एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
'सृजन संगति' संस्था द्वारा अदालतगंज, पटना में स्थित अवर अभियंता महासंघ के भवन में डॉ. भोला प्रसाद सिंह 'तोमर' की स्मृति में एक सभा और काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. नागेन्द्र मेहता, उदघाटन बिहार राज्य हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने किया और सञ्चालन ह्रीषीकेश पाठक ने किया. मंचासीन कवियों में नागेन्द्र मेहता, विजय गुंजन, घमंडी राम, राजकुमार प्रेमी, आनंद किशोर शास्त्री और ज्योति स्पर्श भी सम्मिलित थे. पहले सत्र में वक्ताओं ने डॉ, भोला प्रसाद सिंह 'तोमर' के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा की और दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमे बड़ी संख्या में पुराने और नए कवियों ने भाग लिया.
कुछ कवियों द्वारा पढ़ी गई पंक्तियाँ निम्न हैं-
बँटा पा के किनारे को हस्तियों के बीच
एक लहर खो गई दो कश्तियों के बीच
राशन, फीश, दवा के बीच ख्वाहिशें कहाँ
एक घर गुम हो गया है बस्तियों के बीच
(रविचंद्र 'पासवाँ)
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लोग क्या से क्या नहीं कर जाते हैं
रंग जमाने में जमाने के लिए
(कुंदन आनंद)
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मुझे सज़दे में सर कटने का डर है
मैं फिर भी सर झुकाना जानती हूँ
(ज्योति स्पर्श)
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ये समय बड़ा बेईमान है / समय पर साथ नहीं देता
जब दिखाना चाहते थे / उसी समय बुलावा आ गया
(रमाकान्त पाण्डेय)
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सास के अंगारे / ससुर के तीर /ननद के काँटे / पति की नफरत
ससुराल के चारो खंभों के बीच / खत्म हो गई तेरी चंचलता
तेरा आकर्षण / तेरा स्वास्थ्य / तेरी खुशी
(प्रभात कुमार धवन)
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स्त्री पुरुष का प्रेम / बिना किसी बंदिश के
अपनी भाषा में सब कुछ कह गया
क्षणिक ही सही ही / बड़ी पवित्रता से / सात्विकता से
परिपक्वता से / अपना बोध करा गया
(डॉ. रमेश पाठक)
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बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
(रितुराज पूजा)
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दिन के सवेरा बा / रवि के उजाला
चहके ले चिरई / रोअस चकोड़ा हो
(आप्पू कुमार सिंह)
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यूँ न रोओ साहब न रुलाया करो
लोग हँसने लगे हैं ये समझा करो
एक एक दो बनने से है बेहतर
मुझको तुम ग्यारह बनाया करो
(लता प्रासर)
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एक नदी मेरा जीवन
बादल ने तोड़ा मुझको / पर्वत ने जोड़ा मुझको
बूँद बूँद चुन
कर सहेजकर / धरती ने जोड़ा मुझको
(स्व. विशुद्धानंद की पंक्तियों का पाठ उनके सुपुत्र प्रवीर द्वारा)
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राकेश प्रियदर्शी ने पिता के चश्मे की महिमा पर, आर. प्रवेश ने बजरंग बली पर सस्वर पाठ और राजकुमार प्रेमी ने "मैं एक गरीब की बेटी हूँ" कविता का पाठ किया. सभी मंचासीन कवियों ने भी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया जो उद्धृत नहीं हो पाए हैं. अंत में सभी आगन्तुक कवियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए और अध्यक्ष की अनुमति से सभा की समाप्ति की घोषणा की गई.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / लता प्रासर
छायाचित्र- कुन्दन आनन्द
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