अपनी कलम से लिख रहीं अपनी कहानी लड़कियाँ
दिनांक 11 मार्च 2018 को साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था "लेख्य मंजूषा" की तरफ से शानदार "कवि सम्मेलन सह मुशायरा" आयोजित किया गया जिसमें संस्था ने एक से बढ़कर एक अतिथियों को आज मंच दिया जिनमें मुख्य अतिथि के रूप में स्वतंत्रता सेनानी तथा जाने माने कवि प्रभात सरसिज, भगवती प्रसाद द्विवेदी, आलोक धन्वा, संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव, ई. भूपेंद्र नाथ सिंह तथा डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन किया।
कार्यक्रम में कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाओं का पाठ कर लोगों को आनंदित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में देश के शहीदों के लिए एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई और संजय कुमार'संज'ने कहा कि आज उनकी वजह से हम यहां खुशी से कार्यक्रम कर रहे हैं तो देशभक्ति के लिए क्यों किसी खास दिन का इंतजार करना।
अर्चना त्रिपाठी ने सुनाया-
यही चाह कदमों को आगे बढ़ाता और बढ़ता
देखते देखते दिन चढ़ा आया / पीली गेंद सी तिखी किरणें
बागी ने बाल-विवाह के उपर बहुत खुबसूरत भोजपुरी में व्यंग्य गीत सुनाया कि
भईलऽ विवाह कमात नइखऽ काहें, घर हीं में रहेल कहीं जात नईख काहें ।
कृष्णा सिंह ने जब सुनाया कि देखो झूमता बसंत आ गया तो मस्ती छा गई। विश्वनाथ वर्मा ने हास्य रस से सभी को खुब हंसाया। वीणाश्री ने सुनाया कि जब तक रहते हो सब संवरा सा लगता है।'
मुख्य अतिथि श्री प्रभात सरसिज ने पढ़ा कि औरत ही है जो जिंदगानी को खुश रखती है, डॉ सुमेधा पाठक ने कविता में महाभारत काल से औरतों की बेबसी को दर्शाया, हेमंत दास हिम ने सुनाया कि 'आपकी है नाराजगी, मेरा हौसला है, यूं ही डटे रहने में दोनों का भला है।'
ज्योति स्पर्श ने शेर पढ़ा कि 'कहां चली जाती हो, लौट आओ आती सांसों की तरह।'
फिर उन्होंने सुनाया "
अपनी कलम से लिख रही अपनी कहानी लड़कियाँ / रच रही अपनी नित नई निशानी लड़कियाँ
"आवाज़ अब देश के लिए लगाओ साथियों,
नफ़रत की हर आग अब बुझाओ साथियों,
पढ़कर कवि संजय कुमार 'संज' ने लोगों में देशभक्ति का जोश भर दिया।
सुनील कुमार ने सुनाया कि '
एक गम भी पिन्हा है तबस्सुम में उसके / बगर्ना देर तलक मुस्कुराता कौन है
बे-सबब आजकल करीब आता कौन है, यूं ही तेरी हां में हां मिलाता कौन है।'
सिद्धेश्वर ने सुनाया कि खुशी का मुझको एहसास नहीं, मेरी ही जिंदगी मेरे पास नहीं।'
शमा कौसर शमा ने सुनाया कि छोड़ कर वतन अपना चल दिए कहां लोगों, जब यहां हिमालय है।' मधुरेश ने बड़ा मजेदार और लयबद्ध गीत सुनाया कि
जादू की इक झप्पी लाए जीवन में प्यार, कब से कर रहा है दिल तेरा इंतज़ार।'
नीलांशु रंजन ने सुनाया कि "जब से वो मेरे शहर से गई है/ शाम वहीं पे ठहर सी गई है"
संगीता गोविल ने पढ़ा 'देश के नौजवानों समय पुकार रहा है, आज शत्रु द्वार खड़ा ललकार रहा है ।' एकता कुमारी ने पढ़ा 'एक पहेली मैं पूछती हूँ तुम से बताओ तो जानूँ'। नेहा नूपुर ने सुनाया कि परंपराओं के पेंग में घिसती नित ख्वाहिशों की रस्सियां, संकरी सीढ़ियों पर सरकते सरकते।'
राजमणि मिश्र ने सुनाया कि '
दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, परिभाषा एक है।'
सतीश राज पुष्करणा ने सुनाया कि, धुप भागती जा रही है और मेरी छाया धुप को पकड़ने के लिए।'
सदस्यों में प्रो. डॉ. सुधा सिन्हा, ज्योति मिश्रा, प्रेमलता सिंह, सविता श्रीवास्तव तथा नेहा नारायण सिंह ने भी अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं।
अन्य अतिथियों में लता पराशर, संजय सिंह, विश्वनाथ वर्मा, सिद्धेश्वर तथा पिंकी सिन्हा ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर काफी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अतिथियों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से जीवन की आपाधापी में लोगों को सुकून मिलता है।
प्रवासी सदस्यों की रचनाएं भी उपस्थित सदस्यों द्वारा प्रस्तुत की गई जिनमें गिन्नी, कमला अग्रवाल, पूनम देवा, शशि शर्मा खुशी, पम्मी सिंह, मनीष मिश्रा, धरणीधर मणि, सत्या शर्मा कीर्ति प्रमुख रहें।
मंच संचालन वीणाश्री हेम्ब्रम और मो. नसीम अख्तर ने संभाला. इस तरह रचनात्मकता की वासंती बयार के साथ यह कार्यक्रम हँसी खुशी के माहौल में समाप्त हुआ.
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आलेख- दिनेश्वर
छायाचित्र- मधुरेश नारायण, सुनील कुमार
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