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मजबूत बंधन रिश्ते के भी टूट जाते हैं !
कसक यूं ना होती भूल जाने से पहले !,
परखा जो मैं होता, अपनाने से पहले !
श्रमिकों को कहां मिलती?, उनकी कमाई !, जबकि फैक्ट्री आबाद उन्हीं दीन लोगों से !/ कितना सहेज रखा फिर भी, कभी-कभी गलतफहमी से, / रिश्तेदार यूं ही रूठ जाते हैं!/ मैं तो मर जाऊंगा, तेरी कातिल अदा पे!/ सोच लेना जरा मुस्कुराने से पहले! / जो न बुरा देखे, बुरा सुने, बुरा कहे !, मिला करो बेहतरीन, ऐसे तीन लोगों से!/ लगता कौन, कैसा कब? यह बताता है आईना /सब का सिर्फ सच ही, दिखाता है आईना !!"
एक से बढ़कर एक अश'आर सुनाते रहे, झारखंड के वरिष्ठ शायर कामेश्वर कुमार "कामेश "ने, एकल ऑनलाइन एकल काव्य पाठ के मंच पर l मौका था "राइजिंग बिहार"(साप्ताहिक) के तत्वाधान में आयोजित, फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के पेज पर, "हेलो फेसबुक विविधा कार्यक्रम के तहत!
कामेश्वर कुमार कामेश ' की सृजनात्मकता पर डायरी पढ़ते हुए, संयोजक और संचालक सिद्धेश्वर ने कहा कि-" यह अधिकारी कवि आम-आदमी की तरह व्यक्ति, समाज, रिश्तो के बंधन की जीवंतता से भी खुद को अलग नहीं रख पाता हैl
जीवन की कर्म भूमि पर, हाथों में लिए बंदूक को, कलम बनाकर, कागज को अपने जीवन की स्याही से रंगने में, कामेश्वर कुमार कामेश सृजनशील हैं और संघर्षशील भी ! उनके शब्दों में गज़ब की कशिश है ! शब्दों में खनकती रवानगी है l कामेश की रचनाओं में, भविष्य की अनंत संभावनाएं देख रहा हूं l
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परिचय - सचिव, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना
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