स्याही से पत्थरों का जिगर काटते रहे
हिन्दी, बज्जिका व अंगिका के गीतों,गजलों, कविताओं व छंदों के सस्वर पाठ ने सोमवार की देर शाम जौनापुर (समस्तीपुर) में वो खुशबू बिखेरी कि श्रोता आह्लादित होते रहे, तालियां बजाते रहे, मगन होते रहे। बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद् व साहित्य परिषद् के संयुक्त बैनर तले आयोजित इस काव्य संगोष्ठी में अध्यक्ष थे हरिनारायण सिंह हरि और यह उन्हीं के आवासीय-परिसर में सम्पन्न हुई।
मुख्य अतिथि हिन्दी व अंगिका के ऊर्जावान युवा साहित्यकार सह कविताकोश के उपनिदेशक राहुल शिवाय उपस्थित थे जबकि विशिष्ठ अतिथि के रूप में ख्यात युवा समालोचक व साहित्यकार अश्विनी आलोक उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। संचालन का दायित्व हिन्दी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर मृदुल ने ले रखा था। मुख्य अतिथि राहुल शिवाय को अंगवस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया।
मुख्य अतिथि हिन्दी व अंगिका के ऊर्जावान युवा साहित्यकार सह कविताकोश के उपनिदेशक राहुल शिवाय उपस्थित थे जबकि विशिष्ठ अतिथि के रूप में ख्यात युवा समालोचक व साहित्यकार अश्विनी आलोक उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। संचालन का दायित्व हिन्दी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर मृदुल ने ले रखा था। मुख्य अतिथि राहुल शिवाय को अंगवस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत मृदुल ने अपने दोहे सुनाकर की। उन्होंने अपने दोहों के द्वारा वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं को उकेरते हुए कहा कि -
मनुज-मनुज से दूर हो, करते एकालाप ।
जीवन भर वे झेलते, पल-पल नव संताप।
विशिष्ठ अतिथि अश्विनी आलोक ने अपने कई वैसे छंद सुनाये जिनमें कविता की विशिष्टता और उसकी परिभाषा दी गयी थी ।एक छंद की अंतिम दो पंक्तियां दृष्टव्य हैं -
"कविता की महिमा को जिसने भी जान लिया
आदमी गरीब से अमीर बन जाता है।"
मुख्य अतिथि राहुल शिवाय ने भी अपने अंगिका व हिन्दी के गीत-गजल सुनाकर लोगों के मन को मोह लिया। उन्होंने अपने अंगिका गीत में आज के परिवेश पर तंज कसते हुए कहा -
"दू बच्चा, बीवी, दू कमरा इहे घोर (घर)-परिवार।"
आगे गजल में फरमाया कि -
हिम्मत से हम दुरूह सफर काटते रहे
स्याही से पत्थरों का जिगर काटते रहे।
अंत में इस संगोष्ठी के अध्यक्ष हरिनारायण सिंह 'हरि' ने भी अपने हिन्दी में रचित नवगीत को सुनाया -
"शादी हुई गये वे बाहर, बेटे बहुएं सब
घर में केवल बूढ़े-बूढ़ी रोग ग्रसित हैं अब।"
फिर बज्जिका गीत सुनाया -
"लगा कऽ नेह तोरा से कि हम तऽ स्वर्ग पा गेली"
उन्होंने और भी अनेक रचनाएं सुनायी।
इस तरह से साहित्यकारों का यह सुखद मिलन एक यादगार संगोष्ठी की मधुर स्मृति में परिणत हो गया।
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आलेख - हरिनारायण सिंह 'हरि'
छायाचित्र - बिहार राज्य बज्जिका विकास परिषद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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