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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday, 19 March 2018

वातायन द्वारा अशोक प्रजापति के कथा-संग्रह 'मगेतर का मोबाइल' का लोकार्पण 18.3.2018 को पटना में सम्पन्न

 चकनाचूर रिश्तों के ढेर में जीवन की तलाश 




प्राइवेट फर्म में साधारण सा कोई काम करनेवाली मंगेतर लड़की ने मोबाइल गिफ्ट किया लड़के को जिसने उसे अपनी प्रेमिका को दे दिया और प्रेमिका ने उसी मोबाइल के सहारे अपना नया प्रेमी ढूँढ लिया. तो जनाब ये है आज के जीवन का प्रेम सम्बंध. प्रसिद्ध मंचासीन साहित्यकारों की उपस्थिति में अशोक प्रजापति के कथा संग्रह 'मंगेतर का मोबाइल' का लोकार्पण बी.आइ.ए. सभागार पटना में 18.3.2018 को सम्पन्न हुआ. सभागार खचाखच भरा था और वक्ताओं ने कथा-संग्रह के शिल्प और कथ्य पर विस्तृत चर्चा की. एक समय तो ऐसा आया कि वक्ताओं में पुस्तक के कथ्य के प्रति गंभीर मतभेद उतपन्न हो गया पर शीघ्र उन्होंने एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए स्थितियों को सहज होने दिया.

विभिन्न वक्ताओं के द्वारा प्रकट किये गए विचार निम्नवत थे-

रामजतन यादव ने कहा कि अशोक प्रजापति का कथा साहित्य में अवदान महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए.

शशि शेखर तिवारी ने आज के मशीनी युग में आदमी के खो जाने के खतरे की ओर इशारा किया. कल्पना यथार्थ से बड़ा सत्य होती है. 

अरबिंद पासवान ने कहा कि आज की कहानी में घटनाओं से अधिक परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण हो गईं हैं. पहले कहानियाँ समष्टिवादी होती थी अब व्यक्तिवादी होती जा रहीं हैं. कहानियों के केंद्र में मनुष्य है. जीवन और उसका संघर्ष है. सामाज में छीजते मूल्य का चित्रण लाजवाब है. विषय  वैविध्य है. पर्यावरण और उसके संकट पर इनकी गहरी दृष्टि है.  कहानीकारों को भावातिरेक और अति-वर्णन से बचना चाहिए.

जया अग्निहोत्री ने लेखक की आत्मीयता और सुहृदयता को उनकी विशेषता बताया और कहा कि  उनकी कहानियों में दृष्यात्मकता है. उन्होंने बिना अश्लीलता का सहारा लिए प्रेम का सुंदर वर्णन किया है.

सिद्धेश्वर प्रसाद ने कहा कि यह कहानीकार दकियानूसी विचारों से बिलकुल अलग विचार रखनेवाला रचनाकार है. कहानियों में ग्रामीण परिवेश का बर्णन बहुलता से हुआ है. इनकी ग्रामीण जीवन के प्रति संलग्नता कोई दूरबीन से देखी हुई बनावटी प्रकार की नहीं है बल्कि इन्होंने ग्रामीण जीवन को ओढ़ा बिछाया है और स्वयं भोगा है.

जयंत ने कहा कि प्रजापति की कहानियों में सामाजिक संघर्ष के स्वर हैं. स्माज, समय और परिस्थितियाँ जब भी लड़खड़ाती हैं साहित्य ही आगे बढ़ कर सहारा देता है.

संतोष दीक्षित का कथन था कि अशोक प्रजापति कहानियों में समाकालीन वैश्विक घटनाओं की पृष्टभूमि भी रखते हैं. कहानी में शिल्प और व्याकरण पर ध्यान देना होगा. 30 सालों का अंतराल की घटनाओं का ताना बाना बुनना सही नहीं है. 

रानी श्रीवास्तव ने कहा कि अब लड़कियाँ भी अपनी पसंद-नापसंद रखती हैं और वह भी लड़कों को उस आधार पर छोड़ रहीं हैं. 

उषा ओझा ने कहानीकार की उस विशेषता पर प्रकाश डाला कि लेखक कहानी लिखते समय एक बच्चा होता है. और पाठक खुद भी बच्चा  बनकर उसमें स्वयँ को ढूँढता है. जीवविज्ञान के ज़ाइलम-फ्लोएम से अलग नसों में क्या प्रवाहित हो रहा है यह समझने की जरूरत है. 

रामगोपाल पाण्डेय ने अशोक प्रजापति की जब कर खिंचाई की और कहा कि उन्होंने ऐसी कहानियाँ लिखीं हैं जिसका भारतीय संस्कृति और परम्परा से कोई मतलब ही नहीं है. मंगेतर का मोबाइल कहानी का नायक मोबाइल को उपहार में प्राप्त करके खुद मोबाइल हो जाता है. एक को छोड़्कर सभी पात्र अपने प्रेम को बदलते रहते हैं और किसी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं दिखते. ऐसी कहानियों को पढ़ कर समाज भ्रष्ट हो जाएगा. 

अंत में संचालक राजकिशोर राजन ने अपने विचार प्रकट किए और कहा कि कहानी कोई उपदेश का आख्यान नहीं है. लेखक वही लिखता है जो समाज में घटित हो रहा है. लेखक का काम सच्चाई को दिखाना है न कि आदर्श को प्रस्तुत करना. यह निर्णय विवेकशील श्रोतागण पर होना चाहिए कि वह कौन सा मार्ग चुनता है. इसके पहले राजन ने आजकल भाषा में हो रही कीमियागिरी पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि भाषा और  शिल्प की चकाचौंध बनाए रखने की होड़ में मूल कथ्य ही कमजोर पड़ता जा रहा है. एक बात और कहा कि स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि बनाई जाती है.

अंत में वातायन प्रकाशन के स्वामी राजेश शुक्ल ने आये हुए साहित्यकारों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया और अ
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम' एवं अरबिंद पासवान 
छायाचित्र- लता प्रासर
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