**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Tuesday 12 July 2016

Srijan Sangati Patna ki Kavya Gosthi ( सृजन संगति पटना की काव्य-गोष्ठी दिनांक 11.7.2016)

(View Count -53 till last update)

सृजन संगति, पटना के तत्वावधान में एक काव्य-गोष्ठी का अवर अभियंता भवन, अदालतगंज, पटना में 11 जुलाई को सम्पन्न हुआ जिसमेंं न सिर्फ शहंशाह आलम, शिवनारायण, राजकिशोर राजन, हेमन्त दास 'हिम' , सुजीत वर्मा , वासवी झा समेत पटना के वरिष्ठ और चर्चित कवियों ने भाग लिया बल्कि समकालीन हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर दिल्ली से आये हुए नित्यानंद तथा दुमका से आये हुए अशोक सिंह ने भी सुशोभित किया. अध्यक्षता की डॉ. रानी श्रीवस्तव ने की तथा संचालन हृषिकेश पाठक ने किया. 

नित्यानंद ने दिल्ली और जे.एन.यू. के संस्मरणों को सुनाते हुए अनेक समकालीन  कविताएँ पढ़ी. कुछ बानगी 
प्रस्तुत है-"मैं बेचने के लिए नहीं लिखता/ बिक गया तो लिख नहीं पाऊँगा",
 "मैं पतझड़ में वसन्त लिख रहा हूँ",
"जीते जी मरते रहना/ और मर कर जी जाने में बड़ा अन्तर होता है"
"तुम अपने देवता के साथ रहो/ कवि अपने साहस के साथ रहेगा"
"गरीब इस देश का सबसे बड़ा योद्धा होता है/ और उसके लड़ने में होती है वीर रस की सबसे बड़ी कविता"
  
फिर राष्ट्रीय स्तर की तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे वागर्थ, हंस, आजकल आदि में इन दिनों छा जाने वाले वरीय कवि और समालोचक श्री शहंशाह आलम ने अनेक संदेशपूर्ण, सरल और प्रभावकारी कविताओं के द्वारा अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे. यथा-
"मैंं अपनी ही खिड़की खोलता हूँ"
"पुनर्जन्म की कथा के बारे में"

उनके बाद वासवी झा ने स्त्री विषयक मजबूत कविताओं का पाठ किया..उदाहरण स्वरूप-
स्त्री शीर्षक कविता-"वह कोमल है/ स्नेहस्पर्ष को आतुर/ नहीं /कहाँ मिलेगी  कोमलता"
"इच्छा होती है अपने माँ-बाप की नाजायज औलाद"

हेमन्त दास 'हिम' ने 'कविता क्या है' शीर्षक कविता पढ़ा-
"एकत्र किये की सजावट कविता नहींं/ 
कविता है/ पारे की तरह बिखड़े हुए कणों को समेटने के प्रयास में पुन:एक-एक कण के छिटकाव की रामकहानी
और आँखों में तैर रहे अखण्डत्व का/ आँखों देखा हाल"

 कवि सुजीत वर्मा ने शब्दों के माध्यम से विद्रोह का बिगुल बजा डाला-
कविता के विरुद्ध/ हमारी सत्ता की दुखती रगों से टकराने लबी है./ आज की कविता बायीं ओर थोड़ा झुक कर चलती है/

गणेश बागी ने 'सड़्क'  शीर्सक कविता सुनाई-
"बार-बार पेड़ कुचली जाती है/ सड़्क सच्ची प्रतिनिधि है इस देश की

वरीय कवि राजकिशोर राजन ने 'अंत नहीं अनंत' शीर्षक की तथा अनेक प्रभावकारी कविता सुनाई.

गोष्ठी के संचालक हृषिकेश पाठक ने बिहार में शराबबन्दी से उपजे  सकारात्मक सामाजिक बदलाव पर प्रकाश डालते हुए बड़ी मार्मिक कविता सुनाई-
"वह हरिया के पास कभी नहीं गई/ पर दारू की दरिंदगी में चार बच्चे आ गए"

फिर  'नई धारा' नामक प्रतिष्ठित पत्रिका के सम्पादक और वरिष्ठ कवि शिवनारायण ने 'टीशन वाली स्त्री' शीर्षक कविता सुनाई जो एक सुंदर स्त्री के शारीरिक सौंदर्य पर ध्यान खींचकर अचानक उसके ममत्व पर ध्यान लाकर टिका देती है. दूसरी कविता में उन्होंने एक खास पुलिस अधिकारी के अनोखे साहित्यकारिता के तरीकों पर प्रकाश डाला.

इसके बाद इस गोष्ठी के महत्वपूर्ण आकर्षण अशोक सिंह जो दुमका से आये थे, ने पारिवारिक प्रेम और विश्वास पर आधारित कविताओं का वाचन कर पूरे माहौल को भावपूर्ण कर दिया. बानगी देखिये-
"माँ, मैं ताबीज नहीं पहनता/ मैं तुम्हारा विश्वास पहन रहा हूँ"
"घर की बोझ नहीं होती बेटियाँ/  बल्कि ढोती है घर का सारा बोझ"/
उनके होने से बनी रहती है ताजी घर की हवा"
"मुझे ईश्वर नहीं तुम्हारा कंधा चाहिए"

अंत में अध्यक्षा डॉ. रानी श्रीवस्तव ने 'प्रश्नवाचक' शीर्षक भावपूर्ण कविता सुनाई जो नारी के संघर्ष पर आधारित थी.-
"अब जबकि सब कुछ खत्म हो चुका है/ करीब-करीब"
 यह कवि गोष्ठी सार्थक समकालीन कविताओं को सीधे-सीधे वाचन के द्वारा पहुँचाने का माध्यम बनने में पूरी तरह सफल रही. कभी तो व्यवस्था और सामाजिक मूल्योंं के अवमूल्यन पर स्तब्ध कर देनेवाली कविताओं ने सन्नाटा उत्पन्न कर श्रोताओं के दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख दिया तो कभी इतना जोश भर दिया कि अच्छी संख्या में उपस्थित श्रोतागण करतल ध्वनि से सभास्थल को गुंजायमान करने से स्वयं को रोक नहीं पाये.
(The  writer of this article does not claim the perfection of this write-up in terms of it's content. You are welcome to suggest improvements. Send your suggestion  to hemantdas_2001@yahoo.com,/ facebook ID- Hemant Das Patna )












दैनिक जागरण, पटना जागरण सीटी, 12.07.2016


No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.