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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Friday, 29 May 2020

साहित्यकार ई. हृषीकेश पाठक : एक बहुआयामी व्यक्तित्व / लेखक - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद

दिवंगत साहित्यकार हृषीकेश पाठक को नमन 

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कुछ माह पूर्व ही 15.2.2020 को एक अत्यंत सक्रिय, क्षमतावान साहित्यकार का पटना में जीभ के कैंसर से निधन हो गया जिससे न सिर्फ बिहार ने साहित्य का एक चमकता सितारा खो दिया बल्कि अदालतगंज स्थित बिहार कनीय अभियंता संघ का सभागार भी मानो अनाथ-सा हो गया| ध्यातव्य है कि श्री पाठक पेशे से एक अभियंता रहे थे और बिहार कनीय अभियंता संघ के महत्वपूर्ण पद पर वर्षों विराजमान रहे| कहने की आवश्यकता नहीं कि इतने वर्षों तक कोई अत्यंत जूझारू और लोकप्रिय व्यक्ति ही इस पद पर रह सकता है| जाहिर है कि यह व्यक्तित्व मात्र साहित्य से वास्ता नहीं रखता था बल्कि कामगारों के आन्दोलन से भी उतनी ही सक्रियता से जुड़ा था| किन्तु यह भी सत्य है कि साहित्यिक सभाओं में उनके विशुद्ध साहित्यिक रूप के दर्शन होते और लगता ही नहीं कि इतना संवेदनशील व्यक्ति कामगारों के पेचीदगी भरे  संघर्ष से कैसे इतना जुडाव रख सकता है| स्वाभाव से अत्यंत सौम्य और भाषा बिलकुल परिमार्जित| निश्चित रूप से एक ऐसा सुखकर संयोग था जो बिरले ही देखने को मिलता है| मुझे 2015-18 के दौरान कई बार उनसे मिलने का अवसर मिला अक्सर बिहार कनीय अभियंता संघ के सभागार के साहित्यिक कार्यक्रमों में जिसका संचालन वही किया करते थे और कभी किसी को उन्होंने शिकायत का मौका नहीं दिया| सबको बोलने का मौका देते थे चाहे श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हो या मेरे जैसा नया| मेरे पहले एकल काव्य संग्रह को भी उन्होंने प्रमोट किया था अपने फेसबुक पर और मेरा सौभाग्य रहा "बिहारी धमाका ब्लॉग" में उनके कम से कम आधे दर्जन काय्रक्रमों की विस्तृत रपट के साथ साथ "प्लेटफार्म  पर एक रात" की विस्तुत समीक्षा कर उसे प्रकाशित करने का भी मौका मिला| मुझे कभी  लगा ही नहीं कि जिनसे मैं लगातार मिल रहा हूँ वो जल्द ही इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में समाने वाले व्यक्तित्व हैं. पहले श्री विशुद्धानंद जी के जाने पर जैसा खालीपन का अहसास हुआ वह इनके जाने से और दोहरा हो गया| स्व. पाठक जी के विराट व्यक्तित्व को नमन. (- हेमंत दास 'हिम')


सन 1956 में, बिहार राज्य के बक्सर जिलान्तर्गत सिमरी प्रखंड का नियाजीपुर गाँव, जो उत्तरप्रदेश एवं बिहार के बीच मन्दाकिनी (गंगा) के तट पर अवस्थित है, में एक मध्यमवर्गीय कृषक परिवार में, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि को (अर्थात कार्तिक छठ व्रत के अगले दिन ही) उपमन्यु गोत्री पंडित राम नारायण पाठक एवं उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी के कुटुंब में द्वितीय पुत्र के रूप में एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ | नाम रखा गया हृषीकेश |

वैसे तो उनके जीवन के अनेक पहलू हैं जिनमें प्रत्येक के बारे में एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन हम यहाँ उनके सिर्फ साहित्यिक पक्ष को ही संक्षेप में रखने का प्रयास कर रहे हैं - 

पाठक जी की तत्परता एवं क्रियाशीलता इतनी तीव्र थी की अल्प समय में ही इनकी कुल सात पुस्तकों के प्रकाशन एवं लोकार्पण का कार्यसम्पूर्ण हो गया| 

अपनी बुद्धि, कुशलता, संवेदनशीलता एवं परिश्रम के बल पर हृषीकेश पाठक जी ने साहित्य जगत के नभ में प्रकाशमान एक उज्जवल तारे के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने में सफलता अर्जित की| अत्यंत अल्पावधि में ही कुल सात पुस्तकों का आनंदाश्रम प्रकाशन के सहयोग से प्रकाशन एवं उसका लोकार्पण, साहित्य के प्रति हृषीकेश पाठक जी का सेवा भाव परिलक्षित करता है| उनकी सातों पुस्तकों का क्रमवार विवरण निम्नवत है :
1. “स्याह – सच” (लघुकथा-संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
2. “लोकावतरण से लोकान्तरण तक” (स्वामी पशुपतिनाथ की प्रमाणिक सम्पूर्ण
जीवनी) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
3. “महर्षि उपमन्यु और उनके वंशज” (आनंदाश्रम प्रकाशन)
4. “ गीतासार – संग्रह” (स्वामी पशुपतिनाथ के अमृत-वचनों पर आधारित पुस्तक)
(आनंदाश्रम प्रकाशन)
5. “प्लेटफार्म की एक रात” (कहानी – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
6. लोकतंत्र की धड़कती नाड़ी” ( काव्य – संग्रह) (आनंदाश्रम प्रकाशन)
7. “आँखुवाते शूल” (काव्य – संग्रह ) (आनंदाश्रम प्रकाशन)

हृषीकेश पाठक जी के साहित्यिक रचनाओं की उत्कृष्टता का स्तर उल्लेखनीय रूप से उच्य कोटि था, जिसके कारण उनको कई सम्मानों से अलंकृत भी किया गया जिनमे से कुछ प्रमुख सम्मान निम्नलिखित है:
 राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह शिखर सम्मान ( अखिल भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा )
 लघुकथा सम्मान ( नई – धारा द्वारा )
 साहित्य सम्मान (प्रति-श्रुति द्वारा)
 पंडित हंस कुमार तिवारी सम्मान (बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा) इत्यादि

साहित्य- सेवी पाठक जी ने अवर अभियंता संघ की मुख्य मासिक पत्रिका, “निर्माता-निर्देश” का अपने महामंत्रीत्व काल में सफल संपादन तो किया ही, साथ-साथ अखिल भारतीय धर्मसंघ कि बिहार इकाई कि मासिक पत्रिका “धर्मनिष्ठा” का भी संपादन कार्य अंपने अंतिम क्षणों तक किया| जो की इनके साहित्य सेवा का उत्कृष्ट उदहारण है| ये पाठक जी का व्यक्तित्व एवं उनके रचनाओं की उत्कृष्टता एवं प्रभावशीलता ही थी, जो की कई साहित्यकार जैसे साहित्यकार स्व. विशुद्धानंद, डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. शिव नारायण, बांके बिहारी साव, वयोवृद्ध साहित्यकार सत्यनारायण, डॉ. अनिल सुलभ , सिद्धेश्वर , स्व. भोला प्रसाद सिंह तोमर, आचार्य विजय गुंजन, डॉ किशोर सिन्हा, डॉ शम्भू पी. सिंह, राजकुमार प्रेमी, आर. पी. घायल, डॉ. भावना शेखर,अरुण कुमार जी, स्वर्गीय पं. शंभू नाथ पाण्डेय(पूर्व प्राचार्य, उच्च विद्यालय, बड़का राजपुर), रामाधार जी इत्यादि अन्य कई साहित्यकारसहित अवर अभियंता संघ के अरविन्द तिवारी, अशोक सिंह, रामाशंकर ओझा संग अन्य सदस्य गण, पाठक जी के मुरीद थे|

वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीमान सत्यनारायण जी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी प्रगति समिति), पाठक जी के बारे में “आँखुवाते शूल” पुस्तक में लिखते है की: “कवि-कथाकार हृषीकेश पाठक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| हिंदी साहित्य में इनकी सात पुस्तकें आ चुकी है| पाठकजी ने समाज की विद्रूपताओं को सामने लाकर रचनात्मक धरातल पर अपनी लेखनी से समाज तक पहुँचने और समाज को उससे संघर्ष करने के लिए ताकत देने की पहल की है| इनकी रचनाधर्मिता के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ|”

पाठक जी के मित्र स्वर्गीय साहित्यकार विशुद्धानंद जी (अध्यक्ष, आनंदाश्रम) (जिन्हें स्नेहवश, पाठक जी सदैव भाईजी कहते थे) के अनुसार :
“अभियंत्रण के पेशे से जुड़े पाठक जी एक संवेदनशील कवि एवं कुशल कथाकार हैं, जिनकी संवेदना उनकी लघुकथाओं एवं कविताओं में सदैव रूपायित हुई है| उन्होंने आंचलिक शब्दों का तत्सम और उर्दू शब्दों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, अपना अलग त्रिआयामी शिल्प विकसित किया है, यह एक विशिष्ट उदहारण है, जो विरले ही देखने को मिलता है |”

श्रीमान भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने एक आलेख में पाठक जी के बारे में यह सत्य ही लिखा है की :
“ अभियांत्रिकी सेवा की काजल की कोठरी में रह कर भी इन्होने पूरी ईमानदारी- निष्ठा के साथ बेदाग “ ज्यों कि त्यों धर दीनी चदरिया” चरितार्थ कर दिखाया| साथ ही अवर अभियंता संघ के सभागार में अनवरत साहित्यिक - सांस्कृतिक संगोष्ठीयों, सम्मेलनों को आयोजित करने का श्रेय पूर्ण रूप से पाठक जी को ही जाता है, दरअसल वह साहित्य- संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे|”

साहित्यकार शिवनारायण जी (संपादक, नई धारा) , स्याह सच की अपनी भूमिका में लिखते है कि :
“भोजपुर (बिहार) की मिट्टी से उपजासंवेदनशील लघुकथाकार हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ समय से जुड़ी अपनी विविध आयामी आस्वाद के कारण ध्यानाकर्षित करती है| हृषीकेश पाठक अपने समय को जीते हुए जिन व्यंजनामूलक गति में उसे रचनात्मक अभिव्यक्ति देते हैं, उसका पाठकों में सहजसम्प्रेषण हो जाता है| उनकी लघुकथाएँ साक्षरता, दहेज़, बालश्रम, पर्यावरण, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण से सम्बंधित हों अथवा देशभक्ति, साम्प्रदायिकता, उग्रवाद,भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद, राजनितिक भ्रष्टाचार, मूल्यबोधहीनता आदि से सम्बंधित, उनमें अपने विषयों में गहरे पैठकर वर्ण्य विषयों का प्रभाव सम्प्रेषित करने की क्षमता दिखती है| अपने पहले ही संग्रह में इतनी अच्छी लघुकथाओं के लिए मैं अपने मित्र हृषीकेश पाठक को बधाई देना चाहता हूँ |”

इसी क्रम में श्रीमान सिद्धेश्वर जी (संम्पादक, कथासागर) लिखते है की :
“पाठक जी कि लघुकथाओं में मौलिक दृष्टि और वैचारिक विशिष्टता प्रभावकारी बन पड़ी है| सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, विसंगतियों को उन्होंने अपने ढंग से व्यंजित किया है| जीवन की तमाम विषमताओं के बीच जीवन के प्रति आशा, आस्था, मोह, प्रेम जगाती हुई आत्म प्रेरक रचनाओं का आज आभाव होता जा रहा है| इस आभाव को दूर करने में हृषीकेश पाठक की लघुकथाएँ सक्षम दिख पड़ती हैं|

हृषीकेश पाठक जी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं के कर्ता-धर्ता थे| चाहे “आनंदाश्रम” के संगठन मंत्री के रूप में हो, नियाजीपुर नव युवक संघ के अध्यक्ष के रूप में हो या “सृजन- संगति” के महामंत्री के रूप में, सदैव उन्होंने अपने तन -मन- धन से साहित्य एवं समाज कि सेवा का कार्य ही किया| ये आत्मीय तो इतने थे की एक बार किसी को अपनाया तो फिर उसके ही होके रह गए | इनका यह गुण इस तथ्य से परिलक्षित होता है की अपने मित्र स्वर्गीय भोला प्रसाद तोमर जी की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 27 अप्रैल को स्मृति दिवस सह साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन, लगातार कई वर्षो तक करते रहे, अपने अंत समय तक, बिना तोमर जी के परिवार के सदस्यों के किसी भी प्रकार के सहयोग के, ताकि तोमर जी के व्यक्तित्व एवं विचारों को सामाजिक रूप से जीवंत रखा जा सके| ये कोई आम बात नहीं थी| साधारण सा जीवन व्यतीत करने वाले हृषीकेश जी दया एवं परोपकार की भी प्रतिमूर्ति थे, अक्सर राह चलते किसी गरीब, असहाय या जरूरतमंद को पेट भर भोजन करा देना, अपने शरीर के वस्त्र – चादर इत्यादि रह चलते ही जरुरतमदों को दान कर देना इत्यादि उनके दिनचर्या का अहम् हिस्सा था | अपने शरीर की चिंता न करते हुए अपने इष्ट- मित्रों कि सहायता हेतु सदैव तत्पर एवं उपलब्ध रहना उनकी ऐसी विशेषता थी, जिसके कारण सभी उनके आत्मीय बन जाते थे| उनके आत्मीय जनों में उम्र की कोई बाध्यता नहीं थी| सभी उम्र के व्यक्ति उनके आत्मीय थे, हैं भी, उनके स्वर्गवासी होने के बाद भी , और कारण बस एकथा मिलानसार एवं उदार व्यक्तित्व| 

पाठक जी के एक परम मित्र बृजेश कुमार त्यागी जी ने अपना एक अनुभव मुझ से साझा किया था जिसे यहाँ उल्लेखित करना मुझे उचित प्रतीत होता है, उन्ही के शब्दों को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :
“ स्वर्गीय हृषीकेश पाठक जी से मेरा पहला परिचय मेरे सिंचाई विभाग में गोरौल में पदस्थापना के दौरान हुआ था| यद्यपि वह मेरे आधीन पदस्थापित नहीं थे परन्तु उनकी सरलता, सुहृदयता के कारण हमारे परिवार एवं उनके परिवार में एक ऐसा सुदृढ़ स्नेह संबंध बन गया जो आज तक कायम है| गोरौल में मेरे पदस्थापना के दौरान मेरी पत्नी का पटना में आपरेशन हुआ था| उस समय मेरे दोनों पुत्र छोटे और नादान थे, तथा मेरे माता पिता वयोवृद्ध थे और इन सभी को सतत देखभाल की जरूरत थी| पत्नी की चिकित्सा के कारण हम कई - कई महीने बम्बई में रहते थे और इस काल में मेरे घर का दायित्व पाठकजी निर्वहन करते थे| मेरे माता-पिता सदा मुझे कहा करते थे कि पाठक जी मेरी अनुपस्थिति में एक पुत्र की भांति ही उनका ध्यान रखते है | मेरे दोनों  बच्चे भी उनसे इतना हिल मिल गये थे कि उनके आते ही दोनों उनकी गोद में बैठने के लिए झगड़ जाते थे | मैंने अपने जीवन में इतना स्नेहशील और परोपकारी मनुष्य दूसरा नहीं देखा| ऐसे अनन्य व्यक्तित्व के असमय प्रयाण से ईश्वर की न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठ सा जाताहै| जो भी हो, मै और मेरा परिवार तो उनके आजन्म कर्जदार हैं|”

है यहाँ शून्य अब शेष, कहाँ है लेश मात्र जीवन का 
शिथिल पड़े ये नेत्र, भाल पे कहाँ तिलक विजय का !
गीली आँखों - सूखे कंठों में ध्वनि न आस जरा सा 
क्यों छोड़ गये हृषीकेश शेष, ये पीड़ हृदय वेदन का ।
अथक प्रयास किये हमने, तुम सुनो न रुदन हृदय का,
किंतु अपनी भी सीमाएं, कैसे रुके ये पीड़ बिषम सा ?
नयनों से झड़ पड़े अश्रु जल, अनवरत धार नदियों सा,
बोलों तुम ही, इतनी जल्दी क्यूं छोड़े आस विजय का?
(-प्रवीर कु. विशुद्धानंद)
......

(आलेख का सम्पादित अंश प्रकाशित किया गया है.)
मूल आलेख - प्रवीर कुमार विशुद्धानंद 
लेखक का ईमेल आईडी - praveer87@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का इमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com





Friday, 22 May 2020

भा युवा साहित्यकार परिषद के संगीत कार्यक्रम - 19.5.2020 के साथ ही दैनिक आभासी गोष्ठियों का सिलसिला सम्पन्न

साहित्याकारों ने लोकप्रिय गीतों को ऑनलाइन गाकर सबका मनोरंजन किया 
दैनिक गोष्ठियोंं की दैनिक शृंखला का समापन

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पटना। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" पेज पर, "हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात" के दैनिक कार्यक्रम के तहत, 19/05/2020 को फिल्मी गीत संगीत का रंगारंग कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि - "फूल के लिए रस और सुगंध की जरूरत होती है, ठीक उसी प्रकार जीवन को सही मायने में जीने के लिए गीत संगीत की जरूरत है। कहते हैं संगीत के बिना तो जीवन ही अधूरा होता है! संजीदगी भरी जिंदगी जीने वाले लोग बेसुरी आवाज में भी गाते दिख पड़ते हैं कि- "गाना आए या ना आए गाना चाहिए /सुर और संगीत के साथ दिल को मिलाना चाहिए।.   

इस समारोह की मुख्य अतिथि वीणाश्री हेम्ब्रम ने कहा कि- "संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सिद्धेश्वर को हार्दिक बधाई देते हुए आज गीत संगीत की प्रासंगिकता पर बताना चाहती हूँ कि, संगीत आज से ही नहीं वरन पुरातन काल से ही मनोविनोद का सबसे उत्तम साधन माना गया है। हम गौर करेंगे तो पाएंगे कि प्रकृति के हरेक कण व स्वरूप में संगीत विद्यमान है। आज भी भागम-भाग वाली वर्तमान जीवन शैली में यही संगीत दिनभर के थके हारे मन को एक सुकून प्रदान करता है। विशेषकर इस लॉकडाउन में ये एक सुनहरा अवसर है संगीतप्रेमियों के लिए की वो पूरा समय संगीत साधना व रियाज़ में लगा सकते हैं। संगीत जीवन में प्रेम का संचार करता है इसलिए गाना आये या न आये गाते रहिये,  आनंदित रहिये।

इस यादगार आनलाइन सांस्कृतिक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण ने कहा कि - "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् और अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका के संयुक्त तत्वधान में हैलो फ़ेसबुक  साहित्य प्रभात दूारा आयोजित अॉन लाईन फ़िल्मी गीत/संगीत के कार्यक्रम कई मायने में सफल और सराहनीय रहा। साहित्य और संगीत का बहुत गहरा संबंध है।

आज जब हम लाँक डाउन के चौथे चरण में प्रवेश किये है। हरेक इंसान घर में रह कर ऊबने लगा है।ऐसे में इस तरह का कार्यक्रम संजीवनी का काम करता है।आज जितने भी प्रतिभागी इसमें हिस्सा लिये सबने एक से एक बढ कर गाना गाया।यह प्लेटफ़ार्म मनोरंजन को ध्यान में रख कर किया गया है जो सार्थक रहा। मैं सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

पिछले 15 दिनों से हर दिन लगातार 1 घंटे का यह लाइव कार्यक्रम पूरे देश भर में सराहा गया। इस लाइव प्रसारण के संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा  कि -" हमारे इस ऑनलाइन की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए, हम सप्ताह के प्रत्येक रविवार को, साहित्य की सभी विधाओं पर केंद्रित ऑनलाइन गोष्ठी जारी रखेंगे। और प्रत्येक माह के अंतिम रविवार" को "हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का आयोजन करेंगे। हमारा अगला रविवार लघुकथा को समर्पित रहेगा।। 
इस कार्यक्रम में जिन कलाकारों और कलाकारों  ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति  दिया, वह उस प्रकार है। - 
आस्था दीपाली (नई दिल्ली) 
सुशील साहिल
स्वास्तिका सिद्धेश्
नूतन सिंह (जमुई)
सुमन कुमारी
जुगल आशीष और सुमन 🇧🇩
कुमारी सुमन
वीणाश्री हेम्ब्रम 
आरती कुमारी
सिद्धेश्वर
मधुरेश नारायण
.........
प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का पता - सिद्धेश सदन", द्वारिकापुरी रोड नं:02,पोस्ट :बीएचसी, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना:800026
प्रस्तोता का मोबाइल -:92347 60365 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - : sidheshwarpoet.art@gmail.com
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Thursday, 14 May 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा 13.5.2020 को आयोजित" अंतरजाल(इंटरनेट) कथा पाठ और चर्चा सम्पन्न

सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं  के चित्र उकेरकर एक जरूरी सवाल उठाती है कहानी

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पटन्। 13 /05/2020.  हर दिन साहित्य चर्चा को लेकर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आयोजित" हेलो फेसबुक साहित्य प्रभात" के तहत आज आन लाइन वरिष्ठ कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी, जयंत और युवा कथाकार संजीव कुमार कथा द्वारा पाठ किया गया। 

कहानी पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए, मुख्य अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि   - "समकालीन कहानी समयगत सच्चाइयों का आईना है। आज की कहानी सामाजिक विसंगतियों-विद्रूपताओं  के चित्र उकेरकर एक जरूरी सवाल उठाती है और वह प्रश्न पाठकीय संवेदना जगाकर अंतर्मंथन के लिए विवश करता है। जयंत की कहानी 'पहचान' जहाँ बालमनोविज्ञान के जीवंत चित्र उकेरती है, वहीं संजीव कुमार की किस्सागोई भी संभावना जगाती है।" उन्होंने इस विधा पर सार्थक विमर्श के आयोजन पर बल देते हुए इस हेतु संयोजक सिद्धेश्वर की इस कार्य हेतु सराहना की। 

उन्होंने युवा लेखिका मीना कुमारी परिहार और विनोद प्रसाद द्वारा कहानी विधा पर पूछे गए सवालों का सारगर्भित विचार भी प्रस्तुत किया।       
संचालन के क्रम में संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि - "हिंदी साहित्य में लघुकथा के बाद, आज भी कहानी सर्वाधिक पठनीय विधा बनकर उभरी है जो समय-संदर्भित भी दिखाई पड़ती है। सामाजिक परिवर्तन में प्रेरक और जीवन की तल्ख सच्चायों को आईना दिखलाने वाली कहानियों की अहम भूमिका है। और आज भी ऐसी कहानियों की ही प्रासंगिकता है। 

एक घंटे की इस साहित्य संगोष्ठी के आयोजन में कथाकार जयंत से संयोजक सिद्धेश्वर ने संक्षिप्त भेंटवार्ता भी लिया। उन्होंने भेंटवार्ता के दौरान कहा कि - "हिंदी साहित्य में कहानी प्राचीनतम विधाओं में से एक है। यह विधा सभी  समय सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। ऐसा इसलिए की कविता और अन्य विधाओं की तुलना में कहानी को पढ़ना समझना सरल होता है।"

जिस तरह से एक स्त्री अपने संतान को पालती है साहित्यकार अपनी रचना को अपने हृदय में पालता है और समय आने पर उसे कागज पर उकेराता है।

कहानी के शीर्षक 'पहचान' से मैंने आरंभ से ही पाठकों में उत्सुकता के तत्व रोपण का प्रयास किया है -ऐसा कहना था कहानी के लेखक का कहानी के अंत में यह यह बात सामने आती है कि बच्चे अपने पंछियों को पहचान नहीं पाते। 

सजीव (lलाइव) चर्चा के दौरान ऋचा वर्मा, मधुरेश नारायण, विनोद प्रसाद, अनिता, गोरखनाथ मस्ताना, मीना कुमारी परिहार, पुष्पा जमुआर, पुष्प रंजन, आदि की सहभागिता भी रही। 
.........

प्रस्तुति : सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय -अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /अवसर प्रकाशन
प्रस्तोता का पता - द्वारिकापुरी रोड नं:02,पोस्ट :बीएचसी, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना :800026)बिहार)
प्रस्तोता का ईमेल आईडी -:sldheshwarpoet.art@gmail.com
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राष्ट्रीय संस्था "महिला काव्य मंच" बिहार प्रांत की मासिक काव्य - गोष्ठी (आभासी) दिनांक 10-5-2020 को संपन्न

जहां गयी आवाज तो देदो

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अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक गोष्ठी आयोजित करने वाली राष्ट्रीय संस्था "महिला काव्य मंच" बिहार प्रांत  की मासिक काव्य - गोष्ठी दिनांक 10-5-2020 को 3 बजे से प्रारंभ हो कर 6 बजे तक बिहार अध्यक्ष डॉ उषा किरण श्रीवास्तव, उपाध्यक्ष डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, सचिव डॉ सुधा सिंहा सावी , पटना जिलाध्यक्ष डॉ मीना परिहार बेतिया की डॉ शिप्रा मिश्रा, डॉ अणिमा, नूतन सिंहा  डॉ संगीता  आदि कवयित्रियों की उपस्थिति एवंआन लाइन काव्य पाठ  से आयोजन सार्थक हुआ   बिहार के विभिन्न जिलों कीअध्यक्ष एवं सदस्यों ने बढ़ चढ कर भाग लिया! सुखद संयोग कल मातृदिवस रहने के कारण अधिकांश कवयित्रियों के काव्य पाठ की केन्द्र बिंदु माँ ही रही। सबों ने विभिन्न रूपों में "माँ " को अपनी भावनाएँ समर्पित की!अध्यक्ष डॉ उषा किरण जी,उपाध्यक्ष डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव एवं सचिव डॉ सुधा सिंहा सावी की उपस्थिति एवं संगीता जी के कुशल संचालन में सम्पन्न की गई!


पढ़ी गई रचनाओं में से कुछ की झलक प्रस्तुत है - 

अध्यक्ष ऊषा किरण ने माँ  की विविध रूप को दिखाया -
ये मां तुम क्या कहां नहीं हो,
तुम प्रकृति की हरियाली हो
बच्चों के होंठों की लाली  हो

उपाध्यक्ष डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव ने माँ को अप्रतिम भगवान् बताया -
तेरी ममता का प्रतिदान नहीं
तुझ जैसा तो भगवान नहीं
  
सचिव डॉ. सुधा सिन्हा ने अपनी दिवंगत माँ को बुलाना चाहा - 
जहां गयी आवाज तो देदो
अपनी एक झलक दिखला दो,
समझाना मुश्किल आंखों को,
रोक न सकूं अश्रुधार को।

इस कार्यक्रम के आल्योजन में महासचि डॉ. नीलिमा वर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

......
रपट की प्रस्तुति - डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव / डॉ. सुधा सिन्हा
प्रथम प्रस्तोता का ईमेल आईडी - 
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी -  editorbejodindia@gmail.com


Wednesday, 13 May 2020

सिद्धेश्वर का डायरीनामा / साहित्य प्रभात नामक आभासी गोष्ठी 10.5.2020 को संपन्न

इस लॉक डाउन की अवधि में रिश्तों को जीते जाना है

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साहित्य प्रभात का आरंभ करते हुए  उपरोक्त उद्गार  समिति के अध्यक्ष और संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा।  मातृत्व दिवस  के अवसर पर  ऑनलाइन  दैनिक गोष्ठी  के उद्घाटन के तहत  मातृदिवस से संदर्भित  कविता, गीत  और लघुकथा  का पाठ, देश भर के साहित्यकारों ने  किया ! मुख्य अतिथि   भगवती प्रसाद द्विवेदी ने  मातृ दिवस पर अपनो एक भावपूर्ण लघुकथा का पाठ किया  और कहा कि  - "अपनी तरह का  यह अनोखा आयोजन है, जो गृहबंदी में भी साहित्य की ज्योति जलाए रखने का  सार्थक प्रयास कर रहे हैं सिद्धेश्वर जी।

कवि गोष्ठी में पढ़ी गई कुछ कविताओं का अंश:
आस्था  दीपाली  (नई दिल्ली) का कोरोना गीत इस प्रकार था - 
प्रतिकूल समय आया है ये , संयम से साथ निभाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
**हर गली उदास है पड़ी हुई, हर दरवाज़ा भी बंद हुआ
मानव मानव से दूर खड़ा, अब खुशी का देखो रंग उड़ा
इस लॉक डाउन की अवधि में रिश्तों को जीते जाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
**ये अकथ परिश्रम करने वाले मीलों पैदल चलते हैं
संघर्ष ही जीवन है जग में, ये हममें साहस भरते हैं
इस गहन अंधेरी रात में अब, स्वर्णिम सा भोर उगाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है
 **अब वक्त आ गया हे मानव, कुछ अपना भी मूल्यांकन कर
जिस अहंकार में चूर है तू , कुछ उसका भी निवारण कर
जो चला था चाँद पे बसने को, अब उसको राह दिखाना है
कोरोना से ये जंग हमे हिम्मत से लड़ते जाना है

पुष्पा "स्वाती"-
उजाले यूं उनींदी आंख से देखे नहीं जाते,
दिवाकर को नमन शैया से यूं भेजे नहीं जाते,
जो खोला कोष दाता ने,उसे लाने स्वयं जाएं,
हैं ये इनाम" स्वाति"औरों से मंगवाए नहीं जाते

राकेश कुमार मिश्रा -
हम कहां चांद पे जाने को गजल कहते हैं
अपना दुख दर्द भुलाने को गजल कहते हैं
साथ बीते हुए लम्हों को भुलाया कैसे
बस यही याद दिलाने को गजल कहते हैं
जाने किस बात पर रूठे हैं खुदा ही जाने
हम उन्हें यार मनाने को गजल कहते हैं
महफिलें खत्म हुई यारों ने छुड़ाया दामन
अपनी तन्हाई मिटाने को गजल कहते हैं
फूल कुम्हला गए कलियों का न पूछो 'राकेश'
खाक सेहरा* में उड़ाने को गजल कहते हैं।

पुष्प रंजन कुमार -
रहीम करता है पैदा
या राम जन्म देता है
धूल में मिल जाता है कोई
और कोई धुआं हो जाता है
बरखुदार, लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर काम करता है।
**जबह करता है कोई मेरा
या कोई तेरा हत्या करता है
बचाने ना खुदा आता है
ना भगवान रक्षा करता है
बरखुदार, लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर रहता  है ।
**मैं साधना करता हूं
तुम अजान पढ़ता है
ना तेरा सुनता है
नहीं मेरा बोलता है
बरखुदार , लगता है
मेरा ईश्वर और तेरा खुदा
मिलजुलकर काम करता है।
मेरा लहू निकलता है
तेरा खून बहता है
 मैं जिंदा नहीं रह पाता 
और तू भी मर जाता है
बरखुदार , लगता है
मेरा चाकू और तेरा खंजर
मिलजुलकर वार करता है ।

ऋचा वर्मा -
एक मां हूँ मैं,
अपने बच्चों के लिए, कोमल भावनाएं रखतीं हूँ।
दुनिया की सारी खुशियां,
निछावर करना चाहती हूँ। 
चाहतीं हूँ.. मेरे बच्चे... 
तू जिन राहों से गुजरे, 
फूल बिछे हों,उन राहों पर।
पर मेरे बच्चे... 
जान ले कई बार,
यह जिंदगी फूलों की सेज है,
तो कई बार कांटों का ताज भी।
मां के आंचल की छांव,
और पिता के सरपरस्ती के बाहर, 
कभी - कभी, यह दुनिया पेश आएगी,
बहुत क्रुरता से, तुम्हारे साथ।
इसलिए दिल मजबूत कर लेती हूँ.. 
जब कभी तुम्हारे कदम लड़खड़ाते हुए देखती हूँ,
जबरन हाथों को रोक लेती हूँ,
तुम्हें पकड़ने से... 
जानती हूँ, एक दिन लड़खड़ाते - लड़खड़ाते,
तुम्हारे कदम संभल जाएंगे।
आज तो बढ़ कर पकड़ लूं तुम्हे
लेकिन तुम्हे तो रहना है,
इस दुनिया में.. मेरे बाद.., 
जब मैं न होऊंगी तो,
फिर कौन संभालेगा तुम्हे,
यही सोचकर रोक लेती हूँ, खुद को।
एक मां हूँ मैं
चाहतीं हूँ तुम्हे मजबूत देखना.. 
.. इतना मजबूत कि, कल को जब मेरे कदम लड़खड़ाएं,
तो उन्हें संभालने के लि‍ए, तुम्हारे हाथ आगे आएं

सिद्धेश्वर - 
 प्रकृति  की  अनुपम  सृष्टि  है  मां ! 
  संसार   की   दिव्य - दृष्टि   हैं  मां ।। 
  मां है तो  जीवन, कितना अनमोल है।। 
  मां  के आंचल में समाया भूगोल है।। 
  मां  की  गोद  में  पनपता  है  प्यार । 
  दूजा  कौन  दे  सकता  है  ऐसा दुलार। 
  ईश्वर  की  आराधना और भक्ति है मां ।
  लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की शक्ति है मां!! 
   मां  की  ममता  का  नहीं  कोई  मोल ।
    नाप लो  आकाश  या  फिर  भूगोल ।। 
    मां के बिना जीवन का सफर है अधूरा।.   
    मां  की  छांव में हर ख्वाब होता है पूरा।।.     
     देवलोक से उतरी हुई प्रतिमूर्ति हैं मां ।
   धर्मग्रंथ, साहित्य की जीवंत कृति है मां।।.        
    
भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा किसाहित्य की विविध विधाओं की मार्फत माँ की बहुआयामी छवियां उकेरकर उन्हें नमन करने का यह आयोजन अविस्मरणीय है जिसमें 
रचनाकारों ने गहरी संवेदना जगाई।।
...

रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर 
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का आईडी - editorbejdondia@gmail.com














Sunday, 10 May 2020

भोजपुरी और हिंदी के दिवंगत लेखक कृष्णानंद / लेखक - जितेन्द्र कुमार

भोजपुरी और हिंदी के लेखक कृष्णानंद कृष्ण 27.4.2020 को सिधारे

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कृष्णानंद कृष्ण 


कृष्णानंद कृष्ण जी हिंदी पत्रिका"पुनः"के संपादक थे।पुनः समकालीन कथा चेतना की अनियतकालीन पत्रिका रही है। हिंदी अँग्रेजी और भोजपुरी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी।हिंदी भोजपुरी के कई साहित्य रूपों में उन्होंने सृजन किया और साहित्य को समृद्ध किया।शरीर में सोडियम की कमी से वे पिछले कई सालों से जूझ रहे थे।कुछ महीनों से वे बेंगलुरू में बेटे के पास रहकर इलाज करा रहे थे। 27अप्रैल,2020 को 72 वर्ष 9 महीना 25 दिन की उम्र में उनका निधन बेंगलुरू में हो गया। भोजपुरी में उनके  पाँच कहानी-संग्रह हैं---
(1) एह देश में, (2) रावन अबहीं मरल नइखे, (3) गाँव बहुते गरम बा, (4) हादसा, (5) एक सही निर्णय

कृष्णानंद कृष्ण एक अच्छे शायर और कवि थे । भोजपुरी में उन्होंने ग़ज़लें और सॉनेट लिखे। उनका ग़ज़ल-संग्रह है:नया सूरज चढ़ल जाता। 51 सॉनेटों का संग्रह है: आपन गाँव भेंटाते नइखे।

भोजपुरी साहित्य के वे चर्चित आलोचक थे। भोजपुरी आलोचना की उनकी उल्लेखनीय किताबें हैं:(1) भोजपुरी कहानी:विकास आ परम्परा, (2) हिंदी लघुकथा:स्वरूप और दिशा,।

इसके अतिरिक्त संपादित कृतियाँ हैं: (1) भोजपुरी कहानी,(2) समकालीन भोजपुरी कहानियाँ, (3) प्रतिनिधि कहानी भोजपुरी के,(4) इसी दिन के लिए, (5)लघुकथा:सृजन और मूल्यांकन (6) शताब्दी शिखर की हिंदी लघुकथाएँ (7) एक मुट्ठी लाई,(8) एकइसवीं सदी आ भोजपुरी,।उन्होंने आनंद संधिदूत और भाष्कर जी के साथ मिलकर"भोजपुरी के अस्मिता चिंतन"का संपादन किया।

वे भोजपुरी साहित्य के ऐक्टिविस्ट साहित्यकार थे।वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन के पूर्व महासचिव थे।

उनका आशियाना पथ संख्या-8,अशोक नगर, कंकड़बाग कॉलोनी, पटना-20 में था। शायद उनके दो पुत्र और एक सुपुत्री हैं। तीनों व्यवस्थित हैं। उनकी पत्नी अभी हैं।

कंकड़बाग स्थित आवास पर मैं उनसे कई बार मिला था।अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन के विलासपुर और जमशेदपुर अधिवेशन में एवं कार्यकारिणी की बैठकों में उनसे मुलाकात होती थी।वे रिटायर्ड सहायक अभियंत्रण अभियंता थे। उनका जन्म 2 जुलाई,1947 को भोजपुर जिला के चाँदी गाँव (नरहीं चाँदी) में हुआ था।

उन्होंने भोजपुरी साहित्य की अप्रतिम सेवा की। उनके निधन से भोजपुरी और हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है।इधर भोजपुरी के कई साहित्यकार लगातार मंच छोड़ते जा रहे हैं:पाण्डेय कपिल, गीतकार अनिरुद्ध, प्रो ब्रजकिशोर, कथाकार बरमेश्वर सिंह, कवि कथाकार संपादक जगन्नाथ जी, अक्षयवर दीक्षित जी सभी थोड़े समय में दिवंगत हो गए।

कृष्णानंद कृष्ण जी की स्मृति को नमन।
...................

लेखक - जितेन्द्र कुमार
लेखक का ईमेल आईडी -  jitendrakumarara46@gmail.com
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इस लेख के लेखक - जितेंद्र कुमार


Sunday, 3 May 2020

जनगीतकार नचिकेता) / लेखक-जितेन्द्र कुमार

साहित्याटन

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साहित्यकार नचिकेता


23 अप्रैल,2017. कल वरिष्ठ जनगीतकार नचिकेता से सेलफोन पर बात हुई है। वे मुजफ्फरपुर में हैं, गीतकार डॉ यशोधरा राठौर के किसी घरेलू कार्यक्रम में।शाम तक पटना लौट आयेंगे। 23अप्रैल को पटना आवास पर मुलाकात हो सकती है।उन्होंने कहा कि पटना जंक्शन पहुँचकर फोन से सूचित कर दीजिए, वैसे बाहर जाने का प्रोग्राम नहीं है।संभव हो तो बहादुर पुर कॉलोनी के लिए ऑटो पकड़कर भूतनाथ रोड मोड़ आ जाइए, वहाँ मैं आ जाऊँगा।भूतनाथ मोड़ से दूसरा ऑटो पकड़ना होगा।अच्छा होगा भूतनाथ रोड मोड़ में मेरा इंतजार कीजिए।


मेरी जानकारी में।वरिष्ठ जनगीतकार नचिकेता के अबतक19गीत-संग्रह प्रकाशित हैं।1973में उनका पहला गीत-संग्रह 'आदमकद खबरें' प्रकाशित हुआ था।इसके अतिरिक्त एक ग़ज़ल-संग्रह 'आइना दरका हुआ' और आलोचना की दो पुस्तकें--'गीत रचना की नयी जमीन' और 'कोहरे में सच 'प्रकाशित हैं।' कोहरे में सच 'संपादित पुस्तक है जिसमें नचिकेता के संपादकीय के अलावे श्रीधर मिश्र, सतीशराज पुष्करणा, अमित कुमार और नचिकेता के एक-एक आलेख संकलित हैं।लेकिन इतने विपुल और स्तरीय लेखन के बाद भी लेखक संगठन के आलोचकों ने उन्हें उपेक्षित रखा।30-31मार्च को फणिश्वरनाथ रेणु भवन के सभागार में राजभाषा परिषद् द्वारा आयोजित पुरस्कार और सम्मान समारोह के अवसर पर काव्य-पाठ में नचिकेता के जनगीतों की श्रोताओं ने खूब सराहना की। उस अवसर पर पढ़ा गया एक जनगीत----
         डरो नहीं
       -------------
झरकी पेड़ों की डालें हैं
                  डरो नहीं
अच्छे दिन आनेवाले हैं
                 डरो नहीं
भेद समझना होगा इस अँधियारे का
महँगाई के बरस रहे अँगारे का
काले धन के मुँह काले हैं
                   .     .      डरो नहीं
खेल सियासत खेल रही कितना अच्छा
खेल नहीं पाता डर के मारे बच्चा
उगे जीभ पर गर छाले हैं
                                डरो नहीं
दूध पीला नागों को पाला पोसा क्यों
सपने तो सपने हैं, करें भरोसा क्यों
फैले मकड़ी के जाले हैं
                                 डरो नहीं
सारे गाँव स्वच्छ और सुंदर होंगे
न्युयार्क जैसे सब महानगर होंगे
अगर अभी गंदे नाले हैं
                                 डरो नहीं

उपरोक्त जनगीत में प्रतिरोध और तंज की जो धार है वो किसी समकालीन कविता से कम नहीं है।ऐसा नहीं कि यह एकलौता जनगीत है इस तरह की अभिव्यंजना का, बल्कि ऐसे जनगीतों की भरमार है नचिकेता के यहाँ।

तो 23अप्रैल है; वीर कुँवर सिंह और बाबा साहेब भीमराव अंबेदकर की जयंती है।सुबह शांत है। कोयल कूक रही है। मैं चाय पीते हुए मन ही मन पटना जाकर नचिकेता जी से मिलने की सोच रहा हूँ।अमिताभ दिल्ली गये हैं।रहते तो ट्रेन का पोजिसन बताते और स्टेशन से टिकट ला देते। मैं स्टेशन जाता हूँ।पूर्वा एक्सप्रेस तीन घंटे बिलंब से चल रही है। संभावित समय नौ बजे है।प्रभु जी जब से रेलमंत्री बने हैं, रेलगाड़ियाँ समय पर चलना भूल गई हैं।

पूर्वा साढ़े नौ बजे आरा पहुँचती है। सवा दस बजे मैं पटना जंक्शन पहुँचता हूँ। निकास वाले हॉल के एक कोने में भीड़ नहीं है।वहाँ खड़ा होकर मैं नचिकेता जी को फोन लगाने की कोशिश करता हूँ।रिंग हो रहा है, फोन कोई उठा नहीं रहा है। दस पन्द्रह मिनट की कोशिश के बाद मैं तय करता हूँ कि भूतनाथ रोड तक ऑटो से चलूँ, आगे कि आगे देखूँगा।

स्टेशन परिसर से बाहर होता हूँ।सामने महावीर मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ से फूलमाला वाले, लड्डूवाले-पेंड़ावाले से लेकर पुजारी-पंडा लोग अतिशय प्रसन्न हैं।रेल की भाप इंजन धरोहर के रूप में नुमाइस के लिए रखी गयी है।रेल इंजन और महावीर मंदिर के बीच सड़क पर भिखारियों की भीड़ पूँजीवादी चेहरे पर काले मसा की तरह शोभायमान है।पुजारी के अनुसार ये सब पूर्व जन्म के पापों को भोग रहे हैं।इ समें व्यवस्था क्या करेगी?70साल बीत जाये या देश स्वतंत्रता की शतवार्षिकी क्यों न मना ले।

भाप इंजन के सामने गोलाकार नेहरू पार्क है जिसमें नेहरू शांति कपोत उड़ाते हुए पटना जंक्शन की ओर देख रहे हैं।शीघ्र ही नेहरू पार्क जीपीओ गोलंबर की फ्लाई ओवर को चिरैंयाटांड़ ओवरब्रिज से जोड़ने वाले ऊपरिमार्ग के नीचे आने वाला है। इंजीनियर सोच रहे हैं कि कैसे नेहरू को इस उत्तर आधुनिक उपरि पुल मार्ग से बचाया जाये।नेहरू पार्क के बायें-दाँयें फ्लाईओवर मार्ग बन गया है, बीच में बाकी है सिर्फ।कार्यस्थल लोहे के चादरों से घिरा है।चतुर्दिक धूल गर्दा कचरा बिखरा पड़ा है।वहीं ऑटो पर सवार होता हूँ, भूतनाथ मोड़ के लिए।

चिरैंयाँटांड़ ओवरब्रिज पारकर ऑटो कंकड़मार्ग मेन रोड पर पूरबदिशा में भाग रहा है।अजीब अफरातफरी, अपरिचय और भागमभाग का संसार है। भूतनाथ रोड आ गया है।ऑटो से उतर जाता हूँ। नचिकेता जी को फोन पर संपर्क करने की कोशिश करता हूँ। मोबाइल व्यस्त है या स्वीच ऑफ है।क्या करूँ?लौट जाऊँ?पटना में बहुत थोड़े साहित्यकार हैं जो आपस में मिलते जुलते हैं। हारी-बीमारी में एक दूसरे को देखने तक नहीं जाते। मैं आगे बढ़ने का निश्चय करता हूँ।भूतनाथ रोड से दूसरा ऑटो पकड़ता हूँ आनंद बिहार कॉलोनी के लिए। ऑटो चालक को मौर्या ग्लासेज बताता हूँ।वो नहीं जानता है। ऑटोवाला महावीर मंदिर सह दुर्गा मंदिर के पास उतार देता है, यहीं से पता कीजिए। बिहार में देवी देवताओं के बीच आजकल सामंजस्य बढ़ रहा है। महावीर मंदिर है तो वहाँ दुर्गा जी काली जी शंकर जी सब सह अस्तित्व में रहने को तैयार हो जाते है। पुजारी जैसा चाहते हैं वैसे रहना पड़ता है देवी देवताओं को। मंदिर के पास एकमात्र रिक्शा खड़ा है। नचिकेता जी का मोबाइल व्यस्त है।वे नियमित लेखक हैं। प्रतिदिन गीत लिखते हैं।बहुत लोग एतवार के एतवार कविता लिखते हैं, वे वैसा नहीं हैं जनगीत लिखने में मस्त हो गये होंगे। किसी तरह का व्यवधान गीत की छंद-मात्रा बिगाड़ देगा। ग्यारह बज गये हैं।अप्रैल की धूप अप्रैल की धूप की तरह है।

रिक्शावाला से मौर्या ग्लासेज के बारे में बताता हूँ। संयोग ठीक है। उसी के आसपास वह रहता है।बीस रुपये लेगा।कोई बात नहीं।रिक्शावाला एक दो मंजिला मकान के पास रिक्शा रोकता है, कहता है यही मौर्या ग्लासेज है।नाम बड़े और दर्शन छोटे।सड़क पर अप्रैल में पानी जमा है। अविकसित इलाका है।सामने दक्षिण की ओर बाई पास सड़क दिखती है।यहीं से आनंद बिहार कॉलोनी आरंभ होती है।नचिकेता जी का आवास मौर्या ग्लासेज के दक्षिण है और अगर सचमुच यही मौर्या ग्लासेज भवन है तो यहीं नचिकेता जी भी रहते होंगे।मौर्या ग्लासेज की एक छोटी सी दुकान संचालक से पूछता हूँ--इधर लेखक टाइप का कोई आदमी रहता है।वह थोड़ा दिमाग पर जोर लगाता है--लेखक टाइप का आदमी!हाँ भई, बड़े लेखक हैं।वह आदमी एक मकान के परिसर में आम का छोटा सा पेड़ दिखाता है, वहाँ पूछिए।वहाँ पूछता हूँ। वो बगल के मकान की ओर इशारा करता है। मैं लोहे के लघु गेट के पास जाता हूँ।एक विद्यार्थी सिर में हेलमेट डाले गेट से बाहर आना चाहता है।यहाँ कोई लेखक रहते हैं?हाँ।क्या नाम है?नचिकेता।नचिकेता!हैं क्या घर में?वो विद्यार्थी अंदर जाकर सूचित करता है। सामने के कमरे की खिड़की से नचिकेता जी बनियान और लुंगी में दिखते हैं। मेरा मन बहुत खुश होता है। नचिकेता जी इतनी आसानी से मिल जायेंगे, विश्वास नहीं हो रहा है। उनको आश्चर्य हो रहा है कि मैंने उनका घर इतनी आसानी से खोज लिया जबकि घर के बाहर कोई नेम प्लेट वगैरह नहीं।वे स्नेहपूर्वक अपने कमरे में ले जाते हैं।

सामान्य शिष्टाचार के बाद गीत नवगीत जनगीत की लंबी परंपरा की बात वे करते रहे।शंकर शैलेन्द्र, केदारनाथ अग्रवाल, कैलाश गौतम से लेकर शांति सुमन के गीतों की चर्चा हुई। गीतों के संदर्भ में वरिष्ठ गीतकार नचिकेता जी का अध्ययन व्यापक और गहरा है। ग्रामीण संस्कृति पर नचिकेता जी की गहरी पकड़ है।लोक जीवन के शब्दों ही नहीं बल्कि क्रियाओं प्रक्रियाओं की महीन समझ रखते हैं वे।वे लेखन के साथ अध्ययन भी करते हैं।वे बेहिचक बताते हैं कि अँग्रेजी पर उनकी पकड़ मजबूत नहीं है इसलिए अनुवादों के सहारे वे विदेशी लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।वे कहते हैं कि गीतों/जनगीतों की परंपरा वेदों उपनिषदों से भी पुरानी है।गीत जनता की कंठ में बसते हैं, एक पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को पास ऑन किया। गीतों का उद् भव मनुष्य के श्रम से सीधा जुड़ा है। श्रम करता आदमी गुनगुनाता है।सुख-दुख, युद्ध और प्रतिरोध की अभिव्यक्ति वह गीत गाकर करता है।नचिकेता जी ने जॉर्ज थाम्सन की किताब' मार्क्सिज्म एंड पोएट्री ',क्रिस्टोफर कॉडवेल की पुस्तक "इल्युजन एवं पोएट्री"अर्न्स फिशर की मशहूर पुस्तक"नेसेसिटी ऑफ आर्ट"का अनुवाद पढ़ा है।उन्होंने कहा कि"मदर"में रूसी उपन्यासकार गोर्की ने गीत के उत्स पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। नचिकेता गीत रचना की जमीन तलाशते रहे हैं।

वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय के बारे में उनकी टिप्पणी है कि वे गीतों की आलोचना के लिए गीतकार के अनुसार आलोचना के प्रतिमान बदलते रहते हैं।पाण्डेय जी शंकर शैलेन्द्र के जनगीतों को आंदोलनधर्मी बताते हैं, नचिकेता के गीतों में करूणा और ममता खोजते हैं, और शांति सुमन के गीतों में उनको लोक चेतना नयी काया में अवतरित दिखती है।आखिर जनगीत का प्रतिमान क्या है--लोकचेतना का अवतरण या आंदोलनधर्मिता या करुणा और ममता का उद्रेक।

बातचीत को मैं थोड़ा घरेलू मोड़ देता हूँजिसमें यह अकादमिक न हो जाये।माता पिता के बारे में बताते हैं कि पिता रामचंद्र दिवाकर1978में गुजर गये, माँ1992में गईं।उनके दो बेटे और दो बेटियाँ हैं।सभी विवाहित।सब के नाम के साथ उपनाम किरण लगा है--प्रत्युष किरण, अमिताभ किरण, उषा किरण और स्मृति किरण।बिहार में जाति सूचक उपनाम रखने की रूढ़ि है।चुनाव लड़ना हो तो और जरूरी है। संख्या के आधार पर वर्चस्वशाली जाति से आते हैं तो सोना में सुहागा। नचिकेता जी का परिवार जातिसूचक केंचुल झाड़ चुका है।इस बीच मिठाई, नमकीन, चाय, पानी आता रहता है।

सन् 2000में नचिकेता जी के हार्ट की ओपेन सर्जरी हुई। तब मैं व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं था। जानकारी बाद में मिली।बाद में कई बार हमलोग मिल चुके हैं।2015में उनके दोनों घुटनों का सफल आपरेशन हुआ।मधुकर सिंह सम्मान समारोह में वे आरा नागरी प्रचारिणी सभागार में आये थे।कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर के साथ।मैं मंच संचालन में व्यस्त था। अब वे घुटने की परेशानी से मुक्त हैं।हार्ट की सर्जरी हो या घुटनों का आपरेशन, बहुत कम रचनाकार मित्र हालचाल पूछने आवास तक आये। फोन पर समाचार लेने वाले भी कम ही रहे।

नचिकेता का ही गीत है---"कहें किससे"
मेरे घर में
घुस आया बाजार, कहें किससे
पत्नी की
फरमाईश कभी नहीं पूरी होती
बच्चों की जिद मेरे मन की
मजबूरी होती
हुए सभी रिश्ते--
नाते व्यापार, कहें किससे

विद्वान आलोचक ब्रजेश पाण्डेय ने गीत-संग्रह"तुम्हीं तो हो"की भूमिका में लिखा है----
"विद्यापति(कामिनी करये सनाने)और रीतिकाल के अधिकांश कवियों में लौकिक प्रेम के पर्याप्त और उच्चस्तरीय उदाहरण प्राप्त होते हैं।छायावाद की विशेषता यह है कि उसने नये सिरे से लौकिक प्रेम की आधुनिक भावभूमि तैयार की।उस पर उत्तर छायावाद के कवियों ने प्रेम काव्य की जो इमारतें तैयार कीं उनमें रहस्य की भी कोई विवशता नहीं रही।नायक-नायिका के अन्य पुरुष की विवशता भी कमजोर पड़ी और सीधे उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष के परस्पर प्रेम को प्रवेश मिल गया।.....उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष की प्रधानता होते ही बाह्य अलंकार शृंगार'हटा और आंतरिक भाव'प्रेम'स्वत:कवियों द्वारा गृहित हो गया।

आधुनिक प्रेम काव्य में केदारनाथ अग्रवाल की परंपरा में सर्वश्रेष्ठ गीतकार कवि नचिकेता ने हिन्दी प्रेम काव्य में इस मध्यम पुरुषीय अपनेपन को उल्लेखनीय विस्तार, गहराई और उच्चता दी है।"

नचिकेता जी ने तीन पुस्तकें मुझे भेंट स्वरूप दीं--रंग न खोने दें(2007),तुम्हीं तो हो(2015),कुहरे में सच(2014).कुहरे में सच में श्रीधर मिश्र का28पृष्ठों का आलेख:गीत-पुरुष:नचिकेता, उल्लेखनीय है।इसी तरह"तुम्हीं तो हो"की भूमिका15पृष्ठों की ब्रजेश पाण्डेय की काबिले तारीफ हीनहीं है, नचिकेता के गीतों को समझने में पाठक को मदद भी करती है।

डेढ़ दो घंटे बातचीत के बाद मैं नचिकेता से बिदा लेता हूँ तो उनके गीत'हम न रहेंगे'की पंक्तियाँ याद आ रही हैं----
       हम न रहेंगे
       तब भी चिड़िया चहकेगी
       हम न रहेंगे
        तब भी हरियाली होगी
        हर सुबह-शाम चेहरे पर
        लाली होगी
        औ'ताजा जुते
        खेत की मिट्टी महकेगी
       हम न रहेंगे
       तब भी कोंपल फूटेगी
       जनगण के होंठों की
       खामोशी टूटेगी
       हर चूल्हा के अंदर
      कुछ लकड़ी दहकेगी.
........

लेखक - जितेन्द्र कुमार 
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लेखक - जितेन्द्र कुमार