कहानी कुछ इस तरह है कि शारदा अपनी छोटी बहन को ढूंढते-ढूंढते हुए बम्बई पहुँच जाती है वह अपनी बहन को एक रेड लाइट एरिया में पाती है | वहां एक ग्राहक नज़ीर से मुलाकात होती जिसे शारदा दिलोदिल उसे चाहने लगती और उसके रहना चाहती है इधर नज़ीर को बिस्तर में उसे शारदा ऐसी लज्ज़त महसूस होती है कि वह उसे भूल नही पाता है |
तवायफ़ों की ज़िन्दगी एक खुली किताब की तरह होती है। जिसे हर पुरुष पढ़ना चाहता है। उसके रूप यौवन को पाना चाहता है । लेकिन उसे अपनाने में परिवार और समाज से डरता है। तवायफ़ कोई शौक से नही बनता उसके पीछे कई मजबूरियाँ होती है।
पटना के स्थानीय कालिदास रंगालय में रंगम नाट्य संस्था की ओर से सआदत हसन मंटो की कहानी शारदा का मंचन 17 जुलाई को संध्या 7 बजे हुआ । मंटो की कहानी शारदा का नाट्य रूपांतरण , परिकल्पना एंव निर्देशन किया युवा अभिनेता एंव नाट्य निर्देशक रास राज ने।। हॉउसफुल शो ऊपर से मंच सज्जा का कमाल, और सभी अभिनेताओं का अभिनय दर्शकों को बांधे रहा और हर दृश्य के बाद तालियों की गरगराहट से हॉल गूंजता रहा।।
शारदा अपनी छोटी बहन को ढूंढते-ढूंढते हुए बम्बई पहुँच जाती है वह अपनी बहन को एक रेड लाइट एरिया में पाती है | वहां एक ग्राहक नज़ीर से मुलाकात होती जिसे शारदा दिलोदिल उसे चाहने लगती और उसके रहना चाहती है इधर नज़ीर को बिस्तर में उसे शारदा ऐसी लज्ज़त महसूस होती है कि वह उसे भूल नही पाता है | शारदा का प्यार परवान चढ़ता है , और वह नज़ीर के साथ ही रहना चाहती है लेकिन एक दिन नज़ीर कहता है मैं शादी शुदा आदमी हूँ और मेरा रुपया सब खतम हो गया है समझ में नही आता तुम्हारे पास अब कैसे आ पाउँगा , शारदा को यह सुनकर ठेस पहुँचती है मगर अपने प्यार की खातिर कहती है की नजीर साहब मेरे पास जितने रूपये हैं आप रख लें बस मुझे जयपुर का किराया दे दे ताकि मैं मुन्नी और अपनी बहन शकुन्तला को लेकर वापस चली जाऊ, लेकिन नज़ीर उसकी बातो से नाराज़ और गुस्सा होता है और चला जाता है | घर आने पर उसके बारे में ही सोचता रहता है लेकिन पैसे न रहने की वजह से वो उसके पास नही जा पाता है |
एक दिन मंटो साहब नज़ीर के घर आते है जिससे उधार लेकर शारदा के पास जाता है और वहाँ उसे करीम से पता चलता है की वह जयपुर जा रही सबकुछ छोड़कर | नज़ीर करीम को बोलता है बुलाना जरा उसे शारदा आती है नज़ीर उसे जाने नही देने चाहता है | शारदा कहती है – मैं वैश्या हूँ न नज़ीर साहब हम वैश्याओ के रिश्ते समाज की ज़रूरत नही बन सकी हम सिर्फ वासना की भूख़ मिटाने तक ही सिमित रह गये | तवायफ़ सबको चाहिए लेकिन उस तवायफ़ को बीवी बनने का कोई अधिकार नही , मैं जा रही हूँ अपनी वजूद की तलाश में | खुदा हाफ़िज़ |
मंच पर
शारदाः- विभा कपूर
नज़ीरः- रास राज़
संगीत - आदर्श राज प्यासा
मंटोः- कुणाल सत्यन
करीमः- गणेश कुमार अक्षत
शबनमः- सुरभी कृष्ण
शबनम का आशिक - कमलेश सिंह
शकुंतलाः- निभा
रहीम काका – रमेश सिंह
नृत्यांगना – पूजा भाष्कर
दारू बेचने वालाः- प्रिय राज़ पांडेय
नज़ीर की पत्नीः- विभा कपूर
कस्टमर 2 - अमरजीत सैम
कस्टमर 1 - आलोक झा
आशिक़ः- आशिक़ स्वैग
रेड लाइट की लड़किया : - निहाल कुमार दत्ता, आदित्य शर्मा, शुभम कुमार, ख़ुशबू कुमारी, मुकेश कुमार, अभिषेक कुमार, शिवम पाण्डेय आदि |
नेपथ्य में -
मंच परिकल्पना – सतीश कुमार एंव सुनील
प्रकाश परिकल्पना – राहुल रवि
वस्त्र विन्यास – पिंकू राज, निभा
रूप - सज्जा – जीतेन्द्र कुमार जीतू
प्रस्तुति संयोजक – रमेश सिंह , मनोज राज
फोटोग्राफी – मनीष जी
टिकट पर – पिंकू राज , रंजन, बिकेश साह
वीडियोग्राफी – दिपक कुमार
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रपट हमारे सदस्य द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर.
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com अथवा hemantdas2001@gmail.com
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