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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 16 June 2016

Postmortem - a play by 'The Mirror' (पोस्टमार्टम -' दि मिरर' की प्रस्तुति)

A commentary on current burning issues (आज के ज्वलंत समस्याओं का भाष्य)


‘Postmortem’ was staged at Kalidas Rangalay, Patna on 16.6.2016 by the group christened as ‘The Mirror’. It was written by Rajnish Kumar and directed by debut director Satyajit Keshri. The show was a huge success in terms of acting and direction. The story is like a commentary on burning issues of nowadays. Undoubtedly, the whole narrative packed by message was stout throughout the show and necessary care was taken to keep the audience entertained by a couple of rammed dance sequences which actually worked. The concept of the character God seems to have been borrowed from the film OMG. The scene of a plump man walking with his pet dog and symbolizing the typically compromised person of today enthralled everyone in the hall. His hot debate with the Poet who is the main character of the play was thought-provoking. Light & Sound , Stage concept and backstage support were fine. A thread of fable might have added much value to the play but suggesting the same would amount to challenging the whole schema of the play. The actors acted in a natural flow notwithstanding the character they played. Each of the actors showed his mettle playing the characters given may it be of the Poet, God, Plump man or the most magical character of Dog. The Dog really behaved like a dog as expressed by his body-language and actual barking sounds. The whole team has every reason to cheers.

(हिंन्दी अनुवाद)
('पोस्टमॉर्ट्म' कालीदस रंगालय, पटना में 16.6.2016 को 'द मिरर' नामक समूह द्वारा मंचित हुआ। यह रजनीश कुमार ने लिखा है और निर्देशक के रूप में प्रथम प्रस्तुति देनेवाले सत्यजीत केशरी ने निर्देशित किया था। नाटक अभिनय और निर्देशन की कसौटी पर एक बड़ी सफलता मानी जा सकती है। कहानी आजकल के ज्वलंत मुद्दों पर एक टिप्पणी की तरह है। निस्संदेह, संदेश की प्रमुखता पूरी कहानी के निष्पादन में छाई रही किन्तु दर्शकों को के मनोरंजन को सुनिश्चित करने हेतु  नृत्य दृश्य घुसेड़े गए थे जिन्होंने सचमुच अपना काम किया। लगता है कि 'भगवान' का पात्र 'ओएमजी' फिल्म से प्रेरित था। एक मोटा आदमी अपने पालतू कुत्ते के साथ चलने का दृश्य जो आज के दौर में मूल्यों से समझौता करनेवाले व्यक्ति का प्रतीक है, सभागार में सब को खूब पसंद आया और नाटक के प्रमुख पात्र, कवि के साथ उसकी गर्म बहस विचार-उत्तेजक था। प्रकाश और च्वनि प्रबंधन, मंच परिकल्पना और नेपथ्य सहायता ठीक थे। कल्पित कथा का एक सूत्र शायद नाटक को और महत्वपूर्ण बना सकता था लेकिन ऐसा सुझाव देना इस नाटक के ढांचे को ही चुनौती देने के समान होगा। अभिनेताओं ने स्वाभाविक अभिनय किया चाहे वो किसी भी पात्र को निभा रहे हों। प्रत्येक अभिनेता ने अपनी विशिष्ट क्षमता को प्रदर्शित किया चाहे वो कवि का पात्र निभा रहे हों ईश्वर का, मोटा आदमी या सबसे जादुई पात्र कुत्ते का। कुत्ते ने वास्तव में एक कुत्ते की तरह व्यवहार किया जैसा कि उसके आंगिक अभिनय और वास्तविक भौंकने वाली ध्वनि से प्रदर्शित हुआ। पूरे नाट्य समूह को खुश होने का यहाँ हर कारण है।
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Review of play by - Hemant Das 'Him' 
Photograph - Bihari Dhamaka blog
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