लेख्य-मंजूषा साहित्य में नव निर्माण का कार्य कर रही है। यह संस्था साहित्य
जगत में विश्विद्यालय बनने की ओर अग्रसर है। ऊक्त बातें कॉलेज ऑफ कॉमर्स की हिंदी
विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रो. मंगला रानी ने गांधी मैदान में आयोजित पुस्तक
मेला में लेख्य मंजूषा के साहित्यिक कार्यक्रम में कही। इसके बाद अपनी कविता
राष्ट्रधर्म का पाठ करते हुए उन्होंने व्यंग्य किया-
गाया करते थे देश है वीर जवानों का,
जरा ठहरो ये देश है धूर्त लुटेरों
का
निर्विवाद व्यक्तित्व के स्वामी एक स्वर्गीय प्रधानमंत्री को याद करते हुए
बैंककर्मी एवं कवि संजय संज ने अपने काव्य पाठ को शब्द देते हुए प्रगतिवादी पाठ
पढ़ा -
जातिधर्म न भेद-भाव की, सर्वव्यापी पहचान हूँ,
खोया नहीं है गैरत जिसने, मिट्टी का इंसान हूँ,
मैं प्रगतिमान हूँ, हाँ मैं प्रगतिमान हूँ
संजय संज ने एक ग़ज़ल भी सुनाई जिसे मंचासीन अतिथि तथा मेला में सुनने वाले अनेक
श्रोताओं ने खूब सराहा-
जिंदगी जीने का बहाना
चाहिए, ग़म में भी मुस्कुराना चाहिए,
करें जो कोई तेरे कांधे का इस्तेमाल, निशाना उसपर भी कभी लगाना चाहिए
आज के रिश्तों में आई दूरी को लेकर कवि संजय सिंह ने अपनी कविता “पुराना घर” से दिल छू लेने वाली
पंक्ति को पढा -
कितने बच्चों को जवान होते देखा
घर के लिए कितनों को कुर्बान होते देखा
तंज कसते हुए सुनील कुमार ने अपनी ग़ज़ल में कहा -
असलियत से जी चुराना रह गया, सोंच में बदलाव आना रह गया,
हुस्न का जलवा बिखेरा था कभी, आज मी टू का बहाना रह गया
नसीम अख्तर की पंक्तियाँ थीं-
तुम्हारा करम कम नहीं है
जहाँ का हमें ग़म नहीं है
भरे दिल के ज़ख्मों को 'अख्तर'
जहाँ में वो मरहम नहीं है
कुंदन आनंद ने जोश पूर्ण कविता प्रस्तुत की -
मौत सुनिश्चित है ही तो फिर मौत से ज्यादा डरना क्या
एकबार ही मरना है तो फिर पशुओं सा मरना क्या
माहौल जोश पूर्ण हो गया और मंच की दाद
मिली।
सीमा रानी ने पढा -
कचरों सी ज़िन्दगी मैने देखी है
कुछ मासूमों को कचरा चुनते हुए
अपने दिल का हाल बताते हुए ईशानी सरकार ने गाया -
पता नहीं इधर इस दिल को क्या हुआ है,
पहले यह सब की सुनता था, इधर सिर्फ मेरी ही
सुनने लगा है
राजकांता राज अपनी कविता “ख्याल” का पाठ किया। हिंदी की दुर्दशा पर मीनाक्षी सिंह ने कविता के माध्यम से प्रहार
किया -
सपने में हिंदी आज सपने में मुझसे
मिलने आई
देख मैं उसको डर गई।
मंच संचालन कर रहे सुबोध कुमार सिन्हा ने अपनी दो कविता सुनाई -
मुखौटों का है ये जंगल, यहाँ हर शख्स शिकारी
है
तथा सच बोलना है जुर्म यहाँ, हुआ फ़तवा ये जारी है
एवं काश ! दे पाती सबक़, आपको ये छोटी सी
दुकान।
युवा विपुल कुमार ने एक बेहतरीन कविता सुनाई -
मन मे हसरत हुई मैं परिंदा बनूँ,
देख लूं सारी दुनिया तुम्हारे लिए।
बिहार से बाहर के सदस्यों की रचनाओं का पाठ संस्था की अध्यक्ष विभा रानी
श्रीवास्तव ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन ग़ज़लकार नसीम अख्तर करते हुए अपने ग़ज़ल को सबके सामने प्रस्तुत
किया-
कोई चुनता नहीं फूल बिखरा हुआ,
जब से ज़ख़्मी हुआ हाथ बढ़ता हुआ,
तो तालियों से दाद मिली।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सतीशराज पुष्करना ने सभी सदस्यों को बधाई
देते हुए कहा कि सभी सदस्यों की रचना दिल छू लेने वाली थी। अपने ग़ज़ल में उन्होंने
अपने वर्षों के अनुभव को सबके सामने रखा –
सड़कों पर तपती धूप और पावों में छाले हैं
फ़ूलों की हवेली ने कब दर्द ये जाना हैं
कार्यक्रम में अनेक कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया जिसमें प्रमुख रहे
संगीता गोविल, मिनाक्षी सिंह, अमीर हमजा, अश्वनी कुमार, शाइस्ता अंजूम आदि। यह भी उल्लेखनीय है कि संस्था के बारे में जब कवि तथा
संस्था के उपाध्यक्ष संजय संज ने बताया कि संस्था सीखने सिखाने के लिए है जो
साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था है और नवांकुरों को एक मंच भी देती
है तो लगभग चार लोगों ने न सिर्फ संस्था से जुड़ने की इच्छा जताई बल्कि कुछ ने तो
काव्यपाठ भी कर डाला।
कार्यक्रम के अंत मे अभिलाष दत्त ने बताया आगामी 4 दिसंबर 2018 को लेख्य - मंजूषा
अपने दो साल पूरा करने जा रही है जिसका भव्य कार्यक्रम और एक पत्रिका का विमोचन भी
होना है।
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आलेख: अभिलाष दत्ता एवं संजय कुमार
रिपोर्ट अद्यतन एवं छायाचित्र : संजय संज
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
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