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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 14 January 2019

लेख्य-मंजूषा की मासिक गोष्ठी 13.1.2018 को पटना में संपन्न





नया वर्ष, नयी उमंगों के साथ ठंड और जाड़े की धूप के बीच साहित्य और समाज को समर्पित और पंजीकृत संस्था "लेख्य-मंजूषा" की मासिक गोष्ठी सह काव्यपाठ का आयोजन दिनांक 13/01/2019 को अपराह्न 2 से 6 बजे संध्या तक श्री हरि-राधा अपार्टमेंट, बोरिंग रोड पटना में किया गया।

जहां "मंच की अध्यक्षता" कृष्णा सिंह,  डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह तथा विश्वनाथ वर्मा ने की तो विशिष्ट अतिथि के रूप में निलांशु रंजन मौजूद रहे। वहीं संस्था की अध्यक्ष  विभा रानी श्रीवास्तव की अनुपस्थिति एवं अनुमति से गोष्ठी की अध्यक्षता संस्था के उपाध्यक्ष श्री संजय कुमार संज ने की।

संजय ने कहा कि "दो वर्ष पूर्व 4 दिसम्बर 2016 को संस्था की औपचारिक स्थापना हुई थी और ठीक दो वर्ष के पश्चात 10 दिसम्बर 2018 को संस्था का पंजीयन भी हो गया जो समूह के लिए गौरव की बात है और इसका मुख्य श्रेय समूह की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव जी का है जो आज इस मौके पर अपरिहार्य कारणों से उपस्थित तो नहीं हो पाई हैं परन्तु अपना आशीर्वाद प्रेषित किया है।"

संस्था के द्वारा पिछले दिनों एक पद्य प्रतियोगिता आयोजित की गई थी जिसमें निलांशु रंजन जी भी एक निर्णायक थे और इन्होंनें सभी रचनाओं को बहुत बारीक़ी से परखा और सटीक समीक्षा की।

नववर्ष और संस्था के हालिया पंजीकरण की दोहरी खुशी के बीच मासिक गोष्ठी सह काव्यपाठ का आयोजन बेहद आनंदमय रहा। सभी मंचासीन अतिथियों ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने उच्चारण, व्याकरण एवं प्रस्तुतिकरण के तरीके इत्यादि पर ध्यानाकर्षित किया। संस्था के नए सदस्यों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। सदस्यों द्वारा ( प्रवासी) अस्थानीय सदस्यों की रचना भी पढ़ी गई। सभी सदस्यों ने एक से बढ़ कर एक कविता, ग़ज़ल, शेरों- शायरी से खूबसूरत समां बांधा। तालियों और वाह-वाह से महफ़िल गूंजती रही।

सदस्यों की प्रस्तुति इस प्रकार रही;

कार्यक्रम के शुरुआत में सुबोध कुमार सिन्हा ने मां को समर्पित कविता प्रस्तुत किया -
गुँथे आटे की नर्म-नर्म लोइयाँ जब-जब,
हथेलियों के बीच हो गोलियाती।

प्रेम का प्रतीक हमसे, तुम क्या पूछते रहते हो
जब की हर जुबां से, राधे-कृष्ण तुम जपते रहते हो
- सुशांत सिंह ने अपनी रचना पढ़ी।

अमृता सिन्हा ने नारी पर केंद्रित एक अच्छी रचना सुनाई कि
"आख़िर कब तक देते रहें हम
तुम्हारे सवालों के जवाब"

वीणाश्री हेम्ब्रम ने जिन्दगी की सच्चाई पर आधारित एक बेहतरीन कविता सुनाई कि
"ये जो ज़िन्दगी है बस ऐसी ही है, न किसी के आने से चलती है
न किसी के जाने से रुकती है, ये कटती है और बस कटती है।"

प्रेम और गंभीर कविताओं के बीच मधुरेश नारायण  ने एक बेहतरीन और भावुक गीत गाया तो सभी उसमें खो गये -
"हसरत भरी निगाहें उठती है बार-बार
कब से कर रहा है दिल तेरा इंतज़ार ।"

सुनील कुमार  ने महफ़िल लूटने वाली एक उम्दा ग़ज़ल तरन्नुम में प्रस्तुत की जिसके लिए मंच से दाद मिली -
ख़ुशी की चाह में हमने लिखी कई नज्में
मगर वो गीत मुहब्बत के गात नहीं पाए 
.
ग़ज़ल के दौर में मो॰ नसीम अख्तर  ने भी एक बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति दी और मंच से बेहतरीन मकता के लिए दाद भी मिला

वो आ जाएँगे राह पर आते-आते
करेंगे करम वो सितम ढाते_ढाते 
ग़ज़ब का अंधेरा अभी तक "अख्तर "
सहर हो गई दिल जलाते-जलाते।

शाईस्ता अंजुम ने अपनी प्रस्तुति दी -
वक्त गुजर गया, दूरियां बढती गई
जिन्दगी की शाम यूं ही ढलती गई

सीमा रानी ने एक भावनात्मक कविता पढी -
मैनें देखा है कुछ मासूमों को कचरा बिनते हुए।     
     
प्रभास ने कविता के माध्यम से जीवन के भटकाव को दर्शाया -
निकले थे कहीं और पहुँचे हैं कहीं,
मंज़िलों के सफ़र में हर रास्ते पर भटकना याद आता है।

बनना था मुझे भी अमृता ...
थी मुहब्बत मुझे भी साहिर से ...
इन पंक्तियों से के माध्यम से ज्योति मिश्रा ने अमृता प्रीतम  को यह कविता समर्पित की।

मीरा प्रकाश ने जिंदगी के रंगों को दर्शाती अपनी कविता का पाठ किया कि
ये जिंदगी है जनाब, कई रंग दिखाएगी।
कभी रुलाएगी, कभी हंसाएगी ।

कैंसर को मात देने वाली और मजबूत इरादों वाली रचनाकार महिमा श्री ने अपनी प्रस्तुति दी.-

इसके अतिरिक्त संस्था के प्रवासी सदस्यों अर्थात पटना से बाहर रहने वाले सदस्यों अंकिता कुलश्रेष्ठ,राजेन्द्र पुरोहित ,मीनू झा,कमला अग्रवाल ,शशि शर्मा खुशी एवं कल्पना भट्ट का पाठ भी यहां उपस्थित सदस्यों के द्वारा करवाया गया और उसका वीडियो भी बनाया गया, जो सभी सदस्यों की समानता और महत्व को दर्शाता है।

और अंत में संजय कुमार 'संज' ने अपनी एक नई और साम्यवादी कविता, 'दगा' प्रस्तुत किया कि
"रास्ता जिसे बनाने में लगे थे ऐसे ही,
न जाने कितने हाड़ मांस के टुकड़े"

सभी अतिथि कवियों ने भी अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया और सभी को अपनी शुभकामनाएं भी दीं।अतिथि में श्रीमती कृष्णा सिंह जी ने सामाजिक विषय पर आधारित एक बेहतरीन कविता सुनाई। कल्याणी कुसुम ने भी अपनी रचना सुनाई।
.
हास्यावतार नाम से प्रसिद्ध  विश्वनाथ वर्मा  ने बहुत हंसाया और माहौल को गुदगुदी से भर दिया।

मुख्य अतिथि  निलांशु रंजन  ने मुहब्बत की एक बेहतरीन  नज़्म पेश किया

कार्यक्रम का बेहतरीन मंच संचालन मो. नसीम अख़्तर ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन वीणाश्री हेम्ब्रम ने किया और इस तरह एक खुशनुमा गोष्ठी सह काव्यपाठ सम्पन्न हुआ।
.....
आलेख-  संजय कुमार संज / मो. नसीम अख्तर 
छायाचित्र- लेख्य मंजूषा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com









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