थोड़ी ठंडक मिली.हमलोग एक दिन पहले 31 को कालिदास सजा दिए,शाम बारिश ने थोड़ा ही सही पर सजावट पर पानी फेरा,लेकिन दूसरे दिन फिर दुरुस्त कर दिया गया.इस नाट्योत्सव में बाहर से भी लोग आये. आगरा से प्रेमशंकर,अवंतिका,प्रियम अंकित ,सुल्तानपुर से गीतेश, रूचि , दिल्ली से मृत्युंजय,और गोरखपुर से जसम के महासचिव मनोज सिंह. ये सारे लोग आयोजन की टीम का हिस्सा हो गए. अंकुर जो पूरे आयोजन का प्रचार-प्रसार सामग्री तैयार कर रहे थे, वो 29 को ही मुम्बई से पटना पहुँच गए,सजावट की तैयारी में धर्मेंद्र शुशांत लगे रहे.1 जून कार्यक्रम का उद्घाटन होना था.तनाव ,हड़बड़ाहट थी कार्यक्रम शुरू होने की.लोगों का आना शुरू हुआ. उद्घाटन परवेज़ अख्तर ने किया और लोगों का स्वागत प्रो. डेज़ी नारायण ने और कार्यक्रम का संचालन ऋचा ने किया.धीरे-धीरे हाल फुल.485 सीट,पहला शो कुच्ची का क़ानून कोरस की प्रस्तुति,लोगों को खूब पसंद आया. जाते-जाते दर्शकों को कल के नाटक के लिए फिर से आमंत्रण दिया गया.
कोरस टीम अब कल की टीम के स्वागत में लग गई.मुम्बई से आरंभ थियेटर प्रोडक्शन का नाटक 'बंदिश'. 2 की सुबह मुंबई की पूरी टीम पटना पहुँच गयी.तैयारियां शुरू थी हॉल में लाइट, बाहर नुक्कड़ नाटक की तैयारी,मिडिया से बातचीत सब चल रहा था.शाम 5 बजे से लोगो का आना शुरू हो गया,लोग कालिदास परिसर में चाय,बतकही और किताब की दूकान पर किताबें देखना , खरीदना सब चल रहा था.जोगीरा के साथ धमार फाउंडेशन टीम का रूबी ख़ातून के निर्देशन में राजेश कुमार द्वारा लिखित नुक्कड़ नाटक 'हमें बोलने दो' शुरू हुआ .आज की मीडिया का चेहरा दिखाता यह नाटक लोगों को खूब पसंद आया.इस टीम को जसम के महासचिव मनोज सिंह ने नाट्योत्सव का स्मृति चिन्ह भी दिया.लोग बंदिश देखने के लिए एकदम तैयार थे.जैसे ही हॉल का गेट खुला लोगों ने अपनी जगह लेनी शुरू कर दी. दस मिनट के भीतर पूरा हॉल फुल हो गया.नाटक शुरू हुआ.भीषण गर्मी के बावजूद दो घंटे के इस नाटक को लोगों ने बहुत धैर्य के साथ देखा.नाटक का एक संवाद कि 'जब कलाकार हँसा सकता है,रुला सकता है तो सोचने को भी मजबूर कर सकता है' इस बात को साबित करता यह नाटक दर्शकों और कलाकारों के बीच रिश्ता बनाता चला गया. नाटक ख़त्म हुआ और लोग अपनी जगह पर खड़े होकर देर तक लयबद्ध तालियां बजाते रहे. आलोक धन्वा ने इस टीम को स्मृति चिन्ह दिया और कहा कि मैं नाटक को देखकर यहाँ बोल रहा हूँ,और लोगों के दिल की धड़कन दर्शकों की तालियों से सुनाई दे रही है.रात के 10 बजे तक दर्शक एक-एक पात्र को अपनी तालियों से शुक्रिया कह कर गए.
तीसरे और अंतिम दिन नुक्कड़ नाटक कोरस की बच्चा गैंग द्वारा ,प्रभात झा के निर्देशन और रेहान फज़ल के लेख पर आधारित 'भगत सिंह की ज़िन्दगी के आखिरी 12 घंटे 'प्रस्तुत किया गया. लोग बहुत तन्मयता से देख रहे थे,उसके बाद 'द स्ट्रगलर' की टीम ने जन-गीतों से पूरे माहौल को ऊर्जा से भर दिया,हम मेहनतकश जग वालों से,सरफ़रोशी की तमन्ना इसी तरह से एक के बाद एक. आठ-दस गीतों को गाया और लोग तालियां बजाते हुए उन्हें सुनते रहे.दोनों को स्मृति चिन्ह क्रमश: बसंत मिश्रा व रामजी राय ने दिया.
अंतिम दिन भी वही स्थिति , हॉल का दरवाज़ा खुलते ही लोग अपनी सीट पर आ गए और प्रवीण कुमार गुंजन द्वारा निर्देशित,भिखरी ठाकुर द्वारा लिखित 'द फैक्ट रंगमंडल' बेगूसराय की प्रस्तुति गबरघिचोर शुरू हुआ.दर्शकों ने नाटक को खूब सराहा,परवेज़ अख़्तर द्वारा इस टीम को स्मृति चिन्ह दिया गया.नाट्योत्सव का समापन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय के वक्तव्य से हुआ.उन्होंने कहा-आज़ाद वतन,आज़ाद ज़ुबां थीम पर आधारित कोरस नाट्योत्सव में आये सभी नाटकों ने अपनी बात कही.और बंदिश नाटक के संवाद- 'वो बंदिशे लगाएंगे,और हम बंदिशे गाएंगे' को आगे बढ़ाते हुए इस तरह के और आयोजन करते रहेंगे.
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