हमको देखा तो मुस्कराते हैं.
जावेद हयात ने अंधा युग के आ जाने का ऐलान किया-
हमारा दिल अंधा हो चुका है
अंधेरे हर सू छाये जा रहे हैं
जमाना खोट से वाकिफ है फिर भी
वही सिक्के चलाये जा रहे हैं.
कासिम खुरशीद ने मूल्क और समाज के जिम्मेवार लोगों द्वारा समयानुकूल चारित्रिक बदलाव कर लेनेवाले इस युग के बिघटन की ओर ध्यान खींचा-
दुनिया के बाजार बदलते रहते हैं
हर दिन कारोबार बदलते रहते हैं
जो मनसब की पहरेदारी करते हैं
वो अपने किरदार बदलते रहते हैं.
ओसामा खान ने दिखावे की संस्कृति पर चोट की-
इन ऊँची दुकानों में हर चीज चमकती है
माटी की बनी मूरत को रेशम से सजाई है
ख्वाबों के दरीचों से कुछ मूरतें उभरी हैं
साहिल पे समंदर के जो शाम बिताई है.
डॉ.शम्भू कुमार सिंह ने एक छोटी सी मुलाकात से ही जीवन के सँवरने की कल्पना कर डाली-
देखूँ / एक नजर ही सही
पर भरपूर देख सकूँ तुझे
शायद यही एक नजर
जीवन के सपने पकने दे / पलने दे.
पूनम आनंद ने बेटी के विदा हो जाने के बाद माता की मनोभावना को व्यकत किया-
खेलते खेलते बीत गया सलोना बचपन
छूट गए पीछे मायके के घर आँगन
ढूँढती रह गई भाई की खुशियाँ
कब चुपके से बड़ी हो गई बेटी हमारी.
डॉ.रामनाथ शोधार्थी बहुत एहतिहात बरतनेवालों पर तीखा कटाक्ष किया और कहा-
आंसू तुम्हें पिलाऊं कि साग़र उबालकर
यह साल जा रहा है दिसंबर उबालकर
इस बार सर्दियों में वही लोग जम गये
पानी को पी रहे थे जो अक्सर उबालकर.
अंतिम दौर में नसीम अख्तर ने अपनी गज़ल से सब को हँसने पर मजबूर कर दिया-
चलते चलते उनका खंजर रह गया
दिल का अरमाँ दिल के अंदर रह गया
खींच कर कातिल जो खंजर रह गया
रोज का झगड़ा मेरे घर रह गया.
'सामयिक परिवेश' की प्रधान
सम्पादक ममता मेहरोत्रा ने इन माहवारी गोष्ठी की कार्यवाही के विवरणों और सदस्यों
की कुछ अन्य रचनाओं के को मिलाकर एक लघु ई-पत्रिका निकालने का प्रस्ताव रखा जिसे
सर्वसहमति से मान लिया गया. श्रोताओं ने
समसामयिक विषयों और मानवीय सम्बंधों पर आधारित गज़लों और छंदबद्ध कवितओं को खूब
सराहा. कॉफी कैम्पस के तारिक इकबाल ने बताया कि इस तरह की गोष्ठियाँ वहाँ हर महीने
आयोजित की जाएंगी. कार्यक्रम में नाफिस हबीब और अनीसुर रहमान भी मौजूद थे. गोष्ठी
का संचालन हेमन्त दास ‘हिम’ ने और धन्यवाद ज्ञापण 'सामयिक परिवेश क्लब' की प्रभारी विभा सिंह ने किया.
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इस रिपोर्ट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग्राफर- हेमन्त 'हिम', तारिक इकबाल, कासिम खुरशीद, समीर परिमल
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