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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday 21 November 2018

घनश्याम की हिन्दी ग़ज़ल अंग्रेजी काव्यानुवाद के साथ (Hindi poem with poetic English translation)

ग़ज़ल  (Poem)-1




अपाहिज आस्थाएं दौड़तीं तक़दीर के पीछे
मगर तक़दीर चलती है सदा तदबीर के पीछे
Injured beliefs always run after a fate
Though the fate follows merits of high rate

पराजित सर्वदा होते रहे विक्षिप्त-उन्मादी
विजय चलती सुमन-माला लिए रणधीर के पीछे
Zealots and  maniacs are vanquished at the end
And he wins the war who often thinks and wait 

गवाही दे रहे खुलकर लहू के अनगिनत धब्बे
घिनौनी लालसाएं पल रहीं जागीर के पीछे
Thousands stains witness the ghastly bloodshed 
 Breeding over estates, is the greed that we hate

हुआ हमला हमीं पर बाढ़-आंधी-धूप-वर्षा का
सुरक्षित रह गया उनका जहां प्राचीर के पीछे
Only we did face flood, storm, sun n rain
They sat securely in a castle with iron gate

व्यथा का बोझ अपने-आप हल्का हो गया सारा
मुख़ातिब हम हुए ज्योंही पराई पीर के पीछे
The heap of griefs with me did diminish itself
The moment I turned to other's sorrows great

हिफ़ाजत जान की बाज़ी लगाकर भी करेंगे हम
निग़ाहें दुश्मनों की पड़ गयीं तस्वीर के पीछे
We shall safeguard at the cost of our lives
Foes gloat over the pic and may get me irate

सुनहरा ख़्वाब देखा था कभी 'घनश्यामने बेशक
समर्पित-मन अततल्लीन है ताबीर के पीछे
Ghanshyam had cherished some day a golden dream
So he is engrossed to fulfill before it's late.
...


ग़ज़ल -2
      
शुद्ध अंत:करण नहीं मिलता
स्वस्थ वातावरण नहीं मिलता

कर्म से मन-वचन नहीं मिलते
धर्म से आचरण नहीं मिलता

भंगिमाएं भी बात करती हैं
मौन का व्याकरण नहीं मिलता

छल-कपट-द्वेष फूलते फलते
नेह का अंकुरण नहीं मिलता

नींद अन्याय को नहीं आती
न्याय को जागरण नहीं मिलता

त्रास, पीड़ा, घुटन, जलन मिलती
कोई करुणाकरण नहीं मिलता

लुट रहे संस्कार शब्दों के
अर्थ का अवतरण नहीं मिलता

हाथ पर हाथ मत धरे रहिए
मुफ़्त पोषण-भरण नहीं मिलता
...

ग़ज़ल-3
     
अलग तुमसे नहीं मेरी कथा है
तुम्हारी ही व्यथा मेरी व्यथा है

ये गूंगे और बहरों का शहर है
किसी से कुछ यहां कहना वृथा है

हताहत सभ्यताएं हो रही हैं
हुआ पौरुष पराजित सर्वथा है

तुम्हीं से ज़िन्दगी में रोशनी है
चतुर्दिक कालिमा ही अन्यथा है

बिना बरसे घुमड़ कर भाग जाता
कृपणबादल कभी ऐसा  था है
      
समय का दोष है या आदमी का
सदा ऐसे सवालों ने मथा है

अभी 'घनश्यामकी पूंजी यथा है
समर्पणप्यारअपनापन तथा है.
.....
 कवि का आत्म-परिचय
                 
नाम                     : घनश्याम
पिता का नाम       : स्व.रामेश्वर प्रसाद
जन्मतिथि           : 01.04.1951
शिक्षा                  : बी.एस-सी.(प्रीवियस)     
व्यवसाय             : बिहार राज्य विद्युत बोर्ड से सेवानिवृत्त लेखापाल
सम्मान               : दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा अम्बेडकर 
                             फेलोशिप सम्मान,  कवि मथुरा प्रसाद गुंजन स्मृति 
                             सम्मान के अतिरिक्त अन्य साहित्यिक और सामाजिक
                             संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
प्रकाशित कृतियां  :सापेक्ष-32 ग़ज़ल विशेषांक, इन्द्रधनुषी हिन्दी ग़ज़ले
                             कविता अनवरत-1 साझा संकलन के अतिरिक्त अनेक
                             पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित 
प्रसारण                :आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित.
पता                      बड़ी कोठी, लल्लू बाबू का कूंचा
                             पटना सिटी, पटना-800009.
ईमेल                  sajalghanshyamgmail.com  
मोबाइल              : 9507219003



   












1 comment:

  1. हार्दिक आभार बिहारी धमाका !

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