कार्यक्रम के प्रथम सत्र में बिहार के बेगूसराय से आईं युवा कवयित्री सीमा संगसार ने अपनी दर्जन भर से ज़्यादा कविताओं का पाठ किया और श्रोताओं से वाहवाही भी लूटी। तत्पश्चात सीमा संगसार की कविताओं पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज ने कहा, 'कि सीमा संगसार की कविताओं में जो ताज़गी और चमक है, वह बेहद प्रभावकारी है।' चर्चित युवा कवि राजकिशोर राजन ने उनकी कविताओं पर अपने विचार रखते हुए कहा, 'कि सीमा संगसार की कविताएँ ऐसी हैं, जो हम सबकी अपनी कविताएँ लगती हैं। उनकी कविताओं के मुहावरे उनके अपने मुहावरे हैं।' वहीं युवा कवि शहंशाह आलम का कहना था, 'कि सीमा संगसार हिंदी कविता की उन कवयित्रियों में हैं, जिन्होंने कविता में अपने लबो-लहजे को बचाए रखा है।'
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बिहार के प्रतिनिधि कवियों के शामिल होने से यह सत्र कुछ ज़्यादा ही महत्वपूर्ण हो गया। इस सत्र का आरंभ युवा शायर अक्स समस्तीपुरी के ग़ज़ल-पाठ से हुआ। अक्स समस्तीपुरी ने इस मौक़े पर सुनाया :
अपनी आँखें तो बंद कीजेगा,
कुछ मुझे आपको दिखाना है।
युवा शायर रामनाथ 'शोधार्थी' भी पीछे कहाँ रहने वाले थे। उन्होंने अपनी शायरी में फ़िक्र को एक नई चमक देते हुए सुनाया :
तुम्हारे नाम के जैसा हसीन लफ़्ज़ नहीं,
अगर कहो तो तख़ल्लुस बनाए लेता हूँ।
युवा कवि ई. गणेश जी 'बाग़ी' ने अपनी कविताएँ सुनाते हुए माहौल थोड़ा और तरोताज़ा किया :
'हम जैसे तो बस
डालते रहते हैं उसमें
खाद और पानी
परिणाम स्वरूप
लहलहाती रहती है
झूठ की खेती।'
अग्रज कवि एम. के. मधु इस अवसर पर आज के हालात पर अपनी धारदार कविताएँ सुनाते हुए कहा :
'तुम तो बस प्यादे थे
पाँव तुम्हारे थे
कंधा तुम्हारा था
शह और मात की चाल हमारी थी।'
युवा कवयित्री बासबी झा ने अपनी कविताएँ सुनाते हुए अपने कहने की चमक को कुछ इस तरह सार्थक किया :
'अदहन में खौलते हैं
दाल में छौंके जाते हैं
तरकारियों में फोरन बन
जलते हैं शब्द।'
चर्चित युवा कवि प्रशांत विप्लवी ने अपनी कविताओं की शैली की नवीनता को बचाए रखते हुए सुनाया :
'कितनी आसानी से पूछ लेती हो
कॉफ़ी या चाय
मैं अनमने बोलता हूँ
चाय कड़क।'
समकालीन कविता के बेहद अच्छे और ज़रूरी कवि योगेंद्र कृष्णा ने इस अवसर पर अपनी लंबी कविता 'देशद्रोह का ख़तरा' का पाठ करते हुए सुनाया :
'वे भूखे-अधनँगे थे
आँखों में गोल-गोल चमक थी
काली धूप जली खुरदरी चमड़ी से
रिसते नमक और पानी में
मौत के विरुद्ध रची अद्भुत तहरीरें थीं।'
अपनी 'कुशीनारा से गुज़रते' संग्रह से चर्चे में आए और कविता को गम्भीरता से बरतने वाले युवा कवि राजकिशोर राजन ने अपनी कई कविताओं का पाठ किया। उन्होंने अपने गिर्दो-पेश में चल रहे षड्यंत्र की ओर इशारा करते हुए सुनाया :
'अकस्मात् ही हुआ होगा
कभी दबे पैर आया होगा
ईर्ष्या-द्वेष
घृणा-बैर आदि के साथ
जीवन में राग।'
अपनी कविताओं में अपने अलहदा स्वाद के लिए पहचाने जाने वाले कवि शहंशाह आलम ने इस मौक़े पर अपनी कविताएँ सुनाते हुए कहा :
'मैं जो भेड़ों के साथ रहा हुआ गड़ेरिया हूँ
मिट्टी के साथ रहा हुआ कुम्हार
कपास के साथ रहा हुआ सूत कातने वाला
मैं एक दक्ष पतंगबाज़ न भी होऊँ
तो क्या मुझे पतंगबाज़ी नहीं करनी चाहिए।'
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज ने हमारे आसपास जो अजीब डर पैदा किया जा रहा है, उस डर से हमें बाहर निकालते हुए सुनाया :
'माँ के लिए कविता प्रार्थनाएँ थीं
जिन्हें वे परलोक सुधारने के लिए गाती थीं
इन गीतों में सूरज को उगने का निवेदन था।'
इन कवियों के अलावे सर्वश्री कवि घनश्याम, डॉ. मनोज कुमार, प्रभात कुमार धवन ने भी अपनी-अपनी कविताएँ सुनाईं और श्रोताओं को प्रभावित किया। इस बेहद सफल कार्यक्रम का समापन राजकिशोर राजन के धन्यवाद ज्ञापन से किया गया।
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