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Friday, 30 August 2019

रा. वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच द्वारा काव्य-मंच गोपाल सिंह नेपाली पखवारा में एक काव्य-गोष्ठी 29.8.2019 को पटना में संपन्न

हम धरती क्या आकाश बदलने वाले हैं

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दिनांक 29.08.2019 को राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य-मंच,पटना के तत्वावधान में,कविवर गोपाल सिंह नेपाली पखवारा के अवसर पर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन, हास्य कवि श्री विश्वनाथ प्रसाद वर्मा के उत्तरी श्रीकृष्णापुरी,लालबहादुर शास्त्री पथ स्थित आवास में बेतिया से पधारे वरिष्ठ कवि डा.गोरख प्रसाद"मस्ताना" के सम्मान में किया गया.

आयोजन की अध्यक्षता सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी तथा संचालन सुचर्चित कवि,कथाकार, चित्रकार श्री सिद्धेश्वर ने किया. गोष्ठी के संयोजक थे वरिष्ठ गीतकार श्री मधुरेश नारायण.
सर्वप्रथम उपस्थित कवियों ने कविवर गोपाल सिंह नेपाली के चित्र पर माल्यार्पण के साथ श्रद्धा-सुमन अर्पित किया.

मुख्य अतिथि डा. गोरख प्रसाद "मस्ताना" ने नेपाली जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपना विचार व्यक्त करते हुए बताया कि वे बहुमुखी काव्य-प्रतिभा के धनी थे और नेपाली जी के घर के पड़ोस में ही उनका भी आवास है. नेपाली जी के गीतों की सुगंध बेतिया की मिट्टी में रची-बसी है जिसकी वजह से वहां के अनेक गीतकारों ने ऊर्जा प्राप्त कर साहित्य में अपनी पहचान बनाई.

घनश्याम ने नेपाली जी के प्रति अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें भारत-चीन युद्ध के दौरान नेपाली जी का काव्य पाठ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और उनके ओजपूर्ण गीतों ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला. उनके हृदय में काव्य का बीज-वपण कदाचित् उसीसमय हो गया था जो कालान्तर में अंकुरित हुआ.
उन्होंने नेपाली जी की एक रुबाई :
अफ़सोस नहीं इसका हमको, जीवन में हम कुछ कर न सके.
झोलियां किसी की भर न सके,सन्ताप किसी का हर न सके.
अपने प्रति सच्चा रहने का, जीवन भर हमने काम किया.
देखा-देखी हम जी न सके, देखा-देखी हम मर न सके.
प्रस्तुत कर उनकी स्मृति को नमन किया और बाद में अपनी ग़ज़लें सुनाईं.

कवि गोष्ठी में श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा. गोरख प्रसाद " मस्ताना",हास्य कवि विश्वनाथ प्रसाद वर्मा, मधुरेश नारायण, सिद्धेश्वर, डा.निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा, एम.के. मधु,डा. रमाकांत पाण्डेय,शुभचन्द्र सिन्हा तथा एकलव्य कुमार ने विभिन्न विषयों की समसामयिक कविताएं सुनाईं.

अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने नेपाली जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे राष्ट्रीयता, प्रकृति-सौन्दर्य और यथार्थ परक भावों के ऐसे समर्थ गीतकार थे जो उस कालखंड में छायावाद की रहस्यात्मकता से निकल कर जन-भावना का प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाओं का सृजन किया. यही कारण था कि उन्होंने उत्तर छायावाद काल के सर्वाधिक श्रेष्ठ और लोकप्रिय कवि के रूप में अपनी पहचान बनाई किन्तु दुर्भाग्यवश उनका साहित्य जगत में उतना मूल्यांकन नहीं हुआ जिसके वे वास्तविक हक़दार थे. 

इस क्रम में उन्होंने नेपाली जी के गीतों की कुछ प्रमुख पंक्तियों यथा " तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,मेरा धन है स्वाधीन कलम, हम धरती क्या आकाश बदलने वाले हैं/ हम तो कवि हैं, इतिहास बदलने वाले हैं" के भावार्थ प्रस्तुत करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया तथा गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं पर अपना सार्थक मन्तव्य प्रस्तुत किया. अन्त में आतिथेय श्री विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
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आलेख - घनश्याम 
छायाचित्र - वरिष्ठ नागरिक अधिकार मंच 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com






















Wednesday, 28 August 2019

"हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्" खगड़िया, द्वारा "जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व" खगडिया में 24&25 अगस्त को सम्पन्न

"जनता धरती पर बैठी है नभ में मंच खड़ा है"
जानकी बल्लल्भ शास्त्री - चेतना और दार्शनिकता का अद्भुत समन्वय

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खगड़िया: 24-25 अगस्त 2019 "हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्" खगड़िया, बिहार के दो दिवसीय 17 वें महाधिवेशन "जानकी वल्लभशास्त्री स्मृति पर्व" का आग़ाज़ झंडोत्तोलन से हुआ। अध्यक्ष "रामदेव पंडित राजा" ने साहित्य पताका फहराया और सभी उपस्थित साहित्यकारों ने "जय-जय-जय साहित्य पताका" सामवेत स्वर में गाकर कार्यक्रम की शुरूआत की।

कार्यक्रम का उद्घाटन बिहार अंगिका अकादमी पटना के अध्यक्ष "डॉ० लखन लाल सिंह आरोही" ने दीप प्रज्वलित करके किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि खगड़िया में साहित्य की लेखन, प्रकाशन और आयोजन की त्रिवेणी बहती है। यह साहित्य का प्रयाग है। खगड़िया की आज देश में विशेष पहचान है, जिसे कैलाश झा "किंकर" एवं उनके सहयोगी हैं, विगत बीस वर्षों से अनवरत संघर्ष करते हुए खगड़िया-साहित्य को इस मुकाम तक पहुँचाया है इसकी मैं भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ एवं खगड़िया की धरती को प्रणाम करता हूँ।

सरस्वती वन्दना और स्वागत गान के बाद स्वागताध्यक्ष ई० धर्मेंद्र कुमार एवं सचिव "कविता परवाना" द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। "कैलाश झा किंकर" के सम्पादकत्व में जानकी वल्लभशास्त्री पर केन्द्रित कौशिकी के 70 वें अंक का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ० संजय पंकज समेत सभी मंचस्थ अतिथियों ने किया।

डॉ० कपिलदेव महतो ने मंचसंचालन करते हुए "जानकी वल्लभशास्त्री" जी और उनके रचना संसार पर परिचर्चा के लिए विषय प्रवेश कराया। डॉ० सिद्धेश्वर काश्यप जी ने कहा कि जानकी वल्लभ शास्त्री एक स्वाभिमानी साहित्यकार थे। पद्मश्री सम्मान ठुकराने की हिम्मत सब में नहीं होती है। मानवीय स्मिता के संपोषक आचार्य "जानकी वल्लभ शास्त्री" पर हमें गर्व है। मुजफ्फरपुर से पधारे पं० "गंगा प्रसाद झा" ने कहा कि आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी के विपुल साहित्य-संसार में साहित्यिक चेतना और दार्शनिकता का अद्भुत समन्वय है। डॉ० उमेश प्रसाद सिंह, प्राचार्य, "अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय" रहीमपुर खगड़िया ने अपने उद्गार में कहा कि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के संदर्भ में रवीन्द्र नाथ ठाकुर" ने कहा था कि "जानकी वल्लभशास्त्री" आधुनिक युग के कालिदास हैं। संस्कृत के इतने बड़े उद्भट विद्वान और साहित्यकार ने निराला जी के कहने पर हिन्दी में भी रचना करने लगे। 

विकास कुमार, सुनील कुमार मिश्र एवम् मणिभूषण सिंह ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री को पशु-प्रेमी और दार्शनिक कवि मानते हुए उनके गाय, कुत्ता, बिल्ली आदि के प्रेम को रेखांकित किया। डॉ० वन्दना भारती, हिन्दी अधिकारी, पूर्वोत्तर केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने कहा कि आलोचक उन्हें कभी छायावादी कवि, कभी प्रगतिशील तो कभी श्रृंगारिक कवि मानते रहे। सच्चे अर्थों में वो साहित्य के हर विधा के आचार्य कवि थे। "मणिभूषण सिंह" ने "निराला निकेतन" की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि निराला निकेतन एक साहित्यिक तीर्थ है। जिन्होंने भी वहाँ अवगाहन किया धन्य हुआ। झारखंड से पधारे डॉ० प्रदीप प्रभात ने "आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री" को बेजोड़ कवि कहा। संवदिया के संपादक "मांगन मिश्र मार्तण्ड" ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी को किसी भी वाद से ऊपर का कवि माना। उन्होंने उनकी कविता की पंक्ति को दुहराया-
जनता धरती पर बैठी है नभ में मंच खड़ा है
जो जितना है दूर मही से उतना वही बड़ा है।

मुख्य अतिथि डॉ० संजय पंकज ने आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री से जुड़े अनन्य संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि "निराला" जी के कहने पर आचार्य जी हिन्दी में रचना करने लगे, यह बात नहीं है। बात यह है कि "निराला" जी ने हिन्दी के भविष्य के प्रति उन्हें आगाह करते हुए कहा था कि सामान्य जन तक हिन्दी में लिखी रचनाएँ ही पहुंच बना पाएगी। संस्कृत, हिन्दी और बंगला भाषा के ऐसे साहित्य-मनीषी समय और मूल्यहीनता से आहत थे। उनकी अनेक रचनाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा-
ऊपर-ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं
कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीने वाले हैं।

"रवीन्द्रनाथ ठाकुर" और "जानकी वल्लभशास्त्री" के संवाद संस्मरण से श्रोतागण भी संवेदनशील हुए। इस परिचर्चा में खगड़िया से डॉ० विभा माधवी भी शामिल हुई।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में "रामदेव पंडित राजा" ने कहा कि आचार्य जानकी वल्लभशास्त्री जी का सिद्धांत था "जीओ और जिलाओ"। अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूर औरों की मदद करनी चाहिए। गाएँ, कुत्ते और बिल्लियाँ उन्हें प्रिय थे। कौशिकी के आवरण चित्र से पाठक भी इसे समझ पाएँगे।

स्वागत सचिव बड़े लाल यादव ने सभी अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कैलाश झा किंकर, रामदेव पंडित राजा और कविता परवाना के साहित्यिक संघर्षों को भी रेखांकित किया। इस अवसर पर सभी अतिथियों को "जानकी वल्लभ शास्त्री" स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान में अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, डायरी और चाँदी की कलम से साहित्यकारों को अलंकृत करते हुए परिषद् स्वयम् सम्मानित हुई।

द्वितीय सत्र  में "कवि सम्मेलन" की अध्यक्षता प्रो० चन्द्रिका प्रसाद सिंह विभाकर ने की। इसमें राष्ट्रभक्ति पर आधारित रचनाएँ विशेष रूप से पढ़ी  गईं उद्घाटन कर्ता थे कवि घनश्याम। मुख्य अतिथि के रूप में तमिलनाडू "हिन्दी साहित्य अकादमी" के महासचिव "ईश्वर करुण" थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में काव्य पाठ करने वालों में "अशोक मिज़ाज बद्र", सागर मध्यप्रदेश, दीनानाथ सुमित्र, अवधेश्वर प्रसाद सिंह, चाँद मुसाफिर, बाबा बैद्यनाथ झा, हरि नारायण सिंह हरि, सूर्य कुमार पासवान, अनिल कुमार झा, झारखंड, अवनीश त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश, ज्ञानेन्द्र मोहन ज्ञान, उमाशंकर राव उरेन्दु, गोविंद राकेश, प्रकाश सेन प्रीतम, राजीव रंजन, सियाराम यादव मयंक, रवि कुमार रवि, दिनकर दीवाना, रंजित तिवारी, मुकेश कुमार सिन्हा, सुखनन्दन पासवान, विजय व्रत कंठ, अवधेश कुमार "आशुतोष", अशोक कुमार चौधरी, संदीप कपूर वक़्तनाम, विनोद कुमार हँसौड़ा, सच्चिदानंद किरण, शिव कुमार सुमन,सुधीर कुमार प्रोग्रामर, भागलपुर और शिव कुमार सुमन, खगड़िया ने देर रात तक अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से श्रोताओं को बाँधे रखा।   

"कैलाश झा किंकर" विरचित ग़ज़ल संग्रह " दूरी न रहेगी" का लोकार्पण सागर, मध्यप्रदेश से पधारे अन्तर्राष्ट्रीय ग़ज़लकार "अशोक मिज़ाज बद्र" ने किया और पुस्तक की सराहना की।

सभी प्रतिभागी कवियों को सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, डायरी और चाँदी की कलम से आदरपूर्वक सम्मानित किया गया। 25-08-2019 (रविवार) को तीसरे सत्र में कवयित्री सम्मेलन का उद्घाटन डॉ०अलका वर्मा, त्रिवेणीगंज ने किया। डॉ० "कविता परवाना" की अध्यक्षता में आयोजित कविसम्मेलन की मुख्य अतिथि डॉ० ज्योत्सना सक्सेना, राजस्थान मंचस्थ थी। विशिष्ट अतिथि के रूप में कविता पाठ करने वालों में पंखुड़ी सिन्हा, डॉ० भावना, डॉ० अर्चना पाठ्या, महाराष्ट्र, डॉ० प्रतिभा कुमारी पराशर, डॉ० अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, डॉ० कल्याणी कुसुम स़िह, रंजना सिंह, रंजना सिंह "अंगवाणी", अर्चना चौधरी, चम्पा राय, संगीता चौरसिया, कुमारी स्मृति उर्फ कुमकुम, निभा उत्प्रेक्षा, विनीता साहा, रूबी  कुमारी, नीलम सयानी, नेहा नूपुर, अणिमा रानी आदि प्रमुख थीं। 

कवयित्री सत्र का मंच संचालन नेहा नूपुर, आरा और अणिमा रानी, खगड़िया को काफी सराहा गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ० विभा माधवी द्वारा किया गया।   उन्होंने कहा कि "शहीद प्रभुनारायण" और "जावेद" की इस पवित्र धरती खगड़िया में "जानकीवल्लभ शास्त्री महाधिवेशन" के  आज इस कार्यक्रम की वजह से पूरे देश की नजर खगड़िया की ओर है।"

आज खगड़िया में मिले, कवि लेखक विद्वान।
चमक खगड़िया की बढ़ी, पूरे हिंदुस्तान।।
एक साथ हैं मंच पर, सौ-सौ सुधी अदीब।
मिला बहुत संयोग से, ऐसा हमें नसीब।

चतुर्थ सत्र का उद्घाटन भागलपुर से पधारे लब्ध प्रतिष्ठ वयोवृद्ध लघुकथाकार "दिनेश बाबा" ने किया। डॉ० रामदेव प्रसाद शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित लघुकथा पाठ के मुख्य अतिथि थे कथाकार संजय कुमार अविनाश, लखीसराय और विशिष्ट अतिथि के रूप में माधवी चौधरी, विनोद कुमार विक्की, संजना तिवारी, स्मिताश्री, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, नीरज कुमार सिन्हा, बाबा बैद्यनाथ झा, राहुल शिवाय आदि ने अपनी-अपनी लघुकथाओं से श्रोताओं को प्रभावित कर दिया।

इस अवसर पर "संजय कुमार अविनाश" लिखित पुस्तक "पगडंडी टू हाईवे" का लोकार्पण डॉ० दिनेश बाबा और मंचस्थ अतिथियों ने सोल्लास सम्पन्न किया। इस सत्र के मंचसंचालक राहुल शिवाय, उपनिदेशक, कविता कोश ने किया।

पंचम सत्र की शुरूआत 'अवधेश कुमार आशुतोष' जी की सरस्वती वंदना से हुई। इस सत्र का उदघाटन जट-जटिन फिल्म के निदेशक "अनिल पतंग" ने दीप प्रज्वलित करके किया। "सूर्य कुमार पासवान" की अध्यक्षता में आयोजित इस अभिनय सत्र के मुख्य अतिथि थे बिहार के प्रसिद्ध फिल्म-नायक अमिय कश्यप। विशिष्ट अतिथि के रूप में सैकड़ों मंचि नाटकों के निदेशक साथी सुरेश सूर्य ।

'राजेश कुमार राही' के निर्देशन में होली बड स्कूल के छात्रों ने एकलव्य नाटक का मंचन किया। गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका में प्रतीक राज, एकलव्य की भूमिका अंकित कुमार, एकलव्य की माँ की भूमिका में राहुल कुमार, युधिष्ठिर की भूमिका  में आदित्य सक्सेना, भीम की भूमिका में अवनीश कुमार, अर्जुन की भूमिका में कीर्ति नलिन, सहदेव की भूमिका में सत्यम, नकुल की भूमिका में अमन कुमार, दुर्योधन की भूमिका में सौरभ कुमार, दुश्शासन की भूमिका में रौशन कुमार के अलावे हंस, मोर, बत्तख, कुत्ता आदि की भूमिका में क्रमश: राम कुमार, युवराज, आदित्यमूर्ति और अमन ने दर्शकों का दिल जीत लिया।

इस सत्र में "अवधेश कुमार आशुतोष" लिखित किताब "झंकृत कर माँ ज्ञान को" का लोकार्पण रंग अभियान के सम्पादक "अनिल पतंग", "बाबा वैद्यनाथ झा" समेत सभी मंचस्थ अतिथियों ने आह्लाद पूर्वक किया। इस सत्र का मंच संचालन " कैलाश झा किंकर ने किया।

षष्ठ सत्र का उद्घाटन डॉ० नरेश कुमार विकल, समस्तीपुर ने किया। 'अवधेश्वर प्रसाद सिंह' की अध्यक्षता में आयोजित यह सम्मान समारोह खास था। स्वर्ण पत्र/रजत पत्र से कृति के लिए सम्मानित करने की परंपरा सिर्फ खगड़िया में है। कृति के लिए बीस और एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता के लिए कुल इक्कीस स्वर्ण पत्र/रजत पत्र बनाए गये थे जिनमें "अशोक मिजाज़" की चुनिंदा ग़ज़लें के लिए अशोक मिजाज़ (सागर, म.प्र.) को रामवली परवाना स्वर्ण स्मृति सम्मान, दिन कटे हैं धूप चुनते के लिए अवनीश त्रिपाठी (सुलतानपुर, उ. प्र.) को हरिवंश राय बच्चन रजत स्मृति सम्मान ,चुप्पियों के बीच के लिए डॉ भावना (मुजफ्फरपुर, बिहार) को दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान, जीवन की हर बात के लिए डॉ हरि फ़ैज़ाबादी (लखनऊ, उ.प्र.), को कवि रहीम रजत स्मृति सम्मान, महात्मा गांधी का शैक्षणिक चिंतन के लिए डॉ अर्चना पाठ्या (वर्धा, महाराष्ट्र) को लषण शर्मा रजत स्मृति सम्मान ,और कब तक के लिए ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान" (शाहजहांपुर, उ. प्र.) को रमन रजत स्मृति सम्मान , रेगमाही के लिए ज्योत्सना सक्सेना (जयपुर, राजस्थान) को फणीश्वर नाथ रेणु रजत स्मृति सम्मान , जाने अनजाने न देख के लिए बाबा बैद्यनाथ झा (पूर्णिया, बिहार) को कृष्णदेव चौधरी रजत स्मृति सम्मान, अन्तर्मन की गूँज के लिए माधवी चौधरी (भागलपुर, बिहार) को महादेवी वर्मा रजत स्मृति सम्मान, हुआ कठिन अब सच-सच लिखना के लिए हरिनारायण सिंह 'हरि' (समस्तीपुर, बिहार) को रामधारी सिंह दिनकर रजत स्मृति सम्मान, हास्य व्यंग्य की भेलपुरी के लिए विनोद कुमार विक्की (महेशखूंट, बिहार) को नागार्जुन रजत स्मृति सम्मान, समय की पुकार हूँ मैं के लिए रथेन्द्र विष्णु 'नन्हें' (भागलपुर, बिहार) को आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति सम्मान, दुनिया का खेल निराला है के लिए  सूर्य कुमार पासवान (मुंगेर, बिहार) को कमलाकांत प्रसाद सिंह कमल रजत स्मृति सम्मान, बूंद-बूंद में सागर के लिए नीरज कुमार सिन्हा (गोड्डा, झारखंड) को रामविलास रजत स्मृति सम्मान, ठिठके यादों का मौसम के लिए अनिल कुमार झा (देवघर, झारखंड) को जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, एम्बीशन के लिए कविता परवाना (खगड़िया, बिहार) को  उपेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, हारिल की लकड़ी के लिए दीनानाथ सुमित्र (बेगूसराय, बिहार) को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रजत स्मृति सम्मान, बँटवारा के लिए विनोद कुमार हँसौड़ा (दरभंगा) को विधान चंद्र राय रजत स्मृति सम्मान, मन मंदिर कान्हा बसे के लिए  अवधेश कुमार आशुतोष (खगड़िया, बिहार) को  विश्वानंद रजत स्मृति सम्मान तथा, शब्दों का गुलदस्ता लाया हूँ के लिए अवधेश्वर प्रसाद सिंह (रोसड़ा, बिहार) को माहताब अली रजत स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। श्रेष्ठ कार्यकर्ता के लिए निर्धारित द्रौपदी देवी रजत स्मृति सम्मान से सचिव राहुल शिवाय को सम्मानित किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में मंचस्थ प्रसिद्ध ग़ज़ल-गो अनिरुद्ध सिन्हा और मंचस्थ अतिथियों के द्वारा सभी साहित्यकारों को स्वर्ण पत्र/रजत-पत्र, सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया। डॉ० हरि फ़ैज़ाबादी विरचित "माता का उपहार " का लोकार्पण मंचस्थ अतिथियों ने किया। मंचसंचालक का दायित्व कैलाश झा किंकर, सम्पादक "कौशिकी" ने निभाया।

 साँस्कृतिक सत्र का उद्घाटन दर्जनों साहित्यिक विदेश यात्राएँ कर चुके प्रख्यात शायर सुशील साहिल, गोड्डा, झारखंड ने किया। अशोक कुमार चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में पं० भीम  शंकर चौधरी, निदेशक, माँ राजकुमारी संगीत महाविद्यालय, खगड़िया मंचस्थ थे। विशिष्ट अतिथि डा० राकेश प्रसाद, वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, रमन आनन्द, मणि शंकर, राहुल दीवाना आदि मंचस्थ थे। सबकी प्रस्तुति सराही गयी। कैलाश झा किंकर ने " हम्मर बेटा छै बकलेल " की अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं और दर्शकों का खूब स्नेह पाया। वीणा प्राईमरी एकेडमी पिपरा की छात्राएँ पलक पल्लवी, श्वेता, पार्वती, प्राची, आरती, मोनी, साक्षी और निक्की ने वन्दे मातरम, राजस्थानी लोक नृत्य ढोलना, घर आ जा परदेशी तेरा देश बुलाए रे की प्रस्तुति से श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया। ऐश्वर्या राय, मोनिका रानी, मनोज कुमार विषैला और अभिषेक कुमार की प्रस्तुति भी लाजवाब थी। इस अवसर पर चम्मन टोला से फौदार यादव और साथी के द्वारा लोक गीत "अहीरन" की प्रस्तुति देर रात तक होती रही।

इस अवसर पर अशोक कुमार चौधरी विरचित "आरति आली कौन" का लोकार्पण अशोक मिजाज बद्र, ज्योत्सना सक्सेना, साथी सुरेश, प्रकाश सेन प्रीतम आदि ने किया। इस सत्र का सफल मंच संचालन वीरेंद्र कुमार दीक्षित ने किया।

उपस्थित श्रोताओं, दर्शकों, कवियों, पत्रकारों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए महासचिव "कैलाश झा किंकर" ने कहा कि इस आयोजन को सफल करने में साहित्य सेवी ई० रमेश कुमार, ई० धर्मेंद्र कुमार, बड़े लाल यादव, राजीव नयन सारथी, शशि शेखर, रोहित कुमार, अशोक कुमार चौधरी, कविता परवाना, राहुल शिवाय और रामदेव पंडित राजा के साथ-साथ कौशिकी के ह्वाटस्एप ग्रूप का बहुत बड़ा योगदान रहा, सभी के प्रति आभार। इस महाधिवेशन की खास बात यह रही कि दोनों दिन डॉ० विभा माधवी की देख रेख में पुस्तक विक्री केन्द्र खुला हुआ था। बहुत सारी किताबें बिकीं। विदाई के वक़्त बिकी हुई किताबों की राशि सम्बन्धित साहित्यकारों को दे दी गयी। लगभग सात हजार मूल्य की जो बची हुई किताबें थीं, सब राजमाता माधुरी देवी टीचर ट्रेनिंग कॉलेज आवासबोर्ड, रांको, खगड़िया ने अपने पुस्तकालय के लिए खरीद ली।
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आलेख - कैलाश झा किंकर
छायाचित्र - हिंदी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com








    

Sunday, 25 August 2019

"कृष्णा किल्लोल" - संगीत शिक्षायतन द्वारा पटना में जन्माष्टमी के अवसर पर 23.8.2019 को नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत

कृष्ण के अनेक रूप और नृत्य मुद्राओं की छटा

(Small News/ 1.शम्भू अगेही सम्मान- यहाँ क्लिक कीजिए / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch )


कृष्ण के विविध रूप हैं। जहाँ एक ओर वो राधा और गोपियों के साथ रास नचाते नजर आते हैं वहीं कालिया मर्दन करते भी दिखते हैं। इन सभी घटनाओं का आध्यात्मिक महत्व तो हैं ही साथ ही नृत्य-संगीत में भी ये घटनाएँ बहुविध प्रकार से अभिव्यक्ति की सामग्री के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर संगीत शिक्षा के प्रांगण में कृष्णा किलोल कार्यक्रम भक्ति भाव और सांस्कृतिक उत्सव को आयोजित कर मनाया गया नन्हे मुन्ने कलाकार कृष्ण रूप सज्जा में कृष्ण और गोपियों के रूप में नजर आए कार्यक्रम में शिक्षायतन पटना सिटी तथा कंकड़बाग केंद्र के कलाकारों द्वारा एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां होती रही। गायक कलाकरों द्वारा कुछ लोकप्रिय गानों पर शिक्षायतन के कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देते रहें और तालियां बजती रही। इतना ही नहीं कृष्ण के रासलीला और कालिया मर्दन की लीला को नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया गया। जिसे देख दर्शक कृष्ण भक्ति में डूब गए।

जयदेव की रचना अष्टपदी में वर्णित राधा - कृष्ण के मिलन प्रसंग को अदिति और स्नेहा के क्लासिकल नृत्य ने दर्शकों का मन जीत लिया। कथक नृत्यांगना यामिनी कथक और नेटवर्क कृष्ण की लीला को नृत्य कर मनमोहक रूप में प्रस्तुत किया साथ ही कृष्ण मिलन जिसमें कृष्ण का राधा से मिलन, कृष्ण का यशोदा से मिलन, और कृष्ण का यशोदा से मिलन को दिखाया।

कृष्णरूप सज्जा में रूद्र राज को बाल कृष्णा किलोल सम्मान से सम्मानित किया गया। भाग लेने वाले कलाकार अनुष्का, पूजा चौधरी, खुशी, हर्षिता,सुहानी, आरोही, विष्णु थे। सांस्कृतिक अवसर पर संस्था की सचिव रेखा शर्मा, सम्मानित अथिति अवधेश कुमार झा (लेखक व कवि), निर्देशिका यामिनी शर्मा, संस्कार भारती पटना इकाई के प्रवीण कुमार, नृत्य गुरु रवी मिश्रा आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।

यह कार्यक्रम संगीत शिक्षायतन के संगीत शिक्षायतन, काली मंदिर रोड, कंकरबाग, पटना के प्रांगण में सम्पन्न हुआ
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समाचार स्रोत - यामिनी
प्रेषण सहयोग - मधुप चंद्र शर्मा









देखना फिर से / लक्ष्मीकांत मुकुल की दो कविताएँ

देखना फिर से शुरू किया दुनिया को 

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उस भरी दुपहरी में
जब गया था घास काटने नदी के कछार पर
तुम भी आई थी अपनी बकरियों के साथ
संकोच के घने कुहरे का आवरण लिए
अनजान, अपरिचित, अनदेखा
कैसे बंधता गया तेरी मोहपाश में

जब तुमने कहा कि
तुम्हें तैरना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी नदी की धार
पूछें डुलाती मछलियाँ
बालू, कंकडों, कीचड़ से भरा किनारा
जब तुमने कहा कि
तुम्हें उड़ना पसंद है नील गगन में पतंग सरीखी
मुझे अच्छी लगने लगी आकाश में उड़ती पंछियों की कतार
जब तुमने कहा कि
तुम्हें नीम का दातून पसंद है
मुझे मीठी लगने लगी उसकी पत्तियां, निबौरियां

जब तुमने कहा कि
तुम्हें चुल्लू से नहीं, दोना से
पानी पीना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी
कुदरत से सज्जित यह कायनात
जब तुमने कहा कि
तुम्हें बारिश में भींगना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी
जुलाई -अगस्त की झमझम बारिश, जनवरी की तुषार 

जब तुमने कहा की यह बगीचा
बाढ़ के दिनों में नाव की तरह लगता है
मुझे अच्छी लगने लगी
अमरूद की महक, बेर की खटास
जब तुमने कहा कि
तुम्हें पसंद है खाना तेनी का भात
भतुए की तरकारी, बथुए की साग
मुझे अचानक अच्छी लगने लगीं फसलें
जिसे उपजाते हैं श्रमजीवी
जिनके पसीने से सींचती है पृथ्वी

तुम्हारे हर पसंद का रंग चढ़ता गया अंतस में
तुम्हारी हर चाल, हर थिरकन के साथ
डूबते - खोते - सहेजने लगी जीवन की राह
मकड़तेना के तना की छाल पर
हंसिया की नोक से गोदता गया तेरा नाम, मुकाम

प्रणय के उस उद्दात्त क्षणों में कैसे हुए थे हम बाहुपाश
आलिंगन, स्पर्श, साँसों की गर्म धौकनी के बीच
मदहोशी के संवेगों में खो गये थे
अपनी उपस्थिति का एहसास
हम जुड़ गए थे एक दूजे में, एकाकार
पूरी पवित्रता से, संसार की नज़रों में निरपेक्ष

मनुष्यता का विरोधी रहा होगा वह हमारा अज्ञात पुरखा
जिसने काक जोड़ी को अंग-प्रत्यंग से लिपटे
देखे जाने को माना था अपशकुन का संदेश
जबकि उसके दो चोंच चार पंख आपस में गुंथकर
मादक लय में थाप देते सृजित करते हैं जीवन के आदिम राग
 पूछता हूँ क्या हुआ था उस दिन

जब हम मिले थे पहली बार
अंतरिक्ष से टपक कर आये धरती पर
किसी इंद्र द्वारा शापित स्वर्ग के बाशिंदे की तरह नहीं
बगलगीर गाँव की निर्वासिनी का मिला था साथ
पूछता हूँ कल-कल करती नदी के बहाव से
हवा में उत्तेजित खडखड़ाते ताड़ के पत्तों से
मेड़ के किनारे छिपे, फुर्र से उड़ने वाले ‘घाघर’ से
दूर तक सन्-सन् कर सन्देश ले जाती पवन-वेग से
सबका भार उठाती धरती से
ऊपर राख के रंग का चादर फैलाए आसमान से

प्रश्नोत्तर में खिलखिलाहट
खिलखिलाहटों से भर जाती हैं प्रतिध्वनियाँ
यही ध्वनि उठी थी मेरे अंतर्मन में
जब तुमने मेरे टूटे चप्पल में बाँधी थी सींक की धाग
देखना फिर से शुरू किया मैंने इस दुनिया को
कि यह है कितनी हस्बेमामूल, कितनी मुक़द्दस.
.......
(हस्बेमामूल = हमेशा की तरह, मुकद्दस = पवित्र) 


गूंगी जहाज

सर्दियों की सुबह में 
जब साफ़ रहता था आसमान 
हम कागज़ या पत्तों का जहाज बनाकर 
उछालते थे हवा में 
तभी दिखता था पश्चिमाकाश में 
लोटा जैसा चमकता हुआ 
कौतूहल जैसी दिखती थी वह गूंगी जहाज 

बचपन में खेलते हुए हम सोचा करते
कहा जाती है परदेशी चिड़ियों की तरह उड़ती हुई
किधर होगा बया सरीखा उसका घोसला 
क्या कबूतर की तरह कलाबाजियाँ करते 
दाना चुगने उतरती होगी वह खेतों में 
कि बाज की तरह झपट्टा मार फांसती होगी शिकार 

भोरहरिया का उजास पसरा है धरती पर 
तो भी सूर्य की किरणें छू रही हैं उसे 
उस चमकीले खिलौने को 
जो बढ़ रहा है ठीक हमारे सिर के ऊपर 
बनाता हुआ पतले बादलों की राह
उभरती घनी लकीरें बढती जाती है 
उसके साथ 
जैसे मकड़ियाँ आगे बढती हुई 
छोडती जाती है धागे से जालीदार घेरा 
शहतूत की पत्तियाँ चूसते कीट 
अपनी लार ग्रंथियों से छोड़ते जाते हैं
रेशम के धागे 

चमकते आकाशीय खिलौने की तरह 
गूंगी जहाज पश्चिम के सिवान से यात्रा करती हुई
छिप जाती है पूरब बरगद की फुनगियों में 
बेआवाज तय करती हुई अपनी यात्रायें 
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण निश्चित किनारों पर 
पीछे -पीछे छोड़ती हुई 
काले -उजले बादलों की अनगढ़ पगडंडियां.
....
नोट – हमारे भोजपुरांचल में ऊंचाई पर उडता बेआवाज व गूंगा जहाज को लोगों द्वारा स्त्रीवाचक सूचक शब्द “गूंगी जहाज” कहा जाता है. इसलिए कवि ने पुलिंग के स्थान पर स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग किया है.
.......

कवि-  लक्ष्मीकान्त मुकुल
प्रतिक्रिया हेतु  ईमेल -  editorbejodindia@yahoo.com
परिचय
लक्ष्मीकांत मुकुल
जन्म – 08 जनवरी 1973
शिक्षा – विधि स्नातक
संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य
कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित .
पुष्पांजलि प्रकाशन ,दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रकाशित.
संपर्क : ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड, भाया – धनसोई, जिला – रोहतास (बिहार) – 802117
मो0 – 9162393009
ईमेल – kvimukul12111@gmail.com

 जाबिर हुसैन,  प्रख्यात साहित्यकार और पूर्व सभापति, बिहार विधान परिषद के साथ 

अक्तूबर, 2018  में साहित्यकारगण  (बायें सए) ब्रजकिशोर दूबे, हेमन्त दास'हिम', लक्ष्मीकांत मुकुल और  डॉ. विजय प्रकाश 

Thursday, 22 August 2019

निर्माण कला मंच द्वारा नाटक 'बिदेसिया' 20.8.2019 को पटना में मंचित

 औरत की दुश्मन औरत ही क्यों ?

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संजय उपाध्याय द्वारा निर्देशित और भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित बहुचर्चित नाटक 'बिदेशिया' का मंचन पटना के प्रेमचंद रंगशाला में देखने और देश के यशस्वी रंगकर्मी संजय उपाध्याय से मिलने का आज 20.8.20119 को अवसर मिला। कलाकारों का जीवंत अभिनय, जानदार संगीत तथा प्रकाश व्यवस्था ने हृदय को छू लिया। कथानक का ऐसा आकर्षण कि पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था यहां तक कि सैंकड़ों दर्शक खड़े थे और सीढियों पर बैठ गए थे। 


'बिदेसिया' एक संगीतमय नाटक है भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर का। इसमें दो मत नहीं है कि रोजी और रोजगार के लिए पलायन हमारे राज्य बिहार में सदियों से होता आ रहा है। देश और दुनिया के कई हिस्सों में जाकर अपनी मेहनत से  पहचान भी बनाते रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि यह पलायन हमेशा सुख-शांति नहीं लाता है।, बल्कि जीवन को दो राहों पर ला  कर खड़ा कर देता है। और फिर शुरू हो जाती है दुःख और दर्द की अंतहीन कहानी। अपनी माटी से दूर होने से लेकर जीवन साथी से विलग होने की त्रासदी पुरुष से अधिक नारी को झेलनी पड़ती है। टीस, विरह और प्रेम वियोग के विहंगम दृश्य को बहुत ही कारुणिक संवाद  गीत. और संगीत के माध्यम से रंगमंच पर साकार रूप दिया गया है, जो नाटक से जुड़े सभी पात्रों के लिए एक कठिन उपलब्धि है,। यह प्रस्तुति "निर्माण कला मंच" के द्वारा और संजय उपाध्याय के निर्देशन में पूरी तरह सफल रही है।

इस भोजपुरी नाटक में एक ऐसे युवक पर कहानी केंद्रित की गई है जो शादी के कुछ दिनों के बाद ही कोलकाता शहर घूमने और रोजगार की खातिर पलायन कर जाता है। वह शहर खूब भाता है उसे।। रोजगार पाने के क्रम में, वह भी बाजार का एक हिस्सा बन जाता है। कोई विदेशिया कब तक शहर की रंगीनियों से खुद को दूर रख सकता है भला? वह  विवाहित युवक भी इन विसंगतियों से खुद को बचा नहीं पाता है और वह वहां एक दूसरी महिला के साथ, अपना एक और घर बसा लेता है।

कुछ सालों के बाद वह युवक जब अपने गाँव वापस आता है तो घर में पहली पत्नी कोहराम मचाने लगती है। इस बीच कोलकाता वाली पत्नी भी वापस घर में पहुंच जाती है। कुछ नाराजगी और ना-नुकुर के बाद दोनों पत्नी. साथ साथ रहने को तैयार हो जाती हैं। यह रोचक अंत लेखक के सकारात्मक नजरिए को रेखांकित करती है।

लेकिन, हम इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी सौतन रखने के लिए तैयार हैं क्या? दूसरी शादी करने में पुरुष या नारी  जिसकी भी अहम भूमिका रही हो, बात अंततः घर की नारी के फैसले पर ही टिकी रहती है। और एक औरत की उपेक्षा या तिरस्कार एक औरत ही करती है। आखिर वह औरत यह क्यों नहीं समझती कि यदि उसके साथ भी  उपेक्षा की जाए तो कैसा लगेगा? आखिर और अंततः बात प्रेम की हो, दहेज उत्पीड़न की हो, बाल विवाह की हो, या फिर "विदेशिया" कहानी की सौतन की बात हो, हमारे सभ्य समाज में भी औरत की दुश्मन औरत ही क्यों होती है?

मुझे भिखारी ठाकुर की कालजयी कृति "विदेशिया" इसलिए भी बहुत पसंद आई कि मेरे विचारों के अनुरूप था इसका कथानक। वर्षों पहले लिखा गया यह नाटक तमाम संकीर्णताओं और ढकोसलापन से दूर है। और सबसे बड़ी बात कि यह आज भी उतना ही प्रासंगिक।है।
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
लेखक का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल -editorbejodindia@yahoo.com





वो वुमनिया द्वारा नुक्कड़ नाटक "ओरी चिरैया" 20.8.2019 को पटना में प्रस्तुत

"देखने तक? छूने तक? नोचने तक? या जिस्म के टुकड़े-टूकड़े होने तक ? 

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दुनिया की आधी आबादी दिन-प्रतिदिन की हिंसा, शोषण और दुराचार को झेलने को अभिशप्त है. हमारे जैसे रूढ़िवादी देश में तो इसकी दशा और भी भयावह है जहाँ नारी पर हो रहे हर अत्याचार को संस्कार का नाम देकर उसकी सहनशीलता की परीक्षा के नाम पर रफा-दफा कर दिया जाता है. हमारे जिस समाज में नारी ज्यादा से ज्यादा बर्दाश्त करने वाली होती है उस समाज को उच्च समाज कहा जाता है. चलो, हम कुछ पल के लिए मान भी लें कि शांति बनाये रखने के लिए नारी को बर्दाश्त करना ही चाहिए लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कब तक? इस ढकोसले वाली शांति का जिम्मा सिर्फ नारी ही क्यों उठाये और वो भी किस सीमा तक - देखने तक ?छूने तक ? नोचने तक ? या जिस्म के टुकड़े-टूकड़े होने तक ? आप ही बताइये आखिर कब तक?

पुरुष-प्रधान परिवार से, समाज से और देश से चीख-चीख कर दिलो-दिमाग को दहला देनेवाले ये सवाल पूछती लड़कियाँ कोई विदेशी, परायी या दूर-दराज की नहीं हैं.  ये  हैं  आपके  और हमारे घर की बच्चियां,  आपके और  हमारे घर की  नारियाँ. न जाने कब से ये लड़का-लड़की में भेदभाव, समय से पहले या बिना इच्छा  के शादी, बड़ी होकर अपने सपनों को तिलांजलि, घरेलू हिंसा से लेकर भ्रूण हत्या तक के  अमानवीय कृत्य सहती चली आ रही हैं! अगर इन सब से परे कोई लड़की घर से बाहर निकल भी जाती हैं तो उन्हें  छेड़खानी, बलात्कार, ऐसिड अटैक तक का शिकार होना पड़ता है.

रूबी खातून  द्वारा लिखित  और  निर्देशित यह  नुक्कड़  नाटक, निर्माण कला मंच के 31वें  स्थापना दिवस पर पटना के प्रेमचंद रंगशाला के प्रांगण में प्रदर्शित हुआ. दर्जनों नाटक में अबतक अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा चुकी रूबी खातून अब अपने अनुभव  को निर्देशन और लेखन में भी रूपांतरित कर रही हैं जो उनकी सफलता कही जानी चाहिए.  उपस्थित दर्शकों ने बार-बार तालियाँ बजाकर अपना  समर्थन जताया. भाग लेनेवाली महिला कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया. संगीत रोहित चन्द्र का था. अभिनय करनेवाली कलाकार नेहा निहारिका, माजरी मणि त्रिपाठी, लक्ष्मी राजपूत, प्रीति शर्मा एवं शान्ति थीं.

आज के समय में जब निर्भया जैसा जघन्य काण्ड होने के वाद भी रोज वैसी ही खौफनाक वारदातें होती जा रहीं हैं जिन्हें कभी-कभी सिर्फ जातीय या साम्प्रदायिक रूप से देखने की कोशिश भी होती है. यह सही है कि किसी  भी अत्याचार का शिकार कमजोर वर्ग ही ज्यादा होता है लेकिन नारी पर हो रहे जुल्म का अपना स्वरूप भी बहुत भयावह है जो वर्ग विभाजन के परे भी है. मुद्दा है नारी पर अत्याचार हो  रहा है और बढ़ता ही जा रहा है. इस अति  ज्वलंत मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाने हेतु रूबी खातून और उनके समूह के सारे कलाकारों की तारीफ़ करनी होगी. 
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र सौजन्य - रूबी खातुन
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


















Wednesday, 21 August 2019

आरा में रामनिहाल गुंजन सम्मान समारोह 18.8.2019 को सम्पन्न

साहित्य, सस्कृति में खोटे सिक्के नहीं चलते
पाँच राज्यों के साहित्यकार हुए समारोह में शामिल

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नागरी प्रचारिणी सभागार, आरा में रविवार को वरिष्ठ आलोचक, कवि और संपादक रामनिहाल गुंजन का सम्मान समारोह हुआ। शुरुआत इप्टा के गायक-संगीतकार नागेंद्र पांडेय द्वारा गुंजन के गायन से हुई। जितेंद्र कुमार ने लोगों का स्वागत किया और रामनिहाल गुंजन को जनता के पक्ष में खड़ा साहित्यकार बताया। 

पहले सत्र "शब्द-यात्रा और सम्मान" को संबोधित करते हुए बनारस से आए आलोचक अवधेश प्रधान ने कहा कि राजनीति समझती है कि उसने वक्त की बागडोर संभाल रखी है पर साहित्य-संस्कृति की विरासत उससे बहुत बड़ी है। सभ्यता-संस्कृति की जितनी लंबी उम्र है, हम उतनी लंबी उम्र लेकर आए हैं। साहित्य में जुमला संभव नहीं होता। राजनीति में खोटे सिक्के चल जाते हैं पर अर्थनीति और साहित्य-संस्कृति में खोटे सिक्के नहीं चलते। साहित्य में सम्मानीय होने के लिए एक पूरी उम्र देनी पड़ती है। राहुल सांकृत्यायन और रामविलास शर्मा पर रामनिहाल गुंजन की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदी समाज और संस्कृति के लिए इन दोनों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। दिल्ली से आए कवि और ‘अलाव’ पत्रिका के संपादक रामकुमार कृषक ने कहा कि आज के मनुष्य विरोधी समय में कला-साहित्य-संस्कृति का जो क्षेत्र है, वह मनुष्य होने की प्रेरणा देता है। गुंजन की आलोचना और रचना मनुष्यता के लिए समर्पित है। वे परंपरा में मौजूद और समकालीन रचनाओं का समग्रता में मूल्यांकन करने वाले आलोचक हैं।

रांची से आए आलोचक रविभूषण ने कहा कि आरा की जमीन बड़ी जरखेज है। गुंजन के सम्मान समारोह में पांच राज्यों के लेखकों का शामिल होना सामान्य बात नहीं है। गोरखपुर से आए जन संस्कृति मंच के महासचिव चर्चित पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने आज सोचने, बोलने और सवाल उठाने की आजादी का मुद्दा उठाया। लघु पत्रिकाओं की अपेक्षा डिजिटल माध्यम के जरिए कम समय में ज्यादा लोगों पर पहुंचना जरूर संभव है, पर इस माध्यम पर सत्ता प्रतिष्ठान कभी भी अंकुश लगा सकते हैं। इस वक्त का कश्मीर इस बात का साक्ष्य है। प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि रामनिहाल गुंजन को कभी भी प्रतिबद्धता से विचलित हुए नहीं देखा।

दूसरे सत्र के अध्यक्ष सुरेश कांटक ने कहा कि गुंजन जी कभी समझौता न करने वाले साहित्यकार रहे हैं। उनमें कभी कोई वैचारिक विचलन नहीं आया। आयोजन में जनपथ पत्रिका के संपादक और कथाकार अनंत कुमार सिंह पर भविष्य में सम्मान समारोह आयोजित करने का प्रस्ताव लिया गया। इस मौके पर चित्रकार राकेश दिवाकर की पेंटिंग और रविशंकर सिंह द्वारा बनाए गए पोस्टर लगाए गए थे। आयोजन स्थल पर एक बुक स्टॉल भी लगा था। मौके परकवि लक्ष्मीकांत मुकुल, कथाकार सिद्धनाथ सागर, प्रो. दिवाकर पांडेय, कवि अरविंद अनुराग, शायर इम्तियाज अहमद दानिश, कुर्बान आतिश, कवि आरपी वर्मा, अरुण शीतांश समेत अन्य मौजूद थे।

पहले सत्र के दौरान रामकुमार कृषक, रविभूषण, नीरज सिंह, अवधेश प्रधान ने गुंजन जी को सम्मानित किया। मान-पत्र का पाठ और सत्र का संचालन सुधीर सुमन ने किया। दूसरे सत्र ‘जीवन-कर्म : संगी-साथी की जुबानी’ संस्मरण केंद्रित था। सत्र की शुरुआत रामकुमार कृषक द्वारा ‘अलाव’ पत्रिका’ में प्रकाशित गुंजन की ‘दिल्ली’ शीर्षक की तीन कविताएं सुनाईं। इस सत्र में लखनऊ से आए कौशल किशोर ने कहा कि स्नेह-प्रेम और संवाद गुंजन की पहचान है। 1970 के वाम क्रांतिकारी आंदोलन का उन पर गहरा असर रहा है।

डॉ. विंध्येश्वरी और कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वे रचनाओं के प्रकाशित होने पर नोटिस लेकर नये साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने वाले आलोचक हैं। सुनील श्रीवास्तव ने अपने पिता विजेंद्र अनिल और रामनिहाल गुंजन के बीच के दोस्ताना रिश्ते को याद करते हुए कहा कि वे उनके अभिभावक की तरह हैं। चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि तीसरी धारा की संस्कृति की समृद्धि में इनकी बड़ी भूमिका है। सम्मानित साहित्यकार रामनिहाल गुंजन ने कहा कि उनका सम्मान दरअसल एक पूरी परंपरा का सम्मान है। उन्होंने कहा कि वे अपने आप को बहुत सामान्य व्यक्ति मानते हैं जो इस गरीब देश का नागरिक है।
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आलेख - लक्ष्मीकांत मुकुल
छायाचित्र - लक्ष्मीकांत मुकुल
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@yahoo.com