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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 12 November 2018

शेरशाह सूरी का मकबरा - हिन्दु मुस्लिम शिल्प का अनुपम नमूना / जीतेन्द्र कुमार

बिहार की धरती में पनप कर भारत के तत्कालीन मुगल शासक हमायूँ को परास्त कर भारतीय साम्राज्य पर कब्जा करके ऐतिहासिक महत्व के अनेक जन-कल्याणकारी कार्य करनेवाले शेरशाह सूरी का बिहार के इतिहास में गौरवशाली स्थान है. 10 नवंबर,2018 को बिहार के आरा में रहनेवाले वरिष्ठ चिंतक और साहित्यकार श्री जीतेंद्र कुमार अपने परिवार को सासाराम स्थित शेरशाह के मकबरे को दिखाने ले गए जिसका निर्माण इस महान शासक नेने अपने जीते जी कराना शुरु करवा दिया था. प्रस्तुत है ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व के बिंदुओं का विशेलषण करता उनका यह विशेष आलेख- 




शेरशाह सूरी मध्यकाल (1540--1545ई) में भारत का बादशाह था। वह मुगल बादशाह हुमायूँ को पराजित कर भारत का बादशाह बना था। सासाराम में उसके पिता हसन खान का जागीर था।भारत का बादशाह बनने के शीघ्र ही बाद उसने अपने मकब़रे का निर्माण आरंभ करा दिया। उसका जन्म 1472 ई. में पंजाब के नारनौल क्षेत्र में हुआ था। आजकल नारनौल हरियाणा में है। बादशाह बनते समय उसकी उम्र 68 वर्ष थी। इसलिए अगर उसने अपनी जीवन संध्या का ध्यान रखकर मकब़रे का शीघ्र निर्माण आरंभ किया तो कुछ गलत नहीं किया।

मुझे बादशाह शेरशाह सूरी के कुछ कार्य बेहद आकर्षित करते हैं -

(1) बादशाह शेरशाह सूरी ने अपनी मुद्रा का नाम रुपया रखा जो आज भी भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरीशस, मालदीव, सेशेल्स की मुद्रा का नाम है।
(2) रुपया शब्द दो लिपियों देवनागरी और फारसी में सिक्कों पर ढलवाया।
(3) शेरशाह सूरी ने काबुल से चटगाँव तक बादशाही सड़क बनवायी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि1700 वर्ष पहले इस सड़क का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था, शेरशाह ने इसकी सिर्फ मरम्मत करायी थी। 1700वर्षों में सड़क कितनी बची होगी यह सिर्फ समझने की बात है, बहस की नहीं।
(4) डाक व्यवस्था शासन-प्रशासन तक सीमित थी। बादशाह शेरशाह सूरी ने डाक व्यवस्था की सुविधा व्यापारियों तक को प्रदान की।

ये सब शेरशाह सूरी के कुछ मौलिक कार्य थे। उसकी सेना में हिन्दू मुसलमान दोनों थे। मैं अनुमान लगाता हूँ कि उस समय भी भारतीय समाज में कटुता व्याप्त थी । ब्राह्मण अन्य वर्णों-जातियों के लोगों को अछूत मनुष्य समझते थे। छोटे छोटे राजा आपस में लड़कियों के लिए भाला तलवार से लड़ते थे और अपनी बहादुरी का गीत गाते थे। शिक्षा का भयानक अभाव था। जिस तरह आजकल एक दल दूसरे दल के प्रति घृणा की राजनीति करते हैं उसी प्रकार उस मध्यकाल में भारतीय समाज का एक हिस्सा दूसरे हिस्से से सिर्फ और सिर्फ घृणा करता था। तो ऐसे में मुगल हों सूरी या गोरी आये और बादशाह बन गये तो क्या आश्चर्य।

शेरशाह सूरी सन् 1545 में कालिंजर के किले को घेर रखा था। उस युद्ध में वह बारूद के गोले के फटने से बुरी तरह घायल हो गया और 22 मई, 1545 ई को उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका बेटा इस्लाम शाह सूरी भारत का बादशाह बना। इस्लाम शाह सूरी 1545 से 1554 तक शासन करता रहा। उसे मुगलों ने पराजित कर दिया। इस तरह हिन्दुस्तान पर सूरीवंश की सत्ता मात्र 15 वर्षों तक रही। इस्लाम शाह सूरी ने शेरशाह के मकब़रे का निर्माण पूरा कराया। यह मकब़रा ग्रैंड ट्रंक रोड के किनारे सासाराम में एक विशाल कृत्रिम झील में स्थित है। यहाँ बनारस या कोलकाता-धनबाद से रेलमार्ग से जाया जा सकता है। यह मेरे गृह नगर आरा से 100 किलोमीटर दक्षिण है। आरा से सासाराम सिंगल लाइने भारतीय रेल सेवा है। सड़क मार्ग भी बहुत अच्छी है।

नवंबर दिसंबर में गर्मी कम पड़ रही है। ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को बच्चों को दिखाना चाहिए। कुमार उत्सव और अपूर्वा वैष्णवी की इच्छा शेरशाह के मकबरे को देखने की थी।अमिताभ और उनकी माँ भी तैयार हो गयीं। हमलोग आरा से 12 बजे दिन में स्कॉर्पियो से निकले। धोबीघटवा में जाम में फँस गये। एकवना तेतरिया मोड़ तक 2 किलोमीटर की यात्रा में दो घंटे लग गये।धन्य व्यवस्था है ट्रैफिक पुलिस की। जाम लग जाता है तब पुलिस रेंगना आरंभ करती है।

शेरशाह का मकबरा एक कृत्रिम झील के बीच बना है। यह मकब़रा हिन्दू मुस्लिम शिल्प का अनुपम नमूना है।यह अष्टपहल विशाल पत्थरों से बनी इमारत है। गर्भ गृह की सतह से गुंबद की ऊँचाई122फीट है। इमारत में चारों ओर चौड़ा बरामदा है। कुल चौबीस मेहराबदार दरवाजे हैं चारों ओर। हर पहलू में तीन दरवाजे।मकब़रे की इमारत एक चौकोर परिसर में है। परिसर की फर्श पत्थर की पट्टियों से निर्मित है। परिसर के चारों कोनों पर गोल गुंबद है। झील में पर्याप्त जल है और साफ स्वच्छ है। मकब़रे की इमारत में पहले सुंदर पच्चीकारी होगी। कहीं कहीं नीले रंग की पच्चीकारी दिखती है। इसकी इमारत देखभाल की कमी के कारण काली पड़ गयी है। हालांकि इसे अब भारतीय पुरातत्व विभाग संभालती है। शेरशाह सूरी का खानदान मिट गया।अब यह राष्ट्रीय सम्पत्ति है।राष्ट्रीय आय का स्रोत है। देशी विदेशी सैलानियों को आकर्षित करता है। इसकी उम्र अब 473 वर्ष है क्योंकि यह 1545 में बना था। दिलचस्प बात यह है कि यह सिर्फ शेरशाह सूरी का मकब़रा नहीं है।यह शेरशाह सूरी परिवार का कब्रिस्तान है। शेरशाह सूरी सहित25लोगों की कब्रें हैं। 12 स्त्रियों-बच्चों के और 14 पुरुषों के। शेरशाह की कब्र हरे रंग की चादर से ढंकी है।

प्रवेशद्वार एक गुंबदनुमा इमारत से होकर है। प्रवेशद्वार की इमारत में एक कब्र है। गार्ड ने बताया कि यह सेनापति अलावल खान की कब्र है।

शेरशाह सूरी के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
(1)1472, शेरशाह सूरी का जन्म।
(2)1522, 50 वर्ष की आयु में शेरशाह, बिहार के जागीरदार बहार खान के यहाँ काम करना आरंभ किया
(3)1527-28,शेरशाह ने बहार खान के यहाँ काम छोड़ दिया और मुगल बादशाह बाबर की सेना में शामिल हो गये।
(4)बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ की कमजोरी का फायदा उठाकर बिहार पर कब्जा कर लिया।1539में शेरशाह ने चौसा के मैदान में हुमायूँ की सेना को परास्त किया।
(5)1540,शेरशाह सूरी ने कन्नौज में हुमायूँ की सेना को पराजित किया।
(6)22मई,1545,शेरशाह सूरी का निधन।

हमलोग शेरशाह के मकब़रे को देखते रहे, समझते रहे। बच्चों को बताते समझाते रहे। शेरशाह सूरी की दूरदर्शिता पर विस्मित भी हुआ कि मात्र पाँच साल शासन कर भी उसने भारत को एक अमूल्य निधि सौंपी।
.....

आलेख- जीतेंद्र कुमार
लेखक का लिंक- यहाँ क्लिक कीजिए
छायाचित्र सौजन्य- अमिताभ रंजन
लेखक का परिचय- श्री जीतेंद्र कुमार एक जाने माने चिंतक, लेखक और कवि हैं.
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbiharidhamaka@yahoo.com
लेखक - जीतेन्द्र कुमार












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