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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday, 26 June 2018

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद पटना द्वारा दि.25.6.2018 को कुन्दन आनन्द का एकल काव्य पाठ और तदुपरांत सामूहिक कवि गोष्ठी सम्पन्न

दाग से दामन बचाना चाहता है / और दौलत भी कमाना चाहता है


सुंदर काव्य कला कोई उम्र की मुहताज नहीं होती. संवेदना के स्तर पर युवाकाल किसी के जीवन में चरम अनुभूति का काल होता है. आयु बढ़ने पर यद्यपि शिल्प और अनुभव में निखार आता जाता है और पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृष्य को ज्यादा पैनेपन के साथ देखकर समझने की क्षमता विकसित होती जाती है किन्तु काव्य के हृदय संवेदना के स्तर पर तो यौवन की ही उपासना होती है. चाहे कितने भी उम्रदराज कवि क्यों न हों वे जब तक जवानी के अहसास से ही अपना तादात्म्य स्थापित पाते हैं तभी तक अच्छा लिख पाते हैं. सच्चाई तो यह है कि जब तक सृजन है तब तक यौवन है. अत: युवा कवियों के महत्व को कभी नकारा नहीं जा सकता चाहे शिल्प के स्तर पर अभी उनमें निखार आना शेष क्यों न हो.

राजेंद्रनगर टर्मिनस रेलवे स्टेशन, पटना के रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय तदुपरान्त वातानुकूलित कक्ष में 25.6.2018 को युवा कवि कुन्दन आनन्द का एकल काव्य-पाठ और उसके बाद एक सामूहिक कवि-गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसमें वरिष्ठ और युवा कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी तथा संचालन सिद्धेश्वर ने किया. मुख्य अतिथि थे आरपी घायल एवं विशिष्ट अतिथि थे राजमणि मिश्र.

सबसे पहले ओजस्वी कवि एवं निर्गुण भाव के उपासक युवा कवि कुन्दन आनन्द का एकल काव्य पाठ हुआ. इनकी कविताओं में जीवन का यथार्थ है और उसकी समझ भी. ये जीवन को प्रमाद में बिताने की बजाय उसे अर्थपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण बनाने पर बल देते हैं. इनकी पाठ करने की शैली भी काफी सुगठित है जिससे श्रोता बरबस इनकी पंक्तियों में आबद्ध होता चला जाता है. इनके द्वारा पढी गई कविताओं की बानगी देखिये- 

कुंदन आनंद -
1. दाग से दामन बचाना चाहता है
और दौलत भी कमाना चाहता है
आदमी वो शायद बहुत गरीब है
हर कोई उसको दबाना चाहता है

2. क्या करे हम भला आप ही बोलिए 
चुप न रहिए जी अपनी जुबाँ खोलिए 
आप ने कल कहा तू न चल भीड़ में 
आप ही आज क्यों भीड़ में हो लिए? 
उनको अपनो में भी जब न अपना मिला
बंद कमरों में ही खूब वो रो लिए
धर्म हमने निभाया है मजदूर सा 
पीठ पर जो पड़ा सबको हम ढ़ो लिए 
हमको काँटों ने पाला पिता की तरह 
मेरे काँटों को फूलों से मत तौलिए.

3. जिस दिन से श्मशान से होकर आया है 
समझ गया है दुनिया बस मोह-माया है 
वो मेरी भी और तेरी भी है अपनी
मौत के लिए कोई नहीं पराया है 
दाने  दाने की कीमत उससे पूछो
कई रात बस भूख को जिसने खाया है 
खुशनसीबों में लिखो तुम हमको भी 
हमने भी तो माता पिता को पाया है 
इस शहर में भी खुद में ज़िंदा हूूँ क्योंकि 
गाँव की मिट्टी ने मुझे बनाया है.

4. कलम छोड़ के उठ गया है परेशान है क्या

शायर हो जाना इतना आसान है क्या?

अभी अभी घोषित हुआ है वो महान 

पता लगाओ आदमी धनवान है क्या

5. मन जिद्दी नहीं हो तो समझो शक्ति अभी अधूरी है
लक्ष्य प्राप्ति हेतु जिद्दी होना बहुत जरूरी है

काव्य के गगन में नवोदित प्रतिभावान कवि कुन्दन आनन्द के एकल काव्य पाठ के बाद अनेक उपस्थित कवि-कवयित्रियों ने अपनी टिप्पणियाँ कीं. सभी ने उनकी काव्यकला की प्रशंसा की और अपने कुछ सुझाव भी दिये. उनकी कविताएँ दिल से निकलती हैं दिमाग से नहीं अर्थात वे निर्माण नहीं सृजन का प्रतिफल हैं जो कि स्वागत योग्य है ऐसा शायर समीर परिमल ने कहा. अर्चना त्रिपाठी ने उनके सम्बंध में युवा आशिक कवि के रूप में अपनी धारणा को रखा. आरपी घायल ने कुन्दन को 'मीटर' पर ध्यान देने को कहा और मात्रा सम्बंधी कठोर नियमों के पालन को को गज़ल की एक अनिवर्य शर्त बताया. हेमन्त दास 'हिम' ने कुन्दन की कविता के विषयों की विविधता की प्रशंसा की और उन्हें गढ़े हुए आदर्शवाद की बजाय जीवन की जटिलताओं का आशावादी दृष्टिकोण के साथ वर्णन करने का परमर्श दिया. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कुन्दन को काफी बेहतर गज़लगो बताया यद्यपि शैलीगत सुधार की सम्भावना की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए मौत की बजाय जिजीविषा पर बल देने का विचार रखा. 

कुन्दन आनन्द के एकल काव्य पाठ के बाद अनेक वरिष्ठ और जाने-माने कवि-कवयित्रियों ने भी कविताओं का पाठ किया.

समीर परिमल ने शहर के इनसानियत और सृजनशीलता की हत्या कर अब भी खंजर लिए घूम रहे कुछ शातिर लोगों को देख कर अपनी प्रतिक्रिया दी-

मिल न पाएगा तुम्हे एक भी ज़िंदा इंसां
क्यूँ भटकते हो लिए हाथ में खंजर अब भी
छोड़ के घर को गया है मेरा मेहमाँ जब से
करवटें रोज बदलता है ये बिस्तर अब भी

ऐसी वीरानगी के माहौल में राजमणि मिश्र के पास लू भरी दुपहरी उम्र भर को टिक जाती है-
लू भरी तपती दुपहरी उम्र भर को टिक गई है
बूँद भर मधु के लिए हर साँस अपनी बिक गई है
छोड़ न दें प्राण तन का साथ मन का धीर दे दो
आज लौटाओ न खाली हाथ अपनी पीड़ दे दो 

और तपती दुपहरी में भी निगाहें बचा कर चल रहे प्रिय को ढूँढ पाने का माद्दा रखती हैं शमा कौसर शमा-
तुम्हें ढूँढ लेंगी ये नजरे हमारी
कहाँ तक चलोगे निगाहें बचा कर 
खुदाई का दावा तो करते सभी हैं 
दिखा तो अगर एक तिनका बना कर

सत्य का दर्शन सिद्धेश्वर भी कर रहे हैं जमाने की नजरों से-
अब तो ज़माने का दस्तूर निराला है सिद्धेश
खोटा सिक्का भी कसौटी पर टनाटन बोले
फूल को हाथ से छू लेना जरूरी तो नहीं
अब तो काँटों से उलझकर मेरा दामन बोले

मधुरेश नारायण की पीड़ा है कि ईश्वर के यहाँ कोई पैरवी क्यों नहीं चलती-
बड़ा कठोर है रब का शासन, पैरवी नहीं वह सुनता है
कर्म के अनुरूप अनुशासन का राह वही वह चुनता है
कर्म ही जीवन का आधार 

शरद रंजन शरद अपनी जुबान को मुँह की बजाय आँखों में रखते हैं-
सारे होठों की जुबानें दिल तलक जाती नहीं 
 इसलिए आँखों में हम रखते हैं थोड़ी सी जुबान
रहने थे सारे अनासिर आदमीयत से भरे 
पर यहाँ खाली जमीं, खाली मकान, खाली 

पहले से ही घायल शायर आरपी. घायल जगल और पठार के कटने से और भी घायल होते नजर आये-
हम हैं जमीं के हुस्न को कमतर किये हुए 
 जंगल पठार काटकर बंजर किये हुए
अंधेरी रात में दीये जलाना भी इबादत है  
 कभी तन्हाइयों में आँसू बहाना भी इबादत है

मेहता नागेंद्र सिंह भी गरमी की मार से परेशान दिखे-
मनमौजी निकला मौसम हम क्या करें / सूरज भी ढा रहा सितम हम क्या करें
बिन बारिश सूखी नदियाँ सूखी फसलें / खेतों में छाया मातम हम क्या करें

अर्चना त्रिपाठी को कोई और भी ज्वाला परेशान कर रही है-
दिये तो नहीं तुमने खुशियों के क्षण / जख्म की ज्वाला में जलते रहे उम्र भर
चला कर के हरदम शब्दों के नश्तर / बार बार सुइयाँ चुभोते रहे उम्र भर

विपरीत परिस्थितियों के ताप से संतप्त आराधना प्रसाद को देखकर उनका आईना भी चटक जाता है-
टुकड़ों में बँट गया है मेरा चेहरा इसलिए / चटका है कोई आईना हैरत की बात है
सच बोलता है रब यही अज़्मत की बात है / दुनिया अमल करे ये अदालत की बात है

हेमन्त दास 'हिम' को शायद कोई धूप में शीतल पवन बहानेवाली मिल गई-
तुम आये तो ऐसा लगा / धूप में शीतल पवन बहा
नदी के बहते पानी पर  / लिख डाला 'हिम' ने किस्सा

प्रभात कुमार धवन ने बुजुर्गों के चले जाने से प्रकृति से सरोकार और स्वास्थ्य दोनो को खो देने की चिन्ता की.
नीम के दातुन / गंगा की मिट्टी पानी
तुलसी के पौधे की देखभाल / बच्चों के स्वास्थ्य की चिन्ता
थी हमारी बुजुर्गों को ही

सभी कवियों को दुखी होते देख कर नसीम अख्तर ने ये कहा-
हँसाने से पहले रुलाता है अक्सर / ज़माना ये मंज़र दिखाता है अक्सर
सुने या नहीं कोई अख्तर को लेकिन / अकेले में भी गीत गता है अख्तर 

काव्य पाठ को सम्पूर्णता प्रदान करते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने जीवन के निर्णायक पड़ाव के तौर पर गाँव को चुना- 
मैं भी लौट आऊंंगा / सम्पूर्णत: तुममें समाने की गरज से
अपना खोया हुआ सर्वस्व पाने को / फिर से अंकुराने को
मैं लौटूंग़ा / जरूर लौटूंगा सम्पूर्णता में / मेरे गाँव.
अपने काव्य-पाठ के पहले उन्होंने सभी कवियों द्वारा पढ़ी गई कविताओं पर अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी भी की. 

अंत में शमा क़ौसर शमा ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रियों का हृदय से धन्यवाद ज्ञापण किया. इसके पश्चात अध्यक्ष की अनुमति से सभा विसर्जित की गई. वरिष्ठ कवियों के बीच एक युवा कवि के एकल काव्य पाठ के कार्यक्रम का रखा जाना और युवा कवि का भी पूरे हौसले के साथ सफलतापूर्वक उसका निर्वाह किया जाना अपने ढंग का एक सुखद संयोग माना जा सकता है जो शायद ही कहीं देखने को मिलता है. 
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रिपोर्ट के लेखकगण - हेमन्त दास 'हिम' / सिद्धेश्वर
छायाचित्रकार- नसीम अख्तर 
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com

















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