फूलों के मंत्रालय से
वसन्त ऋतु एक मौसम नहीं एक जीवन-दर्शन है. आप वृद्धावस्था में भी इसका अनुभव कर सकते हैं और युवावस्था में नहीं भी. प्रेम और सौंदर्य से परिपूर्ण सकारात्मकता का दूसरा नाम ही वसन्त है. आज वसंत पंचमी के विशेष अवसर पर हमने श्रीमती पूनम (कतरियार) जी की पहल पर एक आभासी कवि गोष्ठी रच डाली है. आशा है आपको पसंद आएगी. तो आइये, वसंत के झरोखे से देखते हैं कुछ अपने आस-पास के कवियों की काव्य रचनाओं को -
साहित्य के पुरोधा और 42 पुस्तकों के लेखक डॉ. शिव नारायण जैसे गम्भीर कवि भी वसन्त ऋतु में कह उठते हैं -
फूल जैसा ही वो संवर जाके
बन के खुशबू कहीं बिखर जाए
ज़ख्म इतना बढ़ा दो सीने में
मौत भी ज़िंदगी से डर जाए
क्या भरोसा करें उसी पर हम
साथ देने से जो मुकर जाए
तुम उसी वक़्त ही चले आना
चांद जब झील में उतर जाए
ऐसे लोगों से 'शिव' नहीं मिलता
बात करने से जो मुकर जाए.
एक अच्छा कवि अनिवार्यत: जीवन में सौंदर्य और प्रेम का उपासक होता है. इसलिए इन्होंने अपने नवीनतम कविता-सग्रह का नाम रखा है -"झील में चांद" जहां से उपरोक्त पंक्तियां ली गईं हैं.
कवयित्री पूनम (कतरियार) को बसन्त ऋतु में किसी का आना अच्छा लगता है और अपनी मीठी अनुभूतियों के पलों को वो कुछ इस तरह से व्यक्त करती हैं 'आमंत्रण' शीर्षक से अपनी कविता में -
अच्छा लगता है,
यह मधुमय बसंत
और किसीका आना
गुंजन करते भ्रमर-सा
अलबलाते कुछ कहना.
अकस्मात्
वो सुलझे केशों को
बार-बार उलझाना.
पाॅकेट में हाथ डालते
चाॅकलेटस् निकल आना.
साझा करना किसीसे
प्यारी-सी कोई उलझन.
अपनी चिंता-परेशानी
छोटी सी चुटीली कधन.
चपल नयन का नैनों से
बेबाक बतियाना.
और कभी घुंघरूओं-सा
रूनझुन गुनगुन करना.
हां, अच्छा लगता है,
किसीका यूं जीवन में आना.
जिंदगी में शामिल होने का
बासंती-आमंत्रण दे जाना.
प्रतिष्ठित युवाकवि रोहित ठाकुर बहुत कम समय में पूरे देश के लगभग सभी पत्र- पत्रिकाओं और साहित्यिक ब्लॉग में प्रकाशित हो चुके हैं और होते आ रहे हैं. शब्दों के अप्रत्याशित अर्थों का अन्वेषण और अभूतपूर्व बिम्ब निर्माण ही रोहित का यूएसपी या अनन्यता है . उनकी ताज़ा कविता प्रस्तुत है -
* तुम एक मौसम को छूती हो
फूलों के मंत्रालय से
ख़बर आती है
यह बसन्त है.
* तुम फूलों के नाम का उल्लेख करो
और दिन गिर आता है
बसंत की गोद में |
* तुम फूलों के नामों का मंत्राचार हो
तुम्हारी छाया ही बसंत है |
कवयित्री लता प्रासर इन दिनों कविता-प्रकाशन का कीर्तिमान स्थापित करती दिख रही हैं. वे सूरज को गले लगा रही धरती को बधाई देती कहती हैं -
सूरज गले लगा रहा प्यारी धरती को बधाई हो
धरती अंगड़ाई ले रही बसंती हवा संग बधाई हो
जन जन का चेहरा खिल उठा मौसमी बयार से
प्रकृति जीवंत रहे उमंगों की बौछार बधाई हो!
'सिद्धेश्वरनामा' डायरी श्रृंखला से बिहार भर में छा जानेवाले कवि सिद्धेश्वर वसंत ऋतु के ठीक पहले मनाए गए ग़णतंत्र दिवस पर भारत के स्वाभिमान और संविधान की रक्षा करने की शपथ ले रहे हैं -
जय गणतंत्र, जय संविधान
जय-जय भारत का स्वाभिमान !
तिरंगे को सींचते, रहें खून से
उन अमर शहीद को पहचान !
न हिंदू -मुस्लिम, न सिख ईसाई
हम सब हैं पूरा हिंदुस्तान !
न धर्म -जाति, न रंग -भेद
इंसानियत हो जिसकी पहचान!
वही सपूत है भारत देश का
जिसके दिल में,शहीदों का सम्मान!
न जय नेता, न जय अभिनेता
जय जवान, जय किसान जय विज्ञान !
सभी साहित्यकारों को ब्लॉगिंग के माध्यम से संयोजित करने के प्रयास में सदैव तल्लीन रहनेवाले कवि हेमन्त दास 'हिम' भी वसन्त के खुशनुमा मौसम में कुछ बेफ़िक्र से हो गए हैं -
चांद तारों से सजा आसमान कहता है
आपके शहर का मौसम खुशनुमा रहता है
ज़िंदगी गुजरती है बेफ़िक्र इस तरह
दरिया में बिन माँझी जैसे नाव बहता है
हर रोज यहां महफ़िल सजी रहती है
हर लम्हा प्यारा समां रहता है
अजनबी लोग भी लगते हैं पहचाने से
और अपनों में नयेपन का गुमां रहता है
दूर होने पर रहती है यादों की खुशबू
जिसमें दिल जुदाई का गम सहता है.
आप सब को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकमनाएँ!
..........
संयोजन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
कविताएँ - डॉ. शिव नारायण, पूनम (कतरियार), रोहित ठाकुर, लता प्रासर, सिद्धेश्वर, हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट: 1. डॉ. शिव नारायण का काव्यांश उनकी पुस्तक से और श्री रोहित ठाकुर का उनके वाल से लिया गया है. वो चाहें तो पूरी कविता इसमें प्रकाशित करने की अनुमति दे सकते हैं.
2. अन्य जो भी कवि (देश के या बाहर के) वसंत ऋतु से संबंधित कविता इसमें शामिल करवाना चाहते हैं वे ईमेल से (कविता / चित्र) शीघ्र भेजें- editorbejodindia@gmail.com
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