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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday, 27 November 2018

नीरज कुमार सिंह का कविता-संग्रह "मौसम बदलना चाहिए" : एक पुस्तक समीक्षा

                           सच बोलना मेरी आदत में शुमार है / सरकार कोई हो मेरी सबसे शिकायत है



नीरज कुमार सिंह के पहले ही दो कविता-संग्रह 2017 ई. में प्रकाशित हो चुके हैं. यह उनका तीसरा कविता-संग्रह है. 

एक मौसम वैज्ञानिक तो नहीं हैं नीरज लेकिन मौसम को बदलने का माद्दा रखते हैं और वह भी अपनी कलम से. कभी-कभी मौसम से आजिज़ आकर ये कलम की बजाय तलवार उठाने की बात भी अक्सर करते हैं लेकिन अंतत: इन्हें मालूम है कि असली लड़ाई तलवार से नहीं, बारूद से नहीं बल्कि विचारों से जीती जाती है-
कलम की रोशनाई फेंककर बारूद भर लूँगा
मुझे बाँधोगे तो मैं बगावत कर दूँगा (पृ.41

जिसमे दुर्बल का भाव निहित
वो अमन नहीं प्यारा है
इसी शांति ने तो हमें
सौ दशकों से मारा है

नीरज की भाषा ओजपूर्ण है और गाहे-बगाहे ये वीर-रस के सीमांत तक पहुँच गए लगते हैं. बार-बार अपने प्राणों को वीरतापूर्वक न्यौछवर करने की बात भी करते हैं-

लेकिन पूरी पुस्तक को पढ़ने से स्पष्ट है कि इनका मूल चिंतन बिल्कुल समकालीन धारा के अनुरूप है अर्थात इनका दग्ध हृदय माँग कर रहा है मुक्ति की गरीबी से,शोषण से, अत्याचार से, वृहत जनसमुदाय को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करने की प्रवृति से -

कल शूद्र मरा आज सवर्ण की बारी है
फिर कोई नया नरमेध रचने की तैयारी है (पृ.103)

न हमसे है मुहब्बत न हमसे है प्रीति
हमारी मौत के मातम में इनकी राजनीति (पृ.36)

मुहब्बत को भी थोड़ी सी जगह दे दो
कि वैसे ही शहर में शिवाला बहुत है

सब के सब लगे हुए हैं एक कारोबार में
ये मेरा हुनर नहीं सो मैं ही एक बेकार हूँ
गुजर रही है ज़िंदगी इन दिनों कुछ ख़ौफ से
अपने शहर के मौसम से मैं बहुत बेज़ार हूँ

सच बोलना मेरी आदत में शुमार है
सरकार कोई हो मेरी सबसे शिकायत है
मैं आईना लेकर शहर भर घूमता हूँ
वो समझते हैं कि ये उनकी ख़िलाफत है (पृ.67)

हालाँकि कहीं से एक-दो कविताओं को पढ‌‌ लेने से पाठक को यह भ्रम हो सकता है किन्तु निश्चित रूप से नीरज किसी ख़ास दल, विचार या समुदाय के प्रवक्ता नहीं हैं न्यूनतम स्तर तक भी नहीं. इनका हृदय विशुद्ध कवि का हृदय है जिसमें राजनीति हेतु प्रवेशद्वार पूरी तरह से बंद है और करुणा हेतु पूरी तरह से खुला.

पहले कविता संग्रह से भाषा के स्तर पर काफी सुधार देखने को मिल रहा है. शाब्दिक और वैयाकरण अशुद्धियाँ बहुत ही कम हैं, काव्य शिल्प के स्तर पर अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है. 

एक कर्मवीर कभी दूसरों के भरोसे नहीं रहता. वह समाज को अपना योगदान करता है बिल्कुल अपने दम पर. अपने घर में शांति और अमन का फूल खिलेगा तो सुगंध तो पड़ोसियों तक पहुँचेगी ही-
मुझे ग़ैर के बगीचे का भरोसा नहीं
क्यों न फूल घर में ही खिलाते हैं

आसमाँ से गुज़ारिश क्यों करें
हर दीये को आफ़ताब कर दो

इस नदी के ऊपर छोटा पुल बनेगा
गाँव वालों ने खुद ही चंदा किया है

एक अच्छे कवि की विशेषता होती है उसका आत्मावलोकन. नकारात्मक दिशा में बदलते समय को चुनौती दे पाने का साहस नहीं जुटा पाने से दोष भावना का सुंदर चित्रण इन शब्दों में दिखता है-
देखता हूँ, मैं क्या था, क्या हो गया हूँ
खुद की नजर से बदर हो गया हूँ
सच बोलने का अब साहस नहीं है
जुबाँ बंद है, बेअसर हो गया हूँ

ये दुनिया पूजती है मुझको तो देवता सा
मैं खुद को जानता हूँ, पर ये सच किसे बताऊँ?

लेकिन यह कवि कोई अपने शब्दों को रंगरेलियों में  अपव्यय करनेवालों में से नहीं है. यह पूरी  तरह से निगाह रखता है समय के घटनाक्रम पर -
साजिश बड़ी है रोशनी के खात्मे के वास्ते
हस्तिनापुर को अंधेरे के सिपाही बढ़ रहे हैं

उपर्युक्त पंक्तियों को पढ़ के अगर कोई अंदेशा हुआ हो कवि की विचारधारा को लेकर तो आगे देखिए-
तेरे-मेरे दरम्यां ये खाई है गहरी
गूँगा हूँ मैं और मेरी सरकार है बहरी

घोटाले सुने कई बड़े बड़े, पर कितनों को मिली सजा
इन पक्ष विपक्षी नेताओं से रिश्तेदारी किसकी है?

खेतिहर के आँगन में खलबली है
दिल्ली में है रोशनी, दीपावली है पृ.34)


नीरज का विशाल हृदय करुणा से ओत-प्रोत है. दुधमुहे की माँ की तकलीफ का वर्णन इससे सजीव और क्या हो सकता है. चरम अभिव्यक्ति है -
रह रह के माँ वक्ष को निचोड़ती थी
बूँद बूँद करके दूध जोड़ती थी
बढ़ रही थी भूख अबोध चीखता था
करुण क्रंदन प्लावित कर हृदय सींचता था
तब रोने लगी बेचारी माँ लाचार होकर
गिराने लगी आँसू की माला पिरोकर
मातृ-स्नेह ढलने लगा हृदय से ढहकर
तृप्त हो गया बालक अश्रू ही पीकर (पृ.32)

संवेदना कविता की आत्मा होती है. कवि के इन शब्दों में भावनात्मक कोमलता है जो हौले से दिल को छूती है-
कोई भूली-भटकी सी चिड़िया थी वो 
जिसको देखा सवेरे चहकते हुए

छुओगे मुझे सहलाने के लिए
मैं पुर्जा पुर्जा टूट बिखर जाऊँगा

अच्छा होगा झील को मैं दर्पण बना लूँ
लहर बिखर तो जाएंगी पर चटक नहीं सकती

शायद वो शख्स मुझे पहचानता नहीं
इसलिए मुझे देखकर वो मुस्कुराया है

ये मकां भी चंद ईँटों के सहारे हैं
एक रोशनदान है और कई दरारे हैं

जिनको समझा अपना छिप छिप कर बैठ गए
मुझे घर का पता बताया किसी बेगाने ने

आज का सच्चा कवि शोषितों का पक्षधर रहेगा ही- 
इस गूँगे से डरो जिस दिन बोल बैठेगा
उस दिन आँखों से फ़कत अंगार बरसेगा

और जब शोषण व्याप्त हो तो कवि उन्हें जुबाँ खोलने को कहता है- 
कोई तो बताए उसे उसकी कमियाँ
चुप रहने वालों की सुनती कहाँ दुनिया (पृ.61)

पृ.89 पर दी गई कविता "विनाश की बेला"  में कवि ने पाठकों के भ्रम का पूर्ण समाधान किया है. सभी दलों का नाम लेकर उसकी खिंचाई की है चाहे वह सत्ताधारी दल हो या विपक्षी.

क्रांति कवि का मूल धर्म है. समाज में सत्य, न्याय की स्थापना के लिए क्रांति के पठीकों की हौसला-अफजाई कवि करता है-
छोटे छोटे जुगनुओं के सौ चिराग हैं
ये भीड़ अपना रास्ता भटक नहीं सकती

आज के समय में रिश्तों पर से भरोसा उठता जा रहा है. कवि इस चिंता से पूरी तरह आगाह है-
जिसको दी जगह मैंने इंसानियत के नाम पर
आज वही शख्स मेरी नौका डुबोने वाला है

इस महफ़िल में जो तुम्हें सबसे अज़ीज़ है
वो चेहरा नहीं है खूबसूरत इक मुखौटा है

टहनी को शिकायत है बूढ़े दरख्त से
जिसकी बदौलत आज यूँ लहलहाता है (पृ.54)

ज़िंदगी का फलसफा सिखाते हैं
ख़ार भी आँगन में लगाए रखना (75)

इस युवा कवि को हौसला किसी बाहरी प्रोत्साहन से नहीं बल्कि कुछ अच्छा करने की आंतरिक जिद से बढ़्ता है--
बारहां मैं टूट कर बिखर गया होता
मुझे मेरी ज़िद ने संभालाबहुत है


आज का समय सचेत रहने का समय है. हर ओर से हर कोई धोखा देने को तैयार है. अगर जीना है तो बिलकुल संभल कर रहना होगा - 
इसमें काँटे नहीं हैं,  खुशबू भी नहीं
इसे शौक से लगाइये, नकली गुलाब है

पढ़ा लिखा ही असल बेवकूफ है
मस्ज़िदों की छाँह में भी धूप है

एक पल में ज़िंदगी है एक पल में मौत है
मन की गति से सृष्टि का समीकरण बदलता है (पृ.49)

सारे इर्द-गिर्द में नक़ाबपोश हैं
क्यों न मैं समझूँ, अब ये मेरा शहर नहीं

जितने ऊँचे लोग
पाप उतना ही ऊँचा (पृ.108)

इस तरह से हम पाते हैं कि नीरज कुमार सिंह पूरी तरह से एक जागरूक कवि हैं जो पूरी तरह से निष्पक्ष भी हैं. इनकी कविताओं को पढ़ना अपनेआप को शक्ति और दृष्टि देने की मानिंद है,  इनके इस संग्रह को अवश्य खरीदकर पढ़ना चाहिए.
......
समीक्षक- हेमन्त दास 'हिम'
पुस्तक का नाम - मौसम बदलना चाहिए (कविता संग्रह)
पुस्तक के रचनाकार - नीरज (नीरज कुमार सिंह)
पुस्तक का मूल्य- रु.150/= मात्र
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, 942, आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद- 211003









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