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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday, 17 February 2020

'कलमगार' द्वारा "ओ री चिड़ैया' शीर्षक के अंतर्गत पर्यावरण विषयक कवि-गोष्ठी का आयोजन 16.2.2020 को पटना में सम्पन्न

कौन लिख रहा पत्ते पत्ते पर / काले धुएँ का गीत
वो प्यारी- प्यारी गौरैया / नजर नहीं अब आती है **  ओ ! पम्प मोटर वालों / अरे पानी बचा लो

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हम अक्सर उन्हीं चीजों को भूल जाते हैं जो हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण होती हैं - जैसे जीवन सँवारने में माँ, कॅरियर निर्माण में शिक्षक और जीवन के बचे रहने हेतु पर्यावरण

लाखों रुपयों के ऑक्सीजन के सिलिंडर खरीदकर हम रख लें तो भी वो उसकी क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएगा जो  बाहर की स्वच्छ हवा के प्रदूषित होने से होती है। हमारी पारिस्थितिकी का एक-एक जंतु और पौधा एक-दूसरे से किसी-न-किसी कड़ी के तहत जुड़ा है और अगर हम किसी प्रजाति को विलुप्त कर देते हैं जैसा कि बिहार की राजकीय पक्षी गौरैया के साथ लगभग हो रहा है, तो किसी न किसी तरह से पूरे जीवन-शृंखला को ही तोड़ने जा रहे हैं।  कविगण तो हमेशा से प्रकृति से बेपनाह प्यार करनेवाले रहे हैं।  इसलिए पर्यावरण और गौरैया पर जागृति लाने हेतु एक कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया पटना में।

संस्कारशाला पुस्तकालय के सभागार में, 'कलमगार' द्वारा आयोजित जल, हवा, पानी और गौरेया को बचाओ योजना के तहत आयोजित, कार्यशाला एवं कवि गोष्ठी का सारस्वत आयोजन किया गया।

पटना के राम लखन महतो फ्लैट्स स्थित "संस्कारशाला सह पुस्तकालय के प्रांगण में 16.2.2020 को 'कलमगार' के द्वारा काव्य सरिता नामक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसका थीम "जल, जंगल, जमीन, प्रकृति तथा पशु-पक्षी" था।

कार्यक्रम में कुल 37 प्रतिभागियों ने पर्यावरण, प्रकृति पर अपनी काव्य रचना सुनाकर श्रोताओं का इसके संरक्षण व संवर्धन की ओर ध्यान आकृष्ट किया। कार्यक्रम में मंच संचालन कवि मणि कान्त कौशल और संयोजन सुमन सौरभ ने किया। युवा कवयित्री रश्मि गुप्ता ने पर्यावरण पर सारगर्भित कविताओं का पाठ किया।

शायर मो. नसीम अख्तर को वह पल भुलाये नहीं भूलता जब उन्होंने कहीं पनाह पाई थी - 
जिसकी घनी छाँव के तले हमने
सुलगती धूप में पनाह पाई थी
हर ओर जले थे प्रेम के दीये
अंधेरी रात की तक़दीर जगमगाई थी।

लोभी-स्वार्थी अदूरदर्शी मानवों द्वारा नैसर्गिक सौंदर्य और जीवनरक्षक संपदाओं के क्षरित-विच्छिन्न और विरूपित होते चले जाना आज समूची जीव जगत के लिए विनाशक हो चुका है। इस स्थिति से आज के मुद्दों को उठानेवाली अनेकानेक सशक्त कविताओं के रचयिता कवि सिद्धेश्वर खिन्न हैं. उनकी टीस  महसूस की जा सकती है-
"कौन लिख रहा /पत्ते -पत्ते पर 
  काले धुएं का गीत ?
  आकाश के सुंदर चेहरे पर
  कौन कालिख पोत रहा ?
*धरती पर कौन 
  प्रदूषण का बीज बो रहा
  शोर में कौन बदल रहा 
  धरती का मधुर संगीत
 *अपराधी है कौन?
  हम सब हैं / जो धरती को बांट रहे
  जीव-जंतु, पेड़, पहाड़ तक उनको काट रहे
  मातमी चुम्बन लेकर कौन कर रहा
  विनाश से प्रीत?

बैंक अधिकारी होते हुए हुए भी साहित्य की अनवरत साधना कर मिसाल कायम करनेवाले युवा कवि संजय कुमार, प्रकृति को दिल की गहराइयों से प्यार करते हैं और उसे बचाने की उनकी आकांक्षा आज वेदना के रूप में उभर रही है -
दौड़ती भागती जिंदगी में
किसे याद रहता है
पहाड़ नदियां पेड़ और पौधे
जो कभी कोई सुध ले
कि हमारी वेदना है क्या
जल जीवन और हरियाली
तुम्हारी चेतना के निकट
कभी जा पाती है क्या

विपुल शरण की पंक्ति भी प्रकृति के छेड़छड़ से दुखी लगे-
"कैसे करूं मैं वर्णन 
 तू है मेरा पर्यावरण के साथ 

मणिकान्त कौशल  लुप्तप्राय प्यारी सी नहीं गौरैया पंक्षी को बेचैनी से साथ खोजते दिखे - 
"जाने कहां वो चली गई /जाने क्या- क्या खाती है ,/
वो प्यारी- प्यारी गौरैया / नजर नहीं अब आती है !/

अमृतेश मिश्रा द्वारा ने पानी का अपव्यय करनेवाले नए धनाढ्यों को एक झटका दिया गया- 
"ओ ! पम्प मोटर वालों ,/अरे पानी बचा लो / 

भावप्रवण युवाकवि केशव कौशिक की गीत 
  बादलों   में   तैरते   गाँव   घर
  कहो   सुखन   कभी  देखा  है
*वहाँ  गगन   को  छूते   पहाड़
  उनसे   गुजरते    पक्के   रास्ते
  देख  यह   मन   हर्षित   होता
  स्कूल    जाते   बच्चे   विहँसते
  ऊँचे  पहाड़ों  से  गिरता  निर्झर
  कहो सुखन.....
  *छोटे - छोटे   उनके  पक्के  घर
  जिनमें   रहते   हैं   लोग   प्यारे
  मेघ  अंजलि   भर   पानी  देता
  प्रकृति    के    वे   अति  दुलारे
  दहकते   आग   जैसा   दिनकर
  कहो सुखन.....
*कल-कल स्वर से बहती नदियाँ
  घर - घर पानी का नलका रहता
  बचपन   के   पूरे   होते    सपने
  मेघ पकड़-पकड़ जेब में रखता
  घन - घटा का ऊन -सा मंजर
  कहो सुखन.....

कवयित्री रश्मि गुप्ता की नजरों में प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों का नहीं दिखना सबसे बड़ी वंचना है -
बहुत दिनों से
नही देखी थी उसने हरियाली
फूल, चिड़िया, झरना
सुबह की लाली या शाम की सुहानी बेला।

कलमगार की टीम गौरैया संरक्षण के कार्यक्रम में एक कदम आगे बढ़ते हुए अब शहर में प्रकृति संरक्षण हेतु लोगों को उनके घर जाकर प्रेरित करने वाली है कलमगार की मानें तो गौरैया संरक्षण के लिए बर्ड हाउस के साथ साथ प्रकृति तथा बगीचे का बढ़ना जरूरी है ताकि जीवन के की श्रंखला सतत चलती रहे। इस अवसर पर विपुल शरण श्रीवास्तव, संजीव कुमार, संजय कुमार आदि उपस्थित रहें।

इस प्रकार पर्यावरण को समर्पित कवि=गोष्ठी में उत्साहपूर्वक भाग लेकर  एक जन-जागृति लाने का जोरदार प्रयास सम्पन्न हुआ
...........

रपट का आलेख - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
रपट के लेखक का ईमेल- sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट - जिन प्रतिभागियों की पंक्तियाँ इसमें शामिल नहीं हो पाईं हों वो उन्हें ऊपर दिये गए सम्पादक के ईमेल पर भेज सकते हैं.























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