**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Friday 29 May 2020

साहित्यकार ई. हृषीकेश पाठक : एक बहुआयामी व्यक्तित्व / लेखक - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद

दिवंगत साहित्यकार हृषीकेश पाठक को नमन 

(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटों पर देखें- FB+ Bejod India /  यहाँ कमेंट कीजिए  / Latest data- Covid19 in Bihar)




कुछ माह पूर्व ही 15.2.2020 को एक अत्यंत सक्रिय, क्षमतावान साहित्यकार का पटना में जीभ के कैंसर से निधन हो गया जिससे न सिर्फ बिहार ने साहित्य का एक चमकता सितारा खो दिया बल्कि अदालतगंज स्थित बिहार कनीय अभियंता संघ का सभागार भी मानो अनाथ-सा हो गया| ध्यातव्य है कि श्री पाठक पेशे से एक अभियंता रहे थे और बिहार कनीय अभियंता संघ के महत्वपूर्ण पद पर वर्षों विराजमान रहे| कहने की आवश्यकता नहीं कि इतने वर्षों तक कोई अत्यंत जूझारू और लोकप्रिय व्यक्ति ही इस पद पर रह सकता है| जाहिर है कि यह व्यक्तित्व मात्र साहित्य से वास्ता नहीं रखता था बल्कि कामगारों के आन्दोलन से भी उतनी ही सक्रियता से जुड़ा था| किन्तु यह भी सत्य है कि साहित्यिक सभाओं में उनके विशुद्ध साहित्यिक रूप के दर्शन होते और लगता ही नहीं कि इतना संवेदनशील व्यक्ति कामगारों के पेचीदगी भरे  संघर्ष से कैसे इतना जुडाव रख सकता है| स्वाभाव से अत्यंत सौम्य और भाषा बिलकुल परिमार्जित| निश्चित रूप से एक ऐसा सुखकर संयोग था जो बिरले ही देखने को मिलता है| मुझे 2015-18 के दौरान कई बार उनसे मिलने का अवसर मिला अक्सर बिहार कनीय अभियंता संघ के सभागार के साहित्यिक कार्यक्रमों में जिसका संचालन वही किया करते थे और कभी किसी को उन्होंने शिकायत का मौका नहीं दिया| सबको बोलने का मौका देते थे चाहे श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हो या मेरे जैसा नया| मेरे पहले एकल काव्य संग्रह को भी उन्होंने प्रमोट किया था अपने फेसबुक पर और मेरा सौभाग्य रहा "बिहारी धमाका ब्लॉग" में उनके कम से कम आधे दर्जन काय्रक्रमों की विस्तृत रपट के साथ साथ "प्लेटफार्म  पर एक रात" की विस्तुत समीक्षा कर उसे प्रकाशित करने का भी मौका मिला| मुझे कभी  लगा ही नहीं कि जिनसे मैं लगातार मिल रहा हूँ वो जल्द ही इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में समाने वाले व्यक्तित्व हैं. पहले श्री विशुद्धानंद जी के जाने पर जैसा खालीपन का अहसास हुआ वह इनके जाने से और दोहरा हो गया| स्व. पाठक जी के विराट व्यक्तित्व को नमन. (- हेमंत दास 'हिम')


सन 1956 में, बिहार राज्य के बक्सर जिलान्तर्गत सिमरी प्रखंड का नियाजीपुर गाँव, जो उत्तरप्रदेश एवं बिहार के बीच मन्दाकिनी (गंगा) के तट पर अवस्थित है, में एक मध्यमवर्गीय कृषक परिवार में, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि को (अर्थात कार्तिक छठ व्रत के अगले दिन ही) उपमन्यु गोत्री पंडित राम नारायण पाठक एवं उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी के कुटुंब में द्वितीय पुत्र के रूप में एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ | नाम रखा गया हृषीकेश |

वैसे तो उनके जीवन के अनेक पहलू हैं जिनमें प्रत्येक के बारे में एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन हम यहाँ उनके सिर्फ साहित्यिक पक्ष को ही संक्षेप में रखने का प्रयास कर रहे हैं - 

पाठक जी की तत्परता एवं क्रियाशीलता इतनी तीव्र थी की अल्प समय में ही इनकी कुल सात पुस्तकों के प्रकाशन एवं लोकार्पण का कार्यसम्पूर्ण हो गया| 

अपनी बुद्धि, कुशलता, संवेदनशीलता एवं परिश्रम के बल पर हृषीकेश पाठक जी ने साहित्य जगत के नभ में प्रकाशमान एक उज्जवल तारे के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने में सफलता अर्जित की| अत्यंत अल्पावधि में ही कुल सात पुस्तकों का आनंदाश्रम प्रकाशन के सहयोग से प्रकाशन एवं उसका लोकार्पण, साहित्य के प्रति हृषीकेश पाठक जी का सेवा भाव परिलक्षित करता है| उनकी सातों पुस्तकों का क्रमवार विवरण निम्नवत है :
1. “स्याह – सच” (लघुकथा-संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
2. “लोकावतरण से लोकान्तरण तक” (स्वामी पशुपतिनाथ की प्रमाणिक सम्पूर्ण
जीवनी) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
3. “महर्षि उपमन्यु और उनके वंशज” (आनंदाश्रम प्रकाशन)
4. “ गीतासार – संग्रह” (स्वामी पशुपतिनाथ के अमृत-वचनों पर आधारित पुस्तक)
(आनंदाश्रम प्रकाशन)
5. “प्लेटफार्म की एक रात” (कहानी – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
6. लोकतंत्र की धड़कती नाड़ी” ( काव्य – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
7. “आँखुवाते शूल” (काव्य – संग्रह ) (आनंदाश्रम प्रकाशन)

हृषीकेश पाठक जी के साहित्यिक रचनाओं की उत्कृष्टता का स्तर उल्लेखनीय रूप से उच्य कोटि था, जिसके कारण उनको कई सम्मानों से अलंकृत भी किया गया जिनमे से कुछ प्रमुख सम्मान निम्नलिखित है:
 राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह शिखर सम्मान ( अखिल भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा )
 लघुकथा सम्मान ( नई – धारा द्वारा )
 साहित्य सम्मान (प्रति-श्रुति द्वारा)
 पंडित हंस कुमार तिवारी सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा) इत्यादि

साहित्य- सेवी पाठक जी ने अवर अभियंता संघ की मुख्य मासिक पत्रिका, “निर्माता-निर्देश” का अपने महामंत्रीत्व काल में सफल संपादन तो किया ही, साथ-साथ अखिल भारतीय धर्मसंघ कि बिहार इकाई कि मासिक पत्रिका “धर्मनिष्ठा” का भी संपादन कार्य अंपने अंतिम क्षणों तक किया| जो की इनके साहित्य सेवा का उत्कृष्ट उदहारण है| ये पाठक जी का व्यक्तित्व एवं उनके रचनाओं की उत्कृष्टता एवं प्रभावशीलता ही थी, जो की कई साहित्यकार जैसे साहित्यकार स्व. विशुद्धानंद, डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. शिव नारायण, बांके बिहारी साव, वयोवृद्ध साहित्यकार सत्यनारायण, डॉ. अनिल सुलभ , सिद्धेश्वर , स्व. भोला प्रसाद सिंह तोमर, आचार्य विजय गुंजन, डॉ किशोर सिन्हा, डॉ शम्भू पी. सिंह, राजकुमार प्रेमी, आर. पी. घायल, डॉ. भावना शेखर,अरुण कुमार जी, स्वर्गीय पं. शंभू नाथ पाण्डेय(पूर्व प्राचार्य, उच्च विद्यालय, बड़का राजपुर), रामाधार जी इत्यादि अन्य कई साहित्यकारसहित अवर अभियंता संघ के अरविन्द तिवारी, अशोक सिंह, रामाशंकर ओझा संग अन्य सदस्य गण, पाठक जी के मुरीद थे|

वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीमान सत्यनारायण जी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी प्रगति समिति), पाठक जी के बारे में “आँखुवाते शूल” पुस्तक में लिखते है की: “कवि-कथाकार हृषीकेश पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| हिंदी साहित्य में इनकी सात पुस्तकें आ चुकी है| पाठकजी ने समाज की विद्रूपताओं को सामने लाकर रचनात्मक धरातल पर अपनी लेखनी से समाज तक पहुँचने और समाज को उससे संघर्ष करने के लिए ताकत देने की पहल की है| इनकी रचनाधर्मिता के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ|”

पाठक जी के मित्र स्वर्गीय साहित्यकार विशुद्धानंद जी (अध्यक्ष, आनंदाश्रम) (जिन्हें स्नेहवश, पाठक जी सदैव भाईजी कहते थे) के अनुसार :
“अभियंत्रण के पेशे से जुड़े पाठक जी एक संवेदनशील कवि एवं कुशल कथाकार हैं, जिनकी संवेदना उनकी लघुकथाओं एवं कविताओं में सदैव रूपायित हुई है| उन्होंने आंचलिक शब्दों का तत्सम और उर्दू शब्दों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, अपना अलग त्रिआयामी शिल्प विकसित किया है, यह एक विशिष्ट उदहारण है, जो विरले ही देखने को मिलता है |”

श्रीमान भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने एक आलेख में पाठक जी के बारे में यह सत्य ही लिखा है की :
“ अभियांत्रिकी सेवा की काजल की कोठरी में रह कर भी इन्होने पूरी ईमानदारी- निष्ठा के साथ बेदाग “ ज्यों कि त्यों धर दीनी चदरिया” चरितार्थ कर दिखाया| साथ ही अवर अभियंता संघ के सभागार में अनवरत साहित्यिक - सांस्कृतिक संगोष्ठीयों, सम्मेलनों को आयोजित करने का श्रेय पूर्ण रूप से पाठक जी को ही जाता है, दरअसल वह साहित्य- संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे|”

साहित्यकार शिवनारायण जी (संपादक, नई धारा) , स्याह सच की अपनी भूमिका में लिखते है कि :
“भोजपुर (बिहार) की मिट्टी से उपजासंवेदनशील लघुकथाकार हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ समय से जुड़ी अपनी विविध आयामी आस्वाद के कारण ध्यानाकर्षित करती है| हृषीकेश पाठक अपने समय को जीते हुए जिन व्यंजनामूलक गति में उसे रचनात्मक अभिव्यक्ति देते हैं, उसका पाठकों में सहजसम्प्रेषण हो जाता है| उनकी लघुकथाएँ साक्षरता, दहेज़, बालश्रम, पर्यावरण, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण से सम्बंधित हों अथवा देशभक्ति, साम्प्रदायिकता, उग्रवाद,भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद, राजनितिक भ्रष्टाचार, मूल्यबोधहीनता आदि से सम्बंधित, उनमें अपने विषयों में गहरे पैठकर वर्ण्य विषयों का प्रभाव सम्प्रेषित करने की क्षमता दिखती है| अपने पहले ही संग्रह में इतनी अच्छी लघुकथाओं के लिए मैं अपने मित्र हृषीकेश पाठक को बधाई देना चाहता हूँ |”

इसी क्रम में श्रीमान सिद्धेश्वर जी (संम्पादक, कथासागर) लिखते है की :
“पाठक जी कि लघुकथाओं में मौलिक दृष्टि और वैचारिक विशिष्टता प्रभावकारी बन पड़ी है| सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, विसंगतियों को उन्होंने अपने ढंग से व्यंजित किया है| जीवन की तमाम विषमताओं के बीच जीवन के प्रति आशा, आस्था, मोह, प्रेम जगाती हुई आत्म प्रेरक रचनाओं का आज आभाव होता जा रहा है| इस आभाव को दूर करने में हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ सक्षम दिख पड़ती हैं|

हृषीकेश पाठक जी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं के कर्ता-धर्ता थे| चाहे “आनंदाश्रम” के संगठन मंत्री के रूप में हो, नियाजीपुर नव युवक संघ के अध्यक्ष के रूप में हो या “सृजन- संगति” के महामंत्री के रूप में, सदैव उन्होंने अपने तन -मन- धन से साहित्य एवं समाज कि सेवा का कार्य ही किया| ये आत्मीय तो इतने थे की एक बार किसी को अपनाया तो फिर उसके ही होके रह गए | इनका यह गुण इस तथ्य से परिलक्षित होता है की अपने मित्र स्वर्गीय भोला प्रसाद तोमर जी की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 27 अप्रैल को स्मृति दिवस सह साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन, लगातार कई वर्षो तक करते रहे, अपने अंत समय तक, बिना तोमर जी के परिवार के सदस्यों के किसी भी प्रकार के सहयोग के, ताकि तोमर जी के व्यक्तित्व एवं विचारों को सामाजिक रूप से जीवंत रखा जा सके| ये कोई आम बात नहीं थी| साधारण सा जीवन व्यतीत करने वाले हृषीकेश जी दया एवं परोपकार की भी प्रतिमूर्ति थे, अक्सर राह चलते किसी गरीब, असहाय या जरूरतमंद को पेट भर भोजन करा देना, अपने शरीर के वस्त्र – चादर इत्यादि रह चलते ही जरुरतमदों को दान कर देना इत्यादि उनके दिनचर्या का अहम् हिस्सा था | अपने शरीर की चिंता न करते हुए अपने इष्ट- मित्रों कि सहायता हेतु सदैव तत्पर एवं उपलब्ध रहना उनकी ऐसी विशेषता थी, जिसके कारण सभी उनके आत्मीय बन जाते थे| उनके आत्मीय जनों में उम्र की कोई बाध्यता नहीं थी| सभी उम्र के व्यक्ति उनके आत्मीय थे, हैं भी, उनके स्वर्गवासी होने के बाद भी , और कारण बस एकथा मिलानसार एवं उदार व्यक्तित्व| 

पाठक जी के एक परम मित्र बृजेश कुमार त्यागी जी ने अपना एक अनुभव मुझ से साझा किया था जिसे यहाँ उल्लेखित करना मुझे उचित प्रतीत होता है, उन्ही के शब्दों को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :
“ स्वर्गीय हृषीकेश पाठक जी से मेरा पहला परिचय मेरे सिंचाई विभाग में गोरौल में पदस्थापना के दौरान हुआ था| यद्यपि वह मेरे आधीन पदस्थापित नहीं थे परन्तु उनकी सरलता, सुहृदयता के कारण हमारे परिवार एवं उनके परिवार में एक ऐसा सुदृढ़ स्नेह संबंध बन गया जो आज तक कायम है| गोरौल में मेरे पदस्थापना के दौरान मेरी पत्नी का पटना में आपरेशन हुआ था| उस समय मेरे दोनों पुत्र छोटे और नादान थे, तथा मेरे माता पिता वयोवृद्ध थे और इन सभी को सतत देखभाल की जरूरत थी| पत्नी की चिकित्सा के कारण हम कई - कई महीने बम्बई में रहते थे और इस काल में मेरे घर का दायित्व पाठकजी निर्वहन करते थे| मेरे माता-पिता सदा मुझे कहा करते थे कि पाठक जी मेरी अनुपस्थिति में एक पुत्र की भांति ही उनका ध्यान रखते है | मेरे दोनों  बच्चे भी उनसे इतना हिल मिल गये थे कि उनके आते ही दोनों उनकी गोद में बैठने के लिए झगड़ जाते थे | मैंने अपने जीवन में इतना स्नेहशील और परोपकारी मनुष्य दूसरा नहीं देखा| ऐसे अनन्य व्यक्तित्व के असमय प्रयाण से ईश्वर की न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठ सा जाताहै| जो भी हो, मै और मेरा परिवार तो उनके आजन्म कर्जदार हैं|”

है यहाँ शून्य अब शेष, कहाँ है लेश मात्र जीवन का 
शिथिल पड़े ये नेत्र, भाल पे कहाँ तिलक विजय का !
गीली आँखों - सूखे कंठों में ध्वनि न आस जरा सा 
क्यों छोड़ गये हृषीकेश शेष, ये पीड़ हृदय वेदन का ।
अथक प्रयास किये हमने, तुम सुनो न रुदन हृदय का,
किंतु अपनी भी सीमाएं, कैसे रुके ये पीड़ बिषम सा ?
नयनों से झड़ पड़े अश्रु जल, अनवरत धार नदियों सा,
बोलों तुम ही, इतनी जल्दी क्यूं छोड़े आस विजय का?
(-प्रवीर कु. विशुद्धानंद)
......

(आलेख का सम्पादित अंश प्रकाशित किया गया है.)
मूल आलेख - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद 
लेखक का ईमेल आईडी - praveer87@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का इमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com





1 comment:

  1. प्रवीर कुमार विशुद्धानंद - "मेरे आलेख को अपने ब्लॉग पर स्थान देने हेतु हार्दिक आभार"

    ReplyDelete

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.