**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Tuesday, 24 July 2018

तिनका-तिनका: डॉ. शिवनारायण की हिन्दी गज़ल अंग्रेजी काव्यानुवाद के साथ (Hindi poem by Dr. Shiv Narayan with poetic translation into English)

गज़ल-1 (Poem-1)
डॉ. शिवनारायण (Dr. Shiv Narayan)


तिनका-तिनका बोझ उठाना सीख रहा है
एक  परिंदा  काम  चलाना सीख रहा है
A bird is  trying to lift straw one or two
And trying to build sort of shelter make-do

वह बच्चा जो उठता है फिर गिरता है
अपने घर तक आना-जाना  सीख रहा है
The toddler who stands up and falls down
Knows well,  for going home it’s the only clue

क्या होता है ज़ख्मों पर उंगली सहलाना
धीरे-धीरे  ज़ख़्म दबाना  सीख रहा है
What does it mean to titillate a wound?
Just press it and learn how is felt by you

कदम-कदम पर पूछ रहा है रहबर रस्ता
जैसे वह बनकर अनजाना सीख रहा है
The guide is asking the way on every step
Like it’s a path he had never been through

'शिव' क्या जाने दुनिया की चालाकी को
धूर्त समय का यह अफ़साना सीख रहा है
How ‘Shiv’ would know the crafts of the world
It’s not a sweet syrup, it’s the hardest brew.
................

गज़ल-2
डॉ. शिवनारायण 



ये  जो  दुनिया नई  नई  सी  लगे
जाने किस बात की कमी सी लगे

थोड़ी दिलकश है  थोड़ी फूलों सी
रुत मुहब्बत की मखमली सी लगे

ये जो चाहत है इस सफर के लिए
एक  भटकी   हुई   नदी   सी  लगे

सिर झुका कर न इस तरह चलिए
ये  अदा  आज   बेबसी   सी  लगे

एक ख्वाहिश भी जिन्दगी की 'शिव'
अपनी  ऑखों  में तिश्नगी  सी  लगे ।


गज़ल-3
डॉ. शिवनारायण 

वक़्त का  वर्चस्व  घटता जा रहा है
जाने क्यों ख़ुद में सिमटता जा रहा है

कौन जिम्मेदार  है  इसके  लिए जो
भाव रिश्तों का ये  गिरता  जा रहा है

लिख  रहा  है खूब तहरीर   कोई
जुल्म का बाजार  चढ़ता जा रहा है

आ गया सूरज मेरे सिर पर तभी से
मेरा  साया  मुझसे  हटता जा रहा है

सोचता हूँ ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा 'शिव'
क्या मेरे  अंदर  भी  मरता जा रहा है
………
कवि / Poet - डॉ. शिवनारायण /Dr. Shiv Narayan
कवि का लिंक / Link of the poet -यहाँ क्लिक कीजिए (Please click here)
अनुवादक / Translator- हेमन्त दास 'हिम' / Hemant Das 'Him'
कवि का परिचय- डॉ.शिवनारायण हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार हैं और बिहार में साहित्यिक गतिविधियों के प्रमुख संयोजकों में से हैं.  पिछले 68 सालों से निकल रही अत्यंत प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' के सम्पादक हैं. इन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है और वर्तमान में ये मगध विश्वविद्यालय में हिंदी विषय के प्रोफेसर हैं. 
Introduction of the poet- Dr. Shiv Naryana is a well-known poet in Hindi and has been one of the chief convener of the literary activities in Bihar. He is the editor of a highly reputed literary magazine  'Nai Dhara' which is being published since last 68 years. He has been felicitated by the President of India and is presently working as a Professor in Hindi in Magadh University.                             





No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.