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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday, 11 October 2022

कवि भागवतशतशरण झा 'अनिमेष' : विसंगतियों पर चोट करनेवाला एक पूर्ण कलाकार (लेखक - अरविन्द पासवान)

 कवि भागवतशतशरण झा अनिमेष कई रूपों में याद किए जाएंगे।


इंसान :

व्यक्ति के चरित्र का निर्माण परिवेश और परिस्थिति पर निर्भर है। चरित्र के गठन में गुण-दोष भी एक कारक है। कभी-कभी व्यक्ति के मूल्यांकन का आधार उसकी सफलता असफलता भी होता है। लेकिन इंसानों की परख उसकी संवेदनशीलता से भी की जा सकती है। इस मामले में अनिमेष आला दर्जे को पाते हैं।
​भारतीय समाज जिस तरह से जाति, वर्ण, धर्म, संप्रदाय या अन्य विसंगतियों से जकड़ा हुआ है, उसकी जड़ें आज भी और गहरे धंसती जा रही है। फिर भी नाउम्मीदी नहीं है। आप जैसे लोगों ने गांव स्तर पर ही सही, लेकिन बहुत कुछ किया है। इसमें बहुत से सुधार हुए हैं, लेकिन बहुत काम बाकी है। 1980-90 के दशक में जब समाज कई कारणों से असंतुलित था, तब भी श्री अनिमेष प्रतिक्रियावादी नहीं रहे। सच को समझने की कोशिश करते रहें। वह दौर छुआछूत, मंडल और मंदिर तथा कई सामाजिक विसंगतियों के बोझ से दबा था, तब भी अनिमेष दलितों पिछड़ों के बच्चों संग उठते-बैठते, खाते पीते रहे। वे ब्राह्मण परिवार से आने के नाते धार्मिक रहे जरूर लेकिन जहां जरूरी समझा, विसंगतियों पर चोट किया। अपनी सीमा में समाज के अंधकार को दूर करने की कोशिश की। समाज के सच को समाज के सामने अपनी लेखनी, अपने व्यवहार से रखने की कोशिश की।
शिक्षा :
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से स्नातक ससम्मान हिंदी से।
साहित्य :
कविताएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। वर्ष 1999 में सारांश प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित साझा संग्रह 'अंधेरे में ध्वनियों के बुलबुले' के एक कवि।
प्रकाशन संस्थान दिल्ली से प्रकाशित जनपद विशिष्ट कवि में कविताएं संकलित।
​त्रिवेणी (तीन कवियों का साझा संग्रह प्रकाशित)
​कविता संग्रह 'आशंका से उबरते हुए' प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली से 2014 में प्रकाशित।
​बज्जिका में निरंतर गीत और कविताओं की रचना।
​रेडियो एवं दूरदर्शन से कविताएं प्रसारित।
​नाट्य लेखन, अभिनय एवं निर्देशन का लंबा अनुभव।
​नाटक :
अनिमेष का रंगकर्म से बचपन से ही गहरा जुड़ाव था। कारण कि 1952 में सर्वोदय नाट्य संघ, सैदपुर की स्थापना हो चुकी थी। जहां यह रहते थे पास ही हर वर्ष दुर्गा पूजा के अवसर पर रात्रि में नवमी और दशमी को गांव के लोगों द्वारा नाटकों का मंचन किया जाता था। नवमी को सामाजिक और दशमी को ऐतिहासिक नाटक खेले जाते थे। नाटक पारसी थियेटर स्टाइल में किया जाता था।
स्त्री पात्र, पुरुष ही निभाते थे। मंच गांव-घर के स्रोत से तैयार किया जाता था। मंच पर्दा से तीन खंडों में बंटा होता था। प्रथम खंड में उद्घोषणा, नर्तकी के नृत्य तथा कॉमेडी का अंश कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता था। विशेष परिस्थिति या नाटक के मांग के अनुसार नाटक के दृश्य को प्रथम खंड में भी मंचित किया जाता था। यह एक प्रतिष्ठित संस्था थी। दूर-दूर से लोग (स्त्री पुरुष) नाटक देखने आते थे। पास के कई गांव की बेटियां दुर्गा पूजा में नाटक देखने नैहर आ जाती थी। बेटियों से भरा गांव सुंदर लगता था। अनिमेष 1972 से संस्था और रंगकर्म से जुड़ते हैं और वर्ष 2000 तक उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ाव जारी रहता है। स्त्री पात्रों को अनिमेष तन्मयता से निभाते थे। उनके स्त्री पात्रों की यादगार भूमिका गांव के लोग आज भी याद करते हैं। जैसे कि संतोषी माता, शकुंतला और द्रौपदी। पुरुष चरित्रों में अभिमन्यु, कर्ण और हरिया यादगार है। खलनायक अफजल की भूमिका आज भी बेमिसाल है। संस्था उन्हें कई रूपों में याद करती है। वह कवि, कलाकार, पृष्ट वक्ता और उद्घोषक थे। गाने का उन्हें खूब शौक था, लेकिन आवाज उनकी मोटी थी और गला रूठा रहता था, फिर भी गाते थे। वह पृष्ठ वक्ता इतने अच्छे थे कि ऐतिहासिक नाटकों की कई बातें उन्हें सुनकर लोगों को याद हो जाते थे। उच्चारण शुद्ध और साफ तथा स्पष्ट था। नाटक में उनके उद्घोषणा से दर्शक रोमांचित हो उठते थे। उद्घोषणा में इस तरह का आकर्षण और जादू था कि रात को सो रहे लोग घर छोड़कर नाटक देखने आ जाते थे। वह हमसे 10 वर्ष से अधिक बड़े थे। हमारे पिताजी के संग भी वे नाटक में भाग लेते रहे। सन 1983 में पिताजी की मृत्यु के बाद, 10 की उम्र में संस्था और नाटक में हमारा भी प्रवेश होता है, जहां कवि कलाकार अनिमेष से मुलाकात होती है और इस तरह उनके माध्यम से साहित्य और कला की दुनिया का परिचय मिलता है। एक समय ऐसा भी आया कि हमदोनों साथ-साथ मंच पर उद्घोषणा करते थे, और गांव के लोगों का प्यार पाते थे। उन्हें न केवल साहित्य और कला में रुचि थी, बल्कि बच्चो को पढ़ाने का भी शौक था। मेरे जानते कई बच्चों को उन्होंने मुफ्त पढ़ाया।
आज वह नहीं हैं। और ऐसे समय में उनके बारे में हम पोस्ट लिख रहे हैं। जबकि इस वक्त हम उनके साथ नाटक के सार (synopsis) तैयार करते, वेश-भूषा की चिंता करते, दृश्य संयोजन पर बात करते। भूली बिसरी यादों से दिल में लहर-सी उठती है, लेकिन इस बेदर्द समय को इससे क्या मतलब। वह गांव के होनहार छात्रों और कलाकारों का मनोबल खूब बढ़ाते थे।
अंतिम लेकिन जरूरी :
वह इंसान न जाने किस मिट्टी का बना था, आज तक उसके माथे पर न कोई शिकन देखी, न चेहरे पर दुख-दर्द का भाव। ऐसा नहीं था कि उनका दर्द से वास्ता नहीं था। था, मगर दिखाया किसी को कभी नहीं। एक तरह से अपनी शर्तों पर जीवन जिया। सबके साथ होते हुए भी, एकाकी। और उसी तरह जाना भी हुआ। उनके जीवन में तकलीफों के कई दौर गुजरे, लेकिन हर फिक्र को उन्होंने धुंए में उड़ाया। किसी से साझा करना भी मुनासिब न समझा। उन्हें गुस्सा करते, ऊंचा बोलते, या कभी किसी की शिकायत करते कभी न देखा, न सुना; नाटकों में क्रोध देखा जरूर। हां,घर, परिवार और मित्रों को जरूरी सलाह जरूर देते थे। जीते जी या जाते हुए भी उन्होंने किसी को दुख न दिया, दुखी जरूर किया।
उनका जीवन दर्शन, उन्ही के शब्दों में
घिसाव
आदमी का मतलब रुपैया
घिसते-घिसते अठन्नी
घटते-घटते चवन्नी
बिकते-बिकते ढेला
टिकते-टिकते छदाम
और अंततः
हे राम!
मलाल है कि उनके जीते जी, उनके संग्रह पर नहीं लिख पाया।
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बार-बार यादों में आएगा कवि-कलाकार
(कवि भागवतशरण झा 'अनिमेष' के निधन पर)
(सर्वोदय नाट्य संघ, सैदपुर गणेश, हाजीपुर वैशाली के कलाकारों, बंधु-बांधव और उनके परिजनों को समर्पित)
भागवत का एक अर्थ
वैराग्य भी है
जो तुम्हारे जीवन दर्शन से पता चलता है
वैराग्य जो अनिमेष जैसा था
लेकिन
इससे हटकर भी बहुत कुछ था तुम्हारे भीतर
हमारे लिए
हम सबके लिए
मसलन
तुम्हारा स्नेह, तुम्हारे बोल
तुम्हारी अभिव्यक्ति अनमोल
तुम
साहित्य के चरित्र विचित्र
जिसमें सहज दिख जाते
घर, परिवार, गांव, समाज, देश, देशकाल
मजदूर, किसान, महिला, बच्चे, उनकी पीड़ाएं
और उनका सुख-दुख
राजनीतिक विडंबनाओं की अभिव्यक्ति के
अनोखे, अनुपम उदाहरण रहे तुम
पर्यावरण, पशु-पक्षियों की चिंताएं
अभिव्यक्त हैं तुम्हारे शब्दों में
अब
जबकि तुम नहीं हो
तुम्हारे शब्द हमारे साथ हैं
संबल बनकर।
अब तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो
पर नाटक में निभाया गया तुम्हारा
अभिमन्यु का किरदार
चक्रव्यूह में फंसा हुआ याद आता है बार-बार
याद आती है शकुंतला
प्रेम के विरह में जलती हुई
तुम्हारे किरदार के असर से
महीनों विलखती हुई याद आती है
भगवान चाचा की मां
द्रौपदी के चीरहरण पर
आज तक सबको गुस्सा है
इस गुस्सा और प्रतिरोध के माध्यम तुम रहे
जबकि चेहरे तुम्हारे हमेशा सम रहे
याद आता है
नाटक घुंघरू का खलनायक
अफजल
जिसके कारण बच्चे
तुम्हारी ओर से नजरें फेर लेते थे
कितना भी भूलो
महाभारत का कर्ण हमेशा दिलो दिमाग पर छाया रहता है
नाटक 'अछूत कन्या' का हरिया
क्रांति और सामाजिक परिवर्तन के लिए हमेशा याद किया जाएगा
और साथ-साथ याद किए जाओगे तुम भी
भले तुम मुक्त हो गए
लेकिन तुम्हारे अनगिनत किरदार
जो
जनमानस के जेहन में कैद हैं
उनकी रिहाई मुश्किल है
वह आवाज
जो दुर्गापूजा के नवमी और दशमी की रात को
अचानक सर्वोदय नाट्य संघ के मंच से
पुकार उठती थी :
'आज की हसीन रात
आज की ताजा तरीन रात'
हमेशा लिए गुम हो गई
अब नहीं हो तुम
तुम्हारी यादों की कसक
हमारे है साथ है
अब तुम नहीं हो
कहीं नहीं हो
पर यकीन है
तुम यहीं कही हो
हमारे भीतर
प्रकाश बनकर।
........
-(अरविन्द पासवान)
श्री अरविन्द पासवान का लिंक - https://www.facebook.com/arvind.paswan.923/about_contact_and_basic_info
(यह सामग्री भागवत अनिमेष जी के निकटतम सहयोगी साहित्यकार रंगकर्मी श्री अरविन्द पासवान जी के फेसबुक वाल से साभार ली गई है.)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com / hemantdas2001@gmail.com