तब तक छै खुशी जब तक छै किसान
दिनांक 20.9.2020 रविवार को अजगैवीनाथ साहित्य मंच ,सुलतानगंज के तत्वावधान में अंगिका भाषा पर आधारित आनलाइन अंगिका कवि -गोष्ठी मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य की अध्यक्षता में आयोजित की गई जिसका संचालन मंच के अध्यक्ष व साहित्यकार भावानंद सिंह प्रशांत ने किया और संयोजन मशहूर शायर खडगपुर से ब्रह्मदेव बंधु ने किया। कार्यक्रम में दर्जनों अंग कवियों ने अपनी -अपनी रचनाओं का पाठ किया। आयोजित कवि-गोष्ठी में सभी आमंत्रित कवियों को मंच द्वारा अंग-रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। कवि -गोष्ठी में भागलपुर, बांका, मुंगेर, खड़गपुर, कहलगांव, गाजियाबाद, खड़गपुर और सुलतानगंज के अंगसपूत कवियों द्वारा कविता का पाठ किया गया।
सर्वप्रथम भागलपुर के वरिष्ठ कवि व गीतकार राजकुमार ने अंगिका भाषा में माँ सरस्वती की आराधना अपना गीत गाकर किया फिर किसानों की व्यथा पर कहा -
तब तक छै खुशी जब तक छै किसान
धरती के तोहीं हो भगवान।
अंग जनपद के सिरमौर कवि त्रिलोकी नाथ दिवाकर ने प्रेम की परकाष्ठा और समर्पित प्रेमी की भूमिका को अंगिका गीत गाकर खूब तालियां बटोरी जिसके बोल थे -
लाल कुरती पिन्हाय देभौं हे
वहीं भागलपुर से कवियत्री डा. सुजाता कुमारी ने लाकडाउन में बच्चों की मनमानी पर उसकी बालपन को यूँ उतारा -
आयको बूतरू बड़ो सियानो
करथों भरदिन बडो मनमानो
फिरू अंग जनपद के सम्मान में कहलकै -
अंग मंगल हुऐ ,जग मंगल हुऐ ,
अंग जनपद में प्यार सरल हुऐ ।
कहलगाँव से विख्यात कवि डा. इन्दुभूषण मिश्र देवेन्दु ने बेटी की शिक्षा को प्रसांगिक बताते हुए कहा -
पढ़ी-लिखी के हम्हु बनवै मिस्टरनी
गे माय ,भय्या के तों दहैं समझाय ...।
गाजियाबाद से सुप्रिया सिंह वीणा ने अपने गीत में बंटे हुए समाज के मनुष्य के एकलवाद पर प्रहार कर कहा - उगथ्हैं सुरूज आग लगावै हमरा कि
धधकी रौदा रौद जमावै हमरा कि ।
अंगिका के सपूत अंतरराष्ट्रीय कवि व हास्यव्यंग्य के प्रतिनिधि रचनकार रामावतार राही ने अपनी रचना से सबको लोहा मनवाया ,उन्होंने व्यंग्य में कहा -
रोज गिनै छै नमरी बुल्लु ,हम्मे कि ,
तों छो उल्लू,घरो बैठी के फाँको बल्लू ।
पढ़ी -लिखी के तोंहे दुखिया
ओंगठा छाप बनलै मुखिया।
बांका के कवि विकास सिंह गुलटी ने प्रकृति और पर्यावरण से जुडी रचना
सुनाई-पीपरो के डारी पर ,
लरूआ के टाली पर ,
फुर -फुर उडै चिरैया ।
अंगिका के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कवि सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने मार्मिक रचना पढ़ी-
जहिया सें आँखों के पानी हेरैलै ,
पुरानो - पुरानो कहानी हेरैलै ,
बुतरुआ के रोटी के फेरो में साहब ,
कमैतें -कमैतें जुवानी हेरैलै ,
सुनाकर अपनी रचना से सबको सोचै ले विवस करी देलकै ।
मुंगेर से अंगिका के कवि शिवनंदन सलिल ने श्रृंगारिक रचना सुनाया -
खुली गेलै कं खोपा .,
छिरयैलै गजरा ,छोड़ो -छोड़ो पिया जी
ओझारै ले अचरा ,
सुनाकर मन मोह लिया।
अंग क्षेत्र के प्रतिष्ठित कवि श्यामसुंदर आर्य ने किसानों की बेबसी और वर्तमान में देश की हालात को निशाना बनाया और कहा -
खेत में खटथैं कम्मर
टुटलै ,देही के उड़लै खाल ,
हमरो खूनो सें देश चलै छै ,
हमरो हाल बेहाल
,हम्मे अपनो कि बतलैहियौं हाल ।
कवि मनीष कुमार गूंज ने समाजिक परिदृश्य की बदहाली पर कहा -
हिन्ने जरलो ,हुन्ने मरलो ,
कचरा से सगरे छै भरलो ,
जरूरत जेकरा उ फरियावो ,
बेमतलब के नै गरियाबो ।
वहीं अंग जनपद के प्रतिनिधि अंगिका कवि डा. मनजीत सिंह किनवार ने अपने गीत के माध्यम सें समाज के वैविध्यपूर्ण चरित्र को रेखांकित किया जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में युवाओं की बेरोजगारी पर सटीक प्रहार था -
कोर -कसर जों रही गेल्हौं नौकरी के तैयारी में
,इज्ज़त फेनु तें नहिएं मिलथौं ,जीवन भर सोसरारी में,
बिना नौकरिया दूल्हा के आबे हालत कि बतलैहियौं,
हमरो भोगलो बात छिकै आबे तोरा कि समझैहियौं
कुरसी रहथैं बैठैले जग्हे दै छै गोरथारी में,...।
अंगिका के वरीय कवि व दर्जनों किताब के रचयिता हीरा प्र. हरेन्द्र ने अपनी कविता के माध्यम से सबको अचंभित कर दिया ,उनके बोल -
केकरा कौने कहा पारतै ,
धरमराज युधिष्ठिर नाकी
जुआ में बहुओ के हारतै ,
केकरा कौने कहा पारतै ।
वहीं मंच के अध्यक्ष व साहित्यकार भावानन्द सिंह प्रशांत ने भी अंगिका भाषा में दोहा और पावस गीत सुनाकर भाव विभोर कर दिया । दोहा में उन्होने आज के भौतिकवादी परिवेश पर प्रहार करते हुए कहा -
नै ऐंगना नै कुइयां ,कना होतै मटकोर।
बिहौती घर अन्हार छै होटल होय इंजोर ।।
पावस गीत में उन्होंने कहा -
बरसै छै रिमझिम सावन के घनमा ,
धियावै तितलो यौवनमा हो ,बरसै छै रिमझिम ... ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप में शिवनंदन सलिल ,सुप्रिया सिंह वीणा और डा. सुजाता कुमारी व मुख्य अतिथि हीरा प्र. हरेंद्र थे और अति विशिष्ट अतिथि के रूप में डा. इन्दुभूषण मिश्र देवेन्दु उपस्थित थे ।
भागलपुर से वरिष्ठ कवि महेन्द्र निशाकर ने प्रकृति और गाँव पर रचना पढ़कर मन मोह लिया -
परकृति रानी के गोदी में ,रचल- बसल छै गाँव
,किन्हौं पोखरी के किनारी ,किन्हैं पीपल के छाँव ।
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रपट के लेखक - भावानन्द सिंह 'प्रशान्त'
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