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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 17 January 2019

कैलाश झा किंकर की दिल्ली डायरी भाग-4 दिनांक 12.01.2019

मेरी दिल्ली डायरी -4

12 जनवरी 2019 को मेरे जन्मदिन पर मित्रों और शुभचिंतकों की बधाइयाँ और शुभकामनाएँ मुझे आह्लादित कर रही थीं ।आज पहली बार अपने जन्मदिन पर किसी बड़े साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने जा रहा हूँ।यह सुखद संयोग ग़ज़ल-कुम्भ -2019 ने लाया है।

ग़ज़ल-कुम्भ-2019 में भाग लेने के लिए अवधेश्वर प्रसाद सिंह और शिवकुमार सुमन जी के साथ ईस्ट एण्ड क्लब,दिल्ली केब की गाड़ी से ससमय पहुँच कर मैंने चारों तरफ नज़रें दौड़ाई।हर तरफ तैयारी जोरों पर थीं।कहीं भोजनादि की व्यवस्था, कहीं चाय की व्यवस्था,कहीं ठहराव की व्यवस्था तो कहीं मंच व्यवस्था में लोग लगे थे।खुशनुमा माहौल में भोजनादि के बाद ग़ज़ल-कुम्भ प्रारम्भ हुआ।एक मोटा-ताजा मोमबत्ती जलाकर अतिथियों ने  कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।अंजुमन -फ़रोग़े उर्दू ,दिल्ली के अध्यक्ष मोईन अख़्तर अंसारी,सचिव दीक्षित दनकौरी और बसंत चौधरी फाउण्डेशन ,नेपाल के निदेशक बसंत चौधरी,अशोक रावत,सलिल तिवारी ,बृजेश तरुवर,संतोष सिंह समेत लगभग दो सौ ग़ज़लकारों से मिलकर बेहद खुशी मिली।उत्तम व्यवस्थाओं के बीच ससमय ग़ज़ल-कुम्भ शुरू हुआ जो 13 जनवरी की सुबह आठ बजे तक सम्पन्न हुआ।लगभग 222 ग़ज़लकारों की ग़ज़ल सुनने का सौभाग्य एक साथ मिला।खुशी है कि टोप टेन में भी कौशिकी ग्रूप का स्थान मिला।बहन मंजुला उपाध्याय को इसके लिए बहुत बहुत बधाई।राहुल शिवाय,शिवकुमार सुमन,बाबा बैद्यनाथ झा और अवधेश्वर प्रसाद सिंह जी की प्रस्तुति भी संतोषप्रद रही।मेरी प्रस्तुति की समीक्षा तो श्रोता जानें।परन्तु अपनी बात मैंने भी कह दी,यही मेरे लिए संतोष प्रद है।

ग़ज़ल-कुम्भ-2018 में पठित ग़ज़लों का संकलन और अशोक रावत जी के ग़ज़ल संग्रह "रोशनी के ठिकाने"पुस्तक का लोकार्पण हुआ।वयोवृद्घ कवि उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम चार सत्रों में सम्पन्न हुआ।चतुर्थ सत्र में आदरणीय अवधेश्वर प्रसाद सिंह जी को संयोजक दीक्षित दनकौरी जी ने बतौर अतिथि मंच पर जगह दी।78 वर्षीय ग़ज़लकार अवधेश्वर प्रसाद सिंह रात के 02:00 बजे से सुबह 08:00 बजे तक मंचस्थ होकर सभी ग़ज़लकारों की प्रस्तुति से आनन्दित होते रहे। और मंच की गरिमा बढ़ाते रहे।

ग़ज़ल-कुम्भ प्रारंभ होने के पहले ही दीक्षित दनकौरी साहब ने हर बार की तरह घोषणा की थी-
कि हम सभी ग़ज़लकार यहाँ एक परिवार की तरह हैं।
कि सबके लिए पाँच मिनट का समय निर्धारित किया जाता है।पाँच-सात शेर की ग़ज़ल ही यहाँ पढ़ें ।
कि सीधे ग़ज़ल पढ़ें।किसी भूमिका की यहाँ ज़रूरत नहीं है।
कि आप सब की ओर से भी हम अध्यक्ष,अतिथिगण एवम् श्रोताओं का अभिनन्दन,स्वागत कर दिए।आप सिर्फ ग़ज़ल पढ़ें।

कि समय का अतिक्रमण अन्य ग़ज़लकार के लिए हिंसात्मक कार्य होगा।कोई ग़ज़ल पढ़ने में छूट गया तो मुझे अपार दुख होगा।
कि निर्धारित टी-टाईम का पालन करें।
कि भोजनादि के निर्धारित समय पर भोजन करके पुन: अपनी जगह ले लें।
कि जब कोई ग़ज़लकार अपनी प्रस्तुति दे रहा हो तो ध्यान पूर्वक सुनें और उत्साह-बर्द्धन करें
कि यह कार्यक्रम हम सभी का है।आप सब इसका हिस्सा हैं।ग़ज़लकार से ही ग़ज़ल-कुम्भ होता है शान्तिपूर्वक इसे अंजाम तक पहुँचने में सहयोग करें।

खुशी है कि अधिकांश शायरों ने दनकौरी साहब के निर्देशों का पालन भी किया ।अन्तत: सभी ग़ज़लकारों को अपनी -अपनी प्रस्तुति का मौका भी मिल गया।सभी शायरों को प्रतीक चिह्न के साथ-साथ लगभग 2100/- रूपये मूल्य की किताबों से भरा हुआ झोला भेंट की गयी।
दीक्षित दनकौरी जी के एक शेर से आज की डायरी का समापन करना चाहता हूँ-
            पसारूँ हाथ क्यों आगे किसी के
            तरीके और भी हैं खुदकुशी के ।।

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