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Sunday, 30 June 2019

साथ रहने की वो गुदगुदी छोड़कर / कवि नरेश जनप्रिय को एसके प्रोग्रामर की काव्यांजलि

अ‍भी हाल ही में अंगिका के गुणी कवि नरेश जनप्रिय का दुखद देहावसान हो गया जिससे उनके लाखों चाहनेवाले अत्यंत दुखी हो गए. इस अवसर पर उनके परम मित्र और अंगिका / हिंदी के बेहतरीन कवि श्री एसके प्रोग्रामर ने ग़ज़ल में अपने उद्गार प्रकट किए हैं जो प्रस्तुत है. बिहारी धमाका / बेजोड़ इंडिया की ओर से भी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

ग़ज़ल



साथ रहने की वो गुदगुदी छोड़कर
अलविदा कह दिये जिन्दगी छोड़कर

कह रहे थे हँसी में है दर्दे-दवा
दूर क्यों हो गए हर ख़ुशी छोड़कर

गीत - गठरी समेटे निकलते बने
सुर में मिसरी घुली बानगी छोड़कर

गम अचानक मिला लोग कैसे सहें
तेरी संगत की वो ताजगी छोड़कर

बोल क्या कुछ बचा अब हमारे लिए
बीच दरिया में जा ख़ुदकुशी छोड़कर।
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आहत कवि: सुधीर कुमार प्रोग्रामर
कवि का ईमेल आईडी - skp11061@rediffmail.com
प्रातिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbejodindia@yahoo.com



Wednesday, 26 June 2019

जौनापुर (समस्तीपुर) में बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् द्वारा 24.6.2019 को हिन्दी, बज्जिका और अंगिका काव्यरस बरसा

स्याही से पत्थरों का जिगर काटते रहे





हिन्दी, बज्जिका व अंगिका के गीतों,गजलों, कविताओं व छंदों के सस्वर पाठ ने सोमवार की देर शाम जौनापुर (समस्तीपुर) में वो खुशबू बिखेरी कि श्रोता आह्लादित होते रहे, तालियां बजाते रहे, मगन होते रहे। बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् व साहित्य परिषद् के संयुक्त बैनर तले आयोजित इस काव्य संगोष्ठी में अध्यक्ष थे हरिनारायण सिंह हरि और यह उन्हीं के आवासीय-परिसर में सम्पन्न हुई।

मुख्य अतिथि हिन्दी व अंगिका के ऊर्जावान युवा साहित्यकार सह कविताकोश के उपनिदेशक राहुल शिवाय उपस्थित थे जबकि विशिष्ठ अतिथि के रूप में ख्यात युवा समालोचक व साहित्यकार अश्विनी आलोक उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। संचालन का दायित्व हिन्दी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर मृदुल ने ले रखा था। मुख्य अतिथि राहुल शिवाय को अंगवस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत मृदुल ने अपने दोहे सुनाकर की। उन्होंने अपने दोहों के द्वारा वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं को उकेरते हुए कहा कि -
मनुज-मनुज से दूर हो, करते एकालाप ।
जीवन भर वे झेलते, पल-पल नव संताप।

विशिष्ठ अतिथि अश्विनी आलोक ने अपने कई वैसे छंद सुनाये जिनमें कविता की विशिष्टता और उसकी परिभाषा दी गयी थी ।एक छंद की अंतिम दो पंक्तियां दृष्टव्य हैं -
"कविता की महिमा को जिसने भी जान लिया
आदमी गरीब से अमीर बन जाता है।"

मुख्य अतिथि राहुल शिवाय ने भी अपने अंगिका व हिन्दी के गीत-गजल सुनाकर लोगों के मन को मोह लिया। उन्होंने अपने अंगिका गीत में आज के परिवेश पर तंज कसते हुए कहा - 
"दू बच्चा, बीवी, दू कमरा इहे घोर (घर)-परिवार।"
आगे गजल में फरमाया कि -
 हिम्मत से हम दुरूह सफर काटते रहे
स्याही से पत्थरों का जिगर काटते रहे। 

अंत में इस संगोष्ठी के अध्यक्ष हरिनारायण सिंह 'हरि' ने भी अपने हिन्दी में रचित नवगीत को सुनाया -
"शादी हुई गये वे बाहर, बेटे बहुएं सब
घर में केवल बूढ़े-बूढ़ी रोग ग्रसित हैं अब।"
फिर बज्जिका गीत सुनाया -
"लगा कऽ नेह तोरा से कि हम तऽ स्वर्ग पा गेली" 
उन्होंने और भी अनेक रचनाएं सुनायी।

इस तरह से साहित्यकारों का यह सुखद मिलन एक यादगार संगोष्ठी की मधुर स्मृति में परिणत हो गया।
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आलेख - हरिनारायण सिंह 'हरि'
छायाचित्र - बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com


Tuesday, 25 June 2019

कटिहार में अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच द्वारा 23.6.2019 को अंगिका महोत्सव मनाया गया

अंगिका भाषा के विकास के सम्बन्ध में  उपलब्धियों पर हुई चर्चा 


दिनाक 23 जून 2019 को सुनित्या सदन, कटिहार के सभागार में अंगिका साहित्यकारों , सहयोगियों, नेताओं, युवा छात्र-छात्राओं ने मिलकर बड़े ही उत्साह के साथ   राजनेता और समाजसेवी महेंद्र नारायण यादव  की अध्यक्षता में "अंगिका महोत्सव" मनाया। इस अवसर पर मुख्यातिथि राजनेता तारकिशोर प्रसाद,  के साथ आयोजन निदेशक डॉ रमेश मोहन आत्मविश्वास, संयोजक अवधविहारी आचार्य, प्रमुख वक्ता सुधीर कुमार प्रोग्रामर, प्रदीप प्रभात, मतवाला आदि। सम्मान और उद्घाटनोप्रान्त अवधविहार आचार्य द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। परिचर्या का आरंभ करते हुए नाटककार मतवाला भागलपुर न्यायालय में अंगिका शब्दों के प्रभाव को जाहिर किया, 

अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के झारखण्ड प्रदेश महासचिव प्रदीप प्रभात ने अंगिका साहित्य में बुजुर्ग साहित्यकारों, डोमन साहू शमीर, सुमन सुरो, डॉ अम्बष्ट, डॉ तेजनारायण कुशवाहा, डॉ नरेश पांडेय चकोर, डॉ अमरेन्द्र आदि के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। वही प्रमुख वक्ता एवं अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच, बिहार के प्रदेश महासचिव सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने अंगिका के प्रगति पर विस्तार पूर्वक तब से अब तक की जानकारी देते हुए बताया कि अंगिका के आदि कवि सरहपाद और पंडित राहुल  सांकृत्यायन द्वरा "अंगिका"  नामकरण जे बाद अंगिका गगनचुम्बी भाषा की ओर बढ़ चली। अंग माधुरी, अंगप्रिया, अंग भारत जैसी अंगिका के कई पत्र- पत्रिकाएं आने लगीं।  पिछले 15 वर्षों से ई. कुंदन अमिताभ द्वारा angika.com  के माध्यम से देश ही नही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंगिका की कृतियां, कृतिकारों की सूची सहित दैनिक गतिविधि की रिपोर्टिंग लगातार हो रही है।

राहुल शिवाय और डॉ अमरेन्द्र के सहयोग और प्रयास से कविता कोश में सैकड़ों साहित्यकारों की लगभग 75, 674 पृष्ठों में रचनाएं देखी और पढ़ी जा सकती है। बिहार सरकार ने अंगिका को सम्मान देते हुए अंगिका अकादमी का गठन किया, जबकि झारखण्ड सरकार ने अंगिका को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देकर अंगिका का मान बढ़ाया।

आज साहित्य अकादमी दिल्ली, दूरदर्शन, पटना, आकाशवाणी भागलपुर लगातार अंगिका साहित्यकारों को तरजीह देना आरंभ कर दिया है। तिलकामांझी भागलपुर से अंगिका में 200 से अधिक छात्र-छात्राएं एम्. ए. 20- पी. एच. डी., 2- डी. लिट् कर चुके हैं। दिल्ली सरकार ने भी अंगिका अकादमी गठित करने का आश्वासन दिया है।

अखिल भारतीय अंगिका विकास मंच के अध्यक्ष और अंगिका भाषा के ध्वनि पर वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले दूसरे डी. लिट्. डॉ. रमेश मोहन आत्मविश्वास ने  अंगिका के ध्वनि पर वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत कर इसमें सुधार करने की बात कही।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में  कवि सम्मेलन का दौर चला जिसमें भगवान प्रलय, सुधीर कुमार प्रोग्रामर त्रिलोकी नाथ दिवाकर, प्रीतम विश्वकर्मा कवियाठ, साथी सुरेश सूर्य, रंजना सिंह, सच्चिदानंद किरण, शैलेश प्रजापति शैल, महेंद्र निशाकर, फूलकुमार अकेला, सुधीर झा, डॉ. अवधविहारी आचार्य, श्रवण विहारी, अनिल कुमार, प्रभाष चंद्र मतवाला या अंशु श्री, ठाकुर राष्ट्रभूषण, दिनकर दीवाना, भोला कुमार, शमसाद जिया, कपिलेश्वर कपिल के अलावे दर्जनों कवियों ने कविताएं सुनाकर कार्यक्रम को रोचक बनाया। कार्यक्रम का सञ्चालन सुधीर कुमार झा और फूलकुमार अकेला ने किया।
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आलेख - अवध विहारी आचार्य
परिचय - इस रपट के लेखक अखिल भारतीय अंगिका साहित्य विकास मंच, कटिहार के अध्यक्ष हैं.
सामग्री स्रोत - सुधीर कुमार प्रोग्रामर 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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Saturday, 22 June 2019

संगीत शिक्षायतन द्वारा विश्व योग दिवस तथा विश्व संगीत दिवस समारोह पर 21.6.2019 को आयोजित कार्यक्रम सम्पन्न

योग प्रशिक्षण के साथ-साथ सुरीला गीत-संगीत भी 



भारतीय संस्कृति में रचा बसा है संगीत और योग। इन दोनों के बिना इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है । स्पष्ट है कि योग की उत्पत्ति भी भारत में ही हुई है और इस हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस की मान्यता प्राप्त होना देश के लिए गौरव की बात है।

पटना के संगीत शिक्षायतन में  विश्व योग दिवस तथा विश्व संगीत दिवस समारोह को बड़े हर्षोल्लास से शिक्षायतन मानया गया। जिसमे संस्था के संगीत विभाग के कलाकार गायन प्रस्तुत कर प्रांगण में पारंपरिक माहौल बनाया।  

सरस्वती वंदना जो बैठे चरणों में तिहारे... गा कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। अमित ने राग भैरवी में अजहुन आय बालमा, सॉर्य सागर ने जौनपुरी राग में बाजेरी मोरी जनक पायलिया, अंबिका और सौम्या ने राग बसंत में फगवा ब्रिज देखन को चलो री  गीत गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

कार्यक्रम में योग के बारे में सवालों के उत्तर दिये गए और सम्बंधित जानकारियाँ दी गई। अनेक योगासनों को प्रायोगिक रूप से दिखाया भी गया।

और अंत में  सभी गायक कलाकार ने नृत्यांगना यामिनी के निर्देशन में  तबला, हारमोनियम, गिटार, आदि वाद्य यंत्रों के साथ जीवन के आसान में संगीत की साधना तुम हो गुरुवार.... गीत गाकर कार्यकर्म का समापन किया। कलाकार: अमित, अंबिका, अनन्या, सौम्या, स्वेक्षा, सौर्य सागर, शिवम् आदि।

इस शुभ अवसर का पर संस्था की सचिव रेखा शर्मा, केंद्राधीक्षक रुधीश कुमार, कार्यकारी सदस्या  रजनी शर्मा,  प्रवीण कुमार अभिभावकों और शिक्षार्थियों आदि ने लाभ उठाया। चीफ ट्रस्टी यामिनी भी इस अवसर पर उपस्थित थीं।

बच्चों में प्रारम्भ से ही योग और संगीत की शिक्षा देने का यह प्रयास प्रसंसनीय कहा जा सकता है।
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आलेख - बिहारी धमाका ब्यूरो
सूचना स्रोत- मधुप चंद्र शर्मा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com


Tuesday, 18 June 2019

रंगम द्वारा "काली सलवार" नाटक 15.6.2019 को पटना में प्रस्तुत

वेश्या के अरमान भी औरों की तरह



हम आदमी को अक्सर उसके पेशे से आँकते हैं और भूल जाते हैं कि वह दरअसल एक आम इनसान भी है। पेशा चाहे जैसा भी हो अंदर से हर किसी में मौजूद होता है एक आम आदमी अपने छोटी-बड़ी उन हसरतों के साथ जिनका उसके पेशे से कोई लेना-देना नहीं होता। कुुुुछ ऐसे ही तथ्य को उजागर करती हुआ एक नाटक हाल ही में मंचित हुआ।

पटना के कालिदास रंगालय में 15 जून, रविवार की शाम नाट्य संस्था"रंगम"के नाम रही। जिसने सआदत हसन मंटो लिखित कहानी "काली सलवार" की बेहतरीन प्रस्तुति द्वारा उपस्थित दर्शकों को अंत तक बाँधे रखा।

कहानी की नायिका सुल्ताना (ओशिन प्रिया) एक वेश्या है। अम्बाला में उसके बहुत ग्राहक थे तीन से चार घंटो में ही 8 से 10 रुपये कमा लेती थी । खूब काम था  और ज़िंदगी अच्छी चल रही थी । लेकिन जब वह अपने साथी खुदाबख्श (कृष्णा किंचित) जो एक पेशे से फोटोग्राफर है उसकी  बातो में आकर अम्बाला से दिल्ली आ जाती इस आस में कि पैसे खूब कमायेंगे वहाँ उसकी दोस्ती मुख्तार (विभा कपूर) से होती है जो एक पुरानी वेश्या है और उसके पडोस में ही रह्ती है जिसके साथ सुख-दुख कि बाते करती है ।

कई महीने गुज़र जाते हैं सुल्ताना और खुदाबख्श का दिल्ली में धंधा नही चल पाता और दिन पर दिन हालत बहुत दयनीय हो जाती है और सारे सोने-चांदी के ज़ेवर भी सब के सब  बिक जाते है । मोहर्रम सर पर है वह बेचैन है कि उसके पास काली सलवार नहीं । वह अपने साथी खुदाबख्श को  काली सलवार लाने को कहती है लेकिन खुदाबख्श अपनी किस्मत का ताला खुलवाने की खातिर एक फकीर के चक्कर में लगा है एक ऐसा फकीर जिसका "किस्मत का ताला" जंग लगे ताले की तरह बंद है खुदाबख्श काली सलवार नही प्रबंध कर पाता।

इसी  बीच उसकी मुलाकात एक व्यक्ति (शंकर) से होती है जो एक जिगोलो है जिससे सुल्ताना की नज़दीकिया बढती  है और उससे काली सलवार का जिक्र छेड़ती है । वह काली सलवार देने का वादा करता है  मगर बदले में उसके बूंदे मांग लेता है । शंकर, मुख्तार की काली सलवार ले आता है और उसे तोहफे के रूप में सुल्ताना से लिये बूंदे दे देता है ।

मुहर्रम का दिन सुल्ताना काली कमीज और दुपट्टा जो उसने रंगवाए थे एंव  काली सलवार के साथ पहनकर वह खुश ही हो रही होती है कि तभी मुख्तार आती है दोनो एक दुसरे को गौर से देखती है मुख्तार को लगता है उसकी सलवार है मुख्तार पुछ्ती है - सुलताना ये कमीज़ और दुपट्टा तो रंगाया हुआ मालूम पडता है लेकिन ये सलवार?

सुल्ताना कहती है – है न अच्छी आज ही दर्जी दे गया है, फिर सुल्ताना को लगता है कि उसके बुंदे मुख्तार पहनी है पूछ्ती है - मुख्तार ये बुंदे कहा से लायी?

मुख्तार कहती है ये बुंदे आज ही मंगवाई है दोनो हैरानी और खामोशी के बीच स्तब्ध ।

कहानी ‘काली सलवार’ की सुलताना, वेश्याओं की तमाम हसरतों को हमारे सामने रखती है जिससे यह साबित होता है कि उसका अस्तित्व सिर्फ लोगों की जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने वाली एक भोग  वस्तु की तरह ही नहीं है  बल्कि उसके भी अरमान एक आम औरत की तरह होते हैं ।

बतौर निर्देशक रास राज सफल रहे वहीं जिगेलो (पुरुष वेश्या)शंकर की भूमिका में भी उन्होंने जान डाल दी। मंटो की इस विवादास्पद व लोकप्रिय कहानी में स्त्री पात्र महज माँस का लोथडा़ भर नहीं दिखतीं जो शरीफजादों की हवस को ठंडा करने का सामान भर हों, बल्कि वे जीती-जागती आम स्त्रियों की तरह छोटी-छोटी ख्वाहिशों, आपसी खींचतान, जलन, ऊब,संवेदनाएँ....से भरी होती हैं। आम जिंदगी की परेशानियाँ उनकी पेशानियों (ललाट/माथा) पर भी बल ला देती हैं।

इस कहानी की वेश्या-स्त्री पात्रों को सुल्ताना के रूप में ओशिन प्रिया ने और मुख्तार की भूमिका को विभा कपूर ने पूरी संजीदगी से जिया। सुल्ताना के खास दोस्त खुदाबख्श के परेशान, बिन कमाई समान जिंदगी के संत्रासपूर्ण  जीवन को अभिनेता कृष्णा किंचित ने अत्यंत भावपूर्णता से निभाया। 

ग्राहक/ जिगेलो की भूमिका इस नाटक के निर्देशक रास राज ने पूरे रंग में निभाया और दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहे। सबसे बडी़ खूबी इस मंचन की रही कि छोटी भूमिकाओं को निभाने वाले कलाकारों --अनंत, अविनाश, कुणाल आदि अन्य सभी कलाकारों ने अपनी-अपनी संक्षिप्त भूमिकाओं को प्राणवान कर  दिया।

'रंगम' की यह प्रस्तुति पटना रंगमंच के सक्रिय- सक्षम होने को प्रमाणित करते हुए सुखद-समर्थ भविष्य हेतु  आश्वस्त भी करती है।
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समीक्षक - अनिल मिश्रा
सामग्री सौजन्य - संतोष कुमार
छायाचित्र - रंगम 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - जिन कलाकारों के नाम छूट गए हैं उनके नाम टाइप करके दे सकते हैं  ऊपर दिये गए ईमेल आईडी पर. जोड़ दिये जायेंगे.



 



 



एक शाम हफीज़ बनारसी के नाम - 16.6.2019 को पटना में मुशायरा सम्पन्न

दिल की आवाज़ से आवाज़ मिलाते रहिए / जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए



16 जून 2019 रविवार को बिहार उर्दू अकादमी, पटना के सभागार में उस्ताद शायर हफीज़ बनारसी की 11 वीं पुण्य तिथि के मौके पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे इम्तियाज अहमद करीमी और विशिष्ट अतिथि के रूप में डा. अनिल सुलभ, खुर्शीद अकबर, अख्तर मसूद, अब्दुल क़ादिर थे। इनके अलावा बज़्मे हफीज़ बनारसी के चेयरपर्सन रमेश कँवल  ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी परवेज आलम भी मौजूद थे। अवसर पर एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया जिसका संपादन मशहूर शायर मो. नसीम अख्तर ने किया है । इसके अलावा हफीज़ बनारसी की ग़ज़लों को मशहूर गुलुकार शंकर प्रसाद ने अपनी आवाज़ में प्रस्तुत किया। मौके पर बज़्मे हफीज़ बनारसी के सभी सदस्यों को मेमेंटो और सर्टिफिकेट दिया गया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में एक शानदार तरही मुशायरा आयोजित किया गया।कार्यक्रम का संचालन फ़खरुद्दीन आरफी और शकील सासरामी ने संयुक्त रूप से किया।

मो.नसीम अख़्तर ने ये शेर पढ़ा -
ज़िंदगी भी किसी महबूब से कुछ कम तो नहीं
प्यार है उससे तो फिर नाज़ उठाते रहिए
ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए
बोलते रहिए ज़रा हँसते हँसाते रहिए

ज़ीनत शेख ने कुछ यूँ पढ़ा -
दिल की आवाज़ से आवाज़ मिलाते रहिए
जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए

आराधना प्रसाद ने पढ़ा -
दर्द को गीत में ढालो कि बहार आई है
मयकशो जाम उछालो कि बहार आई है

पूनम सिन्हा ने पढ़ा -
मुहब्बत में कोई गिला तब कहाँ था
दिलों में फासला तब कहाँ था

निकहत आरा ने पढ़ा -
इस शहर से उस शहर क्यों भागती है ज़िन्दगी
हर नई पसपाई से भी मारती है ज़िन्दगी

इनके अलावा जिन शायरों और शायरात ने अपने कलाम वो ये हैं - अरुण कुमार आर्य, इरफान अहमद बेदालवी, कुमारी स्मृति, घनश्याम ,नईम सबा, ,नेयाज़ नज़र फातमी ,मासूमा खातून ,शाज़ीया नाज़,डॉ. शालिनी पाण्डेय ,शुभ चन्द्र सिन्हा ,सुनील कुमार, हिना रिज़्वी हैदर, मीना कुमारी परिहार इत्यादि।
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आलेख -  मो. नसीम अख्तर
छायाचित्र सौजन्य - मो. नसीम अख्तर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com






Monday, 17 June 2019

लोक मंच की प्रस्तुति *नाट्य शिक्षक की बहाली* 16.6.2019 को पटना में प्रस्तुत

रगकर्मियों का संघर्ष रोजी रोटी के लिए




दिनांक 16.6.2019  को संध्या 5 बजे गांधी मैदान, गांधी मूर्ति के पास "नाटय शिक्षक की बहाली" का मंचन किया गया। इस नाटक में बताया गया है कि कला-संस्कृति के फंड को काटकर एवं रंगकर्मियों को दी जाने वाली सुविधाओं को बंद कर दिया गया है।

सालों से मिलने वाले रंगकर्मियों के ग्रांट को भी पिछले कई सालों से बंद कर दिया गया है।  रंगकर्मी इस नाटक में इसका पुरजोर विरोध करते हैं। नाटक के आरंभ से ही यह पता चल जाता है कि एक नाटक तैयार करने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है निर्देशक को कितना पापड़ बेलना पड़ता है, वह भी बिना किसी सरकारी सहयोग के बिना किसी सामाजिक मदद के। फिर भी रंगकर्मी तन, मन और धन लगाकर नाटक   कर ही रहे हैं।

नाटक में रंगकर्मियों के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष की अलग अलग कहानियों को दिखाय गया है। जिसमें एक रंगकर्मी के जीवन के उस पहलू को उकेरा गया है जहाँ वो पढ़ाई के बाद भी अपने परिवार और समाज में उपेक्षित है, उन्हें स्कूल, कॉलेज में एक अदद नाट्य शिक्षक की नौकरी भी नहीं मिल सकती क्यूँ की हमारे यहां नाटक के शिक्षकों की बहाली का कोई नियम नहीं है, इस मुखर सवाल पर आकार नाटक दर्शकों के लिए रंगकर्मियों के जीवन संघर्ष से जुड़ा निम्‍न सवाल भी छोड़ जाता है।

नाटक खत्म होने के बाद दर्शक तालियां बजाते हैं, स्मृति चिन्ह देकर व ताली बजाकर दर्शक उन्हें सम्मानित करते हैंl

यही रंगकर्मी जब अपने घर पहुंचते हैं तो घर में इन से बेहूदा किस्म के प्रश्न पूछे जाते हैं - क्या कर रहे हो ? नाटक करने से क्या होगा ? लोग तुम्हें लौंडा कहते हैं। नाचने वाला कहते हैं, यह सब करने से रोजी-रोटी नहीं चलेगा, कोई अच्छी घर की लड़की का हाथ तक नहीं मिलेगा। इस तरह के अनगिनत ताने सुनने पड़ते हैं फिर भी रंगकर्मी यह सब सहने के बावजूद रंगकर्म करते रहते हैं।

नाटक के माध्यम से रंगकर्मी सरकार से  मांग करते हैं की स्कूल और कालेजों में नाट्‍य  शिक्षक की बहाली होसरकार से निवेदन है कि बंद पढ़ा ग्रांट फिर से शुरू किया जाए सरकार रंगकर्मियों को नौकरी दे, उन्हें रोजगार दे तभी वे भी खुलकर समाज का साथ दे सकते हैं l

नाटक के अंत में रंगकर्मी अपने हक के लिए, अपनी आजादी के लिए आवाज उठाते हैं और अपने आंदोलन के साथ नाटक की समाप्ति करते हैं।
                   
भाग लेनेवाले कलाकार थे  मनीष महिवाल, प्रभात कुमार, दीपा दिक्षित, रजनीश पांडे,  ममता कुमारी, मोडल, समीर, विकी कुमार, जितेंद्र राज, अमीत ऐमी, आदीय और हीरालाल रॉय. मंच सामग्री दीपा दीक्षित की थी, वस्त्र विन्यास कुमारी आरती का और प्रस्तुति नियंत्रक थे राम कुमार सिंह। प्रस्तुुुुति केे लेखक एवं निर्देशक थे मनीष महिवाल प्रस्तुत करनेवाली संस्था  है लोक पंच, पटना
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आलेख - मनीष महिवाल
छायाचित्र - लोक पंच
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पितृ दिवस के उपलक्ष्य में लेख्य मंजूषा के द्वारा काव्योत्सव 16.6.2019 को पटना मे सम्पन्न

पिता का अप्रदर्शित-अनंत प्यार है मौन



16 जून 2019 दिन रविवार को फादर्स डे यानी पितृ दिवस के उपलक्ष्य में लेख्य मंजूषा पटना के द्वारा काव्योत्सव मनाया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव ने किया तथा मंच संचालन दिल्ली से आई पम्मी सिंह ने किया। इस अवसर पर विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि बच्चों को संस्कार अगर मां देती है तो पिता सहने और जुझने की शक्ति। उपाध्यक्ष संजय संज ने कहा कि मां पर तो अनगिनत रचनाएं लिखी जाती हैं परंतु पिता का अप्रदर्शित प्यार को कविताओं के माध्यम से कहने की आवश्यकता है ताकि अगली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में और ज्यादा मदद मिले।

कार्यक्रम की शुरूआत मीरा प्रकाश की प्रस्तुति से हुई।

संजय कुमार 'संज'ने पिता की वेदना को दर्शाती एक बेहतरीन कविता पढ़ी -
पितृ बलिदान और सहनशीलता का प्रश्न है गौण
क्योंकि पिता का अप्रदर्शित-अनंत प्यार है मौन
पिता एक नाम है जीवन, शक्ति और अनुशासन का
बच्चों की सफलता प्रतीक है उसके अच्छे प्रशासन का।

इस अवसर पर हजारीबाग से शिरकत कर रहीं कवियत्री अनिता मिश्रा सिद्धी ने रचना सुनाई -
चुप रह पिता हर व्यथा को सहते
बच्चों की खातिर सबकुछ सहते।

दिल्ली से आईं पम्मी सिंह ने पिता पर केंद्रित रचना सुनाई कि
माह आस पास था यहीं जमीं पर मेरे
पिता का जब-जब हाथ थी सर पर मेरे
यूँ तो फरिस्तों की फेहरिश्त है बड़ी लंबी
इस जमीं के तुम नायाब आसमां  हो मेरे।

पूनम देवा ने भी‌ एक कविता सुनाई -
पिता के नाम से हीं है
हमसब की पहचान।

प्रेमलता सिंह ने भी पिता पर एक कविता सुनाया।

राजकांता राज ने प्रस्तुति दी कि
जब से मैं छोड़ तुझे आईं हूं पापा
नहीं भूलती आपका प्यार मेरे पापा।

अप्रवासी सदस्यों ‌‌‌‌की रचनाओं को यहां उपस्थित सदस्यों ने सुनाया जिनमें से प्रमुख नीचे प्रस्तुत हैं।

जोधपुर से पुरोहित की रचना रही -
गोद में मुझको खिलाया था मेरे पापा ने
घर की रानी बनाया था मेरे पापा ने।

वहीं भोपाल से कल्पना भट्ट की रचना रही -
पिता पुत्री का प्यार न जानी
बिछड़े पिता आंखों से बरसा पानी।

तो गाजियाबाद से कमला अग्रवाल की रचना रही -
वक्त गुजरता रहा मैं चुपचाप देखती रही
बाबूजी का परेशान चेहरा
रिश्ते सिमट गये कागज पर।

इस तरह पिता को याद करते हुए आज का कार्यक्रम कुछ बेहतरीन यादगार पलों के साथ सम्पन्न हुआ।इस अवसर पर संस्था के उपाध्यक्ष और कवि संजय कुमार'संज' का जन्मोत्सव भी केक काट कर मनाया गया।
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आलेख - संजय कुमार 'संज'
छायाचित्र - लेख्य मंजूषा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com












Tuesday, 11 June 2019

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् तथा स्टे.रा.भा.का.स., राजेंद्रनगर द्वारा पटना में "ग़ज़ल-ए-प्रभात" का आयोजन 11.6.2019 को सम्पन्न

हाथ ही नहीं  / तो खंजर किस काम का





युग चाहे जो भी हो, कवि अमन का उपासक होता है। किन्तु अमन अथवा शांति की आकांक्षा रखने का अर्थ वह नपुंसक हो गया है और अन्याय को शब्द रूपी खंजर से छिन्न-भिन्न नहीं करना चाहता।  उसके शब्दों की उड़ान में एक मधुर लय होती है और उसकी खामोशी भी बहुत कुछ बयाँ करती है। वह आशिकी का समंदर भी है और शम्मे-उल्फत को जलाकार बिखरे हुए पन्नों को पढ़ना भी जानता है। उसके चोटिल हृदय से भावनाओं का भयंकर युद्ध होता है और फिर भी कुछ पैदा होता है तो वह होता है गौतम बुद्ध। कुछ इसी तरह की छटाएँ बिखरीं हाल ही सम्पन्न एक विशेष कवि-गोष्ठी में ।

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् तथा स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में, राजेन्द्र नगर टर्मिनल (पटना) स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी पुस्तकालय के कक्ष में "ग़ज़ल-ए-प्रभात" काव्य गोष्ठी का आयोजन, अलीगढ़ से पधारे मशहूर शायर "अशोक अंजुम" तथा चेन्नई से पधारे वरिष्ठ कवि ईश्वर करुण के सम्मान में किया गया

गोष्ठी की अध्यक्षता घनश्याम ने की. पूर्व मध्य रेल के राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने मुख्य अतिथि तथा इलाहाबाद की रेल राजभाषा अधिकारी सुनीला यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित थीं

आयोजन का संयोजन, संचालन और अतिथियों का स्वागत किया भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के अध्यक्ष, कवि, कथाकार और चित्रकार सिद्धेश्वर ने. उन्होने बिना हाथों के बिना खंजर के होने की बात की-
हाथ ही नहीं  / तो खंजर किस काम का
संज्ञा हो नपुंसक / तो क्या हो सर्वनाम का
ऊंघने लगे शब्द / भाषण के मौसम में।

सम्राट समीर ने संगीत का अद्भुत रूप दिखाया-
एक परिंदा जो अपनी पांखों से 
संगीत लिखता है

इस अवसर पर सम्मानित शायर अशोक अंजुम ने अपनी ग़ज़लों, गीतों और कविताओं का पाठ कर उपस्थित श्रोताओं को भावविभोर कर दिया - 
ये तीर  जो न होते, तलवार जो न होते
हर ओर अम्न होता, हथियार जो न होते
डूबती उम्मीदों को फिर कोई रौशनी दे रहा है 
वो पिता के हाथ में पहली कमाई दे रहा है

इस अवसर पर चेन्नई के डा.सुन्दरम् पार्थसारथी, डा.के.मुरली तथा उत्तराखंड के कवि साहित्यकार कालिका प्रसाद सेमवाल की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमामय बनाया. विदित हो कि उपर्युक्त पांचों अतिथि कवि, शायर और साहित्यकार कल बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा शताब्दी सम्मान से विभूषित किए गए थे

मधुरेश शरण ने अपनी खामोशी का राज खोला -
तूने जो ढाये हैं सितम, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ
दुनिया के देख रंग-ढंग, मैं क्या कहूँ, खामोश हूँ

लता प्रासर ने प्रेम के लिए दुनिया में आग लग जाने को सही ठहराया-
लोग कहते हैं तुझको / आशिकी का समंदर
जरा इन अश्कों की गिनती / बताकर तो देखो
आग लगती है दुनिया में / तो लग जाने दे
तुम खुदा से रूह मिला कर तो देखो।   

मो. नसीम अख्तर ने विभाजनकारी बातों पर दुःख जताया-
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी दिल को
जो दीवार घर में उठाई गई है।

विजय गुंजन अपने बिखरे जीवन को यूँ संभालते हुए दिखे -
बिखरे पन्नों को जमा फिर से कर रहा हूँ
रंग उनमें सुनहले फिर से भर रहा हूँ।

चेन्नई से पधारे कवि ईश्वर करुण ने नदियों की दुर्दशा पर अपनी बेहतरीन कविता से काफी प्रभावित किया

सभा की अध्यक्षता कर रहे घनश्याम ने अमन के जिस्म के क्रुद्ध होने की स्थिति को जोरदार तरीके से बयाँ किया-
अमन का जिस्म जब जब चोट खाकर क्रुद्ध होता है
तो जीवन-मौत का जमकर भयंकर युद्ध होता है
धरा के शुभ्र आँचल पर लगे जब खून के धब्बे
तो उसकी कोख से उत्पन्न गौतम बुद्ध होता है

गोष्ठी में सम्राट समीर, नसीम अख़्तर, मधुरेश नारायण, लता प्रासर, शुभचन्द्र सिन्हा,श्री  कान्त व्यास, मेहता डा.नगेन्द्र सिंह, आचार्य विजय गुंजन, राजमणि मिश्र, सिद्धेश्वर के अलावा घनश्याम ने भी काव्य पाठ किया.
धन्यवाद ज्ञापन किया कवि, गीतकार  मधुरेश नारायण ने
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आलेख - घनश्याम / सिद्धेश्वर
छायाचित्र सौजन्य - घनश्याम / सिद्धेश्वर
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Tuesday, 4 June 2019

भोजपुरी त्रैमासिकी 'सँझवत ' के प्रवेशांक (अप्रैल-जून, 2019) का लोकार्पण पटना में 28.5.2019 को सम्पन्न

स्तरीयता से कभी समझौता नहीं होगा 
वर्तमान पीढ़ी में लेखकों की संख्या अत्यल्प



पटना। वरिष्ठ साहित्यकार और भोजपुरी के गालिब कहे जाने वाले जगन्नाथ के आवास पर भाषा, साहित्य, संस्कृति, संवेदना और शोध की भोजपुरी त्रैमासिकी 'सँझवत' के प्रवेशांक (अप्रैल-जून, 2019) लोकार्पण-कार्य संपन्न हुआ। 

पत्रिका का विमोचन करते हुए जगन्नाथ ने कहा कि यह पत्रिका भोजपुरी भाषा और साहित्य को समझने में उपयोगी होगी। उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि डॉ. विमल के संपादन में यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित होती रहेगी और स्तरीयता से कभी समझौता नहीं करेगी। अपने उद्बोधन के दौरान श्री जगन्नाथ ने भावुक होते हुए इस विषय पर चिंता भी व्यक्त की कि वर्तमान पीढ़ी में लेखकों की संख्या अत्यल्प है। नई पीढ़ी के लेखकों को भोजपुरी में लेखन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और विभिन्न विषयों और विधाओं में उनसे लिखवाया जाना चाहिए।

मौके पर हिंदी और भोजपुरी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी और प्रधान संपादक डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल के साथ ही अन्य साहित्यप्रेमी भी मौजूद थे।

भोजपुरी और हिंदी साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने 'सँझवत' के आकर्षक आवरण पृष्ठ की जमकर प्रशंसा करते हुए उसमें प्रकाशित सामग्री की स्तरीयता और उपादेयता पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्री द्विवेदी ने भरपूर खुशी और विश्वास के साथ कहा कि डॉ. विमल के संपादन में यह पत्रिका निस्संदेह भोजपुरी भाषा के मानकत्व तथा साहित्य को एक विशिष्ट ऊँचाई प्रदान करेगी।

उन्होंने कहा कि विभिन्न गद्य विधाओं के लिए विषय देकर और काव्य के क्षेत्र में विशिष्ट छंदों में लेखन कराकर नई पीढ़ी की ऊर्जा को भोजपुरी लेखन के लिए प्रेरित किया जा सकता है। संपादक नए लेखकों को यह भरोसा दिला पाएँ कि उनकी रचनाओं को संशोधित कर बेहतर रूप दिया जा सकता है तो वे युवा रचनाकारों की एक अच्छी टीम तैयार कर सकते हैं।

पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल ने 'सँझवत' में प्रकाशित सामग्री का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह प्रवेशांक वास्तव में पत्रिका का अनंतिम रूप नहीं है, वरन् मूल्यवान सुझावों के आलोक में अगले कुछ अंकों के बाद ही इसके रूप की सुनिश्चितता स्पष्ट हो पाएगी।

उन्होंने विश्वास दिलाया कि वे नई पीढ़ी के रचनाकारों की टीम तैयार करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए जितना भी संभव हो पाएगा, प्रयत्न करते रहेंगे। वे जहाँ 'सँझवत' को मुख्य रूप से शोध और समीक्षा की पत्रिका के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, वहीं साहित्य की हर विधा में लेखन हेतु उसे एक मानक और प्रेरक मंच भी बनाना चाहते हैं।

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आलेख - रामरक्षा मिश्र विमल
छायाचित्र सौजन्य - रामरक्षा मिश्र विमल
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