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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 19 February 2018

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद की कवि गोष्ठी 18.2.2018 को पटना में संपन्न

काँटों को भी अबीर लगाती हुई कली


होली तो आनेवाली है पर लोगों के मिजाज को रंगीन बनाने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. सत्तर के दशक में स्थापित भारतीय युवा साहित्यकार परिषद की 18.2.2018 को राजेंद्रनगर पटना रेलवे टर्मिनस पर आयोजित कवि गोष्ठी में होली की बहार लाने की पुरजोर कोशिश हुई. कवि-कवयित्रियों की यह काव्य सभा राजेंद्रनगर पटना रेलवे स्टेशन के फनीश्वरनाथ रेणु हिन्दी पुस्तकालय के कक्ष में हुई जिसकी अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी और संचालन नसीम अख्तर ने किया.

शमा क़ौसर ने  बुझा डालने का खौफ पैदा करनेवाली हवाओं के द्वारा ही बचाव पाने का दृश्य रखा. फिर  लोगों की जरूरतों के लिए खुद को जलाये रखने का संदेश दिया-
1.जज़्बा-ए-इश्क को यारों ने संभाले रखा / जैसे खुशबू को गुलाबों ने सम्भाले रखा
जिन हवाओं से खौफ था जल बुझने का / उन्हीं तुंद हवाओं ने जलाये रखा
डूब ही जाती मेरी कश्ती गर्दाबों में / उसको दरिया के किनारों ने संभाले रखा
2. घर में दीवार उठ गई हर सू / कि अपनो में अदावत है बहुत
तुमको जलना ही पड़ेगा ऐ शमा / कि लोगों को तुम्हारी जरूरत है बहुत

लता प्रासर ने प्रेम से परिपूर्ण कुछ पंक्तियाँ सुनाई-
अणु अणु जब जुड़ जाए और सब के मन को भा जाए
अनुराग बढ़े तब अंतरमन में, उर में राग जगा जाए
मैं प्रेयसी अपने बालम की जो नयना गीली होय
जो स्नेह के पाती भेजे तो हाथन पीली होय

मधुरेश नारायण ने 'चुगली' शीर्षक अपनी कविता में बिलकुल नए अंदाज में ढलती उम्र की जद्दोजहद का अनूठे तरीके से और सशक्त चित्रण किया- 
वह रास्ते में मिल गए तो यूँ ही 
पूछ लिया - कैसे हैं आप
बोले- बिलकुल ठीक हूँ
पर तेज तेज साँसों ने चुगली कर दी.
*
फिर मधुरेश ने प्यार के बोल बोलने की कोशिश की तो खंजर निकल पड़े-
प्यार बिना मानवता की धरा हो गई बंजर 
प्यार के दो बोल बोलते नहीं हर बात पे निकले हैं खंजर

हरेंद्र सिन्हा ने रेल परिसर में दो रेल कर्मियों की उपस्थिति में हो रही इस काव्य गोष्ठी में रेल यात्रा पर ही पढ़ने में अपनी भलाई समझी-
अलग अलग लोगों का भी / ट्रेन में हो जाता है साथ
कोई जा रहा है बिटिया को लाने / कोई जा रहा है बहू को बेटे के पास पहुँचाने
*
फिर उन्होंने अपने मन की बात कह डाली-
गुनगुनाने की कला तो सीखी है लुगाई से / ममत्व, बोधिसत्व को सीखा है भाई से
जुड़े रहने की कला सिखी है दाई से  / जीने की कला सीखी है विलग विलग मिताई से

नसीम अख्तर ने होली के रंग में सबको डुबो डाला-
देखो तो फखत रंग का त्यौहार है होली 
सोचो तो मुहब्बत  है वफा, प्यार है होली
ये क़ौसे क़ुजह और ये शफक कहती है हमसे 
हर दायरे हुस्न की प्रकार है होली
(क़ौसे क़ुजह = इंद्रधनुष,शफक़= सवेरे और शाम की लालिमा, ऊषा)
*
नसीम पूरी तरह से होली के अबीर लुटा रहे थे-
काँटों को भी अबीर लगाती हुई कली / उड़ता हुआ गुलाल फिजां में  गली गली 
हर  सम्त नाचती हुई मस्तों की मण्डली / मीठी मुगल्लज़ात है नगमासराइ है 
(मुगल्लज़ात = भद्दी गालियाँ, नगमासराइ = गीतों का गायन)

हेमन्त दास 'हिम' ने आहत भावनाओं पर सौहार्द का चन्दन लेपे जाने की इच्छा जताई-
जब औरों को चोट पहुचाने की शर्तों से पटी हो राहें 
सुविधाओं की कीमत जब हो, बस आहत भावनाएं 
उपहार में लेकर सौहार्द का चन्दन तुम आ जाना  

अशोक प्रजापति ने 'वापसी' शीर्षक कविता में अलमस्त बांसुरीवाले की सम्मोहक धुन की चर्चा की-
शहर के तारकोली राजपथ पर 
चला जा रहा है समय का 
अदना अलमस्त बाँसुरीवाला 
छेड़ता हुआ सम्मोहक धुन
अलापता हुआ दौलत राग 

सिद्धेश्वर प्रसाद ने अपनी ऊर्वरक भूमि में बारूद की फसल के उग आने पर क्षोभ प्रकट किया-
हमारी उर्वरक भूमि में त्याग, प्यार और संवेदना के 
बीजारोपण की जगह 
क्यों उगाने लगते हो 
नफ़रत, द्वेष और बारूद की फसल 

अन्य सभी कवियों के काव्य पाठ के बाद इस कवि गोष्ठी के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी की पारी थी.  सभी प्रतिभागियों ने श्री दिवेदी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथों हिंदी और भोजपुरी साहित्य में 50 सालों तक योगदान देने के लिए सम्मानित होने के लिए बधाई दी. तत्पश्चात उन्होंने पूर्व में पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी की और फिर अपनी कविता के माध्यम से पाखी को उड़ने की मनाही का ऐलान किया-
पाखी को उड़ने की सख्त है मनाही 
अंखुआए सपनो को चाट गई लाही
कौन सुने किसकी महुहार / अलग अलग सबके रस्ते
*
फिर उन्होंने चटक-मटक के चक्कर में अपनी पवित्र संस्कृति को खोते जाने का परिदृश्य रखा-
चटक-मटक / कुछ हो आयातित
पश्चिम से लाओ / गमला संस्कृति 
अपनाओ / कुदरत को ललचाओ
सरे-राह अपनी मर्जी से / गाड़ेंगे खूँटे

अंत में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के सिद्धेश्वर प्रसाद ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रोयों का धन्यवाद ज्ञापण किया और अध्यक्ष की अनुमति से सभा के समाप्त होने की घोषणा की.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम' / सिद्धेश्वर प्रसाद
छायाचित्र- लता प्रासर 

























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