कुछ व्यक्तिगत कारणों से बेजोड़ इंडिया के संचालक मंडल द्वारा मुख्य पेज और सहयोगी पेजों पर सामग्रियों का प्रकाशन बहुत सीमित कर दिया गया है। FB+ पेज, एडिटोरियल पेज और रिपोर्ताज का प्रकाशन फिलहाल पूरी तरह से बंद रहेगा। असुविधा के लिए खेद है। - संपादक
बिहारी धमाका / بہاری دھماکا - A blog in English, हिन्दी, اردو, मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका and बज्जिका. / Contact us at editorbejodindia@gmail.com (IT'S LINKS CAN NOT BE SHARED ON FACEBOOK but CAN BE SHARED IN WHATSAPP, TWITTER etc.) (For full view, open the blog in web/desktop version by clicking on the option given at the bottom.)
**New post** on See photo+ page
बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.
# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]
यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.
Thursday, 12 November 2020
Saturday, 10 October 2020
राइजिंग बिहार" के द्वारा 3.10.2020 को ऑनलाइन कवि गोष्ठी सम्पन्न
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटों पर देखें- FB+ Bejod India / यहाँ कमेंट कीजिए )
मजबूत बंधन रिश्ते के भी टूट जाते हैं !
कसक यूं ना होती भूल जाने से पहले !,
परखा जो मैं होता, अपनाने से पहले !
श्रमिकों को कहां मिलती?, उनकी कमाई !, जबकि फैक्ट्री आबाद उन्हीं दीन लोगों से !/ कितना सहेज रखा फिर भी, कभी-कभी गलतफहमी से, / रिश्तेदार यूं ही रूठ जाते हैं!/ मैं तो मर जाऊंगा, तेरी कातिल अदा पे!/ सोच लेना जरा मुस्कुराने से पहले! / जो न बुरा देखे, बुरा सुने, बुरा कहे !, मिला करो बेहतरीन, ऐसे तीन लोगों से!/ लगता कौन, कैसा कब? यह बताता है आईना /सब का सिर्फ सच ही, दिखाता है आईना !!"
एक से बढ़कर एक अश'आर सुनाते रहे, झारखंड के वरिष्ठ शायर कामेश्वर कुमार "कामेश "ने, एकल ऑनलाइन एकल काव्य पाठ के मंच पर l मौका था "राइजिंग बिहार"(साप्ताहिक) के तत्वाधान में आयोजित, फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के पेज पर, "हेलो फेसबुक विविधा कार्यक्रम के तहत!
कामेश्वर कुमार कामेश ' की सृजनात्मकता पर डायरी पढ़ते हुए, संयोजक और संचालक सिद्धेश्वर ने कहा कि-" यह अधिकारी कवि आम-आदमी की तरह व्यक्ति, समाज, रिश्तो के बंधन की जीवंतता से भी खुद को अलग नहीं रख पाता हैl
जीवन की कर्म भूमि पर, हाथों में लिए बंदूक को, कलम बनाकर, कागज को अपने जीवन की स्याही से रंगने में, कामेश्वर कुमार कामेश सृजनशील हैं और संघर्षशील भी ! उनके शब्दों में गज़ब की कशिश है ! शब्दों में खनकती रवानगी है l कामेश की रचनाओं में, भविष्य की अनंत संभावनाएं देख रहा हूं l
.......
परिचय - सचिव, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
Monday, 21 September 2020
अजगैबीनाथ साहित्य मंच, सुल्तानगंज द्वारा अंगिका भाषा पर आधारित आनलाइन कवि गोष्ठी 20.9.2020 को सम्पन्न
दिनांक 20.9.2020 रविवार को अजगैवीनाथ साहित्य मंच ,सुलतानगंज के तत्वावधान में अंगिका भाषा पर आधारित आनलाइन अंगिका कवि -गोष्ठी मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य की अध्यक्षता में आयोजित की गई जिसका संचालन मंच के अध्यक्ष व साहित्यकार भावानंद सिंह प्रशांत ने किया और संयोजन मशहूर शायर खडगपुर से ब्रह्मदेव बंधु ने किया। कार्यक्रम में दर्जनों अंग कवियों ने अपनी -अपनी रचनाओं का पाठ किया। आयोजित कवि-गोष्ठी में सभी आमंत्रित कवियों को मंच द्वारा अंग-रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। कवि -गोष्ठी में भागलपुर, बांका, मुंगेर, खड़गपुर, कहलगांव, गाजियाबाद, खड़गपुर और सुलतानगंज के अंगसपूत कवियों द्वारा कविता का पाठ किया गया।
तब तक छै खुशी जब तक छै किसान
धरती के तोहीं हो भगवान।
लाल कुरती पिन्हाय देभौं हे
परकृति रानी के गोदी में ,रचल- बसल छै गाँव
,किन्हौं पोखरी के किनारी ,किन्हैं पीपल के छाँव ।
.....
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
हिन्दी को सम्मान दो / कवि - बी. एन. विश्वकर्मा के परिचय के साथ
कविता
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटों पर देखें- FB+ Bejod India / यहाँ कमेंट कीजिए )
Wednesday, 2 September 2020
गीतकार शैलेंद्र / लेखक - जितेंद्र कुमार, मृत्युंजय शर्मा
जिन्होंने राजकपूर ही नहीं देश का दिल जीत लिया
मथुरा में है इनके नाम पर सड़क
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटों पर देखें- FB+ Bejod India / यहाँ कमेंट कीजिए )
एक चीज जानकर अच्छा लगा कि मथुरा की पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता ने 2016 ई. में शैलेंद्र की स्मृति में एक सड़क का नाम गीतकार शैलेंद्र के नाम पर रखा. एक कार्यक्रम का आयोजन'जन सांस्कृतिक मंच'ने मथुरा में किया जिसमें शैलेंद्र के पुत्र दिनेश शंकर और उनकी बेटी अमला को भी आमंत्रित किया.
दिनेश शंकर के अनुसार शंकर जयकिशन, एस डी बर्मन, हसरत जयपुरी, राजकपूर उनके मुंबई स्थित घर में आते थे. कवि गोष्ठियाँ होती थीं. इन काव्य गोष्ठियों में धर्मवीर भारती और अर्जुन देशराज सरीखे लोग शिरकत करते थे.
शैलेन्द्र का निधन 14दिसंबर, 1966 को हो गया, मात्र43वर्ष की उम्र में. संयोग से राजकपूर की जन्म तिथि14दिसंबर ही है. हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझना चाहिए और बचाना चाहिए.
मेरे शहर का प्रत्येक चौक खास लोगों के लिए सुरक्षित है. शैलेंद्र उन ख़ास लोगों में शायद नहीं माने जाते हों!
खण्ड-2 / लेखक - मृत्युंजय शर्मा
हिन्दी के एक प्रमुख गीतकार शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र का जन्म रावलपिंडी में 30 अगस्त, 1923 को हुआ था। बिहार के आरा जिले के धुसपुर गांव के दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले शैलेन्द्र का असली नाम शंकरदास केसरीलाल था। दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो। अपने गीतों की रचना की प्रेरणा शैलेन्द्र को मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण-सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिए जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।
वो मुम्बई जाने के बाद अक्सर 'प्रगतिशील लेखक संघ’ के कार्यालय में अपना समय बिताते थे, जो पृथ्वीराज कपूर के रॉयल ओपेरा हाउस के ठीक सामने हुआ करता था। हर शाम वहां कवि जुटते थे। यहीं उनका परिचय राजकपूर से हुआ और वे राजकपूर की फिल्मों के लिये गीत लिखने लगे। उनके गीत इस कदर लोकप्रिय हुये कि राजकपूर की चार-सदस्यीय टीम में उन्होंने सदा के लिए अपना स्थान बना लिया। इस टीम में थे- शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी अउर शैलेन्द्र। उन्होंने कुल मिलाकर करीब 800 गीत लिखे और उनके लिखे ज्यादातर गीत लोकप्रिय हुए। 'आवारा हूँ' (श्री 420); 'रमैया वस्तावैया' (श्री 420); 'मुड मुड के ना देख मुड मुड के' (श्री 420); 'मेरा जूता है जापानी' (श्री 420); 'आज फिर जीने की तमन्ना है' (गाईड); 'गाता रहे मेरा दिल' (गाईड); 'पिया तोसे नैना लागे रे' (गाईड); 'क्या से क्या हो गया' (गाईड); 'हर दिल जो प्यार करेगा' (संगम); 'दोस्त दोस्त ना रहा' (संगम); 'सब कुछ सीखा हमने' (अनाडी); 'किसी की मुस्कराहटों पे' (अनाडी); 'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है' (तीसरी कसम); 'दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम) आदि लोकप्रिय गीत हैं। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से समतामूलक भारतीय समाज के निर्माण के अपने सपने और अपनी मानवतावादी विचारधारा को अभिव्यक्त किया और भारत को विदेशों की धरती तक पहुँचाया।
आम जन की भावनाओं को भी उन्होंने अपनी रचनाओं में सहज स्थान दिया है। आज़ादी के बाद उनकी एक कविता "भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की, देशभक्ति के लिये आज भी सज़ा मिलेगी फांसी की" पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी ये कहकर की ये आम जनों में विद्रोह की भावना जगाती है। उन्होंने दबे-कुचले लोगों की आवाज को बुलंद करने के लिये नारा दिया -”हर जोर-जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है।" यह नारा आज भी हर मजदूर के लिए मशाल के समान है।
मुम्बई में उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कहानी ”मारे गए गुलफाम” पर आधारित ”तीसरी कसम” फिल्म बनायी। फिल्म की असफलता और आर्थिक तंगी ने उन्हें तोड़ दिया। वे गंभीर रूप से बीमार हो गये और आखिरकार 14 दिसंबर, 1967 को मात्र 46 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गयी। फिल्म की असफलता ने उन पर कर्ज का बोझ चढ़ा दिया था। इसके अलावा उन लोगों की बेरुखी से उन्हें गहरा धक्का लगाए जिन्हें वे अपना समझते थे। अपने अन्तिम दिनों में वे शराब के आदी हो गए थे। बाद में ‘तीसरी कसम’ को मास्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारत की आधिकारिक प्रविष्ठी होने का गौरव मिला और यह फिल्म पूरी दुनिया में सराही गयी। पर अफसोस शैलेन्द्र इस सफलता को देखने के लिए इस दुनिया में नहीं थे। शैलेन्द्र को उनके गीतों के लिये तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
.....
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
लेखक - जितेंद्र कुमार |
लेखक - मृत्युंजय शर्मा |
Tuesday, 25 August 2020
मेरे मित्र कैलाश झा किंकर / ज्वाला सान्ध्यपुष्प
संस्मरण: तेरे जाने से शहर फीका है
उसी साल मुंगेर की संस्था 'कवि मथुरा प्रसाद गुंजन स्मृति पर्व समारोह' ने मुझे मेरे सद्य: प्रकाशित ग़ज़ल संकलन 'इंतज़ार के दिन' के लिए 'कवि मथुरा प्रसाद गुंजन स्मृति सम्मान' के लिए नामित कर दिया था जिसके सचिव या कहें कि कर्ता-धर्ता वहीं के वरिष्ठ साहित्यकार कवि एस बी भारती ने आमंत्रण पत्र ससमय भेज दिया था।उन्हीं से मुझे ज्ञात हो चुका था कि इस सारस्वत समारोह में खगड़िया के चर्चित साहित्यकार कविवर कैलाश झा किंकर भी शिरकत करने वाले हैं मगर वहां उनकी अनुपस्थिति से मेरा मन आह्लादित न हो सका था जबकि वहां तो उस इलाके के और दूर-दूर के भी अज़ीम शायरों की बड़ी महफ़िल सजी थी जिसमें सर्वश्री छंदराज , अनिरुद्ध सिन्हा, घनश्याम, एस के प्रोग्रामर, अशांत भोला , शहंशाह आलम, कुमार विजय गुप्त, बिकास मौजूद थे। मगर मेरी आंखें कैलाश भाई को खोजती रहीं क्योंकि उनसे कई बार पत्राचार से और कई पत्रिकाओं में साथ-साथ रचनाएं प्रकाशित होने से लगाव कुछ ज्यादा हो गया था। और असल बात तो यह भी थी कि सन् २००९ में मेरी बेटी डा प्रतिभा भी अलौली, खगड़िया में ब्याही गई थी ,जिस कारण से भी उनके प्रति एक अलग किस्म का खिंचाव महसूस हो रहा था।खैर ,वे नहीं आए।
फिर १९ नवंबर १८ को होनेवाले मथुरा प्रसाद गुंजन स्मृति पर्व समारोह में शामिल होने के लिए कवि एस बी भारती जी निमंत्रण मिला क्योंकि उस समारोह में ग़ज़लकार सुप्रसिद्ध मित्र डा शैलेन्द्र शर्मा त्यागी जी का सद्य: प्रकाशित ग़ज़ल संकलन ' पता पूछ लेंगे ' सम्मान हेतु चयनित हुआ।उस सम्लेलन में समस्तीपुर और बेगूसराय से मेरे अलाबे कविवर द्वारिका राय सुबोध,डा शैलेन्द्र शर्मा त्यागी, अशांत भोला और डा रामा मौसम पहुंच चुके थे ।बाद में पता चला कि कविवर कैलाश झा किंकर किसी दूसरे कवि-सम्मेलन में शिरकत करने के कारण यहां न आ सके थे। लेकिन इसी दरम्यान मोबाइल में उनके फेसबुक पर मेरी दृष्टि पड़ी तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैंने तुरंत फेसबुक मित्रता का आग्रह किया और उधर उन्होंने भी बिना विलंब किए मित्रता स्वीकार कर ली। और कुछ ही दिनों के बाद मैंने उनके फेसबुक पर देखा कि मुंगेर के ही किसी कवि सम्मेलन में भाग लेने जाते वक़्त उनका पर्स किसी पाकेटमार ने गाएब कर दिया।इस संदर्भ में मेरी की गई टिप्पणी भी उन्हें पसंद आई थी।
और २ जून १९१८ का की वह घड़ी जब वे साहित्यकार प्रियवर राहुल शिवाय जी के साथ कविवर ईश्वर करुण जी के विशेष निमंत्रण पर बतौर मुख्य अतिथि पं. हृदय नारायण झा जयंती सह कवि-सम्मेलन में शिरकत करने मोहीउद्दीन नगर पधारे थे। पहली बार उनसे मिलकर मन आह्लादित हो उठा था। राहुल जी से भी पहले-पहल ही मुलाकात हुई थी और दोनों के बहुआयामी साहित्यिक व्यक्तित्व से साहित्य-संस्कृति को समर्पित शाहपुर पटोरी अनुमंडल का यह इलाका मह-मह कर उठा था। उक्त समारोह में स्थानीय कवियों में चांद मुसाफ़िर,द्वारिका राय सुबोध, बैद्यनाथ पंडित प्रभाकर,हरिनारायण सिंह हरि , सीताराम शेरपुरी,अर्जुन प्रभात, आचार्य लक्ष्मीदास थे और मंच का सफल संचालन कर रहे थे दो युवा साहित्यकार मुकेश कुमार मृदुल और राहुल शिवाय। समारोह काफी सफल रहा जिसमें कैलाश झा किंकर और ईश्वर करुण की कविताओं की अनुगूंज से मोहीउद्दीन नगर उच्च विद्यालय की समस्त वाटिका हर्षित हो गई थी। जैसे ही कार्यक्रम ने अपने चरम पर से ससरना शुरू किया किंकर जी ने श्रोता दीर्घा की द्वितीय पंक्ति से मुझे इशारे में बुला लिया और बगल में खाली आसन पर बैठने को मजबूर कर दिया और बीच-बीच में धीरे-धीरे मेरा समाचार पूछने लगे। मैंने अपनी ग़ज़लों के दोनों संकलन' हांफता हुआ दरख़्त' और ' इंतज़ार के दिन ' उन्हें दिए और उन्होंने स्वयं की संपादित 'कौशिकी' के दो-तीन अंक दिए और अपनी रचनाएं भेजते रहने को भी कहा।।फिर उन्होंने अपना मोबाइल नम्बर भी दिया ।तब तो हम दोनों पक्के मित्र हो गए।
२०१९ के मार्च माह में होली के बाद खगड़िया जाने का अवसर मिला। अपने स्टेशन सुपरिटेंडेंट जमाता का नागापट्टनम से धमारा घाट के लिए स्थानांतरण मेरे लिए अत्यंत खुशियां लेकर आया था ।सो , खगड़िया में ही नये आवास में वे सपरिवार रहने लगे थे ,जबकि उनका पैतृक आवास वहां से १८-२०किलोमीटर दूर अलौली है।नतनियों और बेटी के आग्रह को टालना संभव न था और-तो-और भाई किंकर जी से भी मिलने की उत्कट अभिलाषा ने मेरी सुसुप्त खगड़िया यात्रा की इच्छा को जगा दिया था।और मैं संभवतः २८ मार्च की दोपहर को जनहित एक्सप्रेस से खगड़िया पहुंच ही गया।शाम को वहां के बाज़ार में घूमते-घामते ,किंकर जी खोजते ,पता पूछते आठ बज गए। किसी ने मुझे सही तरीके से कृष्णानगर का लोकेशन न बताया।अंत में मैंने कैलाश जी को फोन लगा ही दिया। तो उन्होंने जानकारी दी।और उनके बुलाने पर मैंने उनसे सुबह मिलने की बात पक्की कर ली।
बात तो पक्की हो गई थी ,मगर किधर किस जगह पर स्थित है कृष्णानगर आवासीय कोलोनी , ठीक से पता चले तब न।सुबह मार्निंग वाक के बहाने डेरे से निकल मैंने सन्हौली से ही फ्लाईओवर की राह पकड़ ली और उसके बाद तो फिर किंकर जी मेरा मार्गदर्शन आनलाइन रहकर ही करते रहे और मैं भी काफी मशक्कत के बाद उनतक पहुंचने में कामयाब रहा।देखा,वे अपने क्रांतिभवन के आगे खड़े हाथ से इशारा कर रहे हैं क्योंकि उनके घर तक पहुंचने के जिलेबिया मोड़ -जैसे अपरिचित रास्ते में मैं खो-सा गया था।उसके बाद तो हम दोनों काफी आह्लादित हो उठे ।वे मुझे अपने अध्ययन कक्ष में ले गए और अपनी हाल की बहुत सारी किताबों और पत्रिकाओं से परिचित कराया तथा यहां की वर्तमान साहित्यिक गतिविधियों की जानकारी दी। तथा चलते वक्त अपनी कई किताबें और पत्रिकाएं भी भेंट की। हमलोग बाहर आए ।उसके बाद उन्होंने अपनी स्कूटर निकाल कर सीधे चंद्रनगर की ओर यानी हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया के तत्कालीन अध्यक्ष कविवर रामदेव पंडित राजा जी के आवास पर ले गए, जहां किंकर जी ने मेरी मुलाकात राजा जी और उनके समस्त साहित्यिक परिवार कराई।प्रियवर अवधेश कुमार आशुतोष और उनकी साहित्यकार धर्मपत्नी डा विभा माधवी जी का परिचय पाकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई । तत्पश्चात राजाजी के समृद्ध पुस्तकालय के दर्शन कर मैं धन्य हो गया। राजा जी और अवधेश जी - दोनों ने मुझे अपनी-अपनी प्रकाशित पुस्तकें दीं। यहां आकर मुझे लगा कि किसी संत के मठ में हम पहुंच गए हैं जहां सिर्फ और सिर्फ ज्ञान-विज्ञान और साहित्य-संस्कृति रूपी अगरु की ही सुगंध नि:सृत होती रहती है। धन्य हैं राजा जी और उनकी साहित्यिक विरासत!
आठ बज चुके थे। हम दोनों जने ने उनसे छुट्टी मांग ली मगर राजा जी कहां माननेवाले थे। उन्होंने मुझ नाचीज़ के सम्मान में शाम के वक़्त अपने आवास पर एक काव्य संध्या का आयोजन रख दिया। इसमेें भी शायद भाई किंकर जी का ही इशारा या संकेत था क्योंकि जिस अतिशयोक्ति में उन्होंने मेरा कवि-परिचय दिया वह किसी भी साहित्यिक हृदय में उत्सुकता का संचार करने को काफी था।फिर स्कूटर स्टार्ट हुई और दो तीन किलोमीटर के बाद हम दोनों अपनी बेटी के आवास के आगे वाली जनता रोड पर थे। उन्होंने मुझे किताबें डेरे पर रख देने को कहा ।मैंने सारी किताबें डेरे में जाकर रख दीं।और फिर स्कूटर स्टार्ट हुई तो थोड़ी ही देर में हम दोनों हिंदी और अंगिका के वरिष्ठ साहित्यकार नंदेश निर्मल जी के आवास पर थे।किंकर जी ने बड़ी शालीनता से मेरा परिचय नंदेश निर्मल जी से कराया और जब उनका परिचय एक लेखक के रूप में दिया तो मुझे स्वाभाविक रूप से उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली न लगा। नाम बड़े और दर्शन थोड़े। नंदेश निर्मल जी के लेखकीय व्यक्तित्व और कायिक व्यक्तित्व में काफी अंतर दिखा--- बिल्कुल शिवपूजन सहाय जी की मानिंद कृशकाय!जो उनके अंदर के क्रांतिकारी उपन्यास लेखक से मेल ही नहीं खाता है।उनकी सादगी दर्शनीय और अनुकरणीय लगी। उन्होंने भी अपनी कई किताबें दी मगर मैंने उनके उपन्यास 'उत्सर्ग' की दो और प्रतियां यह कहते हुए मांग लीं कि ऐसी औपन्यासिक कृति को भारतीय साहित्यकार संसद , समस्तीपुर सम्मानित जरूर करेगा। और मैंने श्री नंदेश निर्मल जी के उपन्यास 'उत्सर्ग' और भाई कैलाश झा किंकर जी के ग़ज़ल ' तुझे अपना बना के लूटेगा ' को क्रमशः 'यशपाल शिखर सम्मान' और ' दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान 'के लिए अपने प्रार्थना पत्र के साथ भेज दिया जिसपर संस्थाधिकारियों( श्री संजय तरूण और डा नरेश कुमार विकल आदि)ने अपनी सहमति देते हुए सम्मानितों की सूची प्रकाशित कर दीं ।अब तो २१ जून २०१९ का वह पवित्र दिन यानी महान साहित्यकार डा हरिवंश तरुण जी का जन्म दिवस भी है ,को श्री नंदेश निर्मल जी और किंकर जी उक्त सम्मान से भारतीय साहित्यकार संसद समस्तीपुर के सारस्वत समारोह में सम्मान हेतु शामिल होना था।वे दोनों उस दिवस को वहां गए भी। कैलाश जी ने फोन करके मुझसे बातें भी की और मुझे तलाशा भी। मुझे निमंत्रण नहीं था। अतः मैंने अफ़सोस के साथ कुछ बहाना बनाकर उनसे माफी मांग ली।
नंदेश निर्मल जी के आतिथ्य और उनकी सदाशयता का प्रसाद पा मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। उनका अहंकारहीन और मृदुभाषी होना मुझे बहुत प्रिय लगा। वे हम-दोनों को अपने बड़े आवासीय परिसर में स्थित बहुत पुराने मंदिर के दर्शन कराने ले गए तो मंदिर परिसर काफी आकर्षक लगा। वास्तव में यह दर्शनीय स्थल है। थोड़ी देर में कैलाश जी ने अपनी स्कूटर फिर स्टार्ट की और निर्मल जी लौटने की इजाज़त मांग ली।और मुझे मेरी बेटी के आवास तक ले आए।कुछ देर बैठकर बातें भी कीं। मगर चाय-नाश्ते के नाम पर माफी मांग ली क्योंकि अबतक स्नान जो न हुआ था।हाल में उनके असामयिक निधन से मेरी पुत्री और दामाद भी काफी मर्माहत हो गए थे--' ऐसे विद्वान और भले आदमी को भगवान क्यों जल्दी बुला लेते हैं?' अख़बारों में छपी तस्वीर देखने और मेरे फ़ोन करने पर उनका आहत होना स्वाभाविक था।
शाम चार बजे मुझे कैलाश जी का फोन आया कि मैं राजा जी के आवास पर औटो से आ जाऊं।घर देखा हुआ था ही। मैंने वैसा ही किया ।और मैं जैसे राजा जी के यहां पहुंचा कि कैलाश जी भी अपनी स्कूटर से हिंदी भाषा साहित्य परिषद 'कौशिकी 'के पूर्व अध्यक्ष और स्थानीय महिला महाविद्यालय के हिंदी प्राध्यापक डा चंद्रिका प्रसाद सिंह विभाकर जी के संग आ गए। समय के पाबंद जो ठहरे।
काव्य-गोष्ठी आरंभ हुई। एक सुंदर-से कमरे में कविगण जमे। राजा जी , उनके सुपुत्र और साहित्यकार अवधेश कुमार आशुतोष, आशुतोष जी की धर्मपत्नी और चर्चित कवयित्री -समीक्षक डा विभा माधवी, कैलाश झा किंकर, विभाकर जी मैं स्वयं अपना-अपना आसन ग्रहण कर चुके थे। कैलाश जी ने राजा जी का नाम काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु प्रस्तावित कर दिया और विभाकर जी ने समर्थन ।
गोष्ठी खूब जमी। विभाकर जी बीच-बीच में समीक्षा भी करते जाते थे। मैंने भी अपनी दो-तीन ग़ज़लें सुनाईं मगर मुझे लगा लगा कि कहीं-न-कहीं मेरे लोटे में छेद जरूर है। वैसे तो ग़ज़लें कही ही जाती हैं मगर ग़ज़लों को लयात्मकता से गाने की प्रेरणा मुझे कैलाश जी से ही मिली। यहीं मुझे बेबह्र और बाबह्र ग़ज़लों के वास्तविक फ़र्क की समझ आई। बेबह्र ग़ज़लों में चाहे कितने भी भावों को हम भर दें मगर श्रोताओं तक लयात्मकता के अभाव में संप्रेषण में कामयाबी नहीं मिलती है।मैंने उसी समय निर्णय ले लिया कि अब तो बाबह्र पतवार के सहारे ही ग़ज़ल-गंगा में नौका विहार करना है।यह सही है कि काजल की कोठरी रुपी अरकानों की कोठरी में नाचना आसान नहीं, वहां भाव कमजोर भी पड़ सकते हैं पर शैल्पिक दृष्टि से मजबूत और सधी हुईं ग़ज़लें निर्मित की जा सकती हैं जो श्रोताओं को ज्यादा आह्लादित कर सके।फिर तो मैं कैलाश जी, अनिरुद्ध सिन्हा, बाबा बैद्यनाथ झा,एस के प्रोग्रामर,दिनेश तपन प्रभृति ग़ज़लकारों का मुरीद हो गया और इस दिशा में रियाज़ और अभ्यास करना आरंभ कर दिया।आज भी मेरी डायरी में सौ-डेढ़ सौ बेबह्र ग़ज़लें पड़ी-पड़ी आंसू बहा रही हैं।
कैलाश जी ने न सिर्फ अपना मोबाइल नंबर दिया बल्कि उन्होंने मुझे हिंदी भाषा साहित्य परिषद के 'कौशिकी' ह्वाट्सेप पटल से भी जोड़ दिया जहां साहित्य की हर विधा पर कार्यशाला आयोजित होती रहती है।लोग नये-नये साहित्यिक समाचार और उनकी गतिविधियों से वाक़िफ होते रहते हैं। अभी कुछ ही दिन बीते थे कि दिनांक २४-२५ अगस्त २०१९ को हिंदी भाषा साहित्य परिषद कौशिकी के दो-दिवसीय वार्षिक अधिवेशन का समय आ गया। हरेक विधा से कुल बीस साहित्यकारों का उनकी कृतियों की उत्कृष्टता के आधार पर सम्मान होना सुनिश्चित किया गया। तीन दिवसीय इस साहित्य सम्मेलन को महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री के नाम समर्पित किया गया था। सभी बीसों साहित्यकार के नाम प्रकाशित किए गए जिनका चयन जानकीवल्लभ शास्त्री शिखर सम्मान के लिए किया गया था जिसमें कुछ बड़े नाम भी थे। ऐसे अद्भुत और ऐतिहासिक साहित्य कुंभ का आयोजन खगड़िया में होना और उसे देखना भी गौरव की बात है जहां देश भर के साहित्यकारों का जमावड़ा होना था।मुझे भी कैलाश जी और प्रियवर राहुल शिवाय जी ने अनौपचारिक रूप से शिरकत करने का आग्रह किया। बाद में बीस अन्य साहित्यकारों की भी पुस्तकों की सूची प्रकाशित की गई थी जिनकी पुस्तकें सांत्वना हेतु प्रशंसित मानी गई थी जिसमें मेरे ग़ज़ल संकलन 'इंतज़ार के दिन ' का भी नाम था।मैं समझ गया कि यह सब केवल भाई कैलाश जी के प्रेम का प्रतिफल है।बाबह्र ग़ज़लों के मार्केट में इस बेबह्र ग़ज़लों की क्या हैसियत हो सकती है।फिर भी मेरा मन प्रसन्न था। मगर एक घटना घट गई।मुझे १९ अगस्त को साहित्य परिषद रोसड़ा द्वारा आयोजित कविवर आरसी प्रसाद सिंह जयंती में बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल होना पड़ा। कथाकार डा विपिन बिहारी ठाकुर जी के साहित्यकार पुत्र प्रो प्रफुल्ल कुमार जी के आग्रह पर मैं भव्य कार्यक्रम में शामिल हुआ जहां कौशिकी के उपाध्यक्ष और ग़ज़लकार अवधेश्वर प्रसाद सिंह जी से मुलाकात हुई । आरसी बाबू के जयंती- कार्यक्रम के पश्चात वे 'कौशिकी ' के अधिवेशन के पर्चे बांटने लगे और मुझसे मिलते ही उन्होंने कई पर्चे थमाते पूछ दिया-- ' सांध्यपुष्प जी! आपका नाम तो सम्मानितों की सूची में नहीं है।' पता नहीं , उन्होंने मुझे इसकी सूचना दी या कार्यक्रम में शामिल न होने की ताकीद की।उनके लहज़े में स्वाभाविकता थी या व्यंग्य,पता नहीं। उनके दिए निमंत्रण के वे पुष्प भी मुझे मुरझाए-से लगे। मुझे लगा, अभी-अभी मंच से ही मेरी ग़ज़लों पर अवधेश्वर जी की प्रशंसा(?) के शीतल जल से सींचनेवाली मंदाकिनी तो मुझे मेरे जड़ सहित बहा कर ले गई है।और मैं दिनांक २४ की दोपहर में आकाशवाणी दरभंगा के कार्यालय में बैठा अपने काव्यपाठ की रिकार्डिंग करवाते हुए भाई किंकर जी के ह्वाट्सेप निमंत्रण की अनदेखी कर अफ़सोस कर रहा था।यह इसलिए भी कि साहित्यिकों के ऐसे विशाल मेले को देखने से वंचित हो गया था।एक बार फिर कैलाश जी से मिलने की इच्छा अधूरी रह गई।
हिंदी छंदों और उर्दू बह्रों की अच्छी पकड़ थी उनकी। हिंदी-संस्कृत व्याकरण हो फिर उर्दू अरुज़ ,या फिर अंगिका-मैथिली में लेखन--- उन्हें महारत हासिल थी।वे सभी भाषाओं को बराबर का सम्मान दिया करते थे। किसी भाषा और उसके लिखने वाले के साथ उन्होंने भेदभाव न किया,जैसा कि प्राय: अन्य साहित्यकारों में प्राय: देखने को मिल जाता है। साहित्यकारों को सम्मान देना उनके संस्कार में शामिल था। विद्यालय में शिक्षक होते हुए भी वे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की मानिंद अपने सहयोगियों को बताने-समझाने में कभी न हिचकते थे बल्कि उन्हें प्रसन्नता ही होती थी। ग़ज़ल लिखने-सीखने के क्रम में उर्दू के अरकानों को समझाने और बारीकियों पर नज़र देने के लिए ,उसे दुरुस्त करने के लिए मुझे भी वे अपने व्यक्तिगत ह्वाट्सेप पर ही भेजने को कहते।
सितंबर -अक्टूबर २०१९ में किसी गुरुवार के दिन मेरे ह्वाट्सेप और कौशिकी पर भी समीक्षा-आत्मकथ्य, संस्मरण-लेखन की कार्यशाला की सूचना में विधा विशेषज्ञों के बीच अध्यक्ष के रूप में अपना नाम देखकर मैंने उन्हें फोन पर ही टोक दिया--- आदरणीय भाई जी! इतने बड़े-बड़े और नामचीन साहित्यकारों के बीच आपने मेरा नाम...' और उन्होंने मुझे बोलने ही न दिया---" आप नहीं ,आपकी लेखनी को यह जिम्मेवारी दी गई है।' उन्होंने मेरी और भी प्रशंसा कर मुझे चौंका दिया।और मैं भी उन्हीं की प्रेरणा के पुरस्कार से आजपर्यंत समीक्षा की कार्यशाला को उसके अंजाम तक पहुंचाने में लगा रहता हूं जहां डा विभा माधवी, मुकेश कुमार सिन्हा,डा रंजीत सिन्हा, अनिल कुमार झा,डा कमलकिशोर चौधरी'वियोगी', हरिनारायण सिंह हरि, राहुल शिवाय,शतदल मंजरी,स्मिताश्री, विनोद कुमार विक्की,डा इंदुभुषण मिश्र'देवेंदु'- सरीखे विद्वान मित्रों की गरिमामय उपस्थिति से यह पटल अपनी सुगंध बिखेरने में कामयाब भी हुआ है।
क्या कविताएं,क्या गज़लें ,क्या समीक्षा, लघुकथा, संस्मरण-लेखन -- कैलाश जी सभी विधाओं के 'मास्टर' थे।वे मास्टर नहीं जो वे प्राय:अपने अंगिका कविता में वर्णन करते थे-- 'मास्टर के मस्टरबा कहबो ,तोहर बेटा केना पढ़तो..' आदि हास्य-व्यंग्य की कविताएं कर समस्त जनमानस की खत्म हो रही हंसी को जीवित रखने की कोशिश करते रहनेवाले भाई कैलाश जी न जाने क्यों हम सभी को, समूचे साहित्य संसार को रुलाकर कहां चले गए।
तेरे जाने से शहर फीका है
तूम जो रहते थे बहारें थीं यहां
अब तो मौसम नहीं खुशी का है।"
नमन और श्रद्धांजलि!
पता - शाहपुर पटोरी, समस्तीपुर ८४८५०४
ई मेल आईडी - jwalasandhyapushpa@gmail.com
Sunday, 23 August 2020
कोरोना काल में सुरेंद्र पासवान की मिथिला पेंटिंग और कलाकृतियाँ
कला और तकनीक का अनोखा संगम
(मुख्य पेज - bejodindia.in / हर 12 घंटों पर देखें- FB+ Bejod India / यहाँ कमेंट कीजिए / Latest data- Covid19 in Bihar)
श्री उदय शंकर पासवान उर्फ श्री सुरेंद्र पासवान एक प्रतिष्ठित और पुरस्कृत कलाकार हैं मधुबनी पेंटिंग के जिसे अब मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है. इन्होंने कोरोना काल में मास्क आदि पर मिथिला पेंटिंग कर उत्पादित किया तो मुंहमांगे दाम पर बिकता गया. साथ ही इन्होंने एक होम थिएटर भी बनाया है क्योंकि इन्होंने आईटीआई का पूरा कोर्स किया हुआ है. इस होम-थिएटर के माध्यम से ये मिथिला पेंटिंग को देश-विदेश में प्रचारित करना चाहते हैं. इसकी विशेषता यह है कि इसमें लगनेवाले सारे पार्ट-पुरजे इन्होंने खुद बनाए और सर्किट भी खुद तैयार किया है. ये मिथिला पेंटिंग को प्रदर्शित करनेवाले होम थिएटर को अपने विशिष्ट प्रयोग के तौर पर किसी प्रतिष्ठित रिकॉर्ड बुक में अंकित करवाना चाहते हैं.
(उपर्युक्त जानकारी श्री सुरेंद्र पासवान से दूरभाष वार्ता के आधार पर दी गई है)
नीचे प्रस्तुत है श्री सुरेंद्र पासवान की कलाकृतियों एवं उनके द्वारा बनाए गए होम-थिएटर के कुछ चित्र......
.......
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
Thursday, 23 July 2020
आज घायल हुए अश'आर / अर्जुन प्रभात की दो गज़लें
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com