कविता मनुष्यता की मातृभाषा है
साल को गुडबाय कहता हुआ, नए साल के भव्य स्वागत में, पटना के साहित्यकारों ने जश्न-ए-बहार मनाया इन्द्रधनुषी कविताओं के माध्यम से। साहित्यिक संस्था साहित्य कला संसद के बैनर तले कड़कती ठंड में भी पचास से अधिक कवियों और लगभग उतनी ही संख्या में प्रबुद्ध श्रोताओं (जो अक्सर साहित्यिक आयोजनों में अपवाद ही बने रहते हैं) की गहमागहमी पटना के कालिदास रंगालय में देखने को मिली।
इस बार भी हमारी संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् ने जब अलविदा साल और नए साल के स्वागत में गोष्ठी की तारीख रखी तब साहित्यिक मित्र पंकज प्रियम ने मेरे फोन पर अपने आयोजन की जानकारी देते हुए मुझे आमंत्रित किया और काव्य पाठ के साथ साथ मेरी कविता पोस्टर प्रदर्शनी को इसी समारोह में समायोजित करने का प्रस्ताव रखा। हम करें या पंकज प्रियम। पटना में हमारे लगभग वही साहित्यकार मित्र हैं जो उनके!ऐसे में दो या चार संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में भी आयोजन करना श्रेयस्कर हो सकता है। हमारे दिग्गज साहित्यकार ऐसा करते रहे हैं। खैर, अंततः मैं अपनी संस्था का कार्यक्रम रद्द कर इस संगोष्ठी में सह भागीदार बना।
साहित्य कला मंच की ओर से आयोजित इस सारस्वत समारोह के मुख्य अतिथि, वरिष्ठ कथाकार कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने ऐसे आयोजन की सार्थकता को रेखांकित करते हुए कहा कि "इस तरह का कार्यक्रम हमें जीवन और जगत को निरपेक्ष ढ़ंग से देखने का संदेश देता है। यह कविताओं का इन्द्रधनुषी मेला और इसमें कविता के ढेर सारे रंगों ने हम सबको सराबोर कर दिया है।"
कविता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज ही नहीं, बल्कि कविता आत्मा और मनुष्यता की मातृभाषा है। मेरे लिए अंतस की असह्य अकुलाहट की अभिव्यक्ति है।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समालोचक डॉ. शिवनारायण ने कविता की जीवंतता के संदर्भ में कहा कि "कविता हमें अपने समय और समाज की संवेदना से जोड़ कर एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है। इसलिए कविताओं से साल की विदाई और स्वागत का यह आयोजन अनूठा है।"
साहित्य कला संसद के अध्यक्ष और इस समारोह के संयोजक डॉ. पंकज प्रियम ने कहा कि -" इन्द्रधनुषी कविताओं के इस मेले में सभी विचारधाराओं के कवियों का समागम हुआ है जिन्होंने अपनी- अपनी शब्द साधना से मानवता की सीख समाज को दी है।.
कविता मेले में कई पीढ़ियों के कवियों की हिस्सेदारी रही। इस इन्द्रधनुषी कविताओं के मेले में भगवती प्रसाद द्विवेदी, शिवनारायण, संजय कुमार कुंदन, शहंशाह आलम, निविड़ शिवपुत्र, विजय गुंजन, अश्विनी कविराज, डॉ. सीमा रानी, सुमन चतुर्वेदी, मो मोईन, विभा कुमारी, कुमारी मेनका, प्रभात कुमार धवन, सीमा रानी, सिंधु कुमारी, गौरी गुप्ता, विजय प्रकाश, रश्मि गुप्ता, घमंडी राम समेत चालीस से ज्यादा कवियों की जबरदस्त काव्य प्रस्तुति हुई। ठंड भरे मौसम में भी इस मेले में गर्मजोशी रही। । मिलकर, कविताएं सुन-सुनाकर मुझे भी इतना आनंद आया कि लगा बीतते साल ने जाते-जाते अमूल्य सौगात दे दी है। हलाकि आए हुए कवियों में कुछ ऐसे महान कवि भी थे जिन्हें मंच पर जगह नहीं मिली तो वे बिना काव्य पाठ किए ही चुपचाप घिसक गए। और कई और भी ऐसे कवि थे जो आमंत्रित कवियों में अपना नाम और काव्य पंक्तियां देकर भी अनुपस्थित रहे। बावजूद इसके "रेडिमेड तैयार न्यूज" की वजह से और पत्रकार बंधु की कृपा से उन अनुपस्थित कवियों का नाम अखबार में प्रकाशित हुआ और कई उपस्थित कवियों का नाम न छपने की भी विवशता भी बनी रही।
अध्यक्ष डॉ शिवनारायण की ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ यूं थी-
"ग़म का क्या उपचार नहीं है
लोगों में किरदार नहीं है
ऊपर ऊपर क्या पढ़ लोगे
जीवन यह अखबार नहीं है
हम रिश्तों में जीनेवाले
कोई भी दीवार नहीं है
जो खुशियों पर ताला जड़ दे
ऐसी भी सरकार नहीं है
'शिव' को यह मालूम हुआ है
जीना यह दुश्वार नहीं है।"
......
"कदम कदम पर लाखों छल
भीड़ बहुत है धीरे चल
सारे खत को खोले हम
शायद कोई निकले हल।"
(-शिवनारायण)
इतने विविधतापूर्ण आयोजन की पूरी सफलता कवि सम्मेलन के संचालन पर निर्भर करता है जिसकी जिम्मेवारी बखूबी निभाई युवा कवयित्री रश्मि गुप्ता ने। अपने मधुर और सशक्त संचालन के दौरान ही रश्मि गुप्ता ने काव्य पाठ भी किया -
"जिनके जीवन में कोई हमसफर नहीं होता।
उनका तो लोगों सकूं से सफर नहीं होता।"
संजय कुमार कुंदन की यह नज़्म ठेठ उर्दू भाषा समझने वालों के लिए ख़ास लज़्जतदार रही -
"ये एक अजीब दौर है / खिंजां रसीदा नख्ल है
मगर है शोरे फसले गुल / कसीदें पढ़ रहे सभी
वो बारिशों की शाम में!"
विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन कवि शहंशाह आलम की समय संदर्भित एक समकालीन कविता का पाठ किया, जिसमें लोग अर्थ तलाश रहे थे-
"भय को मैंने भगाया / शत्रुओं को चेतावनी मैंने दी
गहरे मौन को स्वर मैंनें दिया / तोतों को मैंनें पुकारा
अदृश्य घर को दृश्य मैंने दिया!"
गीतकार विजय गुंजन का गीत श्रोताओं को खूब भाया-
"साँस-साँस में यति-गति-लय है
यह जीवन है छंद ,
विना छंद के हम निबंध हैं
कवि तो अब हैं चंद।
अनुशासन में रह कर ही हम
सबकुछ कर सकते हैं,
निर्जीवन में सुकर सौर्य -बल
अतुलित भर सकते हैं ।
यति-गति-लय में नियत नियंत्रण,
से- अग-जग गतिमय है,
इनके विना उपग्रह-ग्रह - भू-अम्बर
समझो क्षय है।"
आयोजक संस्था साहित्य कला संसद बिहार के अध्यक्ष कवि पंकज प्रियम ने सुनाया -
"हिंदु हैं, सिक्ख हैं, ईसाई हैं, मुस्लिम हैं
जो कुछ भी हो / एक साथ है
लोग खून को चाहते हैं पतला बनाना/
किंतु हम अस्तित्व में घनत्व में एक हैं।
"कवयित्री सुधा सिन्हा ने नए वर्ष के संदर्भ में काव्य पाठ किया -
"नव वर्ष का प्रणाम करते हैं!
हर दिन का सलाम करते हैं!!
जिन्दगी खुशियों से भरी रहे
यही तो कलाम पढ़ते हैं!"
कवि सिद्धेश्वर ने नए वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए सकारात्मक संदर्भों को रेखांकित करते हुए अपनी एक नई कविता प्रस्तुत की -
" कितना बुरा बीता पिछला वर्ष
इसका पश्चाताप करने से
क्या दुःख भरे जीवन में
जाग उठेगा, उत्साह और हर्ष?
अतीत की कब्र पर बैठकर
जी भर आंसू बहाने के बदले
वर्तमान की कर्मभूमि पर
क्यों न रोपें /उम्मीदों के बीज ?
ताकि फिर से जाग उठे नए सपनें
खिल उठे मुरझाया हुआ जीवन!
सुख-समृद्धि से हो मिलन !
नए साल में, महके-चहके तेरा उपवन!"
कवयित्री मधुरानी की कविता में ग़ज़ब की कशिश थी-
"न कुछ कहा, न इकरार किया
बस दिल ने कहा और प्यार किया।
जाने कौन से बंधन में बँध कर
अंतर्मन ने तुम्हें स्वीकार किया।"
एक मधुर गीत का पाठ किया सिंधु कुमारी ने-
"सूरज को क्षितिज पर
बुला रही वो कौन है?"
श्रोताओं ने नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर विजय प्रकाश के गीतों की भूरि भूरि प्रशंसा की -
"खट्टी-मीठी यादें देकर हायन अंतर्ध्यान हो रहा
यहीं कहीं तुम छिपी हुई हो ऐसा रह-रह भान हो रहा।
सपना देखा है मैंने इक, सपना यह सच हो जाए,
तुम मेरे गीतों की गरिमा, मैं तेरी मुसकान हो रहा।"
उन्होंने वर्ष को संबोधित करते हुए कहा -
"मुट्ठी से रेत जैसी
पल-पल फिसल रही हैं
ये सांस, उम्र, घड़ियाँ-
कैसे इन्हें संभालूँ?
शायद न वश में अपने
इसके सिवा बचा कुछ
कि साथ-साथ तेरे
कुछ और दूर चल लूँ,
कुछ और गीत गा लूँ!
नववर्ष तुम मना लो
मैं हर्ष में नहा लूँ
हिंदी गजल की एक विशेषता यह भी है कि वह सीधे तौर पर श्रोताओं के हृदय में समा जाती है जैसा कि मशहूर शायर ऋतुराज राकेश ने अपनी रचना से उदाहरण प्रस्तुत किया -
"मुझको कैसी बीमारी है तुम्हीं कहो
जागते शब गुजारी है तुम्हीं कहो।
करके वादे न आये सर-ए-बज़्म क्यों
आज कैसी लाचारी है तुम्हीं कहो?
हम तुम्हारी तरफ जो बढ़े दो कदम
भूल क्या ये हमारी है तुम्हीं कहो।
जाम नज़रों से मैंने पीया था कभी
आज तक क्यूं खुमारी है तुम्हीं कहो?
उम्र भर साथ देने का अरमान है
ये क्या गलती हमारी है तुम्हीं कहो।
हमसफ़र मैं तुम्हारा हूँ और हमनशीन
मैंने हिम्मत क्या हारी है तुम्हीं कहो।
हिज्र की शब क़यामत सी मुझको लगी
रात तुम पर भी भारी है तुम्हीं कहो।
तुम अना वाले हो और मैं खुद्दार हूँ
बाजी किसने यूं हारी है तुम्हीं कहो।
पूछता है ऋतुराज क्या है सबब
अश्क़ क्यूं आज जारी है तुम्हीं कहो।"
समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर निविड़ शिवपुत्र ने आधुनिक बोध की कविता प्रस्तुत की -
" हैप्पी न्यू ईयर / माफ करना /
खरीदी हुई कामनाएँ / नहीं भेज पा रहा हूं मित्र
क्या इन सारे शब्दों में
मेरी शुभकामनाओं को जिंदा कर सकोगे
कि नया वर्ष तुम्हें / नया आकाश दें ?"
आयोजक के अनुरोध पर राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध रेखाचित्रकार सिद्धेश्वर ने इस इंद्रधनुषी कविता मेला में अपनी कविता पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई। जिसे दर्शकों और उपस्थित कवियों में उपरोक्त कवियों के अतिरिक्त राजकिशोर राजन, मनीष राही, ऋतुराज राकेश, अश्विनी कविराज, मधु वर्मा, सिंधु कुमारी, संजय कु. कुंदन और युवा कवयित्री रश्मि गुप्ता समेत सैंकड़ो लोगों ने खूब सराहा।
कविता पोस्टर प्रदर्शनी की विस्तृत रपट, डायरीनामा के रुप में, पचास से अधिक फोटो के साथ अलग से आपके सामने प्रस्तुत करुंगा।
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आलेख - सिद्धेश्वर
प्रस्तुति सहयोग - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल- sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
आदरणीय शिवनारायण सर को हार्दिक बधाई। सच ही कहा आपने,"कविता हमें अपने समय और समाज की संवेदना से जोड़ कर एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है.... ।"
ReplyDeleteआदरणीय शिवनारायण सर को हार्दिक बधाई। सच ही कहा आपने,"कविता हमें अपने समय और समाज की संवेदना से जोड़ कर एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है.... ।"
ReplyDeleteपूजा पाराशर, चेन्नई