"  से नवीन भारद्वाज हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर फीचर फिल्म निर्देशक डेब्यू कर रहे हैं। फ़िल्म की शूटिंग बिहार एवं दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर की जाएगी। 

फ़िल्म के मुख्य भूमिका में पटना रंगमंच में सक्रिय कलाकार तरुण यादव होंगे तथा मुख्य सपोर्टिंग किरदार में राष्ट्रीय नाट्य नाट्य विद्यलाय से उत्तीर्ण एवं बॉलीवूड के कई बड़ी फिल्मों में काम कर  चुके नए उभरते सितारे दुर्गेश कुमार होंगे। साथ ही और भी कई अन्य बॉलीवूड के कलाकार होंगे। फ़िल्म की शूटिंग अक्टूबर में बिहार में होगी। फ़िल्म "ग्रेजुएट बाबू" 27 जुलाई 2020 को रिलीज़ होगी।
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आलेख - सुभाष कुमार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
सुभष कुमार फिल्म के निर्देशक नवीन भारद्वाज के साथ

Sunday, 18 August 2019

दरभंगा के आयकर परिसर में 15.8.2019 को झंडोत्तोलन के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम

हम आगे बढ़नेवाले हैं, आगे ही बढ़ते जाएँगे

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इस बार स्वतंत्रता दिवस पर यानी 15.8.2019  को दरभंगा स्थित आयकर कार्यालय के प्रांगण में बिहार में हिंदी-बज्जिका के प्रसिद्ध साहित्यकार और आयकर अधिकारी भागवतशरण झा 'अनिमेष' के हाथों झंडोत्तोलन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर कार्यालय के अधिकारी, कर्मचारी, आयकरदाता और सामान्य नागरिक एवं बच्चे बड़ी संख्या में मौजूद थे. 

देशभक्ति के नारे लगाये जाने के बाद श्री अनिमेष ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और आजादी के बाद नागरिकों कर्तव्यों पा अपना व्याख्यान दिया जिसका करतल ध्वनि से स्वागत हुआ. इस अवसर पर लोगों ने देशभकित की भावना से ओतप्रोत अनेक गीत गाए.

श्री अनिमेष ने अपने स्वरचित गीत का पाठ किया जो नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है. यह बता देना संगत होगा कि हमारे ब्लॉग के आरम्भ करने की प्रेरणा देनेवालों में श्री अनिमेष का सबसे महत्वपूर्ण स्थान रहा है और वे स्थापना काल से लेकर अब तक इसकी निगरानी समिति के मानद सदस्य हैं. ब्लॉग में अधिकांश निर्णय 21 सदस्यीय गवर्निंग बॉडी के द्वारा तय की गई नीतियों के अनुरूप लिए जाते हैं जिसमें श्री अनिमेष भी समय समय पर अपने निर्देशों और परमर्शों के जरिये ब्लॉग को सही राह दिखाते रहते हैं -

हम आगे बढ़नेवाले हैं, आगे ही बढ़ते जाएँगे
इनकम टैक्स चुकाएँगे, भारत का मान बढ़ाएँगे ।।

इधर -उधर की बातें छोड़ो, सच्चाई से मुँह मत मोड़ो
काले धन की कालकोठरी द्वार खिड़कियाँ सारे तोड़ो
नई सदी में नवल कंठ से नया तराना गाएँगे
इनकम टैक्स चुकाएँगे भारत का मान बढ़ाएँगे ।।

धरती , अम्बर अंतरिक्ष तक हमें उपस्थित रहना है
तीनों सेना लिए तिरंगा जय जय भारत कहना है
अमर शहीदों की गाथा को हम तो भूल न पाएँगे
इनकम टैक्स चुकाएँगे भारत का मान बढ़ाएँगे।।

सबल राष्ट्र की नवल कल्पना अब सच कर दिखलाना है
बाधाओं से लड़ते-लड़ते आगे बढ़ते जाना है
गाँधी नेहरू के सपनों को पूरा कर दिखलाएँगे
इनकम टैक्स चुकाएँगे भारत का मान बढ़ाएँगे ।।

हिंदुस्तान ~ज़िंदाबाद .....२
इनकम टैक्स ~ ज़िंदाबाद
वंदे मातरम. 
जय हिन्द!
...

आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो 
छायाचित्र - आयकर परिवार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट- इस अवसर पर उपस्थिति लोगों के नाम और उनके द्वारा प्रस्तुत आइटम का विवरण ऊपर दिये गए ईमेल पर शीघ्र देने की कृपा की जाय ताकि शामिल किया जा सके.












Wednesday, 14 August 2019

परिकल्पना मंच द्वारा "पिंकी का गुल्लक" का मंचन 13.8.2019 को पटना में सम्पन्न

पितृसत्तत्मकता को चुनौती कौन देगी?

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दिनांक 13अगस्त 2019 को प्रेमचंद रंगशाला, पटना में नाटक का मंचन हुआ। नाटक  "पिंकी का गुल्लक" के लेखक, सुभाष कुमार थे और परिकल्पना व निर्देशन था यूरेका का। यह प्रस्तुति, परिकल्पना मंच की ओर से थी जिसमें सहयोग था  द स्ट्रगलर का

यह कहानी हर उस लड़की की है, जिसके  घर में बेटों को हर तरह की आजादी मिलती है। पर बेटियों को नहीं इस कहानी की मुख्य पात्र पिंकी है, जो मैट्रिक पास कर गई है और अपने भाई की तरह आगे की पढ़ाई करने के लिए शहर जाना चाहती है। पिंकी के घर में सभी पढ़े लिखे हैं पर उसके खानदान से सात पुस्तों में न कोई महिला काम या पढ़ाई करने गांव शहर नही गई है, इसलिए पिंकी को शहर जाने की इजाजत नहीं मिलती है, मर्दों को इस गांव, समाज में औरतों की गलती होने पर सभी सजा औरतों को ही मिलती है, कहानी उसकी आजादी की है जो बेटियों को जन्म से ही उसे नहीं मिलती है।

हमारे समाज में बढ़ते विकृतियां और विछिप्त  मानवता वाले लोगों की बढ़ोतरी काफी हो रही है । मनुष्य की मानसिकता में नकारात्मकता की इतनी उपजती जा रही है कि वह खुद को नहीं पहचान रहे हैं! वो कहीं न कहीं खो रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बलात्कार जैसी घटनाओं का अंजाम दे रहे हैं। हम भूल गए हैं कि हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा क्या था। हम क्या जानते थे, क्या पढ़ते थे, क्या सोचते थे, लेकिन इन सभी विशेषताओं से दूर दूर भागते आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है?

नाटक के कुछ  संवाद :- 
* गाँव से सभी लोग एक-एक  कर के शहर चल जाएगा, तो गाँव मे कौन रहेगा?
* हम लड़कीयां आपके लिए नाक हैं, इज़्जत हैं ... हाँ मैं हूँ आपके लिए  ... आपकी मान, मर्यादा , शाख ... लेकिन पितृसत्तात्मक सोंच आपको अपने काबू में रखा है। क्या आपको मालूम है...
*हम भूल गए हैं, कि हमारी संस्कृति, परंपरा क्या थी । हम क्या जानते थे, क्या पढ़ते थे,क्या सोचते थे, लेकिन इन सभी विशेषताओं से दूर... भागते... आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है। आपके इस होड़ से अलग होकर हम बेटियाँ आप से ही लड़ कर आपकी मान- सम्मान बढ़ा रहे होते हैं.

     कलाकार 
पिंकी:- यूरेका 
दादी :-अलका सिंह
 बिरजू:- दीपक कुमार
प्रधान,पवन :- दिग्विजय तिवारी
बिरजू की पत्नी:- हेमा राज
 गोपाल:- भीम गिरी
अमर:- विवेक मिश्रा
 मोहन:- अंशु कुमार
 रोहित, झोल्टन :-  प्रदुमन कुमार 
विक्की, कमल, विजय :- निशांत कुमार 
 ग्रामीण :- अभिषेक कुमार,अंशु

मंच परे:- 
मंच संचालन :- समीर चंद्रा
निर्माता :- मिथिलेश प्रसाद
प्रकाश परिकल्पना :- रोशन कुमार
 संगीत :- वैभव
मीडिया प्रभारी:- दिग्विजय तिवारी
वस्त्र विन्यास:- दीपक कुमार
वीडियो एव फ़ोटो:- स्वस्तिक सौम्य, यशवंत मिश्रा
मेकअप :- जितेंद्र कुमार
मंच निर्माण :- संतोष राजपूत
 नृत्य संरचना :- रिबेका

निर्देशिका का परिचय:

15 सालों से अभिनेत्री के तौर पर यह कार्यरत हैं पिछले साल उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से दरभंगा से नाट्यशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है, वर्तमान में प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से नृत्य एवं गायन की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। वर्ष 2004 में उन्होंने नाट्यदल अक्षरा आर्ट से निर्देशक कुणाल झा के सानिध्य में नाटक वैशाली से रंगकर्म की शुरुआत की, इसी साल इन्होंने 'मिस बिहार' का खिताब भी जीता। नाटक और मॉडलिंग के साथ-साथ आप डॉक्यूमेंट्री, टेली फिल्म एवं सीरियल में भी कर चुकी है, जिसमें नमामि गंगे, विभा: एक मिसाल, भारत की आजादी की कहानी, जुर्म का जाल एवं बलचनमा मुख्य हैं ।

गंगा देवी महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा 'पटना पुस्तक मेला' 2010 में उन्होंने नुक्कड़ नाटक 'ये भी तो हिंसा है' से निर्देशन की शुरुआत किए। उन्होंने अक्षरा आर्ट्स, कला जागरण, अभियान सांस्कृतिक मंच,प्रेरणा(जसमो), रंगमार्च, मध्यम फाउंडेशन एवं आदि कई दलों के साथ काम किया है। वैशाली, मधुशाला,एक मंत्री स्वर्ग लोक में, बिल्लेसुर बकरीहा, हम जमीन, आधी रात का सपना, सुसाइड, गोरा, लड़ाई, तीसरी कसम, तीसरी शताब्दी, सिक्का, सांसे, सपनों का मर जाना, जेबकतरा, दिल की रानी आदि 40 नाटकों में अभिनय कर चुकी हैं।

सुभाष कुमार 
जन्म 12 मार्च 1991,ठेंगहा राजनपुरा, खजौली, मधुबनी, बिहार में हुआ।
 रंगमंच की शुरुआत 2008 मधुबनी में "शतरूपा" लाइट एंड साउंड ड्रामा डिविज़न,भारत सरकार से हुआ। 
रंगमंच की आरंभिक शिक्षा 'श्री हरिवंश' (भिखारी ठाकुर स्कूल ऑफ ड्रामा, पटना) जी ,और श्री कुणाल जी से मिला। 

ललित नारायण मिथिला विश्यविद्यालय, दरभंगा से नाट्यशास्त्र में स्नातकोत्तर(M.A in Dramatics Art) की शिक्षा प्राप्त किया है।
संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली, मैथली नाट्य लेखन कार्यशाला 2017, संगीत नाट्य अकादमी एवम साहित्य कला परिषद के संयुक्त नाट्य लेखन कार्यशाला, नई दिल्ली , 2019 में चयनित अभ्यर्थियों के रूप में आप शामिल हुए। 

वर्तमान समय में "परिकल्पना मंच" नाट्य संस्था में सक्रिय हैं।
रंगमंच के साथ साथ फ़िल्म में भी अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
कई शार्ट फिल्मों में निर्देशन व सह निर्देशन का कार्य जारी है।
2016 में   नेशनल फ़िल्म डेवेलपमेंट करपरेशन लिमिटेड (NFDC) , भारत सरकार सम्मानित हैं।
2017 में  चेतना समिति , विद्यापति जयंती समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए शैलवाला मिश्र सम्मान से सम्मनित, निर्देशक कुणाल । 
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सामग्री स्रोत - सुभाष कुमार 
छायाचित्र - परिकल्पना मंच
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com













Sunday, 11 August 2019

आगमन की पटना शाखा द्वारा काव्योत्सव का आयोजन 10.8.2019 को सम्पन्न

किसी ने आके पास पूछा क्या है धर्म तेरा? / मैंने कहा - मुहब्बत, मुहब्बत, मुहब्बत

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साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था "आगमन" की पटना शाखा द्वारा, आगमन बिहार काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह का भव्य आयोजन, बिहार उर्दू अकादमी के सभाकक्ष में किया गया ।

कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर, "वीणा वादनी वर दे" की प्रार्थना गीत से हुआ। तत्पश्चात तीन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। "आगमन" के राष्ट्रीय राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन एवं विशिष्ट अतिथियों के हाथों, आगमन के सभी सदस्यों को सम्मानपत्र एवं शिल्ड प्रदान कर   सम्मानित किया गया। 

युवा कवयित्री नंदिनी प्रनय  के काव्य पाठ से, काव्योत्सव का आरंभ हुआ - 
"जीत बदलाव की, जीत साहस की, 
जीत सपनों की ! जीत अपनों की! "

सुधांशु कुमार -की कविता थी-
" बंद होगा हैवानियत का दरवाजा! "

जीनत की कविता यूं इश्क  के शुरुर में हम चूर हो गए!
 उनसे हुए करीब, सबसे दूर हो गए/,
जीनत की कविता -
"तुम्हारे इश्क ने दीवाना कर दिया - पढा़ गया।"  

राजमणि मिश्र की कविता देखिये -
" एक प्याली चाय सी है जिंदगी /चुस्कियों में जी लिया तो जी लिया। " 

नसीर आलम की गजल देखिए -
 चला गया है, बहुत दूर प्यार का मौसम /चलो समेट लो अब भी खुमार का मौसम! " 
और  अपना बना के दगा दे रही हो/ वफाओं का कैसा सिला दे रही हो। 

मनीष आर राही ने भी सारगर्भित कविता का पाठ किया। 

जनाब खुर्शीद ने कहा "समंदर के अंदर था, घर जल गया कैसे ?  

जनाब खुर्शीद आलम ने कहा कि -" नई पीढ़ी में जबरदस्त संभावनाएं हैं, किंतु उसे मांजने की जरूरत है। मैं खुद को  गालिब  समझता था। लिखने के बाद जाना, मुझे अभी अपनी रचनाओं को बहुत मांजना है। साहित्य को लोगों ने बाजार बना दिया है। 

कुमारी सजलशालिनी -((छपरा)के बाद कुमारी रचना (पूर्णिया) ने कविता पढा़ - 
"कब तक करोगे बलात्कार /योनि पर करोगे प्रहार!? "

 कुमार अरुणोदय ने कहा कि - 
"धर्म, जाति, की बात करते हैं। इस बीच साहित्य का छौंका लगाना बहुत प्रिय होता है। 
-" हर पल हर क्षण चमके बिजुरिया, चिहुंक चिहुंक काग बो लै, आज आएंगे। मरे सजनिया!"

अमित कुमार आजाद-
" इलाहाबाद कहता है, मैं संगम का मेला हूं। 
मैं तुम्हारा प्रेम पाना चाहता था/मैं तुम्हें रास्ता दिखाना चाहता था। "

इसके बाद कवियों की अनेक कविताएं पढीं गई - 
"द्रौपदी की तरह हो रहा चिरहरण, कृष्ण के इंतजार में 
मैं नंगी हो रही हूं।
"तथा-"  गुमशुम - गुमशूम क्यों बैठे हो? 

आराधना प्रसाद - ने कहा " उसके पहलू को किसी दिन, मेरा घर होने दो। "
 कवयित्री कृष्णा सिंह पौराणिक विषय पर अपनी कविता का पाठ किया-
" महाभारत कथा *आज फिर याद आ गयी। आकाश से भी बड़ा है कौन,
युधिष्ठिर ने कहा-" पिता और कौन?" और पृथ्वी से महान, माता कहलाती है!" 

कवयित्री नेहा नारायण सिंह की कविता थी- 
"सत्ता तोड़ कल सत्ता बनाएंगे 
सह और मात का यह खेल बहुत पुराना।है।" 

और  दिलीप कुमार खान  ने गीत गाया, " ओ गोरी सुनले हमारी विनती सुन ले। 

पायल ये रुनझून तेरी मुझे घायल किया जाए।"

रमेश कंवल की गजल थी   - "मोबाईल, टी वी से सजाई है जिंदगी, न  जाने कहां-कहां गंवाई है जिंदगी। 

/शाईस अंजुम सीवान ने भी काव्य पाठ किया.

 कवयित्री पूनम सिंहा ".  श्रेयसी-"खांसता हुआ यौवन स्वतः हो जाता है, जिंदगी से बाहर।

"शकील जी की गजल थी-
"किसी ने ये पूछा मेरे पास आकर /बता मुझे तैरा धर्म क्या है? /मैंने कहा :मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत ।"
और" वो ख्यालों में आने लगे/हम गजल गुनगुनाने लगे/
याद न कुछ भी रहा /आप जब याद आने लगे //
आईना देखकर लोग चेहरा छुपाने लगे। "" 

सुनील कुमार ने अपने अंदाज में कहा-
"कौन रिश्ता वफा निभाता है" और वो हमको आजमाना चाहते हैं
/न जाने क्यूं सताना चाहते हैं।

प्रेमकिरण की गजल का तेवर देखिए -
"नफरत ही रह गई है  मुहब्बत चली गई
हमारे घर से रुठ के बरकत चली गई
 दौलत का ये गुरुर भी कितना अजीब है
दस्तार बची तो रियासत चली गई।" 

कवयित्री एवं चित्रकार नेहा नुपूर, शब्दों का चित्र, कुछ इस प्रकार बनायी-"
मैं राग रागिनी सरगम तुम खवैया बन जाओ। 

पुष्पा जमुआर -
"एक और दर्द दे गया, सीने के आर पार। बिना चिरा लगाए, बिना खून का कतरा गिराए!"

"नीतू सिंह-"रूपेश  ने भी काव्य पाठ किया।

शुभचंद्र सिन्हा -
 "दीवानों से भी मिल कर रहा करो/   कोई नहीं सुनेगा, इनसे कहा करो! 

"गणेश बागी ने व्यंग्य कविता का पाठ किया(
"
संजय कुमार संजकी कविता - 
 न होगा कोई हिंदु न मुसलमान होगा। 

" बहला कर छोड़ देते हो, बूढ़े मां-बाप का ख्याल कौन रखता है?
रुठ जाया करो, मान जाया करो/मंजिलें उनकी नहीं, जिनको किनारा का चाहत नहीं। /

कवि-चित्रकार सिद्धेश्वर ने  सकारात्मक सोच की प्रेरक कविता का पाठ किया-
"पंख कट जाने के बाद भी हम उड़ना नहीं भूले 
पेड़ों पर लगे सैंकड़ों फल, मगर झुकना नहीं भूले 
मंजिल पाने को कदम बढ़ाए मगर/
गिरे हुए को उठाने के लिए, झुकना नहीं भूले!" 

नीलांशु रंजन ने एक श्रृंगारिक नज्म पेश किए-
"जब चांद अपने गलीचे में गेसू खोल रहा था'' 
कल जहाँ रखी थी उंगली, 
वहां निकल आया है एक तिल!" 

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में राजीव कुमार सिंह, (भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी) ने कहा कि" समाज में समरसा पैदा करना साहित्य का काम है। साहित्य राजनीति के आगे आगे चलने वाला मशाल है। संस्था में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए, "आगमन" के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन ने, पटना शाखा के सचिव वीणाश्री हेम्ब्रम और मो नसीम अख्तर को, आगमन गौरव सम्मान दिया गया। 
......

आलेख - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com








     







Saturday, 10 August 2019

"मधुबनी: द स्टेशन ऑफ कलर्स" को गैर फीचर श्रेणी की "बेस्ट नैरेशन" श्रेणी में राष्ट्रीय फिल पुरस्कार 2019 देने की घोषणा

फिल्म की निर्मात्री उषा शर्मा कभी स्केवेंजर थीं, आज हैं सुलभ की मानद अध्यक्ष
नैरेशन लिखा है कमलेश के मिश्र ने और आवाज दी है उर्विजा उपाध्याय एवं दीपक अग्निहोत्री ने

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09 अगस्त 2019 को घोषित 66वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में ग़ैर फ़ीचर श्रेणी में फ़िल्म “मधुबनी: द स्टेशन ऑफ़ कलर्स” को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है। इस फ़िल्म का निर्माण बिहार विभूति पद्मभूषण डॉक्टर विंदेश्वर पाठक जी की प्रेरणा से उनके मार्गदर्शन में हुआ है। फ़िल्म का निर्देशन किया है और नैरेशन लिखा है कमलेश के मिश्र ने। इस फ़िल्म को यह पुरस्कार “बेस्ट नैरेशन” श्रेणी में मिला है। इसके लिए आवाज़ दी है उर्विजा उपाध्याय और दीपक अग्निहोत्री ने। 

इस फ़िल्म से जुड़ी एक दिलचस्प बात बड़ी बात यह है कि इस  फ़िल्म की प्रोड्यूसर उषा शर्मा हैं। ग़ौरतलब है कि उषा शर्मा जी की जीवन यात्रा बेहद रोमांचकारी है। अलवर राजस्थान की निवासी उषा शर्मा कभी सिर पर मैला ढोकर अपना गुज़ारा करतीं थीं, आज यह सुलभ की मानद अध्यक्षा हैं। पिछले साल इन्होंने प्रधानमंत्री के हाथों आजतक का सफ़ाईगिरी सम्मान अर्जित किया। राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के इतिहास में निसंदेह यह पहला मौक़ा है कि अपने जीवन में स्केवेंजर रही किसी महिला ने फ़िल्म बनाई हो और उसकी पहली ही फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया हो। 

“मधुबनी: द स्टेशन ऑफ़ कलर्स” को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना समूचे बिहार का सम्मान है ख़ासकर मिथिला चित्रकला से जुड़े सभी कलाकारों का। आपको बता दें कि दें कि तत्कालीन डीआरएम समस्तीपुर की पहल पर दिसम्बर 2017 में  लगभग 200 कलाकारों ने दिन रात की मेहनत और लगन से समूचे मधुबनी स्टेशन को मिथिला पेंटिंग से सज़ा दिया। इसके बाद सुलभ संस्थापक डॉ. विंदेश्वर पाठक ने इन कलाकारों को नक़द राशि और सम्मान पत्र से सम्मानित किया और इस फ़िल्म के निर्माण की योजना बनाई। फ़िल्म के निर्देशन की ज़िम्मेवारी उन्होंने कमलेश के मिश्र को सौंपीं जिन्होंने एक बेहतरीन फ़िल्म बनाकर बिहार के लिये यह गौरवपूर्ण क्षण हासिल किया। 

बता दें कि कमलेश के मिश्र मूलतः गोपालगंज जिले के निवासी हैं। वे इन दिनों मुंबई और दिल्ली में फ़िल्म मेकिंग में सक्रिय हैं। इससे पहले 2018 में आयी टॉम ऑल्टर अभिनीत इनकी पहली शॉर्ट फ़िल्म “किताब” की देश विदेश में बड़ी धूम रही।  कमलेश के मिश्र साल 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री के हाथों फ़िल्म “रहिमन पानी” के लिए सम्मानित हो चुके हैं। साल 2006 में इनका लिखा नारा “बेटी बचाओ” देश भर में एक सार्थक संदेश दे रहा है। साल 2015 में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी फ़िल्म “दिनकर” को मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ूब सराहा था।

इस फ़िल्म के सह-निर्देशक सुभाष कुमार हैं, जो मधुबनी के निवासी है और हिंदी सिनेमा निरंतर काम कर रहे हैं , कमलेश के मिश्रा जी का सहायक रूप में।
......

सामग्री स्रोत - सुभाष कुमार
छायाचित्र - परिकल्पना मंच
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


 








कलाकार नूतन बाला मधुबनी स्टेशन की दीवार पर बनाई गई अपनी पेंटिग और अपनी बहन के साथ



मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा पटना में तुलसीदास, मैथिलीशरण गुप्त एवं गंगाशरण सिंह का जयंती समारोह 7.8.2019 को सम्पन्न

 कोई भाषा पढ़िये लेकिन हिन्दी भाषा की कृतियों को अवश्य पढ़ना चाहिए

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)



मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा आयोजित मैथिलीशरण गुप्त, बाबू गंगाशरण सिंह एवं तुलसीदास  के जयंती समारोह के अवसर पर विद्वानों ने कहा कि "सुगम काम है बोलना  लेकिन, कठिनतम कार्य है सुनना! आप श्रोता सबसे महान है,  क्योंकि आप हमें सुन रहे हैं।

डॉ. दिवाकर पांडेय ने गुप्तजी की काव्य शैली को रेखांकित करते हुए कहा कि "प्रभावपूर्ण और सहज शैली में उन्होंने कविताओं का सृजन किया। गुप्त जी ने जो मार्ग बनाया उसपर स्वयं भी चले। उन्होंने आम लोगों की भाषा में,यानी सरल भाषा में कविता लिखा, जिसके कारण वे अधिक सराहे गए।"

गुप्त जी की लोकप्रियता जब बढ़ने  लगी तब, तथाकथित समीक्षकों -विद्वानों ने उनका उपहास करना शुरू कर दिया।खिल्ली उड़ाते थे। किंतु जब निराला ने कहा  कि "मैं गुप्त की कविताएं गुनगुनाना हूं, तब कविताएं लिखता हूं। अज्ञेय जैसे महान कवि ने जब कहा कि" मेरे काव्य गुरु रहे हैं मैथिलीशरण गुप्त। तब समीक्षकों के कान खड़े हो गए। गुप्त के पहले नारियों को सर्वश्रेष्ठ स्थान किसी कवियों ने नहीं दिया था। "सखि, वे मुझसे कह कर जाते!" - उनकी श्रेष्ठ कविताओं में से एक है। वे नारी के पक्ष में कहा करते थे कि "नारी घर से बाहर जाए तो कुल्टा और पुरुष घर से बाहर निकल भागे तो योगी?" ,

डॉ. छाया सिन्हा ने कहा कि "हिन्दी भाषा में खड़ी बोली के वे प्रवर्तक थे। अछूतोद्धार का वे हिमायती थे। गांधीजी के विचार से वे काफी प्रभावित थे। नारी अबला है नहीं, बना दिया गया है। दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी प्रथाओं के खिलाफ थे वे।  गुप्त जी विश्वबंधुत्व के प्रतिनिधि कवि रहे हैं। उन्होंने अतुकांत कविताओं का भी सृजन किया है, किंतु आज की तरह सपाटबयानी नहीं रहती थी, उनकी कविताओं में। सच कहा जाए तो, आधुनिक और संवेदनाओं के वे समर्थ कवि रहे हैँ।"

डॉ. कुणाल कुमार ने कहा कि "बाबू गंगाशरण सिंह, अनेक भाषाओं के प्रचंड विद्वान थे। भीषण मधुमेही होने के बावजूद, उन्होंने हिंदी साहित्य की अनवरत साधना की। भारत सरकार एवं स्वैच्छिक संस्थाओं को एक मंच पर लाकर उसे हिन्दी से जोड़ने का, उन्होंने अद्भुत काम किया।"

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण ने कहा, "एक बार अज्ञेय ने कहा कि सबसे प्रिय कवि कौन है? किसी ने गुप्त का नाम नहीं लिया। तब अज्ञेय ने कहा कि  आपने मैथिलीशरण गुप्त को नहीं पढ़ा है क्या? गुप्त जी मेरे प्रिय कवि ही नहीं, मेरे काव्य गुरु भी रहे हैं। परंपरा को नकारे बिना भी आधुनिक हुआ जा सकता है।  गुप्त जी खड़ी बोली को काव्य भाषा बना कर अपनी अलग पहचान बनाई। गुप्त जी  की कविता, मस्तिष्क से नहीं, ह्दय से पढ़ी जाती है।"


तुलसीदास की जयंती सत्र का आरम्भ करते हुए, निदेशक इम्तियाज अहमद ने कहा, "अपने आप में इनके जीवन की अपनी कहानियां भी कुछ कम रोचक नहीं है। रामचरित मानस ग्रंथ ने उन्हें सर्वाधिक श्रेष्ठ कवियों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चाहे आप दुनिया की कोई भी भाषा पढि़ए  लेकिन हिन्दी भाषा की कृतियां और ग्रंथों को अवश्य पढ्ना चाहिए।

अम्बिका जी ने कहा-"रामचरितमानस मानव का स्वर्णमुकूट है, तो साहित्यकारों का गायन ग्रंथ है। सत्य और त्याग, जीवन के दो मूल तत्व है। तुलसी जी ने दोनों को समान रुप से अपनाया। 

श्रीकांत सिंह ने कहा-"तुलसीदास के जीवन के सारे तथ्य एकमत से विवादपूर्ण है। तुलसीदास का जीवन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा। अपनी भूख और गरीबी का जैसा चित्रण तुलसीदास ने किया, वैसा किसी कवि ने नहीं लिखा। लोकभाषा में रचना करने के कारण उन्हें तत्कालीन रचनाकारों और समीक्षकों ने खूब उपहास किया। बावजूद उन्होंने स्वांतः सुख के लिए अपनी रचनाओं को लोक भाषा में लिपिबद्ध किया और सृजनरत रहे।" तुलसीदास साथ रहितां, पार करही साहित्य बतरनी।"

डॉ. शांति जैन ने कहा कि - "तुलसी से तुलसीदास बनने में, उनकी पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

उपेन्द्रनाथ पांडेय ने कहा कि  "सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता थे, तुलसीदास। उनकी सर्वाधिक श्रेष्ठ महाकाव्य रचना है -" मानस"! आप मानस को तब तक नहीं समझ सकेंगे, जब तक आप समरस न हो जाए और उसके मर्म को न समझ ले। तुलसीदास रचित "विनय पत्रिका," तुलसीदास के मानस के मर्म को समझने में पूरी तरह सक्षम है।

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण जी ने कहा कि-" तुलसीदास के साहित्य के दो पहलू हैं-साहित्य और भक्ति। वर्ण, अर्थ, रस और छंद के बाद भी कविता तब बनती है, जब उसमें मंगल भावना हो यानी उसमें सार्थक संदेश हो। सच पूछिए तो युगांतकारी कवि थे तुलसीदास। साहित्य की दृष्टि से सर्वाधिक श्रेष्ठ कृति है "विनय पत्रिका!"
             
पूरे समारोह का संचालन किया, कुंवर जी ने। इस समारोह में विजय प्रकाश, मधुरेशशरण, सिद्धेश्वर, हृदयनारायण झा, कमला प्रसाद, डॉ. अर्चना त्रिपाठी आदि सैंकड़ो साहित्यकारों - विद्वानों, छात्र -छात्राओं की भागीदारी रही।
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर 
लेखक का ईमेल : sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - इस कार्यक्रम के मंचासीन वक्ताओं के साफ चित्रों को इस रपट में जोड़ने करने के लिए ऊपर दिये गए सम्पादक के ईमेल पर भेजिए.













Wednesday, 7 August 2019

संगीत शिक्षायतन द्वारा 6.8.2019 को पटना में कला-प्रवाह सत्र-6 में तबलावादक अरविंद कुमार आजाद का तबला वादनसम्पन्न /

हर वाद्य का अपना सौंदर्य, उपकरण, गुण और विशेषताये
तीन ताल, बनारस बाज का विशेष ठेका,  गत -फर्द, रेला, टूकड़ा - परन और लग्गी  की छटा बिखरी 

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)



पटना    06/08/19 :  आज संगीत शिक्षायतन में कार्यक्रम कला प्रवाह के अंतर्गत  "तालमणि सम्मान -2019" 'सम्मान एवं अभिनंदन'  सह व्याख्यान एवं प्रदर्शन आयोजन किया गया जिसमें अतिथि कलाकार, पंडित अरविंद कुमार आजाद (प्रसिद्ध तबला वादक, पुणे) ताल मणि सम्मान से सम्मानित किया गया हारमोनियम पर संगत कलाकार बक्शी विकास (नृत्य व गायन गुरु, आरा)।

पुणे से पधारे सुविख्यात तबला वादक पंडित अरविंद कुमार आजाद ने स्वतंत्र तबला वादन में तीन ताल में उपज की उठान, बनारस बाज का विशेष ठेके की बढ़त, अलग अलग जातियों में  खास खास कायदा, गत -फर्द, रेला, टूकड़ा - परन और लग्गी सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया l पंडित ने व्याख्यान में कहा कि "तबले में हाथो की रख रखाओ खासा महत्व रखता हैं l संगत और सोलो दोनो वादन शैली में एक कुशल तबला वादक को बड़े सूझ बूझ की आवश्यकता होती है l हारमोनियम पर आरा के चर्चित कथक गुरु बक्शी विकास ने संगत किया l गुरु विकास ने भी अपने सम्बोधन में कहा कि संगीत आत्मा की अभिव्यक्ति है l किसी भी भाव को अभिव्यक्त करने का कला सशक्त माध्यम है l "गुरु बक्शी विकास ने आधुनिक युग में कथक की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

वर्तमान समय में कथक की लोकप्रियता बहुत बढ़ी है l नवीन प्रयोगों और कल्पनाशीलता ने कथक को चारदीवारी से निकाल कर विश्व में ख्याति दिलाई है l किंतु आज़ की पीढी कथक के मूल तत्वों से परिचित नही हो पा रही है यह चिन्तनीय है l यह कला  कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्वण बनाकर रखती है।

सत्कार प्रस्तुति:-
शिक्षायतन के गायन विभाग के शिक्षार्थियों द्वारा 
अंजनी गुप्ता (बांसुरी वादन) ने राग हंस ध्वनि में मधुर बसुरी धुन से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। रवि प्रभाकर (उपशास्त्रीय गायक) ने दादरा "आया करे कह दो सांवरिया से" गाकर खूब तालियां बटोरी। कथक नृत्यांगना यामिनी ने कार्यक्रम कला प्रवाह के उद्देश्यों और विजन को बताया कि समाज में कला और पारंपरिक कला का विकास अति आवश्यक है। समाज में सभी कलाकार न भी बने परन्तु कला को समझने की क्षमता अवश्य विकसित होनी चाहिए।

कला प्रवाह के अन्तर्गत कला तथा संगीत के सेमिनार, व्याख्यान, बातचीत, प्रदर्शनी और मंच प्रदर्शन होते है। इसी क्रम में वाद्य कला की विशेषता की उपयोगिता को देखकर कला प्रवाह का आयोजन किया गया। जिसका विषय वाद्य - रंग  वाद्य कला को समर्पित कर आयोजित किया गया है। 64 कलाओं में से एक है वाद्य कला। वाद्य कला एकदम से स्वतंत्र कला होती है। साथ ही संगत कला में अद्वितीय स्थान है । जैसा कि गायन में बातों को व्यक्त करने के लिए शब्द होते हैं, नृत्य में भाव और मुद्रा ही होते हैं। परंतु वाद्य में ऐसा कुछ भी नहीं। जबकि प्रत्येक वाद्य का अपना कुछ विशेष सौंदर्य, उपकरण, गुण और विशेषताएं होती हैं। जिसमें उसे पूर्ण बनाते हैं। इन्हीं विशेषताओं की उपयोगिता को देखकर हमें वाद्य कला को भी उतना ही बढ़ावा देना चाहिए जितना हम कला के अन्य आयामों को देखते और समझते हैं।

 संगत कलाकार उपस्थिति:-
 • धीरेंद्र कुमार धीरज (गायक शास्त्रीय संगीत)
•  प्रवीण कुमार (तबला वादक) व 
• शिक्षायतन के उदीयमान कलाकर अमित प्रकाश ने ग़ज़ल गाई जिसकी खूब सराहना मिली। नन्हे कलाकार सोर्या सागर ने सूफी गाने में अपनी आवाज़ से जादू बिखेर दिया। जिसमें तबले पर शिवम् कुमार ने संगत कर वाद्य कला का बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया।

संस्था की सचिव रेखा शर्मा ने अथिति कलाकार, पंडित अरविंद कुमार आजाद को शॉल तथा प्रतीक चिन्ह देकर ताल मणि सम्मान 2019" से सम्मानित किया तथा रजनी शर्मा (कार्यकारी सदस्य, संगीत शिक्षायतन) सभी अगत अथिति कलाकारों को प्रतीक चिन्ह देकर स्वागत सम्मान किया। मोहम्मद जिया हसन (कार्यकर्म अध्यक्ष) ने धन्यवाद ज्ञापन किया। तथा कार्यक्रम का कलात्मक संचालन शांभवी वत्स ने बखूबी सफलता पूर्वक किया ।
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प्रस्तुति - रेखा शर्मा
द्वारा - मधुप चंद्र शर्मा 
छायाचित्र - संगीत शिक्षायतन 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com