पोंछ कर हाथ चल दिये साहिब / उनकी खातिर मैं तौलिया ठहरा
साहित्य परिक्रमा द्वारा एक कवि गोष्ठी 22.2.2018 को चाँदमारी रोड, पटना के सभागार में आयोजित हुई जिसमें अनेक जाने माने कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार राज्य की हिन्दी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने की और उनके जाने के बाद अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी ने सम्भाली. मुख्य अतिथि थे भागलपुर से पधारे कवि डॉ. अरबिन्द कुमार और संचालन किया हेमन्त दास 'हिम' ने. मंचासीन अन्य कवि थे मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', जितेंद्र राठौर, समीर परिमल, विश्वनाथ वर्मा, अविनाश पाण्डेय और लता प्रासर. काव्य पाठ करनेवाले अन्य कविगण थे- नसीम अख्तर, डॉ. रामनाथ शोधार्थी, संजीव कुमार श्रीवास्तव, मधुरेश शरण, सिद्धेश्वर प्रसाद, हरेंन्द्र सिन्हा, उषा नेरुला आदि. होली के अवसर पर फागुनी रंग में रंगी रचनाओं के अतिरिक्त गम्भीर कविताएँ भी पढ़ी गईं. राष्ट्रीय कवि संगम के बिहार प्रांत के संयोजक अविनाश पाण्डेय ने अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप की जानकारी दी और कहा कि हालाँकि उनके ग्रुप में वरिष्ठ कविगण भी हैं किंतु यह मूल रूप से युवा कवियों का ग्रुप है और बिहार के 19 जिला इससे जुड़ चुके हैं. इस अवसर पर भगवती प्र. द्विवेदी, मधुरेश नारायण और हरेंद्र सिन्हा द्वारा सम्पादित पत्रिका 'लोकचिन्तन' का लोकार्पण भी हुआ.
पढ़ी गई कविताओं की एक झलक नीचे प्रस्तुत है-
1.तूने चाहा नहीं हालात बदल सकते थे
मेरे आँसू तेरी आँखों से निकल सकते थे
2.मैं चला अपना घर जलाने को
रौशनी चाहिए जमाने को
(नसीम अख्तर)
1.गूँथता रहता हूँ अल्फाज को आँटे की तरह
बावजूद इसके मुझे रोटी मयस्सर नहीं
2.यूँ टकटकी लगा के मत देख
धीरे धीरे कहीं सुलग न जाऊँ मैं
(डॉ. रामनाथ शोधार्थी)
पोंछकर हाथ चल दिये साहिब
उनकी खातिर मैं तौलिया ठहरा
सुन रहा हूँ कि शह्र में तेरे
मैं सियासत का मुद्दआ ठहरा
(समीर परिमल)
इस धरती पर लाकर जिसने पहचान दी सब को
भूखे रहकर भूख मिटाई जिसने हम सब को
माता उसको नमन.
कविता के अलावे उन्होंने हिंदी लोकप्रिय गीत के संस्कृत अनुवाद भी सुनाए.
(अविनाश पाण्डेय)
जीवन खत्म हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गई तो महफिल में रंग आया
(उषा नरुला)
बीबी एक सुनियोजित आतंकवाद है / प्रेमिका तस्करी का माल है
बिबी सत्यनारायण का प्रसाद है तो प्रेमिका प्रसाद है
(विश्वनाथ वर्मा)
बच्चा भगवान होता है / माँ बाप नहीं हो सकते भगवान
भगवान से इनसान बनते बनते / सीख लेता है बच्चा
इस जगत के सैकड़ों अपराध
(सिद्धेश्वर प्रसाद)
'पवनार के आश्रम में ' शीर्षक अपनी प्रसिद्ध रचना का पाठ किया.
(डॉ. अरबिन्द कुमार)
फागुन मनवा गा रहा / सुन लो मेरे मीत
कण कण बाजे संगीत / गूँज रही है प्रीत
(लता प्रासर)
बंद कमरे की तरह होती है / महानगर की जिंदगी
जिसमें दरवाजे तो होते हैं / लेकिन खुलते नहीं कभी
(संजीव कुमार श्रीवास्तव)
यह रंगों की रात अबीरी गंधों की / पोर पोर में फागुन तुमको डँस जाये तो
ये सेंदूर की नदी सामने बढ़ आई / लहर कलाई की चूड़ी सी चढ़ आई
(सत्यनारायण)
मूल्क का आधा नक्शा / कल बकरी चबा गई
बाकी अब मेमना चबाएगा / समाजवाद आएगा जरूर आएगा
(-जितेंद्र राठौर)
नाम ही रहता है जग में, दौलत काम न आया है
हाथ उठे दूसरों की मदद में, सबकुछ वही तो पाया है
थे हाथ सिकन्दर के खाली, जब कूच किया जग से प्यारों.
(मधुरेश नारायण)
1. हर साल चकाचक आबेला / बिछुड़ल लोगन के मिलावेला
2.यह जीवन है अनमोल सखी / मीठे मीठे तू बोल सखी
(हरेन्द्र सिन्हा)
यार कुछ यार से माँगे भी तो यारी माँगे / आज जो पास तेरे कल वो खजाना न रहे
दुश्मनी तो हो पर ये भी दुश्मनी कैसी / दुश्मनों से भी अगर दोस्ताना न रहे
(मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश')
सोचने की जगह होगी / केवल किताब
ईश्वर का नाम हो जाएगा कबूतर / जिसे उड़ाएंगे बूचर
(श्रीराम तिवारी)
जब हर किसी ने हर किसी का / छोड़ दिया हो साथ
छुपी हुई लिप्सा मात्र से /मिला रहे सब हाथ
तुम्हें सपर्पित मेरा स्वार्थरहित आलिंगन / तुम आ जाना
(हेमन्त दास 'हिम')
तमतमाये / चेहरे / पलाश हो गए हैं
काँखों में / दहशत के / बीज बो गए हैं
आँगन में उतरा पतझार / मातमी शिकंजे कसते
(भगवती प्रसाद द्विवेदी)
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रिपोर्ट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम' / मधुरेश नारायण / लता प्रासर