तामीरे-मुहब्बत से मैं बाज न आऊँगी / तुम शहर जलाओगे मैं शहर बसाऊँगी
युवा कवि-कवयित्रियों में सिर्फ ऊर्जा ही नहीं विचारों की ताजगी भी होती हैं इसलिए जिस काव्य सम्मेलन में युवा लोग रहते हैं वहाँ श्रोताओं की भीड़ का इकट्ठा हो जाना लाज़मी है. एक ऐसी ही कवि गोष्ठी हाल ही में हुई जो यादगार बन गई. संचालन कर रहे थे डॉ. रामनाथ शोधार्थी और अध्यक्ष थे कासिम खुरशीद.
कला जागरण एवं सामयिक परिवेश की ओर से प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह के अंतर्गत कालिदास रंगालय, पटना में 29.7.2018 को एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया. युवाओं की भागीदारी सबसे अधिक रही. श्रोतागण में अच्छी संख्या में उपस्थित थे और कविताओं पर तालियाँ बजाकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे. पूरा सभागार वाहवाह और तालियों से गुंजायमान रहा. काव्य गोष्ठी के आरम्भ में दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन हुआ और फिर ममता मेहरोत्रा और समीर परिमल द्वारा सम्पादित यात्रा संस्मरण "सफर... ज़िंदगी की तलाश" का लोकार्पण किया ग्या. सभा में बिहार पुलिस एसोशिएअशन के मृत्युंजय कुमार सिंह और अभिषेक प्रकाशन के प्रकाशक भी थे.
केशव कौशिक ने तीन सुंदर छवियों से अपनी कविता की निर्मिती बताई-
तुम मेरी आभा, मेरी ज्योत्सना, मेरी सरिता हो
तुम मेरी कविता हो
युवा कवि को अपनी आवाज उठाते देख वहाँ मौजूद युवा कवयित्री नेहा नारायण सिंह ने अपनी आवाज और ज्यादा बुलंद कर दी-
अब आवाज बुलंद कर चल पड़े हैं हम
इन्हें दबाने वाला तू होता है कौन?
ऐसे माहौल में कौशिकी मिश्रा ने देश के बच्चों को पैदाईशी गरीब कहने पर अपना आक्रोश जता देना उचित समझा-
एक बच्चा बस बच्चा कहलाता है
उसकी तकदीर में गरीबी नहीं होती
डॉ. रामनाथ शोधार्थी परिंदों के नीचे उतारने का एक जादू किया-
मैंने काग़ज़ पे लिख दिया था दरख़्त
सब परिंदे उतर के बैठ गये
सुंदर सुरीले कंठ के स्वामी युवाकवि सूरज ठाकुर बिहारी ने भी प्रेम में बहुत कुछ देखा-
प्रेम खामोश एक कहानी है
प्रेम से रूह की जवानी है
नीतेश सागर ने अपनी शायरी को मयखाना बना दिया-
मैं खुली इक किताब हो जाऊँ
तू पिये तो शराब हो जाए
शराब की चर्चा होते ही अक्स समस्तीपुरी इश्क की गहराई में डूब गए-
आँख पलकों के बीच ऐसी है
जैसे दरिया हो साहिलों के बीच
सभा को इश्क के नशे में डूबता देख खुरशीद अनवर ने सब को सम्भाला और व्यक्तित्व को उठाने की बात की-
हथेली की लकीरों को मिटाकर
मैं अपना कद बढ़ाना चाहता हूँ
शादिया नाज़ ने भी प्रतिज्ञा कर डाली कि सारे जलनेवाले शहरों को बसा डालेंगी-
तामीरे-मुहब्बत से मैं बाज न आऊँगी
तुम शहर जलाओगे मैं शहर बसाऊँगी
विकास राज भी देश के लिए अपनी जान देने हेतु तत्पर दिखे-
तू ऐसी जिन्दगी देना मुझे मेरे मौला
मैं जो मर जाऊँ कफन में मेरे तिरंगा हो
लता प्रासर का कहना था कि उन पर चाहे कितनी भी नजरें टिके लेकिन उनकी बेकरारी कुछ और है-
नजरें कई टिकी थी मेरी सरगोशियों पर
बेकरार हुई मैं तेरी राह तकते तकते
अमीर हमज़ा युवा हास्यकवि हैं जिन्हेंं थोड़ा और निखरना है दहेज पर करारा व्यंग्य करते हैं-
आलिया जैसी काया हो दहेज मिले भरपूर
चाहे उसका चेहरा हो लंगूर की तरह
प्राची झा अभी किशोरावस्था में ही हैं लेकिन दिमाग इतना प्रबुद्ध है मुहब्बत की राह को बखूबी जानती हैं.
तुमसे ज्यादा प्यारी हो ऐसी कोई चाह नहीं
मुहब्बत जैसी बेतुकी शायद होगी राह नहीं
प्रियंका ने अपने पलों को आफताब बना डाला-
ख्वाबों की जानिब तराशा है जिसे
वो पल वो मंजर सब आफताब हो रहे
सुनील कुमार ने अपनी महबूबा के प्रति प्रतिबद्धता को दिखा कर खुद को सुरक्षित कर लिया-
प्यार में यार हम आपके ही रहे
रहगुजर में रहे फ़ासले ही रहे
अंत में अध्यक्श कासिम खुरशीद ने अपनी बेहतरीन गज़लों का पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
वो बेखबर हैं अभी ज़लज़लों की फितरत से
जो पेड़ कटाकर दुनिया बसाते रहते हैं.
इसके पश्चात अध्यक्ष की अनुमति से सभा का समापन हुआ.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / लता प्रासर
छायाचित्र- विनय कुमार
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