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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 20 April 2017

भैरव लाल दास की पुस्तक 'चम्पारण में गाँधी की सृजन-यात्रा' का लोकार्पण ('Champaran Me Gandhi Ki Srijan-Yatra'- a book by Bhairab Lal Das launched in Patna)

(English translation is placed after the Hindi Text)     
     चम्पारण का विशेष महत्व इसलिए है कि इसी ने गाँधी  को विश्वप्रसिद्ध कालजयी नेता के रूप में स्थापित किया. राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर चम्पारण आने के पहले उनकी विरोध की शैली पुरानी थी -ब्रिटिश सरकार के समक्ष विनय-पत्र प्रस्तुत करना, काउंसिल में सवाल उठाना और मुकदमा करके न्याय दिलवाने की कोशिश करना. स्पष्ट है कि उपर्युक्त तीनो उपायों में अंग्रेजों की न्यायप्रियता को चुनौती नहीं दी गई थी और यह मानकर चला जा रहा था कि वे इतने दयालु हैं कि जैसे ही वो जनता के दुख-दर्द से अवगत होंगे उन्हें दूर करने को तैयार हो जाएंगे. लेकिन जब गाँधी चम्पारण आये और वहाँ नीलहरों के द्वारा जनता से जबर्दस्ती नील की खेती करवाते हुए देखा तो वे उत्तेजित हो उठे. वो समझ गए अंग्रेजों की सारी नाटकीयता को. किसानों से नील की खेती जबर्दस्ती करवा कर उसके खेतों को बंजर बनाया जा रहा था और वह भी बिना कर-राहत के. उन्होंने ऊपर वर्णित तीनों में से कोई उपाय नहीं अपनाया और अपने कार्यकर्ताओं को सभी किसानों  से सीधा बयान लेकर नोट करने को कहा वह भी पूरी सच्चाई के साथ ताकि उनके दुख की वास्तविकता उजागर हो सके. अंग्रेजों ने धमकाया, कानूनी अड़चन लगाये पर गाँधी अब पहले वाले गाँधी नहीं थे अब वो अंग्रेजों के आगे गिड़्गिड़ाने की बजाय उसकी क्रूर और अत्याचारी सरकार का सामने से मुकाबला करने को तैयार थे. 

     महामहिम राज्यपाल श्री रामनाथ कोबिन्द ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और मिथिला की संस्कृति के विशेषज्ञ भैरव लाल दास की बिहार बिद्यापीठ से प्रकाशित पुस्तक 'चम्पारण में गाँधी की सृजन-यात्रा'  का लोकार्पण करते समय अनेक विंदुओं को उजागर किया. गाँधी जी की ट्रस्टटीशिप सिद्धान्त की भी चर्चा उन्होंने की. उन्होंने मज़हरूल हक के द्वारा अपनी विशाल सम्पति को विद्यापीठ को दान दिये जाने की भूरि-भूरि प्रशंसा की. साथ ही राजेद्र बाबू, ब्रजकिशोर बाबू, नवमी बाबू,शम्भू शरण आदि नेताओं की भी चर्चा की और उनके प्रति अपने उद्गार को प्रकट किया. उन्होंने भैरव लाल दास की पुस्तक के बारे में बताया कि उसे उन्होंने पढ़ रखा है और उसके कुछ चुनिंदा अंशों को उन्होंने पढ़ कर सुनाया. महामहिम ने इस अवसर पर बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश के कार्यों की भी सराहना की.

इस अवसर पर रत्नेश्वर मिश्र, विजय प्रकाश, प्रो. भारती, डॉ.तारा सिन्हा आदि ने भी अपने विचार रखे.. 

रिपोर्ट में सुधार के सम्बंध में सुझाव देने हेतु अथवा अपने विचार प्रकट करने हेतु ई-मेल पर सम्पर्क करें:hemantdas_2001@yahoo.com

(English translation of the above article is given below)

     The special significance of Champaran is that it has established Gandhi as the world-renowned classical leader. Before he came to Champaran on the call of Rajkumar Shukla, he had been protesting the rule in his typical archaic ways like presenting a letter praying to the British government, raising questions in the council and trying to get justice by prosecution. It is clear that in the above three measures, the self-claimed good intention of the British rule was not challenged and it was assumed that they were so kind that they would be easily ready to take measures to remove  misery of the people as soon as they are made aware of it. But when Gandhi came to Champarna and saw the forcible indigo cultivation he was anguished. He understood the whole drama of the British. By forcing the indigo cultivation on the farmers, their fields were being made barren and without that too without any tax relief. He did not take any of the above mentioned methods of protest and told his volunteers to record the statements of the farmers directly and instructed that the whole truth must be noted highlighting the reality of their suffering. The British threatened him, imposed legal barriers, but Gandhi was no longer a former Gandhi; now he was ready to take on the brutal and tyrannical government from the front.

     The Governor of Bihar, His Excellency Mr. Ramnath Kobind highlighted many points during the inauguration of the book of Bhairav ​​Lal Das 'Champaran me Gandhi ki Srijan-yatra' published by Bihar Vidya Peeth of. Bhairab Lal Das is a scholar in the Indian independence movement and Mithila culture. On this occasion, Gandhiji's trusteeship principle was also discussed. Mahrurul Haque was remembered for donation of his huge wealth to Vidyapith. The Governor also mentioned the contribution of leaders as Rajendra Babu, Brijkishor Babu, Navami Babu, Shambhu Sharan etc. and expressed the gratitude of the nation to them. He told about Bhairab ​​Lal Das's book and said that he had read it thoroughly and referred to the paras from the book. His Majesty also appreciated Vijoy Prakash, the chairman of Bihar Vidyapith for his valuable contribution.

On this occasion, Ratneshwar Mishra, Vijoy Prakash, Prof. Bharti, Dr. Tara Sinha and others also expressed their views. 

To suggest improvement in the report (if required) or to express your views, contact through e-mail: hemantdas_2001@yahoo.com



















हिंदुस्तान (दैनिक)  (Patna) 20.4.2017



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